Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 181

दुनिया में सबसे तकलीफ़देह होता है भरोसे का टूटना और इस वक़्त ये सेठ घनश्याम से बेहतर कौन समझ सकता था| आकाश बेटा ही नही उनका भरोसा भी था जिस पर वह अपनी हर कामयाबी का दम भरते थे और उन्हें हमेशा लगता था कि बेटा हो तो ऐसा लेकिन इन दिनों ज्यो ज्यो उसके सच उनकी नजरो के सामने आ रहे थे उनके दिल पर वो सब कुछ किसी अघात से कम नहीं था|

उन्हें अपनी परवरिश पर पूरा भरोसा था जिसपर दम भरते वे किरन के पिता को खरी खरी सुना गए पर वही उनकी बेटी ने भी अपनी जिंदगी के बड़े फैसले पर उन्हें तवज्जो नहीं दिया, जिस बेटे को वे उदहारण की तरह पेश करते थे उसके पीछे का सच आज उन्हें सरे बाज़ार शर्मिंदा कर गया| वे कुछ देर बुत बने आकाश की ओर देखते रहे जैसे अपने यकीन की भरभराई ईमारत के भग्नावशेष देख रहे हो|

आकाश खैर वो तो नज़र उठाकर कर भी नहीं देख पाया| इन्सान बुरा करते वक़्त कभी शर्मिंदा नहीं होता अगर होता तो कभी बुरा करता ही क्यों लेकिन अपने बुरे कर्म के सबके सामने आने से वह शर्मिंदा जरुर हो जाता है और इस वक़्त यही हाल आकाश का था, वह सबकी नज़रो से यूँ गिर गया मानो सौवी मंजिल से वह तिनके के भांति फेक दिया गया हो| उसका अस्तित्व सब ओर बिखरा बिखरा हो गया हो|

तभी किसी आवाज पर उसका ध्यान अपने पिता की ओर गया जो मोबाईल पर बात करते हुए अभी भी वही खड़े थे और शायद टेडी नज़र से उसे ही देखते हुए कह रहे थे – “ब्रिज तुरंत आकर मुझसे मिलो – मुझे कोई विश्वस्त व्यक्ति चाहिए जिसपर मैं भरोसा कर सकूँ – नेक्स्ट बेल अपील के लिए मैं कोई चांस नहीं लेना चाहता |”

आकाश सन्न भाव से देखता रहा और वे भरसक लम्बे लम्बे डग भरते हुए वहां से आगे निकल गए|

***
वर्तिका कुछ समझ नही पा रही थी कि आखिर योगेश कह क्या रहा है ? वह बस उसकी बात पर ध्यान लगाए अपनी जगह थमी रह गई|

योगेश झट से टेबल से मोबाईल उठाते हुए कोई नंबर सर्च करते करते वर्तिका को बैठने का संकेत करता है| तभी नैना आकर उनके बीच कॉफ़ी का दो मग रखती हुई वर्तिका को बैठने को मौन ही कहती है|

योगेश कॉल लगाकर मोबाईल कानो से लगाए हुए कह रहा था – “आखिर भूल कैसे गया मैं – मैं अभी उस लॉयर को बुलाता हूँ – |” तभी शायद दूसरी ओर से कॉल रिसीव कर ली गई जिसपर योगेश जल्दी जल्दी कहने लगा – “तुम जहाँ भी जैसे भी हो जल्दी आ जाओ – हाँ बहुत जरुरी काम है – एक केस देना है तुम्हे – और मुझे पता है तुम इसमें एक्सपर्ट हो – जल्दी आओ – बहाना नहीं सुनना मुझे कोई |” फिर बात करते करते वह वर्तिका की ओर देखता हुआ कहने लगा – “वर्तिका वो कोस्टर से मेरी कॉफ़ी ढक देना फिर अगले ही पल बस उसे हाँ कहना था और उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी|

वर्तिका अब भी हैरानगी से योगेश को देख रही थी तब योगेश ने उससे कहा –

“बस कुछ देर रुको सारा सस्पेंस खत्म होगा – तब तक अपनी कॉफ़ी खत्म करो तुम |”

***
रिमांड रूम में अरुण फिर से किसी पर कटे पक्षी की तरह कैद था| वह वहां जितना शांत दिख रखा था उससे कही ज्यादा तूफान उसके दिलोदिमाग में उठ रहा था| जिंदगी हर बार उसे सजा के लिए चुन रही थी पर कभी उसका कसूर नहीं बताती| वह अफ़सोस से खुद को आसमान के उस टुकड़े में देख रहा था जो उस बंद कमरे में उसके हिस्से आया था| बस आजादी के आभास सा वह खुला हिस्सा भी जैसे धीरे धीरे किसी अंतहीन सुरंग में बदलता जा रहा था|

वहां जितनी शांति थी उससे कही ज्यादा शोर बाहर मचा हुआ था| देशमुख को एक दिन की रिमांड मिल गई पर अब उसमे इस बात को साबित करने की जद्दोजहद थी| वह अरुण को मीडिया की नज़र से बचाता हुआ किसी तरह से यहाँ लाया था पर उसे पता था कि मीडिया से बच पाना इतना भी आसान नहीं था|

वह कमिश्नर को अपनी रिपोर्ट देकर लौट ही रहा था कि एक रिपोटर ने उसे आखिर घेर ही लिया वैसे देशमुख उससे बचकर निकल जाता पर मर्दानी कमजोरी उसे धोखा दे गई| वह रिपोटर कुछ ज्यादा ही आकर्षक थी जिससे देशमुख की नज़र उसपर चली गई और वह नज़रो द्वारा उसकी कैद में पकड लिया गया|

पुलिस जीप से उतरते वह उससे नजर मिला कर फिर आगे नही बढ़ सका जिसका फायदा उठाकर वह माइक लिए तुरंत उसके पास दौड़ी चली आई|

“सर क्या आप बता सकते है कि क्या स्टैला मर्डर केस का मुजरिम पकड़ा गया है? क्या अरुण दीवान ने ही स्टैला का कत्ल किया ?”

“वो मुजरिम है या नहीं ये कोर्ट तय करेगा – मेरा काम सिर्फ इन्वेस्टिगेशन करना है जो मैं कर रहा हूँ |” कहता हुआ वह तेजी से आगे निकलने लगा पर उसके पीछे वह रिपोटरे झट से कैमरा के आगे कहने लगी –

“जैसा कि आपने देखा कि जानेमाने बिजनेसमैन अरुण दीवान का नाम स्टैला मर्डर केस से सीधे तौर पर जुड़ा है – हालाँकि पुलिस अभी भी उन्हें सस्पेक्ट मान रही है पर कोर्ट से उनकी बेल रद्द होने से बहुत हद तक माना जा सकता है कि इस केस से वो अछूते नहीं है – आगे क्या वो सारे सबूत पुलिस खोज पाएगी जिससे पता चल सके कि कैसे एक प्रभुत्वशाली वर्ग मासूम रिपोटर की बेरहमी से हत्या कर देता है और सारा समाज बस तमाशबीन होकर देखता रहता है – क्या नया मोड़ लेगा ये केस जानने के लिए बने रहे मेरे साथ शैली द हेडलाइन न्यूज से|”

देशमुख तक भी उसकी आवाज गई पर वह मुड़ा नही पर मन ही मन उस आकर्षक शैली को कहने लगा – ‘बड़ी पहुंची हुई चीज है – मेरी एक लाइन पर पूरी रिपोट ही तैयार कर दी|’ फिर सब ख्याल झटकते वह अंदर आता है जहाँ उसका जूनियर उसका ही इंतजार कर रहा था |

उसे देखते हुए वह पूछता है – “क्या हाल है उसका ?”

“नोर्मर सर |”

“ठीक है पर ध्यान रखना उसे अभी सोने मत देना – उसका अनकम्फर्टेबल होना जरुरी है और तब हम बयान रिकॉर्ड करेंगे तब तक खातिर करते रहो – स्ट्रोंग कॉफ़ी पर कॉफ़ी पहुंचाते रहना |” कहते कहते देशमुख अब अपने केबिन में आकर अपनी कुर्सी पर ढेर होता हुआ फिर उसे टोकता है – “हाँ – इन्स्पेक्टर जय त्रिपाठी को भेजो |”

ओके कहता वह वहां से निकलकर बाहर आता है जहाँ उसे कोंस्टेबल पांडे कोई ढकी हुई प्लेट ले जाते हुए दिखता है| पहले तो वह उस प्लेट को फिर पांडे को घूर कर देखता है, फिर उस ख्याल को झटक कर आगे कहता है –

“तुम्हारे सर को बड़े सर बुला रहे है |”

पांडे सर हाँ में हिलाता हुआ झट से अब उसी केबिन में पहुँचता है जहाँ जय बैठा मक्खी मार रहा था| मक्खी ही मारेगा क्योंकि स्पेशल रिकमेन्डेशन पर आने पर भी देशमुख ने उसे अभी तक कोई काम सौंपा नही था| पर इस बार उसके द्वारा बुलाए जाने पर पांडे खुश होता हुआ कह रहा था –

“सर तैयार हो जाइए – लगता है आपकी काबिलियत दिखाने का वक़्त आ गया है – बड़े सर ने आपको खुद बुलाया है |”

इस पर जय जल्दी से मोमोज की प्लेट को देखता दुबारा उसे नैपकिन से ढकते हुए कहता है – “पूरे बारह मोमोज है – ढंग से रखवाली करना – मैं अभी आता हूँ |” कहता हुआ टेबल फलांग के पार करते चलते चलते वह कैप पहनकर बाहर चल देता है और पीछे मुंह लटकाए पांडे खड़ा रहता है|

केबिन में मूविंग चेयर पर भी बड़े सख्ती से बैठा देशमुख किसी कागज को ध्यान से देख रहा था| फिर दरवाजे के खुलते और सामने जय के आते उसके सैलूट पर ज्यादा तवज्जो न देते तुरंत कहता है –

“पोस्टमार्टम हाउस चले जाओ और ये रिपोर्ट पर इंचार्ज डॉक्टर का साइन ले लाओ |”

कहते हुए वह पेपर उसकी नजरो के सामने रखता हुआ अन्य काम में लग जाता है| जय जिस अंदाज में गया था उसे लगा था कि शायद उसे कोई जरुरी काम मिलेगा पर उसे वो काम सौंपा गया जो वहां का चपरासी भी कर के आ सकता था पर करता क्या चुपचाप पेपर लिए बाहर निकल गया|

***
वर्तिका अपनी कॉफ़ी खत्म भी नहीं कर पाई थी कि उसके कानो में किसी के कदमो की तेज आवाज आने लगी जैसे कोई वहां भागता हुआ आ रहा हो| वर्तिका हैरानी से पीछे पलटती है| उसकी नज़रो के सामने खुला दरवाजा था और उसके  पार दिखता लम्बा गलियारा जिसके अंतिम छोर से जो भागता हुआ आ रहा था वो आदित्य था और उसके पीछे पीछे ही कोई अन्य भी था जो उसी तर्ज पर उसके पीछे पीछे चला आ रहा था|

वर्तिका अब पूरी तरह से पीछे की ओर मुड़ी हुई देख रही थी कि आदित्य के पीछे वाले व्यक्ति कि बांह में कोई काला कोट लहरहा रहा था|

वर्तिका मन ही मन खुद को बताती है कि आदित्य ही लॉयर को लेकर आ रहा है|

वह हांफता हुआ सा उसके ठीक सामने खड़ा था| वर्तिका कहती है –

“तुम्हे इस तरह दौड़कर आने की क्या जरुरत थी तुम लॉयर को ही भेज देते |”

वर्तिका जिस बात को बड़ी सहजता से कह गई उसे सुनते आदित्य का दमकता चेहरा पल में फ्यूज उड़े सॉकेट की तरह ही गया|

अब तक योगेश भी वहां आते कहने लगा –

“यही तो लॉयर है वर्तिका – आदित्य कुमार पाठक क्रिमिनल डिफेन्स लॉयर फ्रॉम यूके |”

तभी उसके पीछे पीछे आने वाला व्यक्ति उनके पास आता आदित्य को वो कोट थमाते हुए कहने लगा – “साहब जी ये कोट आपने आते वक़्त गिरा दिया था – ये लीजिए |” वह कोट आदित्य की बांह में डालकर वापस चला जाता है|

अब आदित्य जहाँ चौड़ी वाली स्माइल से वर्तिका को देख रहा था वही वर्तिका का मुंह डब्बे की तरह खुला रह गया| वह वाकई इस तरह खड़ी रह गई जैसे उसे स्टैचू बोल दिया गया हो|

ये देखते अब आदित्य के हाव भाव बदल गए और वह झटके से कोट कुर्सी पर डालता हुआ कहने लगा –

“यार इसीलिए मैंने नहीं बताया था कि मैं लॉयर हूँ – इतना गन्दा रियकशन देखने को मिलेगा |”

वर्तिका की शौकिंग हालत और आदित्य के बने हुए मुंह को देखते योगेश हँसता हुआ कहता है –

“तो तुम्हारे लक्ष्ण भी तो ऐसे है – तुम्हे देखकर कौन कहेगा कि तुम लॉयर हो |”

“अब हूँ तो हूँ |” कहता हुआ वह वर्तिका की ठोड़ी में उंगली रखकर उसका मुंह बंद करता हुआ कहता है|

उसके स्पर्श से जैसे वर्तिका होश में आती खुद को सयंत करती हुई कहती है – “सॉरी वो अचानक से सुना तो बिलीव नही हुआ |”

“चलो आओ बैठो |” कहता हुआ वो उन दोनों को बैठने को कहता है| वर्तिका के चेहरे पर आश्चर्य अभी भी हल्का हल्का जमा हुआ था वैसे इस बात का योगेश को पहले से ही अंदाजा था कि वर्तिका को आदित्य के बारे में नहीं पता होगा| वही  आदित्य को बुलाने के लिए उसने जानकर कॉल के बीच में वर्तिका का नाम लिया था ताकि आदित्य झट से वहां चला आए और हुआ भी ठीक यही|

योगेश अब आगे कहता है – “ये मिस्टर लॉयर साहब लन्दन में लॉ की पढाई के बाद यहाँ प्रेक्टिस नही करना चाहते थे और वही वापस लौट जाना चाहते थे लेकिन ऊष्मा और इनके पिता चाहते है कि ये यही प्रैक्टिस करे पर ये सबको अपनी वापसी के लिए मनाने में लगे थे पर इस बीच जाने क्या हुआ कि इनका विचार खुद ही बदल गया और मैं कुछ समय से देख रहा हूँ कि अब ये लन्दन लौटने के मूड में लग नहीं रहे|”

योगेश तिरछी नजर से उन दोनों को देखता हुआ कहता है| वही वर्तिका इस बात को कुछ कुछ समझ रही थी पर जानकर वह अपने चेहरे में समझ वाले भाव लाने नही दे रही थी जबकि आदित्य इस बात पर मुस्करा रहा था|

अब वर्तिका जल्दी से आदित्य की ओर मुडती हुई पूछती है –

“क्या तुम अरुण का केस लड़ोगे ?”

आदित्य वर्तिका के सवाल पर उसे इस तरह देख रहा था मानो पूछ रहा हो कि क्या इसके अलावा भी कोई च्वाइस है क्या ??

क्रमशः……  

22 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 181

  1. Ohhh ye to aadi h…hm sb ko to lga vartika hogi …aapne pichle part me hint bhi diya…..bt hm to hil hi gye…..wow badhiya part

  2. Wah yaar! Iss vakil k mamle me to mera andaja bilkul sahi nikla….Great! Ab ye jarur arun ko bacha lega……. aaditya🤗😌

  3. बहुत ही रोमांचक मोड़ पर है कहानी, आगे देखते हैं कि अरुण को बेल कब मिलती है???

  4. Ab aadi Arun ko begunah sabit karne me apna jee jaan lga dega…..sach me yogesh bahut hi achcha dost h….or ab lagta h vartika b sirf dost bankar hi khush h

  5. Arun Ko Bell Kab? Aur Kaise Milegi??

    Aur Jai Ki Jaisi Entry Huyi Thi? To Aisa Lag Raha Tha Ki, Wo Arun Ko Clean Cheet Dilwa Dega.

    Stela Ka Khuni Kaun Hai?

  6. Kahani bahut intresting hoti ja rahi hai.
    Yesa lagta hai ek sath puri kahani padhne ko mil jaye . Arun ki muskil jaldi khatam ho.

  7. Wah Aaj kal aap shock boht de rhe ho.. aadi vakil hai.. to kya vo kuch alag kar k bacha lega Arun ko.. ab family nhi dost hi bachayenge Arun ko..

  8. Wow ek se bad kar ek dhamake ho rahe hai very nice part lagta hai ab aadi Arun ki Bel karva lega

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