Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 155

राजवीर जैसे ही पोर्च पर कार रोकता है मेनका जोश में उतरती हुई अंदर की ओर भागती है| पर विपरीत दिशा से आती भूमि से वह टकराती टकराती बचती है| भूमि उसे दोनों हाथ से थामती हुई कहती है –

“अरे रुक तो ऐसे कहाँ भागी जा रही हो – ठीक तो हो न तुम ?”

रूककर मेनका अब भूमि को देखती है जो कही जा रही मालूम पड़ रही थी| वह जल्दी से कहती है –

“भाभी मुझे आपसे बहुत जरुरी बात करनी है |” कहती हुई मेनका भूमि की बांह थामे उसे अंदर की ओर खींचने लगती है|

“हाँ सब सुनुगी – पर अभी संस्था जाना बहुत जरुरी है – बस वहां से जल्दी से वापस आकर मिलती हूँ तुमसे |”

कहती हुई भूमि मेनका का गाल प्यार से सहलाती हुई उसे रोक लेती है इससे मेनका रूकती हुई धीरे से कहती है –

“ठीक है भाभी जल्दी आना – मैं आपका इंतजार करुँगी |”

भूमि मेनका को आँखों से आश्वासन देती उसके विपरीत चली जाती है|

भूमि को संस्था से फोन आया था इससे उसे अर्जेंट ही वहां पहुंचना था| इस वक़्त उसका मन घबराहट से ज्यादा दुःख में डूबा था, जिस संस्था को उसने अपने अकथ्य परिश्रम से खड़ा किया उसका ऐसा हश्र उसने कभी नही सोचा था| वह तो हमेशा से सबके लिए अच्छा करना चाहती थी, नहीं तो उसके जीवन में वैभव और एश्वर्य की क्या कमी थी जो वह उन अनाथो के हिस्से का उनसे छीन लेगी, ऐसा लोगो ने सोचा भी कैसे ?

बहुत ही दुखी मन से वह संस्था पहुँचती है| अपने ऑफिस में पहुँचते सहसा वह अवाक् रह जाती है| उसकी नज़रो के सामने वही कमिशन अफसर खड़ा था| भूमि को लगा अब क्या बुरा कहने आया है वह ?

इसके विपरीत वह एक हलकी मुस्कान के साथ उनका अभिवादन करता है, भूमि भी अपनी ओर से औपचारिकता निभाती है|

अगले ही पल वह कुछ पेपर्स उसकी नज़रो के सामने करता हुआ कहता है – “ये मेरी लेटेस्ट रिपोर्ट है आपकी संस्था के बारे में – इसके हिसाब से आपकी संस्था के ऊपर लगे सारे एलीगेशन वापस लिए जाते है – अब आप सारे आरोपों से मुक्त है |”

ये सुनते भूमि हैरानगी से उन पेपर्स को उठाकर अलटने पलटने लगती है|

वह कहता रहा – “मैंने समझने में थोड़ी जल्दबाजी कर दी – पर असल आरोपी आपकी संस्था का ही है – राघव और कुसुमलता – जिन्होंने अपने पद का फायदा उठाते हुए बीच का कमीशन ही नहीं खाया बल्कि खराब सामानों को भी संस्था मेंवही ले कर आए – बस आपको इस बात की जानकारी नहीं हो पाई |”

“ये क्या कह रहे है – क्या सच में ऐसा है ?”

“जी इस बात के सारे सबूत है मेरे पास – अब तक पुलिस उन्हें गिरफ्तार भी कर चुकी होगी |”

अफसर सपाट भाव से कहता रहा और भूमि के सारे होश उड़ते गए| वह सर पर हाथ रखे कुर्सी पर गिर सी पड़ती है|

जो अफसर ने कहा वो सब कुछ उसके सामने सफ़ेद सच कि तरह था जिसे देखती हुई वह खुद से कह उठी –

“तो ये सारा कांड इन दोनों ने किया – फिर कल्याण !! क्या वह निर्दोष था !! क्या जल्दबाजी में मुझसे भी कोई भूल हुई क्या !!”

वह देर तक यूँही सदमे की तरह बैठी रही तो अफसर उस पल की खामोशी तोड़ते हुए कहता है –

“मैम मैं अपनी तरफ से सारी क्लीयरन्स दे चुका हूँ बस एक लास्ट चीज और आपसे कहनी है |”

इसपर भूमि नजर उठाकर उसकी ओर देखती है|

वह आगे कहता है – “लेकिन आपके पति को सही काम गलत तरह से नहीं करना चाहिए था |”

“क्या मतलब ?”

“उन्होंने मुझे और मेरी फैमली को बंधक रखा सिर्फ इसलिए कि मैं आपकी संस्था पर की गई कारवाही रोक दूँ – हालाँकि उनके द्वारा हमे कोई नुक्सान नही पहुँचाया गया पर ये गलत तो था ही न – फिर उनके द्वारा दिए गए सबूतों के बल पर ही इस फाल्ट का पता चला |”

“मेरे पति…??”

“हाँ अब सामने से चेहरा देखा तो नहीं बस आवाज सुनी थी – फिर वो आपका कोई अपना ही होगा जो आपके लिए इस हद तक गुजर गया – बस आप उन्हें ये जरुर कह दीजिएगा कि गलत तरीका भी गलत ही होता है –|”

भूमि के तो जैसे सारे होश ही उड़ गए| इसके विपरीत वह अफसर कहत हुआ बाहर निकल जाता है –

“अब मैं चलता हूँ |”

अफसर जा चुका था पर भूमि अपनी जगह पूरी तरह से उलझ चुकी थी| वह खुद में ही बुदबुदा उठी –

‘आकाश ऐसा कुछ मेरे लिए करेगा ऐसा तो हो ही नहीं सकता – और अरुण उसे तो मेरी प्रोबलम पता ही नहीं – और डैडी जी उनसे तो मेरी बात भी नहीं हुई – एक बस वही है जो हमेशा मेरी मदद करते है – फिर ये कौन शक्स हो सकता है ?’

खुद में उलझी भूमि देर तक अपनी याद के हर शख्स को खंगालने लगी पर कोई ऐसा शख्स उस खांचे में फिट नही हुआ जो उसके लिए इस हद तक चला जाए वो भी बिना उसकी जानकारी के !!

***
मेनका तो जैसे हर घड़ी इस पल का इंतजार करती मेंशन के अंदर उजला को खोजने लगी और वह मिली भी तो वही जहाँ सच में वह उसे देखने की कल्पना करना चाहती थी|   

अरुण के कमरे में उसकी वार्डरॉब को वह करीने से लगा रही थी| उसका ध्यान बस वही था जिससे वह पीछे से आती मेनका को नहीं देख पाई जो अपनी भरपूर मुस्कान के साथ आती झट से उसके गले लगती हुई कह उठती है –

“किरन भाभी ..|”

उजला के हाथ के सारे कपड़े झट से नीचे गिर पड़ते है| इतने समय बाद अपना नाम वो भी भाभी के साथ सुनते जैसे उसका सारा जिस्म थरथरा कर रह गया| मेनका अभी भी उसे पीछे से पकड़े हुए कह रही थी –

“मुझे यकीन नहीं आता कि मेरी भाभी मेरी नज़रो के सामने थी और मैं जान भी न पाई – भाभी बस मन करता है यूँही पकड़कर आपको भईया के सामने खड़ा कर दूँ – फिर देखती हूँ कैसे ये दो बिछड़े दिल नहीं मिलते |”

ये सुनते ही उजला घबराकर झट से उसकी ओर पलटती हुई कह उठी –

“नही – ऐसा कुछ मत करना |”

“क्यों भाभी – ओह आप शायद विवेक के बारे में सोच रही है |” एकदम से मेनका का मन भी मुरझाया सा हो जाता है|

वह अब धीरे से कहती है – “भाभी प्लीज आप विवेक को गलत मत समझिएगा – मैं बस अभी आपको इतना कह सकती हूँ कि जो कुछ भी उसने किया उसके पीछे उसकी कोई गलत मंशा नही थी – वह तो खुद ही हालातो का मारा हुआ है – आप मुझपर तो यकीन करती है न तो मेरी बात पर भी कर लीजिए – वह गलत नही है – इसलिए अब मैं आपको इस तरह नही देख सकती – इस घर में जो आपकी सही जगह है वो आपको मिलनी ही चाहिए – मैं…|”

“बस बस – अब आगे कुछ मत कहो |”

मेनका हैरान उजला को देखती रही जिसकी आंखे आंसुओ से डबडबाई हुई नज़र आ रही थी|

“जो भी मेरे साथ हुआ या जिसने भी मेरे साथ किया वो सब बीती हुई बात हो गई – अब इस बात का सारा अर्थ ही खत्म हो चुका है – शायद किरन कभी बनी ही नहीं थी इस घर के लिए – मैं उजला ही ठीक हूँ – अब बस ये बात यही खत्म करो |”

“ये क्या कह रही है आप ?”

“वो सच जिसे जितनी जल्दी स्वीकार लोगी तो मेरी तरह बुरा लगना खत्म हो जाएगा |”

“नहीं ये सच नही है – आप किरन है ये बात जानते हुए मैं चुप नही रह सकती |”

“चुप रहना होगा – क्योंकि अगर किरन अतीत से बाहर आएगी तो विवेक पर आरोप भी बाहर आएगा और ये दो सच शायद ये परिवार स्वीकार न कर सके इसलिए किरन को अतीत में ही दफन रहने दो – यही वक़्त की जरुरत है |”

उजला बिलखती हुई उस कमरे से बाहर चली गई और पीछे खड़ी मेनका जैसे जडवत रह गई| एक ही पल में उसकी ख़ुशी कपूर की भांति उड़ गई| उसका मन खुद से ही प्रश्न कर उठा –

‘क्या दादा जी भी इसलिए सब जानते हुए भी चुप है ? क्या ये सच कभी स्वीकारा नही जाएगा ? क्या विवेक से सच में बहुत बड़ा गुनाह हो गया ?’

मेनका किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ी रह गई…..

उजला भरी आँखों से कमरे से निकलकर बाहर आ गई| अब उसने जैसे खुद को वक़्त के हवाले कर दिया कि जो उसका फैसला होगा अब वही उसकी नियति होगी….

वह मुख्य हॉल से गुजरकर अपने कमरे की ओर जा रही थी कि जिगना की आवाज के साथ कोई महीन आवाज उसके कानो से टकराई जिसे सुनते उजला अपने स्थान पर खड़ी रह गई|

“अच्छा आप उजला दीदी से मिलना चाहती है – आप कमरे में बैठे मैं बुला कर लाता हूँ |”

आखिर कौन आई है उजला से मिलने ? क्या उजला को छोड़कर कभी किरन को अपना वह वापस से अपना पाएगी ? क्या भूमि रंजीत का सच जान सकेगी ?

क्रमशः……

18 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 155

    1. Part achha hi pr roj ek part padhne me maja nhi aa raha lagta hi puri story ek sath ho to kitna achha hi pr ye possible nhi hi ye pata hi aap roj part deti hi wo he bahut hi . Thanks for story

  1. Bahut hi achchha bhag hai. Arun kya karega Vivek ke sath? Bhumi ko Ranjit ke bare me kese pata chalega. Kahani intresting hoti ja rahi hai har bhag ke sath.

  2. Ooh very very very nice parts Kiran ki dost Jo Kiran ke sath rhti thi use le aaya Arun Kiran ko phchane ke liye ab Kiran ky kregi

  3. Bhumi kya Ranjit ke sach se anjaan h….kya Ranjit ka payaar ektarfa tha……kiran to ujla banakar apna astitav hi kho chuki h

  4. Ye kya kiran kya sirf ujla ban kar hi reh jayegi.. agar kiran ka sach aur Vivek ka gunah bahar ayega to akaash ka sach bhi ana chahiye.. fir ja kar sab sahi hoga.. par ye sab Arun kaise karega??
    Kya sarangi to nhi ayi ujla se milne??

  5. Chalo ab bahut jald arun aur kiran ek sath honge..abhi samne hai ek dusre ke par ab jald hi sath bhi honge…

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