Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 179

कांस्टेबल पाण्डेय इधर उधर नज़र देखकर अपने एक हाथ में चाय का कप तो दूसरे हाथ की पकड़ी प्लेट जिसे वह टिशू पेपर से ढके था सीधे एक कमरे की ओर लिए बढ़ा जा रहा था| कमरे का बंद दरवाजा धीरे से पैर से पीछे धकेलकर वह अपनी नजरो की सीध में देखता है जहाँ कोई खिड़की की तरफ मुंह किए बैठा अपनी मूविंग कुर्सी पर दाए बाए झूल रहा था|

वह वर्दीधारी पुलिस वाला था जिसकी पीठ कोंस्टेबल की तरफ थी| वह खुली खिड़की की तरफ देखता हुआ कागज के छोटे छोटे गोले बनाकर बाहर की ओर उछाल दे रहा था| कहना मुश्किल था कि उसका निशाना कहाँ है पर देखकर यही लग रहा था जैसे वह आसमान में उड़ते पक्षियों की ओर निशाना किए उन कागजी गोलों को उछाल रहा था और शायद हवा में उसकी परछाई से टकरा जाने का जश्न भी वह खुद ही मनाता हँस ले रहा था| उसके हँसने की आवाज तो नहीं आ रही थी लेकिन बार बार उसके कंधे ऊपर की ओर हिलते जिससे वह इस बात का अंदाजा लगा लिया था|

उसे लगा वे आहट पर नहीं पलटे तो आवाज लगाना ही सही होगा| वह धीरे से पुकारता है –

“साहब – मैं ले आया |”

आवाज सुनते वह बिजली की फुर्ती के साथ पलटा और झट से एक छलांग में कूदकर उसके सामने आ कर खड़ा हो गया इससे कोंस्टेबल थोडा पीछे की ओर हिल गया जिससे कुछ चाय की बूंदे जमीं में आ गिरी| उसके चेहरे से साफ़ था कि उसने इस तरह की फुर्ती का अंदाजा नही लगाया था|

अब उसके ठीक सामने छह फुट का एक जवान लेकिन मजबूत कद काठी वाला पुलिस वाला खड़ा था| जिसके उछलकर आने से उसके स्टाइल के कटे बाल हिलते हुए एकदम से जानलेवा मालूम पड़ रहे थे| उसकी एकदम चमचमाती वर्दी और उसपर चमचमाती नेमप्लेट पर उसकी निगाह चली ही गई जिसमे लिखा था – जय त्रिपाठी|

“सर ये ..|”

“अरे रखो न मेज पर – कब से इंतजार कर रहा था|”

जय के कहते वह प्लेट और कप वही रखकर हटा ही था कि जय उस प्लेट की ओर इस तरह झुक जाता है जैसे कब से वह इसी पल के इंतजार में था| प्लेट में ढेरो मोमोज और उसके किनारे लाल चटनी थी| सफ़ेद लाला का एक गजब आकर्षण बना हुआ था| जब तक कोंस्टेबल पांडे अपनी दो चार बार पलके झपकाता है तब तक प्लेट से आधे से ज्यादा मोमोज गायब हो चुके थे|

इस बीच जैसे मुंह को चबाने का अवसर देता वह कोंस्टेबल की ओर देखता हुआ कहता है –

“पूछो मत अमृत मिल गया – प्यारी सुबह हो और हाथ में मोमोज हो फिर क्या कहना – लो तुम भी खाओ – नहीं खाना कोई बात नहीं – |”

पांडे की हाँ या न का इंतज़ार किए बिना ही जय प्लेट के बाकी के मोमोज खाने लगता है| पांडे समझ गया कि वो हाँ भी कह देता तब भी उसे मोमोज मिलने वाला नही था|

प्लेट में अब एक आखिरी मोमोज रह गया था पर उसे देखकर लग रहा था कि जिससे जानकर छोड़ा गया जैसे उन सब मोमोज का स्वाद दिल तक उतरने के बाद आखिरी वाले को इत्मिनान से स्वाद ले लेकर उतरा जाएगा| अब जय पैर फैलाए पांडे की ओर देखता हुआ चाय का एक घूंट भरता है जो अवाक् भाव लिए अभी भी वही खड़ा था|

“मैं सोचता हूँ चाइना संग वॉर हो जानी चाहिए |”

“काहे सर ?”वह घबराए स्वर में पूछ उठा|

“वॉर होगी तो हम हरा देंगे उनको फिर सबको बंदी बना कर दिन रात मोमोज बनवाएँगे – बेकार में ये चाऊ चाऊ लोग मोबाईल बनाने में समय बर्बाद करते है उससे ज्यादा तो दुनिया में मोमोज को चाहने वाले है – सच में ये मोमोज दिल जीत लेता है मेरा |”

“पर साहब हम तो सुने है मोमोज में जाने क्या क्या मिलाते  है – यहाँ तक कि कहावत भी है कि लड़की से धोखा खाने से अच्छा मोमोज खा कर जान दे दो |”

“कौन है वो बे – बताओ – अभी जेल में फेकता हूँ उसको – फालतू में मोमोज को बदनाम कर रहा है |”

“साहब वैसे भी गुजरात आए थे तो पोहा जलेबी खाते – काहे ये जिगर जलाने वाला लाल जहर उतार रहे है |”

“अरे पांडे तुमको नहीं पता – ये मोमोज तो दिल्ली की शान है – जब तक कुछ तीखा चटपटा ऐसा न खाओ जो आँख से लेकर जिगर में आग न लगा दे, नस नस न फड़का दे फिर तुमने क्या ही खाया – और ये मीठा न मरने के बाद तेरहवी में खाने में काम आता है |”

“साहब खिलाने में क्योंकि जब आदमी मर ही गया तो क्या खाएगा मीठा |”

इस बात पर जय होंठ सिकोड़े उसे घूरने लगता है तो वही पांडे अपना मसाला खाए दांत निपोरते हुए हँस देता है|

इधर देशमुख फुल वर्दी में तैयार किसी फ़ाइल को सरसरी नज़र से देखता हुआ अपने सामने खड़े एक अन्य सब इन्स्पेक्टर को देखता हुआ पूछता है –

“अभी का क्या स्टेटस है ?”

“सर जैसा कि आपने कहा था मैंने रात में कई बार पानी और चाय पूछने के बहाने मिस्टर दीवान को जगाए रहने की पूरी कोशिश की|”

“उसकी बात सुनते ही देशमुख जल्दी से कहता है – “गुड – ये जरुरी था इससे वह स्ट्रेस में रहेगा और हमारा काम हो जाएगा |”

“लेकिन सर – मैं जितनी बार भी गया मैंने उन्हें जागा हुआ ही पाया |”

“हम्म – ये भी ठीक है – वैसे भी मखमली बिस्तर में सोने वाले शरीर को सख्त बैंच में क्या आराम मिलेगा – चलो अब बयान ले लेते है|”

अब दोनों बात करते करते एक कमरे से निकलते गलियारे से गुजर रहे थे|  साथ में एक अन्य कांस्टेबल भी था जो उस उसकी कैप लिए लिए पीछे चल रहा था| फिर सहसा किसी के हँसते की आवाज पर देशमुख के कदम एकदम से ठिठक पड़ते है और वह द्रूत गति से सम्बंधित कमरे का दरवाजा खोलकर अपने नज़र अंदर दौड़ा देता है|

वो किसी का केबिन नही था बस एक अदद मेज और कुछ कुर्सियों वाला कमरा था जहाँ कई बार यहाँ के स्टाफ से अन्य पुलिस कर्मी आकर विमर्श करते थे| देशमुख दरवाजा खोले अभी भी उसका हैन्डिल पकड़े सामने देख रहा था जहाँ जय और पांडे किसी बात पर कसकर ठहाका मार रहे थे, साथ ही उसकी नज़र टेबल पर अब खाली पड़ी प्लेट पर जाती है| पीछे खड़े सब इन्स्पेक्टर और कांस्टेंबल भी अपनी नज़र उनपर गड़ाए थे|

जय एकदम से सीधा खड़ा हो जाता है तो वही कांस्टेबल सैलूट मारने हाथ उठाए ही रह जाता है| इस पल उन दो कोंस्टेबल की निगाह आपस में मिलती है और जैसे मौन ही दूसरा कोंस्टेबल पांडे को नजरो से कहने लगता है कि ये है तुम्हारे हीरो टाइप इन्स्पेक्टर साहब !! क्या गजब एंट्री मारी है !!

देशमुख उन दोनों को सख्त नज़र से देखता हुआ कहने लगा – “जय त्रिपाठी – ये दिल्ली का चौक नहीं पुलिस स्टेशन है – |”

देशमुख जिस तरह से नज़रे अंकित किए कह रहा था उससे पांडे झट से प्लेट सरकाकर डस्टबीन में डाल देता है तो वही जय तुरंत कैप पहनता हुआ अपनी शर्ट का ऊपरी बटन लगाने लगता है|

“वैसे तुम जो कर रहे हो उसे बस चुपचाप मेरी नज़र में आए बगैर करते रहो और अपना कोर्स पूरा होते दिल्ली लौट जाओ यही बेहतर होगा |”

कहते हुए वह आवाज करते दरवाजा बंद करता हुआ वापस चला जाता है| उसके जाते स्टैचू बने दोनों अब एकदूसरे को निगाह से ऐसे देखते है जैसे एकदूसरे को रिलीज कर रहे हो|

पांडे गहरी साँस बाहर छोड़ते हुए कहता है – “बड़े साहब बहुत सख्त है – बस शिवा शिवा करते एक महीना कट जाए तो हनुमानगंज में जाकर सवा सौ का प्रसाद चढाऊंगा |”

“वैसे पांडे ये सुबह सुबह से ही इतने उबले हुए क्यों है – आखिर मामला क्या है ?”

“अभी का ताजा मामला है ताजा केस – साहब न अपने पैर पर खुद ही कुलहाड़ी मारे बैठे है – |”

“मतलब कैसे ?”

“अरे साहब – एक तो वैसे ही मीडिया कर्मी के खून का मामला और उसमे साहब हाई प्रोफाइल वाले कोई रईस को रिमांड पर ले लिए – सबूत कुछ नहीं बस हवा में लाठी मारते फिर रहे है – टेंशनाइड तो होंगे ही न |”

“तो इसका मतलब जिसे रिमांड में लिया उसने कुछ नहीं किया ?”

“ये तो पता नही पर कल से मामला बड़ा गरम चल रहा है – अब न साहब पीछे हट रहे और न आगे बढ़ पा रहे – रात से कमिश्नर साहब भी चक्कर लगा चुके है – छोडीए साहब – हम कोर्स पूरा करते अपनी दिल्ली लौट जाते है – वही भली जगह है |”

“अच्छा एक काम करो पांडे ?”

जय का गंभीर स्वर सुनकर पांडे भी उतनी ही गंभीरता से उसे देखता है, लगा इन्स्पेक्टर साहब जरुर कोई बड़ी गंभीर बात करने वाले है| वह गौर से जय की तरफ देखते अपनी सारी तन्द्रा लगा देता है|

जय भी बेहद गंभीर स्वर में कहने लगा –

“पांडे – ये तुम इतना बढ़िया मोमोज लाए कहाँ से थे ? एकदम मारू था |”

जय गंभीरता से पांडे को देख रहा था तो वही पांडे फसी सी हालत में उसे देखता रहा|

***
सुबह का नाश्ता मेज पर पूरी तरह से सज गया था| आधी से ज्यादा टेबल खाने के आइटम से सजी थी अब रानी सर्विंग प्लेट लगाकर हटी तो बारी बारी से रंजीत और वर्तिका आकर बैठ गए| जहाँ रंजीत के हाव भाव ऐसे सपाट बने थे जिससे ये समझना मुश्किल था कि क्या कुछ चल रहा है उसके मन में वही वर्तिका कुछ ज्यादा ही खुश नज़र आ रही थी|

वह लगभग चहकती हुई कहने लगी –

“आज न भईया मैंने इतना अजीब सपना देखा कि लगा हँस ही दूँ |”

“हूँ – क्या देखा ?” सपाट भाव से पूछता है|

“मैंने देखा कि मैं नींद से जागना चाह रही हूँ पर आप मेरे बगल में बैठे मुझे बता रहे है कि अभी रात है और मैं सो जाऊं |” कहती हुई वर्तिका फिर खुलकर हँस दी|

तभी रानी चाय के कप लगाने लगी जिसे देखकर वर्तिका जल्दी से कह उठी –

“मुझे ग्रीन टी चाहिए |”

हाँ में सर हिलाती हुई रानी वापस चली जाती है| इस बीच उस माहौल में शान्ति छाई रहती है और बस कटलिरि के स्वर ही उभरते रहते है| तभी कोई नौकर आकर कुछ अख़बार टेबल के कोने में रखकर चला जाता है| रंजीत की आदत थी कि वह सुबह के अख़बार नाश्ते के साथ ही सरसरी नज़र से देखता था|

अख़बार मेज के दाए कोने में थे पर इस बार रंजीत ने उन्हें उठाया नही था| वर्तिका का भी ध्यान उधर नही था वह नाश्ता कर रही थी| फिर रानी आकर एक कप उसके सामने रखने लगी पर वर्तिका उस कप को अपने हाथ में लेने उसकी और हाथ बढ़ा देती है|

एक ही वक़्त में दो घटना हो गई| वर्तिका चाय का कप पकड़ने हाथ बढ़ा रही थी और उसी वक़्त उसकी निगाह अख़बार की मोटी मोटी हेडलाइन में चली गई जहाँ अरुण की गिरफ़्तारी की खबर को मुख्य तौर पर उसकी तस्वीर के साथ दिखाया गया था| ये देखे वर्तिका के हाथ कप नही पकड़कर छोड़ देते है और जब तक रानी कप दुबारा पकडती कप आवाज करता जमीन में गिर पड़ा था|

वर्तिका जल्दी से अख़बार उठाए उसकी हेडलाइन पढ़ती हुई रंजीत से कहने लगी –

“ये क्या हो गया – भईया आपने देखा ? ये हो ही नहीं सकता – अरुण किसी का क़त्ल करे ये सोच भी कैसे लिया ? इन मीडिया वालो को कुछ और छापने को नही मिला ?”

वर्तिका जिस घबराहट के साथ प्रतिक्रिया कर रही थी उसके विपरीत रंजीत सहजता से कांटे से अगला कौर मुंह में डालता यूँ बैठा था मानो उसने कुछ सुना ही नहीं| इसका साफ साफ़ अर्थ था कि रंजीत को उस सारी घटना का पहले से पता था|

वर्तिका जल्दी से अंदर की खबर पढ़ डालती है| अंदर की खबर ऊपर की हेडलाइन से अलग थी और हो भी क्यों न| हेडलाइन रीडर्स खींचकर लाने ला काम करती थी जबकि असल सच तो नीचे के विस्तार में होता था| जिस खबर ने अरुण दीवान को एकदम से अपराधी बनाकर पेश किया था वही खबर में बताया गया था कि पुलिस के पास अभी तक कुछ भी पुख्ता न सबूत है न कोई सस्पेक्ट, बस मीडिया का ध्यान डाइवर्ट करने के लिए वो ये सब कर रही थी ताकि जब तक पुलिस अपनी इन्क्वारी करे तब तक मीडिया पहले सस्पेक्ट की जिंदगी की चीर फाड़ करती उसका इतिहास भूगोल निकालती रही|

वर्तिका अख़बार पीछे धकेलती हुई कहने लगी –

“ये क्या बकवास है – कोई इन्हें रोकता क्यों नहीं – झूठ छापने की मशीन बने है – इधर पुलिस हरबार की तरह निर्दोष को दोषी साबित करने में लगी है |”

“ये कोई पहली बार तो नहीं हुआ |”

एकदम से अपने भाई की आवाज सुनते वह उसकी तरफ देखती है|

रंजीत तपे हुए हाव भाव से कहने लगा – “एक वक़्त था जब हमारे पिता को भी निर्दोष होते हुए भी जेल जाना पड़ा – तब सेठ दीवान चाहता तो उनकी मदद कर सकता था पर नहीं किया – आज इतिहास खुद को दोहरा रहा है – आज उसे भी पता चल रहा होगा कि अपनों को तकलीफ में देखना कितना दर्दनाक होता है |”

रंजीत के हाव भाव बेहद कसे हुए हो गए थे जैसे वह पल में कई साल पीछे लौट गया हो| वर्तिका ये सब देखती हमदर्दी से अपने भाई के हाथ पर अपनी हथेली रखती है|

रंजीत आगे कहता है – “वक़्त वो सारा कुछ दीवान परिवार को सूद समेत लौटाकर दे रहा है जो कभी उसने दूसरो को दिया |”

वर्तिका धीरे से कहने लगी – “तो भईया इस तरह ये सिलसिला कभी नहीं रुकेगा !!”

रंजीत हैरानगी से उसकी ओर देखने लगा|

“हाँ भईया – ये बदले की चाह कभी खत्म होगी ही नहीं – हर बार एक उठेगा तो दूसरा दब जाएगा फिर दूसरा दबेगा तो पहला खड़ा हो जाएगा – जंग से कभी कुछ भला हुआ है क्या !!”

“मैं कुछ नही कर रहा – ये तो उनके अपने कर्म है |”

“अरुण का क्या कसूर है फिर ?”

“अपने परिवार के कर्म तो भुगतने पड़ेंगे न !”

“फिर तो कुछ अगर आपसे गलत जो हुआ उसका भुगतान मुझे भी भुगतना पड़ेगा !”

अबकी रंजीत पल भर को घबरा गया| ये तो उसने न सोचा और न कभी देख पाएगा |

“भईया – बदला कही तो अंत मांगेगा – कभी तो ये रुकेगा – और वैसे भी मैं इस बात को सिर्फ इस तरह से देख रही हूँ कि वो मेरा दोस्त है और इस वक़्त एक दोस्त होने के नाते मैं जो कर पाऊँगी वो सब मैं दोस्ती के लिए करुँगी |”

अब रंजीत के पास कहने को कुछ नहीं था वह पल भर को वर्तिका की ओर देखता है जो अभी भी उसी की नज़रो की सीध में देख रही थी फिर उससे नज़र फेर कर नैपकिन से हाथ पोछकर उठकर चुपचाप चला जाता है|

रंजीत चला गया तब वर्तिका का ध्यान फिर उस खबर की ओर गया अब वह अपना मोबाईल रानी से मंगवा कर जल्दी से कोई परिचित नंबर लगाने लगती है|

एक दो घंटी में कॉल रिसीव कर ली जाती है| उस पार योगेश था जो खुद बहुत हकबकाया हुआ था इसका साफ़ मतलब था कि ये खबर उसके दिमाग में भी अच्छी खासी हलचल मचा चुकी थी|

“योगेश मुझे अभी मिलना है तुमसे |”

क्रमशः………..

अब मैंने पार्ट से आपके प्रश्नों के उत्तर दे दिए..अब आप बताए कैसी रहा पार्ट….

21 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 179

  1. Nice one
    But ye Jai jrur Arun ki favour me hi kuchh karega, jitni funny entry h utna hi dedication iske kaam me milega…

  2. Bhut acha laga… Aakhir ye jay hi nikla…. Or usse v achi lgi uski entry.
    Sayad ab jai hi case solve krega…
    Aakhir wo hatyara h kon….
    Or tara kha h.. vivek kya krega ab use wo pen drive mil gyi thi use av tk btaya nhi…??

  3. जय के साथ साथ वर्तिका भी अरुण की मदद करेगी, वैसे शायद रंजीत असली कातिल के बारे में कुछ जानता है क्या????

  4. Very nice part ma’am. Jay ki entry bhi jabardast thi . Is time Arun ko madad ki sakhat jarurat hai.

  5. Ranjit janata h asli katil kon h….ab Arun ki help vartika or jay karege….or vartika hi apne bhai ko sahi raste pr layegi

  6. Sahi kaha vartika ne agar Arun ko uske parivar ke kiye ki saja mil Rahi hai to ranjeet ke kiye ki saja kise milegi . Bahut khubsurat part ❣️💕❣️💕❣️💕❣️💕❣️

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