Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 17

वर्तिका को शांत करते उसके सोने के बाद ही रंजीत कमरे से बाहर निकला| इस वक़्त एक अलग की उद्वेद का भाव उसके हाव भाव में छाया था| सुबह उसे अपने निजी काम से शहर से बाहर जाना था| लेकिन अब उसका समस्त ध्यान तो दो दिन बाद की सेठ घनश्याम से होने वाली मुलाकात पर टिका था|
सुबह होते ही सेल्विन उसकी खिदमत में हाजिर था| तब रंजीत फोन पर अपने मेनेजर को अगले टेंडर पर जरुरी निर्देश दे रहा था| अपनी बात खत्म करते अब वह सेल्विन की ओर देखता हुआ कहता है –
“सेल्विन – मेरे लौटते ही मैं पहली मुलाकात सेठ घनश्याम दीवान से करूँगा – उसका इंतजाम करके रखना – |”
“हो जाएगा सर |” फिर कुछ पल रूककर वह दबे स्वर में आगे पूछता है – “अगर इज़ाज़त हो तो एक बात पूछना चाहता हूँ ?”
“पूछो सेल्विन वैसे तुम्हे कब से मेरी परमिशन की जरुरत पड़ने लगी|”
“आप जानते है ये सरकारी टेंडर आपके लिए और आपके बिजनेस के लिए एक स्वर्णिम मौका है फिर आप उसे वापस लेने को क्यों बोल रहे थे – जबकि आप जानते है कि एक आप ही है उनके लिए कडा मुकाबला और आपके हटते वह टेंडर दिवांस की झोली में आराम से गिर जाएगा – फिर ?”
“बहुत अच्छे से जानता हूँ ये बात – पर मेरी एक ही कमजोर कड़ी है आज उसकी इच्छा के लिए ऐसे एक क्या हजारो टेंडर कुर्बान कर सकता हूँ – खैर सेल्विन मैं बहुत जल्दी इस नए कन्साइन्मेन्ट को निपटाकर वापस लौटना चाहता हूँ |”
“सर कोशिश रहेगी – मैं तो आपको परेशान भी नही होने देता पर बहुत जरुरी था आपका चलना – |”
“ठीक है सेल्विन – तुमने कहा है तो इसीलिए मैं चल रहा हूँ |”
“सर आज कल पुलिस की गश्त समंदर पर बहुत हो गई है इसलिए आप चलेंगे तो सब काम थोड़ा आसान हो जाएगा – पार्टी का विश्वास भी हम पर रहेगा |”
सेल्विन की बात पर सहमति देता रंजीतउसके साथ तुरंत ही बाहर निकल जाता है|
***
सारी रात भूमि ने आकाश से क्षितिज की बात कहने की बेचैनी में काटी| एक तरह से बहुत दिनों का गुबार था उसके मन में जो आज शायद तूफान सा मन से निकलने को बेचैन हो उठा था|
आकाश कमरे में आरामकुर्सी पर बैठा ब्लैक कॉफ़ी पीते पीते किसी बिजनेस मैगजीन में मग्न था|
“मुझे तुमसे कुछ बात करनी है|” भूमि उसके समीप खड़ी होती बेहद सपाट स्वर में कहती है|
आकाश बिना उसकी ओर देखते कप हवा में उठाता मौन ही उसे कहने के लिए कहता है|
“क्षितिज के बारे में !”
“सुन रहा हूँ |”
“क्षितिज के स्कूल की सोशल एक्टिविटी में वह चाहता है कि कम से कम एकबार उसके पेरेंट्स उसमे हिस्सा ले |”
“तो प्रोब्लेम क्या है जाओ |” अभी भी वह उस मैगजीन को देखता हुआ शुष्क भाव से कहता है|
“शायद तुमने सुना नही ध्यान से मैं पेरेंट्स की बात कर रही हूँ – उसकी टीचर चाहती है कि एक बार उसके पेरेंट्स साथ में आए |”
“पहले ये तय करो कि ये चाहता कौन है !! क्षितिज, टीचर या तुम !! क्षितिज तो बच्चा है और टीचर उसकी इतनी औकात नही कि वह आकाश दीवान को बुलाए और वह उसके सामने हाजिर हो जाए और रही बात तुम्हारी तो तुम्हे तो किसी की जरुरत ही कहाँ है – तुम तो सुपर वुमेन हो -|” ठसक भरी हंसी से हँसता हुआ आकाश मैगजीन का अगला पन्ना पलट लेता है पर एक बार भी भूमि की ओर नही देखता|
इससे भूमि खीज उठी और अपना धैर्य खोती उसके हाथ से मैगजीन छीनकर आवेश में उसके चीथड़े चीथड़े कर डालती है|
इस पर आकाश एकदम से उसकी ओर मुड़ता गुस्से में चीखा –
“ये क्या हरकत है – पागल हो गई हो क्या ?” आकाश भूमि की बांह पकडे उसे धकेलने लगता है|
तिसपर उसकी पकड़ से वह छूटती हुई उसपर चीखती है – “डोंट टच मी |”
“क्यों मेरे छूते तुम्हे कांटे लगते है !!” वह दांत पीसता हुआ उसे घूरता है|
“तो तुम क्या समझते हो – मैं तुम्हारी हरकतों से नावाकिफ हूँ – मैं तुम्हे खूब समझती हूँ आकाश – बस मेरी ख़ामोशी को मेरी कमजोरी मत समझ लेना तुम |”
“ओह तो क्या नज़र रखे हो तुम मुझपर !”
“मुझे तुमपर नज़र रखने की कोई जरुरत नही है – न तुमसे बहस करते उलझने की – पर बात क्षितिज की थी इसलिए तुम्हे तुम्हारा फर्ज याद दिला रही थी – कम से कम तुम्हारी इस व्यस्त दुनिया में से कुछ पल का तुम्हारा बेटा तो अधिकारी है ही |”
“रबिश – एक जरा सी बात का बतंगड़ बना रही हो – और मुझे अच्छे से पता है कि मुझे मेरे बेटे के लिए क्या करना चाहिए – इसके लिए मुझे तुम्हारी राय की कोई जरुरत नही है – उसकी हर जरुरत पूरी की है मैंने – और भी जो होंगी वो भी खरीद ली जाएंगी – सो प्लीज़ स्टॉप बोदरिंग मी |”
“यही तो मुश्किल है कि तुम्हे उसकी जरूरतों का अहसास ही कहाँ है – अपनी जरूरतों से ऊपर उठो – तभी तो पता चलेगा |”
अबकी मुड़कर वह अपनी तीखी नज़र उसपर डालता हुआ कहता है – “अपनी हद में रहो भूमि |”
“हद तो तुम रोजाना जाने किन किन के संग पार करते हो |”
“भूमि !!” आकाश ने तेज किस्म की सरगोशी की|
“अगर ऐसा ही था तो शादी क्यों की मुझसे – क्यों की मेरी जिंदगी बर्बाद – सिर्फ इसलिए कि अपने पिता की करोडो की सम्पति की मैं अकेली वारिस थी !”
अचानक आकाश का मुंह धुँआ हो उठा जैसे जोर का झटका लगा हो|
“इससे तुम्हारा क्या मतलब है ?”
“क्यों बात चुभ गई !! पर क्या करूँ सच कडुवा ही होता है मिस्टर आकाश |”
“शटअप – |” कहता हुआ आकाश भूमि की ओर गुस्से से हाथ उठा देता है|
पर क्या पता था कि भूमि उसके बढे हाथ को रोककर झटकती हुई चीखने लगती है – “ऐसी गलती कभी दुबारा करने की सोचना भी नही |”
अपना हाथ झटकते आकाश रक्ताभ आँखों से उसे देखता हुआ बोला – “तुमसे जो करते बनता है करो – मेरे संग सर फोड़ने की जरुरत नही है – मुझे तुम्हारी बकवास सुननी ही नही है |”
आकाश झुंझलाता हुआ कमरे से बाहर निकलने लगता है|
“हाँ मत सुनो – क्योंकि तुम्हारे मेरे बीच अब कहने सुनने को कुछ है भी नही – वक़्त आने पर मैं तुम्हे वो तमाशा दिखाउंगी कि तुम याद रखोगे और इस गुमान में मत रहना कि मैं घूँघट में मुंह छिपाए भाग्य का रोना रोती रहूंगी – सुना तुमने !”
आकाश कमरे से जा चुका था और पीछे भूमि चीखती मन का गुबार निकालती रही| भूमि की आँखों में अब अंगारे सैलाब बन चुके थे|
***
सभी मजदूर फैक्ट्री की ओर बढ़ रहे थे उनमे कुबेर भी था पर तभी उसे फैक्ट्री का चौकीदार मुख्य गेट पर ही रोक देता है और उसे नोटिस बोर्ड की ओर देखने की ओर इशारा करता है|
कुबेर हैरान नज़रो से उस नोटिस की ओर देखता है जिसमे सभी कुछ अंग्रेजी में लिखा था पर उसके टर्मिनेशन का ऑर्डर सिर्फ हिंदी में लिखा था| वह औचक कुछ पल तक उस कागज को देखता रहा| उसके हाथ में पकड़ा टिफिन और उसकी साँसे जैसे वही माहौल में ठहरी रह गई थी| बाकि भीड़ उसकी हालत से बेखबर फैक्ट्री में समाती रही|
………..क्रमशः……….

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