Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 152

आकाश की मानसिक हालत बुरी तरह से बिगड़ी हुई दिख रही थी| एकतरफ बिजनेस से मात खाया हुआ था वही दूसरी ओर स्टैला बुरी तरह से उससे जबरन वसूली करने में लगी हुई थी| दीपांकर जिसपर वह भरोसा करता था उसके दल बदलते अब अपने बाकी के राज़ दूसरो के सामने उजागर होने का डर अलग बना हुआ था| ऐसे माहौल में रूबी को अपनी बात सुनते देख उसका सारा गुस्सा उसी पर निकल गया| वह खुले दरवाजे पर रूबी की गर्दन पकड़े उसपर बुरी तरह बिगड़ रहा था|

ये जाने बगैर कि बचा हुआ स्टाफ उसे ऐसा करते हुए देखने लगा था| रूबी को गुस्से में पीछे की ओर धकेलता वह उसपर गरजते हुए बोलता है –

“रिमेंबर आई एम् नॉट गोना लीव यू |”

आकाश ने उसे किसी बेजान वस्तु की तरह फर्श की ओर धकेल दिया जिससे वह गिरती हुई कराह उठी|  

उसका ऐसा रौद्र रूप देख बाकी स्टाफ भी सदमे में उसे देखने लगा| रूबी भी अब किसी तरह खुद को उठाती हुई उससे दूर होने लगी तब आकाश का ध्यान बाकियों की ओर गया| वह पल भर को बिदक गया और वापस रूम के अंदर जाते दरवाजा कसकर पटक देता है|

अंदर आते उसका ध्यान फिर मोबाईल की तरफ जाता है जो फिर से लगातार बज रहा था| वह इतना तमतमाया हुआ था कि मोबाईल को बिना देखे ही उठाते हुए वह गरज उठा – 

“क्यों मुझे बार बार कॉल कर रही हो ?”

उस पार भूमि थी जो तुरंत कह उठी –

“मुझे तुम्हे बार बार कॉल करने का कोई शौक नही है – बस तुम्हे इतना बताना था कि क्षितिज को फीवर है और….|”

भूमि की बात बीच में ही काटते हुए आकाश चीख पड़ा –

“तो डॉक्टर को कॉल करो |”

“किसकी कहाँ जरुरत है ये मुझे बताने की जरुरत नहीं है – बस तुम्हे याद दिला रही हूँ कि एक बाप होने के नाते तुम्हारा भी कोई फर्ज है |”

“ओह थैंक्स मेरा फर्ज बताने के लिए – तुम तो हमेशा यही जाहिर करना चाहती हो जैसे सिर्फ तुम्हे ही उसकी फ़िक्र है – मुझे तो कुछ पता ही नहीं है |”

“तो जरा ये भी याद कर के बता दो कि कब पिछली बार तुम क्षितिज से मिले थे |”

“बिज़ी रहता हूँ इसलिए नहीं मिल पाता पर मुझे अच्छे से पता है मेरे बेटे के लिए मेरा क्या फर्ज है – हर बार मुझे बुरा साबित करने का ढोल पीटना बंद करो |”

“तुम्हारी बिज़ी नेस मुझे अच्छे से पता है – जाने किस किस के साथ तुम्हारी राते फिक्स रहती है यही है न तुम्हारा बिज़ी नेस !!  उससे फुरसत मिलेगी तब याद रहेगा न घर आना |”

“मुझे दोष देने से पहले खुद को क्यों नही देखती – तुम्हे कितनी फुरसत मिलती है – कभी महिला आश्रम कभी अनाथालय – कभी कोई उद्घाटन कभी कोई मीटिंग – तुम कितना समय देती हो घर को !”

“कम से कम घर तो वापस आ जाती हूँ – कई कई राते बाहर तो नहीं काटती और हाँ तुम्हे फिर से बता दूँ कि क्षितिज तुम्हे याद कर रहा है फुरसत मिले तो आ जाना|” कहकर वह तुरन्त ही कॉल डिस्कनेक्ट कर देती है| उस पल भूमि के बर्ताव पर वह मोबाईल के स्क्रीन को बुरी तरह से घूरता हुआ बाहर निकलने लगता है|

***

ये एक और मौका था अब रूबी आकाश द्वारा सरेआम ऑफिस में दुबारा बेइज्जत की गई| सारा स्टाफ उसी को देख रहा था| वो लेट नाईट स्टाफ था और धीरे धीरे जाने का उपक्रम कर रहा था| रूबी भी अब वहां बिना रुके अपना पर्स लिए बाहर की ओर निकल गई| निकलते निकलते वह अपने आंसू पोछती जा रही थी|

वह लिफ्ट से नीचे लॉबी तक आती पोर्च पर आती किनारे खड़ी खुद को सयंत करने लगी थी ताकि ऐसी हालत में वह घर पहुँचते अपनी माँ की नज़रो में न आ जाए और वे उसे देखकर दुखी न हो जाए|

ठीक उसी वक़्त अरुण जो रूबी के आने से पहले जाने को निकला था किसी स्टाफ से कुछ बात करने से वही खड़ा था और रूबी को ऐसा करते देख आश्चर्य से उसे देखने लगता है| स्टाफ को भेजकर वह रूबी की तरफ बढ़ने लगता है| रूबी अब अपने आंसू चुपचाप पोछकर जैसे ही सर उठाती है अरुण को अपने सामने खड़ा देखती है|

“तुम ?? रूबी हो न ? हुआ क्या है तुम्हे ?”

अरुण जिस विन्रमता से पूछता है उससे रूबी का सारा अवसाद उसी पल निकल पड़ता है –

“ये बात आप अपने बड़े भाई आकाश सर से पूछिए जिनके लिए इन्सान कीडेमकोडे की तरह है – मैंने सच में कुछ नही सुना और अगर सुनती भी तो किसी से नहीं कहती पर अब लगता है जैसे सारे जहाँ को चिल्ला चिल्ला कर बता दूँ कि खुद वे किस कीचड़ में फसे है – जाने कौन स्टैला उन्हें ब्लेकमेल कर रही है – कुछ गलत नही होता तो क्या वे किसी लेडी की जरा भी बात सुनते पर उसकी हर बात मानते है – क्यों ? जाकर उन्ही से पूछिए – क्यों उससे मिलने वे अकेले जा आरहे है ?”

“तुम क्या कह रही हो ?” अरुण को यकीन नही आ रहा था जो रूबी कह रही थी वह अजीब नज़र से उसे देखने लगा तो रूबी भी थोड़ा सकपका गई और तुरंत सॉरी कहती उसके सामने से जाने लगी|

ये देखते अरुण तेजी से उसकी ओर आता हुआ कहता है –

“तुमने जो अभी कहा क्या वो सच है ?”

रूबी के ठीक सामने अरुण खड़ा था इससे रूबी थोड़ा अचकचा गई |

“जवाब दो – नहीं तो इतना सब कहने पर मैं तुम्हारे खिलाफ एक्शन लूँगा |”

ये सुनते रूबी का चेहरा फिर सख्त हो उठता है और वह जल्दी से कहती है –

“मैंने जो कहा वो सौ प्रतिशत सच है – और पिछले कई दिनों से ऐसा चल रहा है – मेरा कोई राईट नही कि मैं अपने बॉस की पर्सनल बात पर डिस्कशन करूँ पर अगर सच में आपको सच जानना है तो आप खुद इस बात को रीचेक कर सकते है – अब इस बात पर भी अगर आप मुझे नौकरी से निकाल देंगे तो निकाल दीजिए |”

कहती हुई वह तेजी से अरुण के विपरीत चली जाती है|

जो कुछ रूबी ने अभी कहा वो अरुण की नज़र में आया वो पहला सच था जिससे वह अभी तक नावाकिफ था| ये सब सुनते वह अचरच में पड़ा दो पल तक खड़ा रह गया|

“यू इडियट कार लाने में इतनी देर लगती है |”

आवाज से अरुण का ध्यान पोर्च की तरफ जाता है जहाँ खड़ा आकाश अपने ड्राईवर पर नाराज हो रहा था| वह सॉरी बोलता सर झुकाए उसके लिए दरवाजा खोलकर तुरंत ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है|

अरुण आकाश को आते देख अब खुद भी अपनी कार की तरफ बढ़ जाता है|

***
विवेक वाकई मेनका को रात के अंधेरो का फायदा उठाकर आराम से हॉस्पिटल से बाहर ले आया जहाँ सेल्विन उसे खड़ा मिलता है| मेनका उससे कुछ दूर खड़ी थी जबकि विवेक सेल्विन के पास ज्योंही पहुँचता है वह उसे अपनी बुलेट की चाभी पकड़ाते हुए कहता है –

“उस गली को मोड़ पर खड़ी है – तुम आराम से निकल जाओ |”

“और तुम ?” विवेक पूछता है|

“मेरी छोड़ो – तुम्हे वापस भी तो आना है – अब जाओ |”

सेल्विन उसे चाभी थमाकर अगली गली के अँधेरे में गुम हो जाता है तो विवेक मेनका की ओर देखता उसे अपने साथ चलने का इशारा करता है|

कुछ क्षण पैदल चलने के बाद वे साथ में उस गली के मोड़ तक पहुँच जाते है जहाँ वाकई एक बुलेट खड़ी उन्हें मिलती है|

विवेक बुलेट पर बैठकर उसे स्टार्ट करके खड़ा रहता है| मेनका भी उसके पीछे बैठ जाती है| वह हिचकती हुई सी उसके पीछे बैठी थी| उनके बीच देर से अबोला था जिससे वे मौन ही एक दूसरे की बात समझ रहे थे| मेनका जब विवेक को बिना पकड़े बैठती है तो विवेक स्टार्ट बुलेट में बैठा रहता है जिससे मेनका अब उसकी पीठ को पकड़ लेती है|

जिस लम्हे के लिए वे कभी जीते थे आज वो पास होने पर भी उन्हें बीच कैसा अजनबीपन था जिसे वे चाहकर भी व्यक्त नही कर पा रहे थे|

बुलेट अब रात के सन्नाटे में चली जा रही थी|

***
क्षितिज बीमार था और उसकी तकलीफ भूमि के हाव भाव में नज़र आ रही थी| वह उदासी से उसके सिरहाने बैठी उसका माता सहला रही थी| क्षितिज अपनी आंख खोलकर अपनी माँ को देखता हुआ पूछता है –

“मम्मा डैडू कब आएँगे ?”

इस पर भूमि कुछ कहने ही वाली थी कि कमरे का दरवाजा तेजी से खुला और उस पार आकाश उसे दिखाई दिया| उसे देखते भूमि अब अपनी जगह से उठ जाती है| यही पल था जब दोनों की निगाह मिली और दोनों बेहद तल्खी से एकदूसरे को देखने लगे|

आकाश को अंदर आते देख भूमि कमरे से बाहर निकल जाती है| वे दोनों विपरीत धारा की तरह विपरीत दिशा में चल देते है|

यही पल था जब अरुण भी कसे हुए हाव भाव से उधर आ रहा था| तब से आकाश के बारे में कही गई बात उसे परेशान कर रही थी पर अभी वह क्षितिज से मिलने उधर आ ही रहा था पर आकाश को उसके कमरे में जाते देख अब वापस मुड़ जाता है|

काफी रात हो रही थी जिससे वह अब अपने रूम की तरफ बढ़ने लगा| यही पल था जब उजला एकदम से उसके सामने आ गई| शायद वो उसके लौटने का इंतजार ही कर रही थी| उसको सामने देख अरुण का मन उसका अकेलापन और मज़बूरी को समझता उसके प्रति और हमदर्द हो जाता है पर ये जाने कैसी निशब्दता की मज़बूरी थी जिसे न वो लाँघ सकी थी और न अरुण| एक लम्बे दर्दीले मौन में वे दोनों न चाहते हुए भी समां जाते है|

क्रमशः……………….हिंदी की सारी विधाए जीवित रहनी चाहिए इसलिए मैंने कोशिश की कि आप लम्बी कहानी के साथ साथ छोटी कहानी, लघुकथा, विमर्श कहानियां, कविताए, यात्रा व्यतांत सब पढ़े….जो साथं साथ मैं यहाँ पोस्ट करती रहती हूँ…क्या अपने देखा !!! ..तो उन्हें भी पढ़े और बताए क्या वाकई ये सब भी आप साथ में पढना चाहते है या नहीं….

16 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 152

  1. आकाश को अपने ही कर्मों की सजा भुगतनी पड़ेगी l अरुण को भी आकाश की सच्चाइयों के बारे में पता लगने लगा है l कहानी बहुत ही रोचक होती जा रही है…👌👌👌👌👌🙏🙏

  2. Ab akaash ke saare sach Arun ke sahmane ayenge.. Arun kya karega fir.. apne bhai ka bura roop dekhkar kya gujregi us par..🥺🥺
    Ab Kiran aur Arun ko bhi mil Jana chahiye 💕

  3. Story bahut hi intresting hoti ja rahi hai. Arun ke samne aakash ki sachai dhire dhire aane lagi hai dekhte hai Arun ab kya karega. Bahut hi badhiya part hai.

  4. आकाश अकेले ने कितने कर्मकांड कर डाले सज़ा पूरे दिवान्स को मिल रही है अब अरुण की नॉलेज में धीरे धीरे सारे सच आएंगे तब वो ठीक करेगा आकाश को सजा मिलनी चाहिये

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