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बेइंतहा सफ़र इश्क का – 145

अगले ही पल अपनी बेखुदी का अहसास होते रंजीत अपना हाथ ऊष्मा के हाथ पर से हटा लेता है| अबतक उनके द्वारा छोड़ी गई आइसक्रीम पूरी तरह से पिघल चुकी थी और डिनर टाइम भी खत्म हो चुका था इसका साफ़ अर्थ था अब उन्हें निकलना है|

रंजीत उस पल के मौन को तोड़ता हुआ ऊष्मा से पूछता है – “क्या अब चले ?”

ऊष्मा भी सहजता से हामी में सर हिलाती हुई उठ जाती है पर उठते ही अचानक से वह लड़खड़ा जाती है जिसपर रंजीत अपना हाथ देकर उसे संभाल लेता है जिसपर बड़े संकोच से वह उसे थैंक्स कहती हुई साड़ी का पल्लू संभालती हुई कहने लगती है –

“ये आदि भी न जिद्द पर अड़ गया कि साड़ी पहनू वो भी काली – उसपर ब्लैक के नाम पर मेरे पास यही भारी साड़ी थी |”

कहती कहती ऊष्मा रंजीत के साथ साथ चल रही थी| उसकी इस बात पर रंजीत हलके सी मुस्कान के साथ कहता है –

“शायद इसके लिए भी मैं ही जिम्मेदार हूँ |”

“जी !!”

“एक्चुली दो दिन से मेरा फेवरेट कलर पूछने के लिए वर्तिका मेरे पीछे पड़ी थी और उसकी इस बात से पीछा छुड़ाने के लिए मैंने उसे ब्लैक बोल दिया और अपनी इसी बात को साबित करने मुझे भी आज ब्लैक पहनना पड़ा |”

“ओह |”

इस बात पर दोनों साथ में मुस्करा दिए| अब वे बात करते करते बाहर तक आ गए थे| जहाँ रंजीत की कार लिए ड्राईवर तैयार खड़ा था तो वही उनका तब से इंतज़ार करते आदित्य और वर्तिका अभी भी कुछ दूरी पर खड़े थे| दोनों अपने ही झगड़े में इतना बिज़ी थे कि उनका निकलना वे नही देख पाए|

वर्तिका आदित्य पर नाराज़ होती हुई कह रही थी – “आज तो हद ही कर दी तुमने – इतनी आइक्रिम खिला दी कि शायद ही कोई फ्लेवर बचा रह गया होगा – अब तो लगता है कई सालो तक मैं आइसक्रीम ही नहीं खाऊँगी |”

“अब क्या करे तब से वाचमैन की तरह तुमने मुझे यहाँ खड़ा रखा है – मैंने बोला था चलो रेस्टोरेंट चलते है पर नही – वैसे कोका फ्लेवर रह गई है |”

“प्लीज़ आदि……|” तभी वर्तिका की नज़र रंजीत और ऊष्मा की ओर गई जो बाहर की ओर निकल रहे थे|

आदित्य भी उन्हें निकलता देख तेजी से उनकी ओर बढने लगता है पर जाने क्या सोच वर्तिका झट से आदित्य का हाथ पकडती उसे रोक लेती है| आदित्य वर्तिका का इस तरह हाथ पकड़े जाने से अवाक् उसे देखता रहता है जबकि वर्तिका की नज़र तो उन दोनों पर थी जो ज्यादा इधर उधर न देखते साथ में बात करते बाहर आ रहे थे|

रंजीत अपनी कार से आया था तो ऊष्मा को आदित्य लाया था इससे ऊष्मा आदित्य का इंतजार करने का सोच ही रही थी कि रंजीत अपनी कार की तरफ बढ़ता हुआ कहता है –

“काफी रात हो रही है – आई थिंक वह चला गया होगा – आप कहे तो मैं आपको ड्राप कर दूँ ?”

रंजीत ने कहा और ऊष्मा तुरंत राजी होती उसके साथ बढ़ गई उसने आदित्य को ढूंढने की कुछ ख़ास कोशिश भी नहीं की|

कार ड्राईवर चला रहा था और दोनों साथ में पीछे बैठे थे| वर्तिका उन्हें इस तरह साथ में जाता देख भरपूर मुस्कान से मुस्करा रही थी जबकि आदित्य अपनी जगह चुपचाप खड़ा था उसने अपना हाथ छुड़ाने की जरा भी जहमत नहीं की थी|

रास्ते भर दोनों मौन ही रहे फिर ऊष्मा अपने घर पर उतरते उसे थैंक्स कहती खड़ी ही हुई थी कि रंजीत जल्दी से कह उठा –

“अब मैं आपको शयोरटी देता हूँ कि आपको दुबारा मुझसे जबरन मुलाकात नही करनी पड़ेगी |” सपाट भाव से कहता रंजीत वापस कार में बैठता चला गया जबकि इस बात पर ऊष्मा ने कोई प्रतिक्रिया नही की और मौन ही वापस अपने घर के अंदर चली गई|

***
ऐसा वक़्त ओ हालात कभी उनके जीवन में आएगा उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि जो दो दिल अपने सपनो का जहाँ बसाने चले थे आज उनकी आँखों में अतीत किसी भग्नावशेष की तरह दिखेगा|

मेनका भी अब इस सच को जानना चाहती थी कि आखिर ऐसा कौन सा सच है जिसे विवेक ने इतना बदल दिया ? विवेक भी आज सारा सच कहने पर उतारू था|

विवेक कहता है – “आज मैं तुम्हे सारा सच बताऊंगा कि विवेक से लेकर मेरे तीन सौ अडतीस होने का सफ़र – तुम जिस विवेक को जानती हो उसे तिल तिल मैंने ही अपने हाथो से मारा है – सारे सपनो को अपने इंतकाम की आग के खुद ही हवाले किया है – तुम्हे याद होगा न – मेरा लास्ट इयर था और तुम पहली बार कॉलेज आई थी – जाने क्या मंजूर था वक़्त को जिस एकांत में मैंने अपने तीन साल गुजार दिए उस एकांत में मैं तुम्हे आने से नहीं रोक पाया – जाने किन हालातो में हमारी दोस्ती हुई और जो जाने कब प्यार में बदल गई कि हम साथ साथ जीने मरने की कसमे खाने लगे – मैं उस पल ये सोच भी नहीं पाया कि तुम्हारे मेरे स्टेटस में जमीन आसमान का फर्क भी है –|”

मेनका भरे नयन से विवेक की ओर लगातार देख रही थी जबकि वह कही शून्य में ताकता हुआ कहे जा रहा था – “याद है अपनी आखिरी मुलाकात जब मैंने तुमसे कहा था कि दीदी की चिट्ठी आई है और मुझे तुरन्त ही वापस घर जाना है पर क्या पता था ये जाना हमेशा के लिए हो जाएगा – अपने लौटने की वादाखिलाफी के साथ – हम अपनी दुनिया में इतना खोए रहते थे कि शायद ही कभी हमने अपने अपने घर के बारे में बात की हो – इसका शायद ये भी कारण रहा हो कि दीदी ने शुरुवात से मुझे पढने के लिए घर से दूर ही रखा – बस छुट्टियों में घर जाता तब अपने पिता और दीदी से मिलता था – बस यही छोटा सा परिवार था मेरा – और उस दिन भी बस मुझे लगा कि दीदी ने मुझे मिलने बुलाया है और मिलकर मैं वापस आ जाऊंगा पर होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था..|”

कहते कहते विवेक की आँखों में अतीत किसी चलचित्र की भांति चलने लगा|

***
तीन साल पहले…..

विवेक अपने कंधे में एक छोटा पिट्ठु बैग लिए तेजी से शांतिकुंज के अपने छोटे से घर में प्रवेश करता है| घर का दरवाजा खुला था और हमेशा की तरह उसके स्वागत का कोई उल्लास उसे वहां नज़र नही आया इससे उसके कदम धीमे पड़ गए| दो कमरों के घर में प्रवेश करते उसे अगले कमरे में ही उसके पिता बेड पर लेटे हुए नज़र आए| उन्हें इस तरह चुपचाप लेटा देखते विवेक उनकी तरफ बढ़ने ही वाला था कि पीछे से आती कोई आवाज उसे टोक देती है –

“विवेक – वे अभी अभी सोए है – उन्हें अभी मत जगाओ |”

वह आवाज की दिशा की ओर मुड़ता है और तुरंत ही उसका चेहरा ख़ुशी से खिल उठता है| दरवाजे से आती हुई उसकी बड़ी बहन तारा थी जिसके दोनों हाथो में पॉली बैग में सामान था पर उसकी परवाह किए बिना विवेक तुरंत ही उसके गले लग जाता है|

तारा वैसी ही खड़ी रहती है ये विवेक को कुछ अटपटा लगता है, वह तुरंत ही उससे अलग होता हुआ उसके हाथो से सामान लेता हुआ पूछता है –

“क्या हुआ दी ? पिता जी ठीक तो है न ?”

विवेक की बात पर तारा सपाट भाव से कहती है – “वे दवाई खाकर अभी सोए है – चलो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है – चलो |” कहती हुई वह उसे बगल के कमरे में ले जाती है|

दूसरे कमरे में पहुँचते तारा उस कमरे का दरवाजा बंद करती हुई विवेक के हाथ से सामान लेकर उसे मेज पर रखती हुई बैठ जाती है| ये सब कुछ विवेक को कुछ अलग सा महसूस करा रहे थे जिससे वह तारा का हाथ पकड़ते उसके पैरो के पास बैठता हुआ कहता है –

“बात क्या दी ? आज आप इतना अजीब सा व्यवहार क्यों कर रही हो ?”

तारा उसे उठाकर अपने सामने की कुर्सी पर बैठने का संकेत करती हुई कहने लगी – “बहुत थक गई हूँ अपनी जिंदगी से – बस वही थकान आज मेरे चेहरे पर दिखाई पड़ रही है|”

“सही कहती हो दी – आपने आजतक घर के लिए, मेरे लिए बहुत किया – अब मैं खुद चाहता हूँ कि आप आराम करे और मैं काम करूँ |”

“नहीं रे तू समझ नही रहा…|” तारा कुछ उलझी सी हो जाती है जैसे जो कहना चाह रही हो उसे सही से कह नही पा रही हो|

विवेक उसका हाथ पकड़े हुए कहने लगा – “दी आपने तो मेरे लिए माँ पिता दोनों का फर्ज अदा किया – अपनी पढाई करते आपने नौकरी की, पिता जी का इलाज कराती रही, मुझे हमेशा अच्छे से अच्छे स्कूल कॉलेज में पढ़ाया – कितना कुछ किया आपने – अब सच में मेरी बारी है – मैं तो अब अपनी दी की शादी होते देखना चाहता हूँ फिर आप बस घर पर आराम करना और यहाँ घर की सारी जिम्मेदारी मैं उठाऊंगा….|”

“विवेक – तू जानता नही है कि अब ऐसा कुछ नही होगा – मैं अब बुरी तरह से बर्बाद हो चुकी हूँ – ये सारी बाते अब मेरे लिए किसी सपने की तरह है -|” कहती कहती तारा फफककर रो पड़ती है|

ये देखते विवेक सन्न रह जाता है| वह इतना हैरान था कि बढ़कर अपनी बहन के आंसू भी नही पोछ सका| सुबकती हुई तारा फिर खुद ही कहने लगती है –

“इसी कारण मैं चाहती हूँ कि आज वो सब कुछ मैं तुम्हे बताऊँ जो मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है – विवेक हो सकता है इसके बाद तेरा अपनी बहन के प्रति नजरिया ही बदल जाए पर मेरे भाई आज मुझे बस कह लेने दे .|”

विवेक भी मौन हो जाता है जैसे सच में वह बस अब सुनना ही चाहता था|

तारा कहने लगती है – “ये तो तू जानता ही है कि होटल मेनेजमेंट की पढाई खत्म करते मुझे एक बहुत बड़े होटल में सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई थी – नौकरी बहुत अच्छी थी और मेरा काम भी पसंद किया जाने लगा – जल्दी ही मुझे वहां प्रोमोशन मिलता गया और मैं अब पूरा मेनेजमेंट सँभालने लगी – फिर बढ़ते काम की वजह से मुझे वही होटल में रहना पड़ा – फिर मेरे जीवन में आया आकाश दीवान – उस होटल का मालिक – |” कहती कहती तारा अब शर्मिंदी सी नज़रे झुकाई हुई अपनी बात कहने लगी –

“हम एकदूसरे को इतना पसंद करते थे कि शादी का सोचने लगे पर एक दिन….|” कहती कहती तारा उस वक़्त में चली गई जब उस रूम में आकाश और तारा एकसाथ थे|

***
(आपको याद होगा वो सीन जब एक अनजान लड़की के साथ आकाश था और सब जानना चाहते थे वो कौन थी, बस यही वो सीन है जब आकाश की शादी भूमि से तय होती है)

आकाश और तारा एक ही चादर में एकदूसरे से लिपटे लेटे थे तभी उसका मोबाईल अचानक से बज उठा और उसे इस वक़्त अपने पिता का फोन आने की बिलकुल उम्मीद नही थी| वह हडबडाते हुए फोन स्पीकर पर उठा लेता है|

“कहिए डैड |”

“तुरंत वापस आओ – तुम्हारी शादी तय कर रहा हूँ – ये हमारे बिजनेस के लिए जरुरी है|”

“ओके डैड |”

उसके इतना कहते फोन डिस्कनेक्ट हो जाता है और आकाश फोन रखता हुआ एक गहरा श्वास छोड़ता हुआ अपने बगल में लेटी तारा की ओर देखता है जो अब परेशान भाव से उसकी ओर देखती हुई कह रही थी –

“तुम्हारी शादी !! आकाश तुमने तो मुझसे शादी का वादा किया था !”

“बेबी वादा किया था अग्रीमेंट तो साइन नही किया – फिर उन्माद में जाने मैं क्या क्या कह बैठता हूँ मुझे खुद भी याद नहीं रहता |” बेफिक्री से हँसते हुए आकाश अब उठकर कपड़े पहनने लगता है जबकि वह रुआंसी सी उसकी ओर देख रही थी|

क्रमशः……

अब आगे कहानी अतीत में चलेगी…..क्या अगला पार्ट जल्दी चाहिए और कल ही तो कमेन्ट करे और बताए कैसा चल रहा है बेइंतहा का सफ़र….

17 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 145

  1. Aise barbad Kiya akash deewan ne vivek ki behan ko ab toh next part ka wait hai ki vivek ko jail bhi akash deewan ne hi karayi hogi kisi jhute iljaam me phansa kar

  2. बहुत बड़े बड़े राज दबे हुए हैं आकाश के,,,और क्या क्या खुलने बाकी है?
    बहुत ही दिलचस्प होती जा रही है कहानी.
    अरुण और किरण कब सामने आयेंगे????

  3. Beinteha ka safar bhut acha chal rha h …Or part jaldi chahiye ab bhut intrest aa rha h isme…..
    Or wo ladki tara thi ye muje tab laga jb bhumi ne vivek ko dekhkr kha tha ‘ye tara ka bhai h na’……
    Ab aage jldi post krna plz

  4. Aakash bahut hi ghatiya insaan h….usne pta nhi kitni jindgiya barbaad ki h……Tara ki b life kharab kr di use to marnnasan halat me la diya aakash diwan ne……vivek ka ateet baht dard bhara h…..usse janne ka wait h

  5. Wait to itna hai k aaj hi de dijiye part.. 😀😀
    Akash ne nahane kitno ki jindgi barbaad ki hogi.. Tara bhi un me se hi hai..

  6. अब विवेक वही बदला आकाश की बहन से ले रहा है कसूर आकाश का और फंस गई मेनका 😢😢

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