
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 154
ये कैसी नियति थी जब उन्हें मिलाना ही नहीं था तो वक़्त ने हमे मिलाया ही क्यों ? न चाहते हुए भी इस जुदाई को उसे सहना था| विवेक मेनका को रात में वापस छोड़ने आया तो मेनका ने उस रूम में रखे फस्ट एड बॉक्स से उसके घाव पर पट्टी कर दी|
अपने कुछ समय के साथ के बाद विवेक मौन ही वापस चला गया| न वह रोक सकी न विवेक ने एकबार भी पलटकर उसे देखा| उस रात की तन्हाई में अब उसके पास विवेक की याद के सिवा कुछ नही था| बीती रात आँखों आँखों में ही कट गई|
सुबह अरुण योगेश के नर्सिंग होम में मेनका के पास था| उसे अपने सामने बेहतर देख वह उसके सर पर हाथ फिराता हुआ कहता है –
“अब कैसा लग रहा है ? तो चले घर वापस |”
इस पर मेनका मुस्करा कर हामी में सर हिलाती है|
अब अरुण उठने का उपक्रम कर ही रहा था कि मेनका उसे टोकती हुई कह उठी –
“भईया एक बात कहूँ -|” मेनका तुरंत ही आगे कह उठी – “विवेक बुरा नहीं है – अगर आप एक बार उससे मिल ले तो !!”
मेनका अब अरुण की और देखती चुप हो जाती है तो वही अरुण संशय से उसे देखने लगता है|
फिर धीरे से कहती है – “बहुत कुछ ऐसा है जो आपको नही पता |”
“तुम मिली थी उससे ?”
“वह अभी थोड़ा घायल है जल्दी ही मिलूंगी |”
“मतलब कल तो नही मिली न !!”
अरुण के सवाल पर मेनका मौन ही बगले झाकने लगती है| इस पर अरुण कमरे में टहलते हुए अब कमरे को आँखों से खंगालने लगता है| टेबल पर रुई और पट्टी तितर बितर थी और उसमे ताजे खून के निशान साफ़ साफ़ देखे जा सकते थे| फिर कमरे से लगी बालकनी की ओर जाता है जिसका दरवाजा बंद लग रहा था पर उसकी चिटकनी हटी थी| वह टहलते टहलते उस बालकनी से बाहर का आँखों से मुआयना करता हुआ कहता रहा –
“मैं भी एक बार उससे मिलना चाहता हूँ – बताओ कहाँ है ?”
“क्या सच में !! मैं आपको बताउंगी जल्दी ही |”
“ठीक है – मैं योगेश से मिलकर डैड से मिलने चला जाऊंगा – राजवीर तुम्हे ले जाएगा |” अपनी बात कहते हुए जैसे मेनका का अगला प्रश्न समझते हुए कहता रहा – “डैड अब बिलकुल ठीक है – उन्हें भी आज ही हॉस्पिटल से डिस्चार्ज मिल रहा है |”
इस पर मेनका बस हामी में सर हिलाती हुई खामोश रहती है|
अरुण अब हॉस्पिटल से बाहर आकर देखता है, उसकी लगाई सारी सिक्योरिटी अभी भी मुस्तैद दिख रही थी, उनका इंचार्ज अरुण को देखते तुरन्त उसके पास आता उसे विश करता हुआ कहता है –
“सर कल रात से हमने यहाँ इतनी टाइड सिक्योरटी रखी कि परिंदा भी पर नही मार सका – डॉक्टर साहब भी रात भर यही रुके रहे – वे बस अभी थोड़ी देर पहले ही अपने घर के लिए निकले है – सर अब हमारे लिए नेक्स्ट क्या आर्डर है ?”
वह जितनी एलर्टनेस से अपनी बात कह रहा था उसपर अरुण हलके से होंठो को विस्तार देता आगे बढ़ते हुए कहने लगता है –
“यू कैन बैक टू योर ऑफिस नाव |”
“ओके सर |”
योगेश से अब न मिलने का सोचकर अरुण खुद ही ड्राइव करता हुआ उस हॉस्पिटल की ओर निकल जाता है जहाँ दीवान साहब एड्मिड थे|
***
वो हॉस्पिटल का सबसे सुविधजनक और आरामदायक रूम था जहाँ दीवान साहब कई केयर टेकर के बीच आराम से थे| उनकी हालत अब काफी बेहतर थी और वे नाश्ता करके आराम से बैठे थे तभी अरुण वहां आया|
वह उनके पास आता उसका हाथ पकड़ते हुए उनके ठीक सामने बैठ जाता है| दो पल तक वह उन्हें बड़े ध्यान से देखता रहा जैसे उनका फिर से स्वस्थ दिखना वह आत्मसात कर रहा हो|
इस पर थोड़ा असहज होते वे पूछ बैठते है –
“क्या देख रहे हो अरुण ?”
इस पर वह स्नेह से उनका हाथ सहलाते हुए कहता है –
“आपको ठीक देखकर अच्छा लग रहा है |”
इस पर वे एक निश्वांस लेते हुए कहते है –
“इसीलिए मैंने आज डिस्चार्ज के लिए कह दिया |”
“ठीक किया आपने डैड – अब आप कुछ दिन घर पर बस आराम करिएगा |”
अरुण जिस सहजता से अपनी बात कह रहा था उसपर वे सपाट भाव लिए उसका चेहरा देखते हुए कहने लगे –
“शायद कुछ देर पहले मेरे चेहरे पर यही ढूंढ रहे थे न कि जो परेशानी इस वक़्त मेरे हाव भाव में होनी चाहिए वो वहां है या नहीं !” वे अब अरुण का हाथ थपथपाते हुए कहने लगे – “आखिर तुम्हारा बाप हूँ – सिर्फ तुम ही अपने हाव भाव नही छिपा सकते मैं भी छिपा सकता हूँ – |”
उसकी बात पर अरुण का चेहरा थोड़ा हिचकिचा जाता है|
वे आगे कहते रहे – “इसलिए तुमने टीवी से लेटेस्ट न्यूज और कमरे में अख़बार बंद करा दिए ताकि जो आजकल हो रहा है वो मुझतक न पहुंचे|”
अब अरुण समझ गया कि उसके पिता सब जान चुके है|
वे टेबल के नीचे से एक अख़बार निकालकर उसके सामने उसका पन्ना खोलते हुए कहते है –
“जैसे तूफान को आने से न रोका जा सकता है और न उसकी खबर को ही |”
अरुण भी एक हलकी नजर उस खबर पर डाल लेता है जिसमे दीवान के गिरते व्यावसायिक ग्राफ को अच्छे से दर्शया गया था|
अरुण कहता है – “इस वक़्त इस सबसे भी जरुरी आपका स्वास्थ है |”
वे तुरंत कह उठते है – “तो कब तक मुझसे ये खबर छुपाते |”
इसपर वह खामोश होकर उनकी ओर देखने लगता है|
वे आगे कहते है – “जो तुम आज देख रहे हो अरुण वो सब कल की बोई मेरी ही फसल है और मैं इससे आंख मूंदकर कब तक बचता रहूँगा – एक दिन ये तो होना ही था|”
अब अरुण कुछ अचरच भाव से उनकी ओर देख रहा था जबकि उसके पिता सपाट भाव से कहे जा रहे थे –
“ये कोई बिजनेस की घुड़दौड़ नही है – ये सब वही है जो कभी मैंने उसके साथ किया था और आज वो सब मुझे सूद समेत वापस कर रहा है – बोला था किसी वक़्त उसने मुझे ये |”
“मैं कुछ समझा नही डैड !!”
“मैं चाहता तो इस सच को फिर किसी बनावटी झूठ के नीचे दबा लेता पर कब तक – अब तो मुझे इसका सामना करना ही पड़ेगा -|” दीवान साहब अब बिना रुके कहे जा रहे थे और अरुण अवाक् उन्हें सुन रहा था – “रंजीत के पिता और मैं कभी बिजनेस पार्टनर थे पर जल्दी ऊंचाई पर पहुँचने की मेरी सनक ने इस दोस्ती को ही नहीं व्यवसाय के विश्वास के धर्म को भी तार तार कर दिया – मैंने वो सब कुछ पा तो लिया पर इस ग्लानि से कभी नहीं उबर पाया – हर बार मैंने जिसे अपनी जिद्द की तरह पूरा किया वो ही आने वाले वक़्त में मेरे लिए सबक साबित हुआ – चाहे वह बिजनेस का कोई फैसला हो या निजी जीवन का |”
इस पल दोनों की निगाह आपस में मिली और बहुत कुछ उनके अंतर्मन में घुमड़ कर रह गया| अरुण अच्छे से समझ चुका था कि उसके पिता किस निजी फैसले की बात कर रहे है| किरन पर लगाए आक्षेप कभी अपनी ही बेटी पर विपदा की तरह आ गिरेंगे ये कहाँ वे सोच पाए थे|
वे आगे कहते रहे और अरुण पूरी ख़ामोशी से उनकी बात सुनता रहा|
“रंजीत से मैंने कई बार बात करने की कोशिश की पर कोई बात नही बनी और आखिर उसने वो कर ही दिया जो मैं कभी नही देख सकता था – जिस ईमारत की एक एक ईंट को मैंने अपने हाथ से रखकर उसे ऊंचाई तक पहुँचाया हो उसे गिरते आखिर मैं कैसे देख सकता हूँ |”
अरुण सहानुभूति से उनका हाथ सहलाता हुआ कहता है –
“आप कहेंगे तो आपकी ओर से मैं कोशिश करूँगा बात करने की पर मैं आपको हौसला खोते हुए नहीं देख सकता डैड – |”
“कोई जरुरत नही है अरुण – अपना बोया खुद ही काटना पड़ता है – अब आगे देखते है क्या होगा ?” एक निराश सा शवास छोड़ते हुए वे कहते है|
उसपल सच में उनके चेहरे में पश्चताप की भावना को साफ़ साफ़ देखा जा सकता था| अपने अतीत को उन्होंने स्वीकार तो कर लिया पर क्या महज स्वीकारने से वे इस अतीत से छुटकारा पा सकेंगे !! इस सवाल का जवाब उनके पास नही था| पर शायद आने वाले वक़्त को ही पता होगा इसका उत्तर, ये सोचते वे कुछ पल तक निराशा से नज़रे झुकाए रहे पर उनके सामने बैठा अरुण तो जैसे अपने नाम के अनुसार ही था और कोई उम्मीद की दीया उनकी आँखों में प्रज्वलित हो उठा|
वह उनका हाथ अभी तक थामे था, वह उनके हाथो को फिर से सहलाते हुए कहता है –
“पता है डैड एक छोटी सी कहानी है जो कभी बचपन में दादा जी ने मुझे सुनाई थी पर आज भी मेरे जहन में वह हर्फ़ की तरह अंकित है|”
दीवान साहब नज़र उठाकर उसकी ओर देखते है|
वह आगे कहता है – “कोई भी किसी का काम छीन सकता है पर उसकी कला नही – और वो कला जो आपमें है – आपने जब इस ईमारत की नींव रखी थी तब तो सारा भार अकेले आपके कंधे पर था पर आज आपका परिवार आपके साथ है – बस आप हमारा दिशा निर्देशन करिए तो हम फिर से नए सिरे से उस ईमारत को फिर से खड़ा कर सकते है – हार जाना गलत नही पर हार मान लेना जरुर गलत है और मैं आपको इस तरह हारने नही दूंगा – ये आज की रेस भलेही आपने शुरू नहीं की पर इसका अंजाम आपके अनुसार जरुर होगा डैड |”
वह विश्वास से उनका हाथ थामे था, ये देखते उनकी बुझी आंखे भी कुछ पल में दमक उठी|
“तो चलो – आज इसी वक़्त मीटिंग में सारा एजंडा तय करते है |”
“आज !!”
अरुण की हिचकिचाहट वे समझते हुए कहते है – “मैं ठीक हूँ और फिर तुम सब हो न मेरे साथ – चलो |” कहते हुए वे अब एक घायल लेकिन हिम्मती योद्धा की तरह खड़े हो जाते है|
अगले ही पल अरुण उनका बिजनस सूट मंगवा लेता है जिसे केयर टेकर पहनने में उनकी सहायता करते है| फिर अरुण आगे बढ़कर उनको अपने हाथ से कोट पहनाता है| इससे उनकी आँखों में एक सहज भाव तैर जाता है|
फिर अरुण उनका हाथ थामे उन्हें अपने साथ ही बाहर ले चलता है|
आगे कितना और किस तरह तय कर पाएँगे दिवान्स अपनी मंजिल जानने के लिए जुड़े रहे इस बेइंतहा की यात्रा से क्योंकि इसमें सब कुछ बेइंतहा है…दर्द भी तो ख़ुशी भी…नफरत भी तो प्रेम भी…..
क्रमशः……
Very Nice Part
Very very very nice part
Sach mai sare emotions beintaha hai 🙏🙏💐💐
Bahut badhiya very nice parts
Gajb ka part Maja aagya….Arun ki Himmat sb Sambhal legi…or lgta h menka ki Kiran ka Sach samne LA pay
Woww.. aaj boht acha laga mr. diwaan sudhar rhe hai.. apni galti Maan kar aage bad rhe hai vo bhi Arun ke sath.. par ye akash kab sudhrega aur uska sach bhi sab k sahmane ana chahiye
Sahi baat h ….apna boya hua khud ko hi katna padta h….achcha h deewan shaab ne apni galati maan li
Very nice part
Nice 👍👍👍
Very interesting part
Nice part… Deeban sahab to ab sudhar rhe h….
Finally, mr. Deewan ko apni galti ka ehsas to hua,
Ek nyi shuruaat ho rhi h….
बेहतरीन हमेशा की तरह
Superb👌👌👌👌👌👌, very very😊😊😊😊😊😊👍👍👍
Amazing part ❤️
Ossum superb part ❣️💕💕💕💕💕💕💕