Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 141

विवेक की हालत को देखते सेल्विन ने उसे एक ऐसे छोटे कमरे में रखा था जहाँ वह खुद आकर उससे मिल लेता और उसे बाहर की सारी खबर देता| मेनका के आत्महत्या करने वाली बात बताते हुए सेल्विन बता रहा था –

“ये बिलकुल सच्ची खबर है – मेनका ने खुद को खत्म करने की कोशिश की – सुना है बड़ी मुश्किल से डॉक्टर ने उसे बचाया – काफी खून बह गया था – दीवान परिवार ने इस खबर को लाख छिपाने की कोशिश की पर मुझे पता चल ही गया|”

विवेक अपने हाथो के बीच सर थामे बैठा था| उसका चेहरा दर्द से भीग चुका था| वह बिना सर उठाए ग़मगीन आवाज में पूछता है –

“कहाँ है वो इस वक़्त ?”

“अरुण दीवान के किसी दोस्त के नर्सिंग होम में पर तुम क्या वहां जाने की सोच रहे हो ? तो तुम्हे बता दूँ वहां दिवान्स ने बहुत सिक्योरटी लगा रखी है |”

“मुझे किसी भी हालत में मेनका से मिलना होगा – मुझे उसके साथ बुरा करने का कोई हक़ नही था – मैं अब उसे सारा सच बता दूंगा फिर उसकी मर्जी चाहे इस रिश्ते को रखे या न रखे |”

विवेक की बात पर सेल्विन एकदम से चीख पड़ा – “तुम बहुत जज्बाती हो रहे हो विवेक – आखिर तुम्हारी बहन भी तो मौत से बदतर जिंदगी जी रही है – अब वही दीवान के साथ हो रहा है – कम से कम पता तो चले अपनों की तकलीफ क्या होती है|”

अबकी विवेक सर उठाकर सेल्विन की ओर देखता हुआ कहता है – “क्या इस सच को मैं झुठला सकता हूँ कि मेनका की तकलीफ मैं चाहकर भी नही देख सकता – मुझे उसे सारा सच बताना ही होगा -|”

“….विवेक…|”

सेल्विन को बीच में ही टोकता हुआ उठकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है – “मेनका को सच बताने का मतलब ये नहीं कि मैं अपना मकसद भूल गया – आकाश दीवान से अपना हिसाब पक्का किए बिना तो मौत भी मुझे नही छु सकती – बस कुछ ऐसा पता चल जाए जिससे मैं सिर्फ उसे घेर सकूँ – खैर मैं अभी इसी वक्त जा रहा हूँ मेनका के पास |”

“पागल मत बनो विवेक – तुम इस तरह खुद को खतरे में डाल लोगे -|”

सेल्विन के टोकने पर भी जब विवेक जाने का व्यग्र दिखता है तो सेल्विन जल्दी से कहता है –

“अगर तुम वहां जाना ही चाहते हो तो इसके लिए कुछ प्लान करना पड़ेगा –  मुझे थोड़ा समय दो मैं कुछ इंतजाम करके आता हूँ – तब तक तुम खुद को संभालो – अभी तुम्हारी पीठ पर का चाकू का घाव भरा नही है |”

“तुम मेरी फ़िक्र मत करो दोस्त – अब ऐसे घाव के साथ जीने की आदत सी हो गई है – बस अपने प्यार को तकलीफ में नहीं देख सकता अपने फर्ज को तो घायल देख ही रहा हूँ |” अपना आखिरी शब्द खुद में बुदबुदाते हुए फिर से अपने स्थान पर बैठ जाता है और सेल्वीन को जाते हुए  देखता रहता है|

***
जिस धमाके का रंजीत को कब से इंतजार था आखिर उसने वो कर दिया और उसका असर दिवान्स पर दिखने भी लगा| बुरी तरह से उनका प्रोफाइल बिगाड़ने के बाद रंजीत के हाव भाव में आज कुछ ज्यादा ही सुकून नज़र आ रहा था| उसकी बिजनेस डील की टीम अब उसके पास वापस आ गई थी| दीपांकर भी उनके साथ ही वापस आया था पर उस सबको अपने केबिन के बाहर रोककर वह उस टीम के हेड को कह रहा था –

“मैं ऐसे धोखेबाजो पर भरोसा नही करता जो खुद अपनों को धोखा देकर आते है – इस दीपांकर को कोई जरुरी काम मत देना क्योंकि अभी हमे अपने बहुत से प्लान एस्क्युट करने है |”

“ओके सर –|”

उसके हामी भरते माहौल में लगा बात खत्म हो गई पर वह फिर कुछ कहने का प्रयास करता है –

“सर इफ यू डोंट माइंड मैं कुछ पूछना चाहता हूँ |”

रंजीत बिन शब्द के हवा में हाथ हिलाकर उसे कहने की इजाज़त देता है|

“सर मुझे कुछ समय आप और देते तो मैं उन्हें लीगल इशु में कुछ इस तरह फसाता कि दिवान्स को अपना एम्पायर हमारे हवाले करना ही पड़ता – जब ये डील फाइनल हो सकती थी फिर आपने उनकी बात इतनी जल्दी कैसे एसेप्ट कर ली – बस ये बात मुझे समझ नही आई |”

इस पर रंजीत के चेहरे पर कुछ अलग ही हाव भाव आ जाते है| वह टेबल से एक कांच का पेपर वेट उठाकर उसे अपनी हथेली में उछालते उछालते उठकर मेज के कोने से टेक लेता हुआ कहता है –

“चलो तुम्हारे मनोरंजन के लिए तुम्हे एक कहानी सुनाता हूँ |”

रंजीत के ऐसा कहते वे आश्चर्य से उसे देखने लगता है जबकि रंजीत आराम से अपनी बात कहने लगा –

“एक बार एक आदमी था – वह एक चालक और धूर्त बिल्ली से तंग आ गया था – वह कितने भी उपाए करता पर हर बार वह बिल्ली उसका रखा दूध सफा चट कर जाती – इससे तंग आकर आखिर उसने उस बिल्ली को मारने का सोच लिया लेकिन इसके लिए बिल्ली को पकड़ना जरुरी था – तब उसने उस बिल्ली को अपने हाथ से दूध पिलाना शुरू किया – धीरे धीरे बिल्ली उसके पास आसानी से आने लगी – तब उस आदमी ने पहले उसे पहली मंजिल की बालकनी में दूध पिलाया फिर कुछ दिन बाद दूसरी मंजिल पर उसे ले गया – ऐसा करते करते वह एक दिन उसे चौथी मजिल तक ले आया और फिर वो दिन आ गया जब वह उस बिल्ली से हमेशा के लिए छुटकारा पा सकता था – उसने उस बिल्ली को चौथी मंजिल से धक्का दे दिया – अब बिल्ली के बचने के कोई चांस नही हो सकते थे |”

वह ब्लैक सूटेड आदमी हैरानगी से रंजीत को देखने लगा जो अभी भी उस पेपर वेट को अपनी हथेली से उछालकर कैच कर ले रहा था|

“मुझे भी इस दीवान को इतना ऊँचा ले जाना है ताकि वहां से ऐसा धक्का दूँ कि वह फिर कभी दुबारा उठकर खड़ा भी न हो सके |” कहते कहते रंजीत के हाव भाव में नागवारी के आसार साफ़ साफ़ नज़र आने लगे और तभी रंजीत उस पेपर वेट को उछालकर अबकी उसे कैच नही करता और वह फर्श पर तेज आवाज के साथ गिर कर चकनाचूर हो जाता है|

वह आदमी सहमा सा उस कांच के बिखरे हुए टुकड़ो को देखने लगता है|

***
इन सारी मुसीबतों के बीच दीवान साहब अपनी बुरी हालत से बचकर निकल तो आए थे पर उसकी हालत अभी अभी अस्थिर बनी हुई थी| बहुत मना करने पर दादा जी खुद को उनसे मिलने से नही रोक पाए| वे अरुण की अनुपस्थिति में ड्राईवर की सहायता से हॉस्पिटल पहुँच जाते है|

दीवान साहब बेड का टेक लिए किसी तरह से बैठे थे| वे उस समय किसी बुत की तरह दिख रहे थे, मानो डॉक्टर ने उनका जीवन तो बचा लिए पर उन प्राणों की प्रतिष्ठा जैसे अभी भी अधूरी थी| वे निस्तेज भाव से जाने कब से शून्य को देखे जा रहे थे| उसी पल दादाजी को सामने देखते सहसा उनके हाव भाव कुछ बदल से जाते है पर वे उसी ख़ामोशी से उन्हें देखत रहे जैसे कहने को कुछ रह ही नहीं गया हो|

दादा जी उनके पास कर सांत्वना से उसका हाथ पकड़ते उसे सहलाते हुए कहने लगे –

“ये क्या हालत कर ली श्याम – जल्दी से ठीक हो जाओ – देखो तुम ही इस तरह टूट जाओगे तो कौन तुम्हारा बिखरा परिवार समेटेगा – तुम्हे ठीक होना ही है |” कहते कहते वे अपनी डबडबाई आँखों से उन्हें देखते अब उनका सर सहलाते रहे| वे उन्हें इस तरह स्नेह कर रहे थे जैसे मानो वे अभी उस उम्र के बालक हो जिसे बचपन से उन्होंने गोद में खिलाया था|

उस पल उनके स्पर्श से या उनकी मौजूदगी से दीवान साहब का मन भर आया| वे चाहकर कर भी कुछ न कह सके बस कोई दर्द की अनकही बूँद उनकी आँखों से बह निकली जिसे दादा जी देखते झट से उनके आंसू पोछते हुए कहने लगे –

“ये पश्ताचाप के आंसू है और ऐसे सच्चे आंसू को तो ईश्वर भी माफ़ कर देते है – श्याम तुम बिलकुल फ़िक्र मत करो – सब ठीक ही जाएगा – बस तुम खुद को संभाल लो फिर तुम्हे बहुतो को संभालना है |” कहते कहते दादाजी की आँखों में कई निवेदन उतर आए थे| उस पल उनके ख्याल में सबसे पहले किरन का ख्याल था जिसका सच जानने के बाद से उनका मन उसकी स्थिति देखकर बेचैन बना हुआ था|  

पर अभी बहुत सारे सच से बेखबर दीवान साहब अपने मन को ग्लानी में डूबा हुआ पा रहे थे| अपने वैभव और अहम् के दंभ में वे अपने पितातुल्य चाचा जी को कितना कुछ कह गए थे और एक वे है कि आज भी उससे वही स्नेह रखे थे जिस स्नेह से उन्होंने उसे बचपन से पाला था| क्या वक़्त उनके बहुत सारे कर्मो का हिसाब इसी तरह लेगा ? क्या अभी बहुत कुछ शेष है उनके जीवन के कर्मो के हिसाब होने में ? क्या कुछ झेलना लिखा है, ये तो वे नहीं जानते थे पर उसे वे किस तरह संभाल पाएँगे यही सोचते उनका दिल बैठा जा रहा था|

जाने अब वक़्त उन्हें कितना संभलने का मौका देगा या पूरी तरह से बिखेर देगा ? ये सोचते सोचते उनकी आंखे छोटी हुई जा रही थी|

पिछली बार मैंने पूछा था कि कौन कौन विदेश से पढ़ रहा है, मुझे सऊदी अरेबिया से पढ़ रहे बताया था, वैसे इस सिस्टम से पता चल जाता है कि किस किस देश से पढ़ा जा रहा है, जर्मनी, कनेडा, जापान, अमेरिका, वियतनाम से भी कहानी का कारवां पढ़ा जा रहा है…ये बड़े हर्ष की बात है मेरे हिंदी भाषाई प्रेमी पाठक सिर्फ भारत से ही नहीं और भी जगह है….आप सबकी उपस्थिति का हार्दिक स्वागत है…..आप सब पढ़े और चाहे तो अपनी अपनी उपस्थिति कमेन्ट के जरिए भी जरुर बताए…….

क्रमशः………………………

19 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 141

  1. Aap likhte hi itna badiya ho ar aapki is story ka to badi besabri se intjar rhta h hme very very very nice parts

  2. Aaj sab ki aankh me pashchatap ke aansu the . Vivek bhi aur diwaan sahib bhi par ab kya fayeda.. Vivek ko bhi ab pta chal rha hai k usne menka ki life khrab kar di..

  3. अर्चना जी आपकी लेखनी इतनी परफेक्ट है कोई पढ़ने से रुक ही नही पाता अब तो वैसे भी चरम पर है रंजीत और अरुण में कोन जीतता है ये जंग आकाश को तो बाहर ही रखना चाहिए

  4. Achcha hua deewan shaab ko apni karni pr dukh ho rha h…..vivek b menka ko chahta h but uska rasta bahut galat tha…..aap likhti hi itna achcha h ki aapko sabhi desh vedesh me pada jata h

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