Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 165

अरुण जिस बुरी हालत में मेनका को हॉस्पिटल लाया था उससे सबकी नज़रे उसी की ओर उठ गई| वहां से जिस स्पीड से वह हॉस्पिटल पहुंचा था ये उसकी हालत देख कर अच्छे से अंदाजा लगाया जा सकता था|

ये दिवान्स का अपना हॉस्पिटल था इससे अरुण के वहां पहुँचने से पहले उसने मोबाईल से ही उन्हें सर्जिकल वार्ड तैयार करने को बोल दिया था| वह जैसे ही हॉस्पिटल की लॉबी में पंहुचा एक रिपोटर की निगाह उसकी हालत पर चली गई| वैसे भी हाई प्रोफाइल लोगो के आस पास ऐसे रिपोटर लेटेस्ट खबरों के लिए उनके आस पास बने ही रहते थे|

वह जैसे ही उसकी तस्वीर उतारने वाला था अरुण की आक्रोश भरी नज़र उसपर पड़ गई और वह सर झुकाए अपना कैमरा समेट लेता है क्योंकि ये रिपोटर उन्ही रिपोटर्स में से था जो उसे मंदिर के बाहर मिले थे|

उस वक़्त उसका समस्त शरीर जैसे अंगारा उगल रहा था| वह मेनका को सर्जिकल वार्ड छोड़कर वेटिंग रूम में सर पकड़े बैठा था|

कुछ समय बाद भूमि बदहवास सी वहां भागी भागी आती है| उस वक़्त भी मेनका सर्जिकल वार्ड में थी इससे वह अरुण को खोजती हुई वेटिंग रूम में आ गई|

उस वक़्त तक भी वह अपना सर दोनों हाथो के भीच भींचे सर झुकाए बैठा था मानो उस लम्हे का मातम मना रहा हो|

“ये क्या किया तुमने अरुण |” भूमि आते ही उसे बुरी तरह से झंझोड़ती हुई चीखी – “तुमने इतना बड़ा कदम उठाने का सोच लिया और मुझे एक बार भी बताता जरुरी नहीं समझा – वो तो मुझे अभी राजवीर ने आकर बताया – बोलो बोलते क्यों नही |”

अरुण उसी तरह सर झुकाए झुकाए सदमे से कहता है – “जिसे सच में ऐसी हालत में पहुंचाना था वो तो बच गया – अगर मेनका बीच में नही आती तो…|”

“तो ? तो क्या तुम विवेक को मार देते ?”

“हाँ मार देता उसे – |” अरुण एकदम से चीखता हुआ भूमि के सामने खड़ा हो जाता है – “मार देता उसे – उसी की वजह से मेनका बार बार ऐसे हालात तक पहुँच रही है – अगर मेनका को कुछ हो गया तो पता नही मैं खुद के साथ क्या कर डालूँगा |”

अरुण की क्रोध से जलती आँखों को देखती कुछ पल को भूमि भी सहम गई|

वह कहता रहा – “सब कुछ का जिम्मेदार वही है – उसकी वजह से ही बडी भी गया और किरन ? उसने उसका क्या बिगाड़ा था ? आखिर वो ये सब कर क्यों कर रहा है ?” कहते कहते वह खुद पर ही चीख पड़ा|

“उसकी भी वजह है |” भूमि धीरे से कहती चुप हो जाती है पर अरुण की प्रश्नात्मक नज़रे अब उसी पर टिक जाती है|

भूमि कहती रही – “वो बदला ले रहा है – अपनी बहन तारा का |”

“बदला – किससे ?”

अरुण प्रश्न पूछता भूमि को देखता रहा और भूमि अब कुछ पल खामोश हुई उसके सामने इस तरह खड़ी थी मानो अपने अंदर इस बात को कहने की सारी ताकत समेट रही हो|

“भाभी प्लीज़ फॉर गॉड से – मुझे जानना है कि आखिर वह किस से और किस बात का बदला ले रहा है – है कौन ये तारा ?”

“तारा तुम्हारे भाई आकाश की प्रेमिका थी |” एक एक शब्द बड़ी मुश्किल से भूमि कहती है|

और अरुण अवाक् उसे देखता उसके सामने खड़ा रहा|

भूमि कहती रही – “आकाश का तारा से जो सम्बन्ध था उसे मैं उसका एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर भी नहीं कह सकती क्योंकि आकाश का तारा के साथ अपनी शादी से पहले से ही सम्बन्ध था – बस मुझसे शादी करके उसने उसे वैध नहीं होने  दिया – मुझे तो ये सब बहुत बाद में मालूम पड़ा और तब तक तारा के साथ अनहोनी हो चुकी थी – आकाश ने उसे अपनी जिंदगी से बड़ी बुरी तरह से निकाल फेका कि आज वह अपना मानसिक संतुलन तक खो चुकी है |”

भूमि नज़रे नीची किए अपनी बात कहती रही और सामने खड़ा अरुण उसे अजीब नज़र से देखता रहा जैसे उस वक़्त उसका सारा यकीन खोने लगा हो|

“विवेक तारा का भाई है – आकाश की वजह से वह बिना किसी कसूर के तीन साल जेल में रहा और अब बाहर आने के बाद से वह ये सब कर रहा है |”

“तो क्या मेनका का उसने इसी लिए इस्तमाल किया ?”

“अब इसे इतफाक समझो या नियति कि वे दोनों अनजाने में ही बहुत पहले से पंचगनी से एकदूसरे को जानते थे – ये बात मुझे मेनका खुद बता चुकी थी लेकिन होनी ने उसी की बहन के साथ आकाश का सम्बन्ध इस तरह कर दिया कि आज विवेक किसी भी तरह से बस बदला लेने पर उतारू है |”

“और ये बात आप अब मुझे बता रही है -|” एकदम से अरुण की आँखों में जैसे ढेर खून उतर आया और वह इतना कस कर चीख उठा कि एक पल को भूमि भी काँप गई – “आपने अब तक क्यों छिपाई मुझसे ये बात ?”

अरुण गुस्से में गहरी गहरी सांस लेता भूमि को घूर रहा था जो होंठ दाबे यूँ अपनी सोच में डूबी थी कि जितना आज वह न कह कर शर्मिदा हुई उतना ही वह कहकर भी शर्मिंदा हुई|

कुछ पल तक उस रूम में सन्नाटा छाया रहा फिर उसका मौन तोड़ती हुई भूमि कहती है –

“कुछ हालात ऐसे रहे कि मैं तुमसे ये सब नहीं कह पाई पर ये नहीं पता था कि इसका ऐसा बुरा परिणाम होगा – विवेक इस हद तक करता जाएगा – |”

“और ये स्टैला कौन है ?”

“स्टैला ? मुझे नही पता – पर अगर उसका नाम आकाश से जुड़ा है तो उस रिश्ते को तुम अब खुद ही समझ लो कि वो क्या होगा – ये आकाश की वो दुनिया है जिसे वह सबसे छिपाकर जीता है पर सच कब तक अँधेरो में भटकेगा – एक न एक दिन उसे सबके सामने आना ही था |”

“लेकिन आपसे इस सच को क्यों छिपा कर रखा |”

इस पर भूमि दो पल की ख़ामोशी के बाद धीरे से कहती है –

“शायद इस सच के भी बाहर आने का अपना सही वक़्त था जो अब आ ही गया|”

भूमि देखती है कि अब अरुण वहां से जाने लगता है तो उसे टोकती हुई पूछती है –

“अब कहाँ जा रहे हो अरुण ?”

“सच का पता करने क्योंकि सिर्फ सही वक़त के इंतजार में मैं अब बैठा नही रह सकता – पता नहीं और कितने सच मुझसे छिपाए गए है – अब जब तक उन सारे सच का पता नही लगा लेता मैं चैन से नहीं बैठ सकता |”

अरुण बिना रुके तेजी से बाहर निकल गया और भूमि चाहकर भी उसे रोक नहीं पाई|

अरुण बेहद उद्वेग से हॉस्पिटल से निकला कि अपने विपरीत से आ रहे आकाश ने उसे पुकारा तो भी उसने उसकी तरफ देखा भी नहीं| आकाश इस तरह से जाते अरुण को चकित दो पल तक देखता रहा फिर हॉस्पिटल के अंदर चल दिया|

***
राजवीर वापस किरन के यहाँ आ गया और जो कुछ हुआ वो सब उसने उसे कह सुनाया जिसे सुनते किरन की जान जैसे हलक में अटकी रह गई| पास खड़ी सारंगी होंठ दाबे सुनती अपने मन में इसका अफसोस करती रह गई|

किरन का तो मन तड़प उठा कि झट से वहां पहुँच जाए इससे सारंगी कहने लगी –

“आप चली जाओ दीदी – इस वक़त सच में आपको वहां जाना चाहिए |”

वह भी सहमती में हाँ में सर हिलाती राजवीर से कहने ही वाली थी कि उसके कानो में एक आवाज सुनाई पड़ी|

असल में राजवीर ने जो कुछ किरन से कहा उसे कमरे के बाहर खड़े मनोहर दास ने भी सुन लिया था| इससे वे किरन को आवाज लगाते हुए कहते है –

“किरन – बेटी मेरा जी थोड़ा घबराया सा है तो तुम जरा कुछ देर मेरे पास आकर बैठ जाओगी !”

किरन को सिर्फ उनकी आवाज मिली पर वे उसके पास कमरे में नहीं आए बल्कि अपनी बात कहकर चले गए|

अब किरन के लिए दुविधा हो गई कि एक तरफ बाबू ने उसे बुलाया तो दूसरी तरफ उसका हॉस्पिटल जाना जरुरी था| उसका मन धर्मसंकट में जैसे फसता हुआ उलझ गया| उसे इस तरह परेशान देख सारंगी कहने लगी –

“आप हॉस्पिटल चली जाओ – मैं बाबू जी के पास बैठ जाती हूँ |”

“नहीं सारंगी – तुम शायद नही समझी – मैं बाबू जी के पास जा रही हूँ |” किरन के उदास स्वर को सारंगी सच में नहीं समझ पाई पर किरन अपने बाबू जी का मौन इंकार अच्छे से समझ गई कि क्यों इस वक़्त उन्होंने ऐसा कहा| पर हर बार अच्छी बेटी की तरह वह इस बार भी मौन उनका कहा मान लेती है|

राजवीर जो किरन के अगले हुक्म के इंतजार में था उसे इस तरह न जाते देख कहता है –

“आप चिंता मत करिए – मैं आपको वहां की सारी खबर देता रहूँगा |” कहता हुआ वह बाहर चला जाता है|

उसके जाते किरन भी चुपचाप बाबू जी के पास चल देती है|

***
जहाँ दिवान परिवार अपनी निजी जिंदगी में बुरी तरह से उलझे थे वही उनका व्यावसायिक जीवन में भी कम उथल पुथल नही मची थी| रंजीत का विश्वस्त एक आदमी दीवान की मिल के लीडर मेराज अली से मिल रहा था|

“इतना काफी है न – |”

वह नोटों की गद्दी को लालची लोमड़ी की तरह घूरता रहा|

“काम पूरा होना चाहिए – समझे |”

“बिलकुल समझ गया हुजुर अच्छे से – अब आप मेरा कमाल देखना |”

“हाँ वो तो समय पर देख ही लेंगे पर इतना याद रखना – हमारे साथ डबल गेम का सोचना भी नहीं – क्योंकि इतने सालो से तुम फैक्टरी में हो कही नमक अदा करते ये नोटों की गर्मी मत भूल जाना |”

“कैसी बात करते है – नमक तो रोटी संग खाते है और मैं तो बोटी खाने वाला हूँ और मुझपर कोई नमक असर नही करता – |” कहता हुआ मेराज अली भद्दी हँसी से हँसता हुआ उन नोटों को अपनी गिरफ्त में लेने लगता है|

उसे इस तरह नोटों को समेटते देख अब वह वापस चला जाता है|

क्रमशः……..

वेबसाईट से सम्बंधित गाइड लाइन जिससे आप यहाँ आसानी से कहानी को सर्च कर सकते है साथ ही किस तरह से कमेन्ट कर सकते है…उसका वीडियो आपको मेरे you tube पर मिल जाएगा…|

15 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 165

  1. Arun to sach jankar or b gusse me aa gya h..aaksh ka bura time start ho chuka h…..menka thik ho…..menka pr goli kisne chalayi h

  2. अब अरुण कहाँ गया है? किरण भी बहुत मजबूर है,
    बहुत ही मार्मिक भाग 👌👌🙏

  3. Nice part…
    Ye arun ab gya kha h…
    Arun bechara din rat mehnat kr rha h or ranjeet use jameen pr girane me koi kasar nhi chhod rha h… Ab ranjeet kya krne wala h?🤔

  4. Ye Arun ab kya karne ja rha hai.. ab aur bura nhi hona chahiye Arun ke sath.. Kiran ke pita kyu kar rhe hai aisa.. Kiran ka Mann bhi to samjhna chahiye unhe.. akash kasach ab Arun ke sahmane to a rha hai par unke pita ke sahmane bhi ana chahiye..
    Manu

  5. आकाश की बजह से कितनी जिंदगी तबाह हो रहा है

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