Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 149

जो आकाश के लिए समस्या थी वो तारा के लिए उसका प्यार था| देर से ही पर अब वह समझ चुकी थी कि आकाश के लिए वह और उसका बच्चा कोई मायने नही रखता| जब पांच महीने के बच्चे की मौत महज उसके लिए बस अबोशन थी तब उसकी संवेदनशीलता का अंदाजा वह लगा सकती थी पर तारा उस बच्चे से भावात्मक रूप से जुड़ चुकी थी| इसी कारण इस वक़्त वह इस बच्चे को आकाश की नजरो से सुरक्षित रखना चाहती थी बस|

तारा ने उसी शहर में एक कमरा किराए में ले लिया और उसी में छिपकर रहने लगी| उसे किसी तरह से बस ये नौ महीने काटने थे| उस बच्चे के लिए वह हर कष्ट सहने को तैयार थी बस उसे खोना उसे बर्दाश्त नही था|

वह उस घर में जरुरी सामान के साथ थी बाकी कुछ जरुरत होती तो ऑनलाइन मंगा लेती पर उस घर से बाहर नही निकलती| उस एक कमरे के घर के एकांत में जब उसे इमोशनल सपोर्ट की सबसे ज्यादा जरुरत थी तब उस लम्हे में वह सबसे ज्यादा अकेली थी| अभी उसकी ऐसी हालत थी कि वह चाहकर भी न अपने पिता के पास लौट सकती थी और न पढाई कर रहे विवेक को बुला सकती थी|

वह किसी तरह से एक एक दिन उस अजन्मे बच्चे के साथ काटने लगी| कभी पेट पर यूँ हाथ फिराती मानो उसकी गोद में सच में कोई बच्चा हो और वह उसे प्यार से दुलार रही हो| कभी अपने पेट को दोनों बाँहों के बीच समेटे फर्श पर ही घंटो पड़ी रहती जैसे उस बच्चे को ज़माने की नज़र से बचा लेना चाहती हो|

अपने इसी एकांकी पलो में जब उसका मन बहुत भर आता तब वह एक डायरी में उस बच्चे को संबोधित करती हुई उसे खत लिखती रहती और वक़्त से हर पल उसके बने रहने की ढेरो गुहार लगाती रहती| उस डायरी के एक एक पन्ने में वह अपना सारा दर्द उकेर कर रख देती| बस वो डायरी और बच्चे का अहसास ही उसके जीवन की धुरी बनकर रह गई थी|

ऐसा करते दो महीने ही बीत पाए कि अब तारा की तबियत ज्यादा खराब रहने लगी थी, कई बार तो वह घंटो बेहोश पड़ी रहती और उसे अपना होश भी नहीं रहता| गंदे कपड़ो में कई कई दिन गुजर जाते| उसका पेट अब अच्छा खासा बाहर की ओर दिखने लगा था और इस हालत में वह जानने वाले से कोई मदद भी नहीं ले सकती थी पर सांतवे महीने में उसकी हालत इतनी खराब हो गई कि अब उसे डॉक्टर की जरुरत महसूस होने लगी|

इसी आधी रात वह किसी तरह से खुद को दुपट्टे से ढंके हुए एक बैग कंधे पर डाले अकेली ही हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ती है| आधी रात होने से न लोग नज़र आ रहे थे और न कोई वाहन इससे न किसी की उस पर नजर ही गई और न उसे कोई मदद मिल पाई| वह किसी तरह से खुद को संभालती हुई सड़क पर अकेली चली जा रही थी| कुछ दूर पैदल चलते चलते वह जल्दी ही थक गई और सड़क के किनारे अपना पेट पकड़े सुस्ताने लगी|

वह बुरी तरह तेज तेज साँसे ले रही थी, धड़कने भी जैसे दिल में लगातार हथौड़े बरसा रही थी| फिर भी वह किसी तरह से अपने अंदर सारी ताकत समेटती हुई उठने की भरपूर कोशिश करती हुई खुद से बाते करने लगी –

‘बस मेरा बच्चा – तू थोड़ी देर – और ठहर जा – मम्मा बस – होस्पिटल पहुँचने – वाली है – तुझे मैं – कुछ नही होने – दूंगी – तुम्हे आना ही है – मेरे पास – तू नही आएगा – तो – कौन तेरी माँ को – इन्साफ दिलाएगा – तुझे आना होगा – अपने हक़ के लिए आना – होगा – मैं पहुँच – जाउंगी…..|’  

तारा अपनी जितनी कोशिश कर सकती थी उससे भरसक कही ज्यादा उसने प्रयास किया पर वह खुद को नहीं संभाल पाई और चलती सड़क के किनारे वह बेहोश होकर गिर पड़ी|

आधी रात चलती सड़क के किनारे तारा बेसुध पड़ी थी और बेरहम दुनिया उसपर नज़र भर फेकती आगे बढ़ जा रही थी|

कुछ समय बाद कराहते हुए तारा आंख खोलती है, अब उसकी साँसे सामन्य थी बस शरीर के निचले हिस्से में उसे दर्द की अनुभूति हो रही थी| वह धीरे धीरे अपनी चेतना वापस लाती हुई आंख खोले अपने चारो ओर देखती है और तुरंत ही उस जगह को देखती वह एकदम से चौक जाती है| वह जगह हॉस्पिटल जैसी प्रतीत हो रही थी और हाथ से छूकर खुद को देखते वह चीख ही पड़ती है अब उसका पेट सपाट था और वह स्ट्रेचर पर लेटी हुई थी|

“मेरा बच्चा….मेरा बच्चा कहाँ है – मैं कहाँ हूँ – कोई है….?” वह जोर से चीखती है जिससे जल्दी से एक नर्स और उसके पीछे पीछे एक डॉक्टर भागती हुई आती है| तारा किसी तरह से खुद को पकडती हुई उठने की कोशिश करती लगातार चीख रही थी| अब नर्स को सामने देख वह झट से उसका हाथ पकड़े उससे पूछने लगी तो नर्स अपने पीछे खड़ी लेडी डॉक्टर की ओर अपनी नज़रे कर देती है|

“तुम ठीक हो अब – आराम करो इतना स्ट्रेस लेने की जरुरत नही है |”

“मेरा बच्चा कहाँ है डॉक्टर – वो भी ठीक है न – कहाँ है – बस एक बार दिखा दीजिए – मैं हाथ जोड़ती हूँ – मुझे एक बार मेरे बच्चे से मिला दीजिए फिर आप जो कहेंगी मैं करुँगी |”

तारा लगातार बोले जा रही थी, उसका चेहरा गहरे तनाव में अजीब हुआ जा रहा था| तारा अब डॉक्टर का हाथ पकड़े कहने लगी –

“मुझे एक बार मिला दीजिए – बस उसे एक बार अपनी गोद में ले लुंगी तो मेरा मन भी शांत हो जाएगा – कहाँ है वो ?”

तारा हकबकाई सी डॉक्टर के चेहरे की ओर देख रही थी और डॉक्टर सपाट भाव लिए अपनी नज़रे नीची करती हुई धीरे से कहती है –

“आई एम् सॉरी |”

ये सुनते तारा की पकड़ एकदम से ढीली हो जाती है, उसका हर हाव भाव पिटा हुआ नजर आने लगता है| ये क्या सुन लिया उसने ? क्यों सॉरी बोला ? क्या डॉक्टर उसे बचा नही पाई ? मेरा बच्चा अब नहीं है !! ये सोचते कि ये बच्चे की नही ये प्यार और भरोसे की मौत थी तारा का मन बुरी तरह तड़प उठा|

उसका मन रो रहा था और वह चेतन शून्य डॉक्टर को देखती रही जिससे डॉक्टर घबराकर उसे झंझोड़ती है इससे तारा चेतन में आती उस डॉक्टर को घूरती हुई चीख पड़ी –

“तुम सबने मिलकर मारा है मेरे बच्चे हो – वो कही नही गया – उसने मुझसे वादा किया था कि वह आएगा मेरे पास – तुम सबने उसे छिपा दिया है – तुम सब बुरे हो – मेरे बच्चे के दुश्मन हो |”

तारा बुरी तरह से चीखती हुई बिलख उठी| उसका कातर स्वर इतना दर्दनाक था कि नर्स और डॉक्टर दो पल को सहम गई|

अब तारा खुद को बुरी तरह नोचती खसोटती हुई बिलख रही थी  –

“फिर मुझे भी मार डालो – आखिर मैं जी किसके लिए रही हूँ – मेरी आत्मा को मारने वालो अब इस शरीर का मैं क्या करुँगी – |”

उस समय तारा की हालत पागलो जैसी हो गई थी वह बुरी तरह से खुद को नोचती हुई चीखने चिल्लाने लगी थी| उसकी ऐसी बिखरी हालत देखते डॉक्टर तुरंत नर्स को इशारा करती है और अगले ही पल नर्स एक इंजेक्शन तैयार करके डॉक्टर को देती है पर तारा इस कदर बिफरी हालत में थी कि बड़ी मुश्किल से इंजेक्शन कुछ हद तक डॉक्टर उसे लगा पाती है|

इंजेक्शन लगने के कुछ सेकेण्ड में तारा बेहोश हो जाती है| अब वह कमरा इस तरह निशब्द हो गया मानो पल भर में जैसे कोई बवंडर शांत पड़ गया हो| तारा स्ट्रेचर पर जिन्दा लाश की तरह पड़ी थी और उसकी नजरो के सामने खड़ी नर्स और डॉक्टर उसे सपाट भाव से देख रही थी|

तारा कहाँ थी ? ये वह खुद भी नहीं जानती थी और अब क्या करेगी वह ? इस सवाल का जवाब भी नही था उसके पास| डॉक्टर उसे बेहोश जानकर उसे छोड़कर चली जाती है| पर इंजेक्शन का असर तारा पर हल्का ही रहता है और जल्दी ही वह होश में आ जाती है|

उसका शरीर बुरी तरह से थका और त्रस्त था फिर भी वह खुद में ताकत जुटाती हुई चुपचाप उस हॉस्पिटल से निकल जाती है| निकलते वक़्त उसे पता चलता है कि वह कोई बड़ा सा हॉस्पिटल था इससे वहां की भीड़ का फायदा उठाती हुई तारा वहां से निकल जाती है|

आगे क्या होगा ये जाने बिना वह फिर से उस कमरे में वापस आ जाती है| इस वक़्त उसकी जो हालत थी उसे कोई शब्द बयान नही कर सकता था बस कोई मन ही उसकी बिखरी हालत को समझ सकता था| वह खुद को उस कमरे में बंद कर लेती है जैसे खुद को ही कोई सजा दे रही हो| एक दिन दो दिन जाने कितने दिन वह यूँही उस कमरे पड़ी रहती है|

एक दिन अगर किराए के बकाये के लिए उस मकान का मालिक धोखे से वहां दरवाजा नही खटखटाया होता तो बस उसकी लाश ही वहां से निकलती| उस वक़्त तारा की मानसिक स्थिति बुरी तरह से विक्षिप्त हो चुकी थी| जब उस कमरे का दरवाजा खोला गया तो फर्श पर वह किसी सामान की तरह पड़ी हुई थी| उसके आस पास गन्दगी और कचरे का ढेर था| उस वक़्त उसे देखते किसी का मन भी उबका जाए| जाने कितने दिन के गंदे कपडे उसके शरीर में थे| उसके आस पास खाली पानी की बोतल पड़ी थी शायद यही आखिरी चीज रही होगी जिसे उसने अपने उदर में डाला होगा|

उस वक़्त बस एक खबर की तरह वह सूरत शहर में फ़ैल गई कि किसी घर में एक अकेली औरत मिली है जिसकी मानसिक हालत बुरी तरह से बिखरी हुई है| उसे देखने वालो का ताँता लग गया| उस वक़्त कुपोषण से उसका चेहरा इस कदर बुरी तरह से बिगड़ गया था कि पल भर को उसे पहचान पाना मुश्किल हो गया| ऐसे कितने केस हर शहर में होते और बस कुछ समय की खबर बनकर रह जाते है|

वह बिन आवाज के एक चेतन शून्य सामान की तरह हॉस्पिटल के वार्ड में पड़ी थी और बस खबरे ही चल रही थी| इस खबर से आकाश का दिमाग भी ठनका और पता कराते उसे आखिर पता चल ही गया कि वो तारा है इसके बाद उसने अपने पैसे और रसूख के बल पर इस मौके का फायदा उठाते हुए तारा को पागलखाने में भर्ती करवा दिया| इधर कई दिनों से उसके पिता तारा की तस्वीर लिए उसे खोजते फिर रहे पर तारा का कोई अता पता नही चला|

उसके पिता उस होटल के भी चक्कर काटने लगे| अब आकाश को इस बात से खुद के ही खतरा महसूस होने लगा तो उसने दीपांकर की मदद से तारा के पिता तक ये खबर पहुंचवा दी कि तारा को दुबई के होटल में शिफ्ट कर दिया गया है और उसके बाद बस समय पर हर महीने कुछ पैसे उसके पिता के पास पहुँचने लगे जिसे वे विवेक तक पहुंचा देते|

कभी कभी कमाने वाली बेटी की हालत किसी एटीम मशीन से कम नही होती| हर महीने पैसो की पूर्ति होने से न विवेक को ख्याल आया कि वह काफी समय से अपनी बहन से नहीं मिला और न उसके पिता कुछ पता कर पाए| सोच लिया कि दुबई शायद इस दुनिया के उस कोने में है जहाँ से वह संपर्क नहीं कर सकते| वैसे भी तारा साल साल भर तक उन्हें कॉल नहीं करती थी हाँ समय पर पैसे जरुर भिजवा देती| वे अब अपने छोटे से घर में समय काटने लगे तो विवेक अपनी दुनिया में खोया रहने लगा|  

ऐसे ही दो साल बीत गए और तारा के इलाज के नाम पर बस उसे उसकी हालत में बरक़रार रखा गया| अब आकाश का ध्यान भी उसकी ओर से हट गया| फिर वक़्त को तारा पर रहम आया या किसी की रहमत हुई तारा का सही से इलाज होने लगा| अगले एक साल के समय बीतते बीतते तारा संभलने लगी|

और आखिर उसे पागल खाने से छुट्टी मिल गई पर इन बीते तीन साल उसकी जिंदगी से क्या कुछ ले जा चुके थे या क्या उसके लिए बचा था उसे पता भी नहीं था| सब कुछ धीरे धीरे वह याद करती खुद को दुबारा समेटने की कोशिश करने लगी| वह वापस अपने घर लौट आई और तब उसे पता चला कि क्यों उसके पिता ने उसे नहीं खोजा क्योंकि वे समझते रहे कि वह दुबई में है|

तारा ने उनकी ग़लतफ़हमी दूर भी नहीं की| अब अपनी नई जिंदगी शुरू करने से पहले उसे अपने अतीत से खुद लड़ना था| इसके लिए वह खुद को अपने अतीत से सामना करने लायक बनाने लगी| उसने क़ानूनी लड़ाई लड़ने की मानसिक रूप से तैयारी शुरू कर दी पर उससे पहले उसे अपने परिवार को सारा सच बताना था इसलिए वह विवेक को चिट्ठी लिखकर तुरन्त वापस आने को कहती है|

कैसा लगा पार्ट जरुर बताए….

क्रमशः……………

14 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 149

  1. Bhut badhiya to ky ab tata Ranjit ke sath milkar aakas se badla legi ar Tara ka baccha ky sach m mar gya tha ky

  2. Bohot galat huya Tara ke saath.. akash insaan nhi janwar hai.. nhi janwar bhi us se ache hote hai.. par lagta hai yaha hi bas nhi hogi akash ki haiwaniyat kyunki usne Vivek ko kaisa jail bheja ye dekhna to abhi baaki hai aur Tara ki mojumdar halat bhi phir se paaglo jaisi hai.. aur Tara ka bacha mara nhi hoga.. mujhe aisa lag rha hai.. kya mera Shak sahi hai..

  3. Tara ke sath bahut galat hua ….lekin uske baad b uske sath or b bura hua h tabhi to uski halat aaj b nhi sambhli h

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