Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 147

शरीर का दर्द तो समय के साथ कम होना ही है पर मन के दर्द का क्या..वह तो वक़्त के साथ दर लम्हा बढ़ता जाता है| ठीक यही दर्द तारा के चेहरे पर साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था| जहाँ आकाश अपनी भरपूर मुस्कान के साथ सामने खड़ा था वही तारा के चेहरे पर मुर्दनी छाई थी|

वह धीरे से कहती है –

“तुम्हे पता है कि इस दो दिनों मैं कहाँ थी ?”

“कहाँ थी ? ओह क्या अपने घर गई थी – गुड अच्छा है थोड़ा चेंज होना जरुरी है |”

“नहीं – मैं हॉस्पिटल में थी – मेरा मिसकैरेज हुआ था |”

तारा जिस दर्द के साथ अपनी बात कहने लगी उससे आकाश के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई और वह अपनी नज़रे इधर उधर करने लगा|

“मैं हमारे प्यार का मातम मना रही थी – क्यों आकाश ? क्यों हुआ ये मेरे साथ ऐसा ? जब तुम अपनी शादीशुदा जिंदगी में डूबे थे तब मेरे संग ये मातम क्यों था  ? बोलो क्यों हुआ ये ? क्या कसूर था मेरा ?”

बिफरती हुई तारा आकाश का गिरेबान पकड़कर बिलख उठी थी तब आकाश उसे पकड़ते हुए कहता है –

“जो हुआ भूल जाओ उसे तारा – अब मैं ध्यान रखूँगा कि तुम दुबारा ऐसी मुश्किल में न पड़ो |”

“क्या !!! इस पर तुम बस यही कहना चाहते हो !!” इस पर तारा नज़रे उठाकर उसका चेहरा देखने लगती है|

आकाश उसके कंधे थामते हुए कहने लगा –

“अब ये बताओ – क्या तुम्हे मुझपर विश्वास नहीं है !! मैं पहले ही बता चुका हूँ कि उस शादी से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है – यकीन करो मेरा – चलो अब बैठो यहाँ |”

आकाश उसे बैठाते ठीक उसके सामने बैठते हुए कहने लगा – 

“मुझसे प्यार करती हो न – तो बस मेरी ओर देखो और सब कुछ भूल जाओ – मैं हूँ न तुम्हारे पास और जो बीत गया सो बीत गया – अब से तुम जब तक खुद को हैल्दी फील नही करती तब तक इस रूम से बाहर भी नहीं निकलोगी – तुम्हारी हर जरुरत की चीज तुम्हारे एक इशारे पर यही पर तुम्हे मिलेगी – ओके –|” कहते हुए आकाश उसका चेहरा थामे उसके होंठ चूम लेता है जिससे तारा आंखे बंद करती उसके सीने में खुद को छोड़ देती है|

आकाश उसके बदन को सहलाते सहलाते कहने लगता है –

“हाँ अगर तुम्हे थोड़ा ठीक लगे तो यही से तुम ऑफिस संभाल लेना पर तुम उठोगी कही नहीं – अभी तुम्हारी हैल्थ सबसे पहले है |”

आकाश उसे प्यार से सहलाता रहा और तारा भी सच में जैसे सब कुछ भूलती उसकी बातो में डूबती गई| आकाश उसे छोड़कर चला गया और वह उसकी नामौजूदगी में उसकी अनुभूति में लिपटी बस उसका इंतजार करने लगी|

तारा को पता भी नहीं चला कि कब वह हर तरह से आकाश पर निर्भर होती चली गई, उसने जैसे अपना सारा वजूद ही आकाश के हवाले कर दिया, वह जो कहता वह वही सोचती वह जो कहता वह वही करती, उसकी अपनी सोच उसकी अपनी समझ जैसे आकाश नाम के घेरे में आती सिमट कर रह गई|

कुछ दिन सच में वह उस कमरे से बाहर नही निकली और उसकी हर जरुरत की चीज उसे अपने पास मिलने लगी| उसके कुछ समय बाद से उनके वही पुराने रिश्ते फिर शुरू हो गई| आकाश जब चाहता तब आता और उसके साथ जिस्मानी तालुकात बनाकर चला जाता और तारा को इसमें कभी कोई शिकायत भी नहीं रहती|

उसे पता भी नहीं चला और वह उसके हाथो की कठपुतली बनती चली गई| कई बार वह कई कई दिनों तक होटल में वापस नही आता तब वह वहां का सारा काम खुद संभालती और उसे एक भी शिकायत का मौका नही देती| दिन महीने ऐसे बीतने लगे| इस बीच तारा एक बार भी अपने पिता के वापस घर नही गई| वे जब भी उसे अपने पास बुलाते तारा कुछ न कुछ बहाना बना देती| बस एक पैसो का लिफाफा जरुर समय से वह अपने पिता तक भिजवा देती|

लेकिन वे पिता थे और अपनी बेटी से इतने दिन बिना मिले कैसे रहते| ऐसे ही किसी दिन वे खुद उस होटल तक आ पहुंचे और जैसे ही ये खबर आकाश तक पहुंची वह तारा के पास पहुँच गया|

तारा झटपट होटल स्टाफ की ड्रेस चेंज करके कुर्ता पहनकर जाने को तैयार खड़ी थी तभी कमरे में आकाश आता है जिसे देखते वह अतिउत्साह में कहने लगती है –

“आकाश पता है ? अभी पिता जी आए है – वे नीचे रिसेप्शन में वेट कर रहे है – चलो न साथ में – मैं आज तुम्हे उनसे मिलवाती हूँ – मैं चाहती हूँ कि आज हम अपने रिश्ते के बारे में खुद उन्हें बताए – चलो न |”

तारा जिद्द करती हुई आकाश का हाथ खींच रही थी जबकि वह अपनी जगह तना खड़ा हुआ था|

वह मुड़कर उसकी ओर देखती है| आकाश की निगाह अब ठीक उसके चेहरे पर गिर रही थी|

तारा अभी भी उसका हाथ पकड़े थी इससे अब आकाश उसे अपनी ओर खींच लेता है जिससे सिमटती हुई वह आकाश के पहलू में आ जाती है|

अब आकाश उसे अपनी बाहों में घेरे अपनी आंखे उसकी आँखों में डालता हुआ कहने लगा –

“रोजाना स्टाफ ड्रेस में देखते देखते पता ही नहीं था कि तुम टेडीशनल ड्रेस में इतनी खूबसूरत दिखती हो |” कहते कहते वह अपने होंठ उसके होंठो की ओर बढ़ा देता है और तारा बुत बनी खड़ी रह जाती है|

वह धीरे धीरे उसके चेहरे को चूमता हुआ अपना अहसास उसकी गर्दन से नीचे करता जाता है और उसी क्रम में तारा अपनी आंखे बंद किए उसकी बाहों में खुद को ढीला छोडती जाती है|

वह एक एक करते उसके बदन से उसके कपड़ो को अलग करता उसे बिस्तर तक ले आता है और वह कोई विरोध नही कर पाती| वह जैसा चाहता था वैसी मर्जी उसके साथ करता रहा और तारा ने कोई एतराज नही किया| वह जैसे आकाश नाम के सम्मोहन में खुद को डुबो चुकी थी और न उस सम्मोहन को तोड़ने का उसमे कोई हौसला था और न आकाश ने उसे इसे इससे निकलने दिया| वे काफी देर एकदूसरे में उलझे अपने अन्तरंग पलो में डूबे रहे| तारा आकाश में पूरी तरह खो चुकी थी ये सोचे बगैर कि उसके पिता कबसे उसका इंतजार रिसेप्शन में कर रहे है|

इसी बीच तारा जब आकाश की बाहों के में मदहोश लेटी थी तभी मौका देख उसने तारा के मोबाईल से मेनेजर को मेसेज करके उसके पिता को तारा की ओर से जाने को बोल दिया और साथ ही अपनी ओर से ये मेसेज डिलीट भी कर दिया|

न तारा ये जान पायी और न आकाश ने उसे इसका मौका ही दिया| उसके बाद उसके पिता फिर कभी उससे मिलने नही आ पाए और तारा की जिंदगी फिर से आकाश के ढर्रे पर चलने लगी|

इस बीच आकाश के होटल की चेन बढ़ती गई और उसी क्रम में वह शहर से बाहर व्यस्त होता गया वही सूरत के होटल्स तारा सँभालने लगी| इसी किसी दिन दोनों साथ में बैठे कुछ डिस्कस कर रहे थे कि एक कर्मचारी आकाश को विश करते हुए बधाई देकर चला गया जिसे जानकर अनदेखा करते आकाश उसे जाने को बोल देता है| उस कर्मचारी को ये बड़ा अजीब लगता है पर बॉस के आगे क्या कहता, वह चला जाता है लेकिन तारा को इससे कुछ खटका होता है और आकाश के जाते वह तुरंत उस कर्मचारी के पास आती उससे पूछने लगती है –

“तुम किस बात की बधाई दे रहे थे ?”

“क्या मैम आपको नही पता ? आज के सारे अख़बार इस न्यूज से भरे पड़े है – खुद ही देख लीजिए |”

कहता हुआ वह डेस्क पर का एक अख़बार उसकी ओर बढ़ाता हुआ चला जाता है| अख़बार हाथ में लिए तारा जो उसमे पढ़ती है उससे उसकी दुनिया एकबार फिर से डगमगा जाती है| पल में उसे लगने लगता है जैसे वह चक्कर खाकर गिर ही पड़ेगी|

अख़बार की हेडलाइन में दीवान परिवार में नए सदस्य आने की खबर छपी थी| ‘इसका साफ़ साफ़ मतलब था कि भूमि दीवान प्रेग्नेंट है तो क्या आकाश और उसका रिश्ता एक पति पत्नी की तरह है !! तो वह क्या है ? उसकी जगह आकाश की दुनिया में क्या है ?’ ये सोचते ही उसका मन भर आता है और पिछली बार हुए मिसकैरिज का दर्द जैसे दुबारा उसके शरीर में लिजलिजे कीड़े की तरह रेंगने लगता है| वह मन में ही बुरी तरह से कराह उठती है|

कुछ देर यूँही अख़बार पकड़े वह खड़ी रहती है जैसे खुद को सांत्वना दे रही हो| इस बीच उसका मन खुद को ही ढेरो बाते समझाने लगता है| उसी पल भर में जैसे सारा सच उसकी आँखों में बूंदों के रूप में झलक आता है| अगले ही पल वह खुद को संभालती हुई खुद को समझाती हुई कहती है –

‘आकाश का सारा प्यार उसके हिस्से का है और वह किसी भी हालत में उसे किसी अनचाही शादी से नहीं बाँट सकती – अब चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े |’

मन ही मन तय करती वह अपने आंसू पोछती खुद को सयंत करती हुई अपने रूम में चली जाती है|

शाम को अकसर आकाश उसके साथ ही समय बिताता था| वह अपने तय समय में तारा के रूम में पहुँचता है और दरवाजा खोलते वह वहां का दृश्य देखता हैरान रह जाता है|

कमरे में मध्यम रौशनी जल रही थी वही कोने कोने डेकोरेटेड कैंडिल की रंगीन रौशनी के बीच कमरा किसी मादक खुशबू से भरा हुआ था| सामने बैड पर गुलाब की ढेरो पंखुड़िया सजी थी| एक नज़र में वह कमरा सुहागरात की सेज सा नज़र आ रहा था| ये देखते आकाश नज़र उठाकर अब तारा की ओर देखता है जो खुद भी बिलकुल बदली हुई नज़र आ रही थी|

वह गुलाबी साड़ी में सजी संवरी उसकी नज़रो के सामने खड़ी थी| उसका अंदाज इतना मादक था कि उसे देखते किसी भी प्रेमी मन का रोमांच सौ गुना हो सकता था|

वह लचकती हुई आकाश की बाहों में खुद ही आ जाती है पर हर बार की तरह उसे अपनी बाहों में समेटते प्रेम करने वाला आकाश चौकते हुए उसे अपने से दूर करता हुआ कहता है –

“आज नही तारा – अभी मैं तुम्हे ये बताने आया था कि मैं कुछ महीनो के लिए शायद नही आ सकूँ – दुबई में होटल की डील है तब तक तुम यहाँ सब संभाल लोगी न ?”

आकाश उसे अपने से दूर करता रहा जबकि तारा उसके सामने खड़ी अपनी साड़ी खुद ही अलग करती हुई बीच बीच में उसे मुस्करा कर देख रही थी|

“मत करो ऐसे – सच में आज मैं तैयार नही –|”

आकाश भर कोशिश उसे अपने से दूर करने की करता रहा जबकि तारा अब तक अपने कपड़ो को उतारकर अब एक चादर में लिपटी उसके सामने खड़ी थी| अब आकाश के लिए भी रुकना असंभव था| वह न चाहते हुए भी खुद उसके प्यार में घिरता चला गया| ये उनके प्यार का सबसे गहरा पल था जब दोनों का एकदूसरे के प्रति समान रूप से समर्प्रण था| वे देर तक एकदूसरे में डूबे एकदूसरे को प्यार करते रहे| तारा भी पूर्ण समपर्ण से उसके प्रेम में डूबती चली गई, यहाँ तक कि उसने आकाश को कोई प्रोटेक्शन का मौका ही नहीं दिया और उन्माद में दोनों साथ में बहते चले गए|

शायद ये पहला सोचा समझा अन्तरंग पल था तारा के लिए जबकि आकाश अनजाने में उसके साथ अपने अन्तरंग पल बिता कर चला गया|

कुछ महीनो बाद जब जब आकाश वापस अपने होटल आता है तब पाता है कि वाकई तारा ने सब कुछ अच्छे से हैंडिल किया हुआ था| वह तारा के पास आकर उसे अपना प्यार जताना चाहता था पर वह कोई न कोई बहाना करके उससे दूर हो जाती|

आकाश उसके बदले हुए हाव भाव और ढंग देखता दंग था पर कुछ समझ नही पा रहा था| वह स्टाफ ड्रेस में नही थी जो फिट स्कर्ट और टॉप थी| तारा ढीले से कपड़ो में उसके सामने बनी हुई थी|

वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उसमे बदल क्या गया पर ये श्योर था कि उसमे बदला जरुर कुछ है|

आखिर उस आधी रात जब वह अपने रूम में ये सोचकर वापस आई कि अब शायद आकाश उसका इंतजार करके वापस चला गया होगा तब आकाश उसके कमरे में मौजूद था और बेहद गुस्से में उसे बुरी तरह से घूर रहा था|

आखिर इस अनजाने रिश्ते से क्या चाहती है तारा ? और आगे क्या मिलने वाला है उसे ? जानने के पढ़ते रहे बेइंतहा……

क्रमशः……

13 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 147

    1. Bhut acha part aajkl ladkiyo k sath yhi ho rha h aankh moond k vishvas krti h phir galti ladke ki sari khud bhi to brabr ki galti hoti h unki aise kaise kisi pr itna vishvas bhut achi trah likha h aapne

  1. Aakhash ka ye kesa payaar h …..ek hi time di logo ke sath ….2 -2 jindgiyo se khel raha h…..or Tara ko to pagalpan ki had tk le jayega…..

  2. Tara pregnent h or aakash se chhupa rhi h pr aakash ye sach jan chuka h……
    Ab aage kya hua hoga jo vivek ko jel jana pada🤔🤔
    Interesting

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