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बेइंतहा सफ़र इश्क का – 164

“चाय..|” वह लड़का चाय लिए ठीक विवेक के सामने खड़ा था| विवेक उसी जगह मौजूद था जहाँ सेल्विन ने उसे रुकाया था| वह कही जाने के लिए बस निकलने वाला था तभी पास की टपरी से आता एक लड़का चाय का गिलास लिए उसकी ओर बढ़ाता हुआ बेहद उत्सुक दिख रहा था|

लड़का जितनी उत्सुकता से विवेक को देख रहा था विवेक का उतना ही उसपर बिलकुल ध्यान नही था|

“नहीं चाहिए अभी चाय |”

लड़का चाय वापस लेता हुआ जोश में कहने लगा – “मुझे पहचाना – जब तुम बस स्टैंड पर खड़ा था साहब तब मैं सींग दाना बेचता आया था – अब मैं सींग दाना नही बेचता – अभी उस टपरी में काम करता हूँ |”

“हूँ |” विवेक रुखाई से एक नज़र उसे देखता सर हिलाता हुआ अब सड़क की ओर देखने लगता है|

लड़के को विवेक की रुखाई उदासीन कर देती है जिससे चाय वापस लिए विवेक को देखता हुआ जाने लगता है| तभी विवेक का मोबाईल बज उठता है| वह मोबाईल को निकालते उसका स्क्रीन देखता है| स्क्रीन में मेनका का नम्बर शो कर रहा था|

कुछ क्षण पर वह मोबाईल को घूरता रहा पर उसने उसकी कॉल रिसीव नही की| मेनका लगातार कॉल करती रही जिससे चिढ़ते हुए विवेक मोबाईल को म्यूट करके उसे अपनी जेब के सुपुर्द करता फिर से सामने सड़क की ओर देखने लगता है|

अभी उसकी नज़र सामने गई ही थी कि एक शानदार कार ठीक उसकी नज़रो के सामने रुकी और उसी क्षण उसके आगे के दरवाजे से तुरंत ही उतरता हुआ अरुण फुर्ती से उसके सामने पहुँच गया|

अभी विवेक कुछ समझ पाता उससे पहले ही अरुण विवेक पर एक कसकर मुक्का जड़ देता है| विवेक इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं था| अचानक हुए हमले से वह एक ओर जाकर गिर पड़ता है|

वह जमीन की ओर गिरा अभी बात समझता उससे पहले ही अरुण ताबड़तोड़ उसपर मुक्के बरसाने लगता है| वह बुरी तरह से उसे कभी घूसे कभी लात से उस पर भारी पड़ रहा था|

आखिर विवेक अरुण का हाथ पकड लेता है और अपने दूसरे हाथ से अपने होंठो के किनारों से बहते खून को पोछते हुए कहता है –

“बहुत हो चुका अरुण – अब मेरा हाथ भी तुम पर उठ जाएगा |”

“जिसमे दम होता है – वो सिर्फ बाते नहीं करते |” कहते हुए अरुण अपना हाथ झटके से छुड़ाकर उसे जोर से पीछे की ओर धक्का दे देता है जिससे विवेक पीठ के बल सड़क पर तेजी से गिर पड़ता है| इतनी ही देर में अरुण अपनी शर्ट में खुसी पिस्टल निकालकर उस पर तान देता है|

“आज मैं तुम्हारा किस्सा यही खत्म कर दूँगा – बहुत धोखा दिया तुमने मुझे और मेरे परिवार को – मैंने तुम्हे क्या समझा था और तुम क्या निकले – विश्वासघाती – अब मैं तुम्हे जिन्दा नही छोड़ने वाला |”

अरुण उसपर पिस्टल ताने था इससे विवेक कुछ और हरकत नही कर पाया और इसका फायदा उठाते हुए वह विवेक पर लातो से ताबड़तोड़ वार करने लगता है| विवेक पहले से ही घायल था और इस तरह के वार से उसका शरीर कुछ देर में खून से छलछला जाता है|

अरुण इतना गुस्से में था कि वह बिना उसे मौका दिए बस उसपर वार पर वार किए जा रहा था|

“अरुण देखो तुम सही नही कर रहे |” विवेक किसी तरह से चीखता है|

पर अरुण पर तो जैसे खून सवार था| अबकी वह पिस्टल की बट से उसके सर पर वार करता उसपर चीख उठा – “तुम क्या समझते हो कि मैं तुम्हे अपनी मासूम बहन की जिंदगी के साथ खेलने दूंगा – तुम अब मेरे परिवार के आस पास भी नज़र नहीं आ पाओगे क्योंकि मैं आज तुम्हारा काम ही तमाम कर दूंगा फिर चाहे मुझे फांसी ही क्यों न हो जाए – मैं तुम्हे जिन्दा नही छोड़ने वाला|”

कहते हुए वह आक्रोश में पिस्टल का लॉक ओपन करके टिगर पर अपनी उंगली जमा लेता है| अरुण विवेक पर पिस्टल ताने था| और वह अपना बचाव करने के लिए अहिस्ता अहिस्ता उसके पास सरकने लगता है|

“अरुण देखो तुम मुझे गलत समझ रहे हो – पहले मेरी बात तो सुनो |”

विवेक को अपनी तरफ धीरे धीरे सरकते देख अरुण अब दोनों हाथ से पिस्टल पकड़े उस पर उसकी बट से एक और तगड़ा वार करता है जिससे बेकल होता विवेक पुनः जमीन पर गिर पड़ता है| अब उसके माथे से खून बहने लगा था|

फिर भी वह अरुण को रोकने कहे जा रहा था –

“मुझे अपनी सफाई पेश करने का मौका तो दो – मैं मेनका….|”

विवेक अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि अरुण मेनका का नाम सुनते ही गुस्से से तिलमिलाते हुए उस पर लगातार वार करने लगता है| उसके आगे से नुकीले बूट विवेक पर कहर बरपा रहे थे|

आस पास खड़े जो कुछ लोग ही थे पर वे सभी भयभीत इस दृश्य को मूक देखे जा रहे थे| किसी की उसके बीच आने की हिम्मत नहीं हुई| अरुण पर तो जैसे खून सवार था| विवेक लगभग अधमरा सा हो गया था| ताबड़तोड़ वार कर चुकने के बाद अरुण उस पर पुनः अपनी पिस्टल तान लेता है| इस वक़्त अत्यधिक गुस्से से उसके शरीर की मांसपेशियां तनी हुई थी| माथे पर बल नज़र आ रहे थे कि तभी अकस्मात ही उनके बीच में दौड़ती हुई मेनका आ जाती है|

मेनका आते ही विवेक की हालत देखती बुरी तरह बिफर पड़ती है –

“ये क्या कर डाला आपने ?”

मेनका को देख अरुण कसकर चीखा – “हट जाओ सामने से मेनका – आज मैं इसे इसके किए की सजा दूंगा |”

“तो ठीक है – विवेक पर गोली चलाने से पहले आप मुझपर गोली चलाए – कसूरवार मैं भी तो उतनी ही हूँ न |” अरुण के आगे तनी हुई मेनका चीखी|

अरुण अभी भी पिस्टल ताने था उसकी उंगली ट्रिगर पर तनी हुई थी कि तभी एक गोली चलती है जो सीधे मेनका की बांह को भेदती हुई जाती है| गोली लगते मेनका का शरीर एक झटके से एक ओर गिरने लगता है|

मेनका को इस तरह गिरते देख अरुण तेजी से उसे सँभालने उसकी ओर दौड़ जाता है| अब मेनका की बेजान देह अरुण की बांह के बीच झूल जाती है|

“मेनका – मेनका – ये क्या हो गया – जाने कैसे गोली छूट गई – मेनका |” अरुण बुरी तरह से घबराया मेनका को होश में लाने की कोशिश करने लगता है पर वह बेसुध सी हो चुकी थी| उसकी बांह से तेजी से खून की धार बह निकली थी| अरुण तेजी से घाव पर रुमाल बंधकर उसे उठाए कार की ओर दौड़ जाता है|

राजवीर ने अरुण की कार के पीछे कार पार्क की थी इससे वह ये सब होता नही देख पाया पर अरुण को इस तरह मेनका को घायल अवस्था में लाते देख तुरंत उसकी ओर दौड़ जाता है लेकिन अरूण फुर्ती से मेनका को सीट पर लेटाकर कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा कार को पीछे घुमा लेता है|

विवेक बुरी तरह से घायल अभी भी सड़क पर पड़ा था| वह इतना घायल था कि मेनका के प्रति वह कोई प्रतिक्रिया भी नहीं कर पाया| अरुण के वहां से निकलते राजवीर भी उसके पीछे पीछे निकल जाता है जिससे अब धीरे धीरे वहां भीड़ इकट्ठे होने लगती है| पर उसकी मदद के लिए के लिए कोई आगे नहीं आता बस तमाशबीन बने उसे देखने लगते है|

तभी वह लड़का विवेक के पास दौड़ता हुआ आता है और विवेक को उठाने की कोशिश करने लगता है पर जवान शरीर उस दुबले लड़के से जरा भी नही हिलता तो वह परेशान होता आस पास देखने लगता है|

कुछ क्षण पश्चात वहां एक सिपाही आता है और अकड़ते हुए डंडा जमीन पर ठोकते हुए बोलता है –

“यहाँ इतनी भीड़ क्यों जमा कर रखी है – हटो हटो – सब हटो यहाँ से|”

भीड़ के हटते सिपाही की नज़र सड़क पर घायल पड़े विवेक पर गड जाती है| वह उसे देखने कुछ आगे उसके पास आता ही है कि तभी दौड़ता हुआ सेल्विन उनके बीच आ जाता है और घायल विवेक की ओर झुकता उसे झंझोड़ते हुए पूछता है –

“ये क्या हो गया विवेक तुम्हे ?”

“ए  – ये कौन है और ये इसकी हालत कैसे हुई ?”

सेल्विन चौंककर पीछे पलटकर सिपाही को देखता है|

सिपाही फिर पूछता है –

“क्या हुआ इसे ? इसे थाने ले चलो रिपोर्ट लिखानी होगी – लगता है इसने मारपीट की है|”

ये सुनते सेल्विन जल्दी से कहता है – “नहीं – ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है – आपको ग़लतफ़हमी हो रही है|”

“हमको आँखों देखी मक्खी निगलने को बोल रहे हो बच्चू – क्या मैं नही देख रहा कि इसके इतनी सारी चोट लगी है|”

“व – वो तो ये ही बता सकता है पर मैं इतना यकीन से कह सकता हूँ कि यहाँ मारपीट नही हुई है|”

सेल्विन विवेक का सर अपनी गोद में रखकर झंझोड़ता है|

सिपाही अवाक् उसे ऐसा करते देख रहा था|

“विवेक – विवेक होश में आओ|”

विवेक धीरे से कराहते हुए आंख खोलते एक पल संशय से सेल्विन को देखता है फिर उसके पीछे खड़े सिपाही को जो अभी भी लगातार उसे घूर रहा था|

“विवेक बता दो इन्हें कि तुम्हारे साथ कोई मारपीट नही हुई है – बोलो विवेक – कम से कम न में सर हिला दो|”

सेल्विन के ऐसा कहते विवेक धीरे से सर हिलाता है इस पर सिपाही तुनकते हुए कहता है –

“हमको क्या – नहीं रिपोर्ट लिखानी तो मत लिखाओ पर यहाँ तमाशा भी मत लगाओ |”

कहता हुआ सिपाही एक ओर चला जाता है तो सेल्विल जल्दी से विवेक को अपना सहारा दिए एक टैक्सी को रोकता है| वो लड़का भी विवेक को दूसरी ओर से पकड़े उसे टैक्सी में बैठने में मदद करता है|

***
अरुण मेनका को उसी हालत में लिए हॉस्पिटल की ओर भागता है| हॉस्पिटल आते वह स्ट्रेचर का इंतजार किए बिना ही मेनका को लिए हुए हॉस्पिटल के अंदर प्रवेश कर जाता है| इस वक़्त उसके साथ साथ मेनका की खराब हालत देखते वहां के आस पास के लोगो की नज़रे भी उसी पर टिक जाती है|  मेनका की बांह अभी भी खून से सनी हुई थी| उसकी बुरी हालत में बिफरता हुआ अरुण लॉबी में खड़े खड़े तेजी से चीखते हुए डॉक्टर को बुलाता है|

क्रमशः……………..

16 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 164

  1. Menka fir se hospital pahuch gyi……ye goli arun ne nhi kisi or ne hi chalayi h….menka or vivek sefe ho

  2. तो क्या गोली अरुण की पिस्टल से ही निकली है? या फिर कोई और भी है इसके पीछे?
    बहुत ही मार्मिक भाग 👌👌👌👌🙏🙏

  3. Aisa lag rha hai ye goli Arun ne nhi chalayi.. selvin agar aas paas tha to pehle kyu nhi aya.. menka aur Vivek dono thik ho bas.. Arun se pehli baar galti ho rhi hai.. asal kasurwaar to akaash hai.. Vivek nhi. Par Arun to kuch sunne ko hi tyar nhi hai.. 🥺🥺🥺

    1. Ye goli Arun ne nhi chalai hai.vivek aur menka safe ho aur Arun ko Sara sach pta chal jaye.

  4. बेचारी मेनका ही इन सबकी dusmni का शिकार बन रही h

  5. मुझे तो लगता है सेल्विन आसपास ही था गोली उसी ने चलाई है अरुण को भटकाने के लिए

  6. Ohho fir se galti kr gya Arun…but I don’t think so ki Arun goli chala sakta h…jarur y kisi or LA kaam h

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