Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 18

अरुण रोजाना की तरह तैयार होकर दादाजी को लेकर उनके आश्रम के लिए निकलने वाला था| वह सुनश्चित समय पर उनके पास खड़ा था| पर उनको तैयार न पाकर वह घबराकर पूछता है – “क्या हुआ दादाजी – आपकी तबियत तो ठीक है न !!”
“हाँ हाँ बेटा मैं ठीक हूँ पर आज आश्रम जाने का कोई फायदा नही – सुना है वहां कोई नेता आ रहा है तो बहुत ज्यादा भीड़ होगी और जानते ही हो बेटा भीड़ में मेरा दम घुटने लगता है – अब भीड़ सहन नही होती |”
आगे बढ़कर दादाजी के कंधे पकड़ते हुए कहता है – “तो कोई बात नही आश्रम न सही कही और ही चलेंगे पर आपकी सैर तो होगी ही – आप तैयार हो जाइए हम बीच पर चलेंगे |”
इस बात पर खुश होते वे सहमति देते अपना कुर्ता बदलने लगते है| उनका इंतजार करते अरुण बाहर आ जाता है|
“अरे राजवीर इतनी सुबह कैसे – मैंने तो नही बुलाया तुम्हे ?” अरुण सामने से आते राजवीर को देखता है जो उसे विश करता हुआ उसके सामने खड़ा था|
“वो क्या है मैं घर गया ही नही सर – बड़े साहब का हुक्म था कि आपके साथ साथ रहना है मुझे |”
“पर आज नही – आज मैं बीच पर दादाजी को लेकर जा रहा हूँ और हाँ बड़े साहब को बता देना कि मैं समय पर ऑफिस भी पहुँच जाऊंगा |”
“पर सर कार मैं ड्राइव करके ले चलता हूँ न |”
अबकी अरुण कुछ अलग भाव से उसका चेहरा देखता हुआ कहता है – “चिंता मत करो राजवीर अपने बड़े साहब से मिलना तो बता देना कि मैं अपने अतीत और गलती दोनों का सामना खुद कर सकता हूँ – ड्राइव मैं ही करूँगा और जब तुम्हारी जरुरत होगी तब तुम्हे बुलवा लूँगा |”
राजवीर फिर कुछ न कह सका और अरुण आगे बढ़ गया| वह ड्राईवर द्वरा पोर्च पर पार्क कार की ड्राइविंग सीट का दरवाजा खोलता ही है कि किसी का हाथ अपनी पीठ पर महसूस करता वह पलटकर पीछे देखता है और उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है|
“तुम्हे रंगे हाथो पकड़ने का इससे अच्छा मौका नही – मैंने सोचा दादाजी के साथ निकल रहे होगे बस पहुँच जाना उसी टाइम |”
“मुझे छोड़ अपनी बता – पार्टी के बाद से तो तू ही गायब चल रहा है|” योगेश को देखता हुआ वह अरुण कहता है|
इस पर एक बड़ी अंगड़ाई लेता हुआ योगेश कहता है – “आहा क्या बताऊ पार्टी का साइड इफेक्ट चल रहा है पर तेरी समझ की बात नही – तू छोड़ |”
“हाँ बखूबी समझता हूँ तेरा साइड इफेक्ट |” कहता हुआ अरुण अब ड्राइविंग सीट पर बैठते सीट बेल्ट लगाने लगता है|
“दादा जी प्रणाम |”
वहां दादाजी को आते देख अब योगेश झट से उनके पास पहुँचता उनका अभिवादन करता है तिस पर वे भरपूर मुस्कान से आर्शीर्वाद में हाथ उठाते हुए कहते है –
“कैसे हो योगेश – चलो अरुण के बहाने नज़र तो आए |”
“अरे आप तो खूब फिट नज़र आ रहे है – मैंने कहा था न यहाँ अरुण आया और आप दुरुस्त हुए |”
“हाँ ये मुझे कहाँ अकेला छोड़ता है – इसका साथ ही मेरी ऊर्जा है|” कहते हुए वे एक नौकर की सहायता से गाड़ी के पीछे बैठने लगते है|
उनके बैठते बडी भी अपने सेवक के साथ वहां लपकता हुआ आ जाता है| असल में रोजाना बडी और दादाजी के साथ के लिए वह सुबह उन्हें सैर पर जरुर ले जाता| सभी पीछे बैठ गए तो योगेश अरुण के साथ वाली सीट पर बैठते हुए कहने लगा –
“इसका क्या भरोसा – फिर चला गया तो – मैं कहता हूँ कुछ परमानेंट उपाये कर डालिए इसका |” योगेश अपनी सीट बेल्ट लगाता हुआ दादाजी की ओर झुकता हुआ कह रहा था|
“!!!” वे बात नही समझे|
अरुण समझ गया कि ये बराबर पकाने वाला है इसलिए वह इंजन स्टार्ट करता कार को रेस देता वहां से निकलने लगता है|
योगेश अपनी रौ में कहता रहा – “शादी – शादी कर दीजिए इसकी – फिर ये न कही भागेगा और न आप अकेले रहेंगे – बस समस्या छू|”
इस पर बड़ी तगड़ी तौर पर अरुण उसे घूरता हुआ देखता है| वही दादाजी उसकी बात पर हंस रहे थे|
“अच्छा दादा जी कहिए मैंने कुछ गलत कहा क्या – हमेशा यूँही मुझे घूरता हुआ मुझे चुप करा देता है और मैं इसके आगे कुछ बोल ही नहीं पाता हूँ |”
“हो गया तेरा – या कुछ और रायता फैलाना है !!”
“नही बस आज का कोटा पूरा –|” कहता हुआ जहाँ योगेश मुस्करा रहा था वही दादा जी हंस पड़े थे, साथ बैठा नौकर भी चुपचाप हंस रहा था| बडी भी पूछ हिलाता जैसे इस बात पर अपना समर्थन दे रहा था|
रास्ते भर योगेश यूँही बातो के छल्ले उडाता रहा और रास्ता भी इससे बस यूँही पल में कट गया|
“और ये क्या !! तब से ये इन्स्टूमेंटल बज रहा है – तू भी न बिना बोल के संगीत की दुनिया में जी रहा है – कुछ तरंग के साथ कुछ गीत भी होना चाहिए |” कहता हुआ अपनी पसंद का जैश लगाकर ऑंखें बंद किए झूमने लगता है|
“वैसे हम जा कहाँ रहे है ?”
योगेश की बात पर अरुण होंठो के विस्तार के साथ कहता है – “बड़ी जल्दी पूछ लिया तूने ?”
“हाँ तो तू मेरा किडनैप थोड़े कर लेगा – अपना कीमती समय निकालकर मिलने आया हूँ तेरे से – पर तुझे मेरी कीमत ही कहाँ है – हाँ वैसे भी हीरे की कीमत जौहरी को ही होती है – तभी बस बिचारी लड़कियां ही मेरे समय की कीमत समझती है – कभी मेरे साथ अपना टाइम वेस्ट नही करती बस इन्वेस्ट करती है|” अपनी बात खत्म करते दांत दिखाता हुआ व्यू मिरर सीधा करता अपनी शक्ल चेक करता है|
उसकी इस हरकत पर अरुण व्यू मिरर का एंगल ठीक करता हुआ उसे दुबारा घूरता है|
कुछ ही देर में वे सभी सूरत शहर से बाहर के सुवली बीच पर मौजूद थे| वहां पहुँचते ही एक अलग सी तरावट मन में अपना जमावड़ ज़माने लगती है|
पर बीच को देखते योगेश फिर शुरू हो जाता है – “ए लो बीच भी ऐसा चुना जहाँ कम लोग ही आते है – तुझे इंसानों से एलर्जी है क्या |”
“भीड़ पसंद नही |” कहता हुआ पीछे देखता हुआ कहता है – “दादाजी आप यही रुकिए मैं पार्किंग में लगाकर आता हूँ |”
“ठीक है बेटा |” दादाजी के साथ साथ बडी और उसका सेवक भी उतर जाता है|
अब वे सभी समन्दर की ओर बढ़ रहे थे जबकि अरुण कार घुमाता हुआ पार्किंग की ओर ले जा रहा था| योगेश अभी भी साथ में बैठा था जो कह रहा था –
“भीड़ क्या तुझे तो अपने बचपन के दोस्तों से भी अब एलर्जी होने लगी है|”
इस पर अरुण स्टेरिंग घुमाते घुमाते कहता है –
“क्या कहना चाहता है सीधा बोल – फालतू में बात को घुमा घुमाकर चक्करघिन्नी न बना|”
“वर्तिका |”
“!!”
“यार तेरी प्रॉब्लम क्या – वो तुझे कितना चाहती है – हर दस शब्द में से पांच शब्द बस तेरे नाम के होते है – तो क्यों नही तू उसकी भावना को समझता है – और फिर तेरी उसकी शादी में तो कोई समस्या भी नही आने वाली – एक जैसा स्टेटस है तुम दोनों का – फिर बात क्या है जो तू उससे कटता रहता है – कही सच में तेरा सन्यास लेने का कोई इरादा तो नही !”
अब वे कार के बोनट का टेक लगाए खड़े थे| अरुण सिगरेट सुलगाता हुआ उसका गहरा कश हवा में छोड़ता हुआ कहता है –
“मुझे नही पता बस अपने पास उसे महसूसते मुझे बहुत अनकम्फर्टेबल महसूस होता है |” वह फिर एक लम्बा कश भीतर से लेता बाहर की ओर छोड़ता है|
“अबे तो तू नजदीक ही कितने लड़की के गया होगा – तुझे स्कूल के टाइम से देखता आ रहा हूँ मैं – जब मैं अपना दसवा ब्रेकअप सेलिब्रेट करता ग्यारहवी लड़की पटा रहा था तब भी तू अकेला ही था |”
“हाँ तो तेरा जैसा हो जाऊं !”
“नही गुरुदेव वो तो इस जन्म में पोसिबल नही – बट मेरे भाई वर्तिका पर कंसेसट्रेट तो कर |” योगेश हाथ जोड़ने का अभिनय करता हुआ कहता है|
“क्या कंसेसट्रेट करूँ जब ऐसा कुछ फील ही नही होता – तो जबरजस्ती उससे रिश्ता बनाऊ|” उसकी बात पर बुरी तरह झींकता हुआ वह आखिरी बड रेत में मसलते हुए अगली सिगरेट जलाने लगता है|
इस पर योगेश उसे ध्यान से देखता हुआ कहता है – “अच्छा छोड़ वर्तिका को – ये बता तुझे कैसी लड़की पसंद है ?”
“कोई नही |” कहता हुआ लाइटर अपनी पॉकेट के हवाले करता हुआ सर न में हिलाता है|
“ऐसा मैं मान ही नहीं सकता |” अबकी अपनी हथेली पर अपना दूसरा हाथ मारते हुए योगेश कहता है – “कोई तो फैंटसी होगी तेरी – कुछ तो सोचा होगा कि वैसी लड़की तुझे पसंद आए – बता – आज जब तक तू मुझे ये नही बताएगा – मैं कही नही जाने वाला – यही धरना देता पूरा दिन तेरा दिमाग चाटता रहूँगा – बता भी |”
योगेश अरुण का चेहरा गौर से देख रहा था तो अरुण जलती सिगरेट कुछ देर हवा में लिए लिए एक नज़र समन्दर की ओर देखकर दूसरी नज़र योगेश की ओर देखता है|
“बता भी कि सस्पेंस में ही मार डालेगा ?”
“बिलकुल मेरे जैसी |” कहता हुआ अरुण अब सिगेरेट का कश न लेता बल्कि मुंह घुमाकर हलके से मुस्करा रहा था| पहली बार अपने दोस्त के चेहरे पर ह्या की छाया देख योगेश हैरान था|
“गई भैंस पानी में – एक तो तू ही अनोखा है दुनिया के लिए फिर तुझे अपने लिए अपनी तरह की अनोखी रानी चाहिए – तो भाई ये न हो पाएगा – ऐसी बंदी न है और न होगी – तो ऐसा कर तेरा पहला वाला आइडिया ठीक था – तू पकड़ कमंडल और निकल जा जंगल में – भाई तेरे से प्यार व्यार न हो पाएगा |”
योगेश बुरी तरह से हवा में हाथ नचाता हुआ उसे बोल रहा था| तभी भौकने की आवाज से उन दोनों का ध्यान बडी पर जाता है जो योगेश की ओर देखता हुआ उस पर भौंक रहा था| ये बेजुबान जीव की आत्मिक शक्ति थी उसे लगा योगेश उसके मालिक पर नाराज़ हो रहा है इसलिए वह योगेश पर भौंकने लगा|
ये देख योगेश पीछे हटता हुआ बडी को भगाने लगा – “ए कुत्ता है तो कुत्ते की तरह रह – क्यों फालतू में मुझपर भौंक रहा है – देख मैं डॉक्टर हूँ – मेरे साथ ऐसा नही कर सकता – ए |” बडी योगेश के उछलने पर और तेजी से उसपर भौंकने लगा था जबकि ये नज़ारा देखता अरुण ठोड़ी पर उंगली रखे उसपर हंसने लगा था|
“मुझे पता है अगर मैं वैनर्निरी डॉक्टर होता तब देखता तू मुझपर कैसे भौंकता – बहुत हुआ बडी – नही नही मेरे पास नही – ए अरुण रोक न इसको – नही तो अगली बार घोड़े के इंजेक्शन के साथ मिलूँगा इस बडी से – ओ कुत्ते |”
कहता हुआ योगेश उससे दूर तेज भागने लगता है तो बडी भी मस्ती में उसके पीछे भागने लगता है ये देख अरुण भी अब उन दोनों के पीछे भागने लगता है|
अब ये एक खेल हो गया था बडी जानकर योगेश से इतना पीछे भाग रहा था जितना में वह उसे पकड़ न सके और बस भगाता रहे|
यूँही मस्ती में भागते भागते तीनो रेत पर ठहर पर सांस लेने लगते है| अरुण अब बडी को अपने से लिपटाए रेत पर उन्मुक्त लेट जाता है| वह काली रेत पर पड़ा उन्मुक्त आसमान निहारने लगा था| ऐसा करते कुछ अलग ही रंगत उसकी आँखों में समां गई थी मानो योगेश ने सहसा आज उसके मन के सितार में कोई अनजानी तरंग छेड दी थी| वही योगेश बडबडाते हुए दादाजी की ओर चल देता है जो अभी किसी अजनबी इन्सान संग बड़ी आत्मीयता से खड़े थे मानो बरसो बाद उससे वे मिले हो|

…….क्रमशः………..

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