
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 16
अरुण अपनी भाभी को क्षितिज के मन की बात बता देता है जिसे आंख झुकाए भूमि चुपचाप सुन लेती है| बाकि उसके मन में कैसा तूफान उठने लगा था ये हर बार वह सबसे छिपा ले जाती थी|
हमेशा की तरह आधी रात में आकाश अपने कमरे मे लौटा था| नशे में चूर आते वह बिस्तर पर गिर पड़ा था| भूमि यूँ तो न उसका अब कभी इंतज़ार करती थी और न वे साथ होकर भी साथ रहते| हालाँकि आज क्षितिज के लिए वह आकाश का इंतजार कर रही थी लेकिन उसकी तो बात करने लायक हालत भी नही थी| भूमि एक नज़र उसकी हालत देखती है फिर मनमसोजे वापस अपने कमरे में चली जाती है|
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रंजीत नाम था ऊँचाइयों का चाहे वह बिजनेस में हो या समाज से छिपे अपने स्मगलिंग के काम में| इस कारण उसका अच्छा खासा खौफ सबमे बना रहता था और इसमें उसका सीधा हाथ था सेल्विन नाम का हैडसम जवान बन्दा जो रंजीत का चलता फिरता दिमाग था| उसके हर काले सफ़ेद काम का पूरा जानकर और हमराज़ भी| उसके बिना न रंजीत कुछ सोचता था और न करता था|
अभी वे अपने नए कन्साइन्मेन्ट ऑर्डर पर बात कर रहे थे तभी रंजीत के घर की एक नौकरानी रानी आकर उसे वर्तिका के बारे में बताती है कि दिन से उसने न कुछ खाया है और न कमरे से बाहर ही निकली है| रंजीत ने रानी को खास वर्तिका की देख रेख के लिए रखा था साथ ही उसे ही बस इस बात की इजाज़त थी कि वह कभी भी आकर उसे वर्तिका के बारे में खबर कर सकती थी| वह एक प्रौढ़ स्त्री थी और काफी समय से वर्तिका की देख रेख में लगी थी|
उससे वर्तिका का हाल सुनते अब रंजीत का रुकना असम्भव हो गया और वह तुरंत उसके कमरे तक पहुंचा| कमरा खुला था| वह लॉक घुमाकर अंदर प्रवेश करता है| वह घर का सबसे शानदार और बड़ा कमरा था| लेकिन आज अंदर प्रवेश करते एक नज़र कमरे को देखते उसके होश ही उड़ गए थे| ऐसा लग रहा था जैसे कमरे में कोई भूचाल आया हो| हर एक सामान इधर उधर बिखरा पड़ा था| साफ़ नज़र आ रहा था कि किस तरह वर्तिका के कोप का भाजन बना था वह कमरा| दीवार की टंगी पेंटिंग से लेकर कोने कोने सजे सजावटी सामान, कबर्ड के कपड़े, यहाँ तक कि कांच की मेज भी पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई पड़ी थी|
रंजीतफर्श में पड़े कांच से बचता हुआ अंदर के कमरे में जाता है जहाँ बिस्तर पर पड़ी वर्तिका अभी तक सुबक रही थी| ऐसा लग रहा था जैसे बहुत देर रोने के बाद की नींद में भी वह अभी तक हिचकी ले रही थी| उसकी हर आहट उसका दर्द बयां कर दे रही थी|
ये सब रंजीतके लिए दिल दहला देने वाला दृश्य था| अपनी दिल की टुकड़ा बहन जिसका एक आंसू वह नही देख सकता था वह आज आंसुओं की नदी में गोता लगा रही थी| अब तो इसकी वजह जानने को वह वर्तिका के पास पहुँचता उसके बगल में बैठता प्यार से उसका सर सहलाने लगता है|
“मेरी गुड़िया – |” वह उसका सर सहलाता उसे पुकारता है|
वर्तिका भी जैसे उखड़ी नींद सोयी थी रंजीतका स्पर्श पाती तुरंत आंख खोल बैठती है| और बेसब्र होकर उसका हाथ पकड़े फिर से बिलख कर रो पड़ती है| उसकी ऐसी हालत पर रंजीतअब उसका चेहरा दोनों हाथ में लेता प्यार से देखता हुआ कह रहा था –
“क्या हुआ बच्चा – तुम्हे ये सब पसंद नही रहा – कोई बात नही – मुझे भी अब ये दो साल पुराना इंटीरियर बेकार लगने लगा था – कल ही देखना तुम्हारे कमरे को एक नया लुक देने मैं बेस्ट इंटीरियर डेकोर को बुलवाता हुआ – फिर मेरी बहन जो चाहेगी वही उसके कमरे में रहेगा – बस एक बार बता भर दो कि मेरी प्यारी गुड़िया को क्या चाहिए – कही भी होगी वो चीज – वादा है वो मेरी वर्तिका के पास ही होगी – बोलो क्या चाहिए – बताओ बच्चा – तुम बस उस चीज का नाम भर ले लो – मैं लाकर दूंगा उस चीज को….|”
“अरुण…|” रंजीतकी अधूरी बात के बीच काटते हुए वर्तिका अपनी भीगी आवाज में कह उठी|
रंजीतजानता तो था पर वर्तिका उसे लेकर इतना आकुल होगी ये उसे अंदाजा नही था| पर नाम लिया है तो वो उसे देना ही होगा आखिर यही वादा रहा था उसका अपनी बहन के लिए खुद से |
“बस इतनी सी बात – |”
इस पर वर्तिका रोना बंद करती हैरान नज़रे अपने भाई की ओर डालती है जो अभी भी बड़े प्यार से उसका सर सहलाते हुए कह रहा था –
“ये तो बहुत छोटी सी चीज है – वैसे भी ऐसी कोई चीज बनी ही नही जो मेरी बहन की पहुँच से दूर हो |”
“भईया – आप – समझ नही रहे |” हिचकती हुई वर्तिका कहती है|
“तेरा एक शब्द ही मेरे लिए पूरी की पूरी कहानी होता है –|” वह मुस्कराते हुए उसका सर अपनी गोद में रखते हुए कह रहा था – “बस दो दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ और लौटते ही तुरंत सेठ घनश्याम से मीटिंग रखता हुआ और उसके तुरंत बाद बस शादी पक्की |”
“सच भईया !”
“और क्या – मेरी बात टाल सके अभी ये किसी में दम नही – झट मंगनी पट शादी होगी देखना – और देखना ऐसी धूम से करूंगा अपनी लाडली की शादी कि सालों लोग याद रखेंगे – दुनिया की सबसे बेस्ट दुलहन बनेगी मेरी गुड़िया |”
रंजीतकहते कहते जैसे किसी ख्वाब में जीने लगा था वही वर्तिका की आँखों में दुबारा चमक लौट आई थी|
“बस यही दुःख रहेगा कि उसके बाद किसका मुंह देखकर तेरा भाई दिन की शुरुवात करेगा – तू ही तो मेरी सारी दुनिया है|”
“भईया |” कहती हुई अपने भाई से लिपट कर वर्तिका एकबार फिर बिलख पड़ती है|
रंजीत अभी भी उसका सर सहलाते उसकी शादी का ख्वाब आँखों में बुनना शुरू भी कर चुका था|
***
बहुत रात हो चुकी थी लेकिन सडकों पर गाड़ियों की आवाजाही अभी भी बनी हुई थी| देख कर लग रहा जैसे शहर की रात दिन में तब्दील हो गई हो| क्लबो, होटलों के बाहर गाड़ियों का हुजूम सा नजर आ रहा था| उन सबके बीच विवेक थके कदमो से भी भरसक तेजी से सड़क के किनारे किनारे चला जा रहा था| अब वह उन साफ साफ़ रास्तो को पार करता उनसे काफी दूर निकल आया था जहाँ दूर दूर तक घनी बस्ती का संसार फैला हुआ था| जहाँ फुटपाथ में गरीबी ओढ़े बिछाए तकदीर के मारे सोए रहे थे| अब चारों ओर उसे घोर सन्नाटा छाया हुआ दिखाई पड़ रहा था| ये दुनिया का वह शोर और सन्नाटे का विभाजन था जो पल में अमीर गरीब को अलग कर देते थे| जहाँ चमकता शहर अपनी रौनक में डूबा था वही आभाव के मारे अपनी दुनिया में गुमनाम कही गुम थे|
चलता हुआ वह शांति कुञ्ज के उसी चरमराते हुए घर के बाहर खड़ा था जिसके अंदर वह कभी अपने पिता को उनकी बेबसी के साथ छोड़कर चला गया था| एक नज़र में उस बिखरे घर को देखता वह घर के अंदर आता है| प्रवेश करते ही उसकी नज़र चारपाई पर पड़े वृद्ध देह पर जाती है जो एक ओर को लेटे बेसुध पड़े थे|
बहुत देर तक वह यूँही खड़ा उसी ओर अपलक देखता रहा ऐसा करते रहने से उसकी आँखों में खारा समन्दर उमड़ आया था|
“पिता जी – पिताजी देखिए मैं आपका बेटा वापिस आ गया |” चारपाई की ओर झुकता हुआ विवेक उसके बहुत पास था|
“आप कुछ कहते क्यों नही पिता जी – क्या नाराज है मुझसे – होना ही चाहिए आखिर आपको बिना बताए जो चला गया था|” विवेक भरी आँखों से उन्हें देखता अपना हाथ उनके सर पर रखता हुआ कहता रहा – “कुछ तो बोलिए – ऑंखें खोलकर मुझे देखिए तो – अब मैं वादा करता हूँ कि आपको छोड़कर कही नही जाऊंगा – आपके पास ही रहूँगा – पिताजी मैं जानता हूँ आप मुझे बहुत प्यार करते है जो ज्यादा देर मुझसे नाराज़ नही रह पाएँगे – कुछ तो बोलिए – देखिए आपका माथा कैसा ठंडा पड़ गया है – आपको ठण्ड लग रही होगी |” कहता हुआ वह एक चादर अपने पिता को ओढ़ाने लगता है|
“पिता जी !!”
“वे अब कुछ नही बोलेंगे |”
अचानक की आवाज पर विवेक मुड़कर पीछे देखता है|
“बहुत इंतजार किया तुम्हारा – रात दिन तुम्हे ही याद करते रहे पर जाने अचानक तुम कहाँ चले गए थे ?”
विवेक के चेहरे पर दर्द का सैलाब उमड़ आया था|
वह आदमी अभी भी कह रहा था – “काश कुछ क्षण पहले आ जाते तो वे भी तुम्हे आखिरी नज़र देख पाते |”
“नही…|” विवेक बुरी तरह चीत्कार पड़ा|
अब विवेक की नज़र उस आदमी के हाथों पर जाती है जिसमे वह सफ़ेद कफ़न पकड़े था|
“तो क्या – तो क्या – वे मुझे अकेला छोड़कर चले गए |” विवेक बुरी तरह चीखता रहा – “मैं जानता हूँ सब उस कमीने की वजह से हुआ है – उसी ने बर्बाद कर दिया मेरा सब कुछ – मैं उसे जिन्दा नही छोड़ने वाला – मैं ऐसी दुनिया को आग लगा दूंगा जहाँ ऐसे वहशी दरिन्दे खुलेआम घूमते है – नही छोडुंगा – किसी को नही छोडुंगा|” बदहवासी में चीखता हुआ विवेक बाहर जाने को आतुर होता है| अब तक उसकी चीख से आस पास कुछ लोगो की भीड़ जमा हो चुकी थी जो उसके तेवर देख घबरा जाते है| वहां इकठ्ठा हुए लोग उसे पकड़े थे और विवेक अपनी बदहवासी में अभी भी चीखे जा रहा था| उसका बदन देख्रों पसीना छोड़ रहा था| उसकी हालत बिलकुल पागलों जैसी हो गई थी|
………क्रमशः……..