
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 166
सुवली की हवा में अब कुछ कुछ नमी उतर आई थी जिसका आभास सहसा ही कोई किरन की पलकों में देख सकता था जो पलके झपकाते एक खारी समंदर की बूँद गालो पर लुढ़का लेती……
मेनका की खबर भलेही मीडियाकर्मियों से बच गई पर मंदिर के बाहर अरुण का खुला प्रेम पत्र अब सारा शहर पढ़ रहा था|
अख़बार के मुख्य पृष्ठ में उनकी जो तस्वीर छपी थी वो अपने आप में सब कुछ कहने के काबिल थी| अरुण किरन की कसकर कलाई थामे अपने दिल की बात कह रहा था और जिसे अख़बार ने अरुण को मिली उसकी किरन की हेडलाइन के रूप में छाप डाली थी|
किरन की पड़ोस की काकी सावित्री बेन ने जैसे ही ये खबर पढ़ी वे अख़बार लिए उसके यहाँ दौड़ी चली आई|
पर अगले ही पल मनोहर दास के ठन्डे स्वर से उनका जोश धरा का धरा रह गया|
“तमे शू वात करो छो मनोहर भाई – अब तो किरन का लग्न हो चुका है – बस विदाई ही तो होनी है – फिर देर किस बात की ?”
“सावित्री बेन असल में ये निर्णय तो पहले ही ले लेना था – नहीं तो मेरी बेटी को इतना कुछ न सहना पड़ता – विवाह तो उसके सुखमय जीवन के लिए किया था पर उस शख्स संग वह क्या सुखी होगी जो खुद ढेर परेशानी में घिरा हुआ है |”
“तो यही तो साथ देने का समय है मनोहर भाई – आखिर विवाह में जब दो लोग आपस में बंधते है तो हर घडी एकदूसरे का साथ देते है न – नाकि परेशानी के समय छोड़ कर चल देंगे !!”
इस पर मनोहर दास कुछ न कहते बस मुंह फेर लेते है तब वे आगे कहती है –
“सौभाग्य से तमे बड़ा चोखा दामाद मिला है जिसने बेटे से बढ़कर अपना फर्ज निभाया – क्या इस बात से भी मुंह फेर लोगे ? पूरी रीती रिवाज से किरन संग फेरे लिए है – पूरा अधिकार है इस रिश्ते पर फिर भी वह तमारी हाँ का इंतजार कर रहा है – क्या उसका ये सम्मान देना भी तमे न दिख रहा मनोहर भाई – अब जो हुआ उसे भूल जाना ही उचित है और फिर जिस रिश्ते को माता रानी हाँ बोल चुकी उसमे तमे क्यों इंकार करे हो – मान जाओ और ख़ुशी ख़ुशी विदा करो बेटी को – ब्याहता बेटी अपने घर चली जाए इससे बड़ी क्या बात होगी !!”
कहते हुए मनोहर दास उनके सामने से उठकर खड़े हो जाते है| ये देखती सावित्री बेन हैरानगी से उन्हें देखती रही फिर उनकी नज़र उनके लिए पानी लाती किरन पर गई| उसका चेहरा जैसे उसके मन की खुली किताब था पर जिसे शायद उसके पिता ही पढना भूल गए थे| वह पानी का गिलास काकी की ओर बढ़ा रही थी जो गौर से उसका चेहरा देखे जा रही थी|
गिलास लेकर उसका एक घूँट पीती हुई वे देखती है कि मनोहर दास हाथ जोड़कर उनके सामने से कहते हुए जा रहे थे –
“मेरी बेटी मुझपर बोझा नहीं है – मैं अपनी बेटी को कष्ट में देखने से अच्छा उसे अपने साथ उम्र भर रख सकता हूँ और मेरे फैसले पर मेरी बेटी को भी इंकार नहीं है |”
ये देखती सावित्री बेन भी उठती हुई कहती है –
“काश जो तमे कहे छो मनोहर भाई वो भाव मैं किरन के चेहरे पर भी देख पाती – चलती हूँ |”
काकी फिर नज़र उठाकर किरन का चेहरा नही देख पाई लेकिन हाथ का पकड़ा अख़बार टेबल पर छोड़कर चुपचाप चली गई|
***
सारे शहर में अरुण और किरन के मिलने की खबर आग की तरह फ़ैल चुकी थी| जिन्हें इस रिश्ते का नहीं पता था अब उन कानो तक भी उसकी खबर पहुँच चुकी थी| ये खबर वर्तिका तक भी जा पहुंची पर उससे पहले रंजीत उस तस्वीर को देखते उस अख़बार को चिंदी चिंदी करता सेल्विन पर गरज पड़ा –
“वो उसी घर में थी और तुम सबको खबर भी नहीं हुई – लगता है मेरे आदमी अपने दिमाग के साथ साथ अब अपनी आंखे भी खो चुके है – एक काम ठीक से नही होता –|”
“लेकिन अभी वो लड़की सुवली में ही है – अब आगे आप बताए कि करना क्या है – वही होगा रंजीत साहब |” सेल्विन हाथ बांधे हुए कहता है|
उस वक़्त रंजीत की आँखों में जैसे कोई जलजला सा दिखाई पड़ने लगा| वह जमीन में पड़े उन टुकड़ो को जूते से मसलते हुए बोलता है –
“मैं उन दोनों को एक साथ नहीं देख सकता…|”
अभी रंजीत अपनी बात कह ही रहा था कि उसने सोचाभी नहीं था कि वर्तिका वहां आ जाएगी और हैरान अपने भाई को देखती रही| उसके हाथो के बीच इसी खबर का दूसरा पन्ना लहरहा रहा था|
वह हैरत से कभी अपने भाई के तने हुए चेहरे को देखती तो कभी उन अख़बार के टुकड़ो को जो अभी जमीन में हवा संग इधर उधर घूम रहे थे|
“किन्हें साथ नहीं देख सकते ?”
वह पूछती हुई अब ठीक अपने भाई के सामने ठहरी उसे गौर से देखने लगी जबकि वह खामोश हुआ अन्यत्र देखने लगा| अपने भाई को खामोश देखते वह अब झुककर उन टुकड़ो को देखने लगी|
उसे उस तरह उन टुकड़ो को देखते देख रंजीत सख्ती से कहता है –
“वर्तिका अभी तुम जाओ यहाँ से |”
“क्यों ?
“क्योंकि मैं कुछ जरुरी बात कर रहा हूँ इसलिए – जाओ यहाँ से |” रंजीत अपनी बात थोड़ा गरजते हुए कहता है|
लेकिन वर्तिका उतने ही शांत भाव से कहने लगी –
“अरुण और किरन को अलग करने की जरुरी बात ?”
वर्तिका के कहते रंजीत एकदम से सन्न रह जाता है और हैरान उसका चेहरा देखता रह गया जो आगे कह रही थी –
“मैं तो आपको खुद ये खबर सुनाने आई थी पर आप तो उस खबर को मिटाने जा रहे है – क्यों ?”
वर्तिका अपने भाई का चेहरा देखती रही जहाँ नफरत के साथ अब बदले की आग भी दहक रही थी|
रंजीत आक्रोश में कह उठा – “क्योकि यही सही है |”
“क्यों सही है क्योंकि अरुण ने मुझसे शादी नही की – बस यही कसूर है न उसका ?”
वर्तिका प्रश्नात्मक भाव से रंजीत का चेहरा देखती रही जहाँ सच में उसे इसका जवाब हाँ में ही लगा|
तब से खड़ा सेल्विन अब उस जगह से बाहर चला जाता है| अब कमरे में रंजीत के अलावा वर्तिका मौजूद थी|
वर्तिका रुंधे हुए स्वर में कहने लगी –
“देखा जाए तो इस बात का असल कसूरवार तो आप है भईया |”
रंजीत औचक देखता है|
“हाँ आप – जिसने मुझे सामान और इन्सान का भेद नहीं सिखाया – बस जब मेरा जिस चीज में दिल आ गया – वो हर एक चीज आपने मुझे लाकर दे दी – विला पसंद आया तो विला खरीद लिया – ड्रेस पसंद आ गया तो बुटिक खरीद लिया पर सब खरीदते खरीदते आप ये भूल गए कि अरुण कोई सामान नही था जिसे आप मेरी इच्छा के लिए खरीद लेते – |”
“वर्तिका तुम …!!”
“प्लीज़ भईया आज मुझे मेरी मन की बात कह लेने दीजिए – आपको क्या लगता है कि आपकी जोर जबरजस्ती से शादी हो भी जाती तो क्या होता – क्या मैं उसके दिल में जगह बना पाती – कभी नहीं – और आप ये बात कैसे भूल गए – जो खुद अपने त्याग से अपने प्रेम की रक्षा करते है – फिर !!”
रंजीत फिर कुछ कहने वाला था पर वर्तिका उसे हाथ के संकेत से रोकती हुई कहती है –
“अरुण तब कसूरवार होता जब उसने मुझसे कोई वादा किया होता या प्यार का कोई सपना ही दिखाया होता – बल्कि मैं ही कितनी बार उसके लिए बिछने को तैयार हो गई पर उसने कभी इसे मौके की तरह नही लिया – वो चाहता तो मेरे साथ कुछ भी कर सकता था और मैं उसके पीछे इतनी पागल थी कि शायद ही कभी उफ़ भी करती पर नही – उसने कभी हमारे बीच की सीमा रेखा नही लांघी – क्या इस बात के कसूर की सजा आप उसे देंगे ?”
रंजीत अब वर्तिका से नजर फेरे खड़ा था और वर्तिका कहे जा रही थी –
“प्यार छिनने या हड़पने से नहीं मिलता इसे जीना और कमाना पड़ता है अपने त्याग और समर्पण से जो अरुण ने किरन के लिए और किरन ने अरुण के लिए किया – वो है प्यार – और इस प्यार को मैं किसी भी कीमत में कुछ भी होने नहीं दूंगी |”
दृढ़ता से कहती वर्तिका रंजीत की आँखों के सामने आती हुई कहने लगी –
“और अगर इस प्यार के बीच में आप आए तो उस वक़्त मैं भूल जाउंगी कि आपका और मेरा क्या रिश्ता है |”
“वर्तिका…..!!!!”
“हाँ भईया – अब से आपको सौगन्ध है मेरी कि आप अरुण और किरन के बीच नहीं आएँगे – वैसे भी उसने अपनी लाइफ में बहुत कुछ फेस किया है – अब मैं उन्हें अलग नही होने दूंगी |”
कहती हुई वह झुककर उन टुकड़ो को उठाती हुई साफ़ करने लगी| रंजीत के हाव भाव अब बेहद निरपेक्ष नज़र आ रहे थे|
वर्तिका उन टुकडो को बड़े करीने से साफ़ करती करती सुबक रही थी| वो भाई था जिसने बच्चे की तरह अपनी बहन को बड़ा किया था| जानता था कि जिस बात के लिए वह अपने ही भाई से लड़ रही उसे उसके लिए ही स्वीकारने में उसने कितना हौसला किया होगा|
रंजीत अब वर्तिका को पकड़कर उठाते हुए उसका चेहरा गौर से देखता हुआ कहता है –
“तुम्हारी ख़ुशी के लिए अपनी जान देने का जो भाई हौसला रखता है उससे अपनी ख़ुशी मांग रही है – जा तुझे जो चाहिए सब मिल जाएगा |”
ये सुनते बिफरती हुई वर्तिका रंजीत से छोटी बच्ची सी लिपट गई| उस पल दोनों भाई बहन नीर बहाते उस वक्त को अपनी यादो से धोने की निराश्रित कोशिश करने लगे|
क्या रंजीत के मान लेने से अरुण की जिंदगी की मुश्किल हल होगी ? क्या मनोहर दास भी मान सकेंगे ? और क्या होगा मेनका का अगले भाग में जाने…..जानने के लिए जुड़े रहे साईट से और अपनी प्रतिक्रिया देना न भूले क्योंकि यही तो उर्जा है लेखनी की…….
क्रमशः……..
Sach me aaj vartika me Ranjit ko shi rasta dikhaya …manohardas ko bi man lena chahiye ..taki hm hmare Arun or Kiran ko sath me dekh paye
Nice part
Very Emotional Part
Really vartika kitni change ho gyi hai usne ranjeet ko kitna khula challenge Diya hai but arun Kiran ka Milan jaane kitni kurbani aur mangta hai
Nice 👍👍👍
Kya hosla dikhaya vartika ne….bilkul shi kra Ranjeet ko such ka samna krwa k
Khoobsurat part..sath hi agle part ka intezar..
वर्तिका ने बिल्कुल सही कहा, प्यार खरीदा नहीं जा सकता l बहुत मनमोहक भाग 👌👌👌👌🙏🙏
Nice part ..
Ab sayad ranjeet arun ko barbad krne ki kosis na kre….
Bahut hi badhiya part hai maam.
Aapki haar kahani Prem ka naya matlab batati hai chahe wo sugandha ho ya beintehaa. Aakash ka pura sach ab Arun ke samne aana hi chahiye.
वर्तिका समझदार हो गयी है सच ही में प्यार छीने जाने की चीज नही है ना पैसे से खरादने की अब बहुत समय हो गया किरण और अरुण को मिल ही जाना चाहिए
Very very nice parts
Archana ji aap har baar part ko aise mode per rokti jaha per wait karna mushkil ho jata hai pls next part thoda jaldi post karna 🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐💐💐💐
very nice
Aaj vartika ne wo kar diya jiski umeed nhi thi bhut sunder part 👌👌🍫🍫🍫🍫
Aaj to vartika ne bahut àanjhdaari ki baat ki h
Very nyc ab Ranjit aran or Kiran ko alag nhi krega pr Kiran k father man jay bs
wah vartika be to pyar kA MATLAB khoob bataya.. bilkul sahi kaha hai ki pyar cheena nhi ja Sakta .. pyar to balidaan hai.. ranjeet KO to samjhna chahiye.. us ne bhi to aise hi kiya tha..
manohar apni beti na bhala soch rhe hai khushi nahi.. vo kis me khush hai ye bhi to dekhna chahiye
manu
Very very nice👍👍👍👍👍👍👍
Aaj वर्तिका ने दिल खुश कर दिया। जिस बात मनोहर जी nahin समझ पाए उसे ताई समझ गयी किरण का चेहरा देख कर।।।।
Bahut sundar
Amazing part ❤️