
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 183
रिमांड रूम के ठीक बगल वाले रूम में देशमुख और इंस्पेक्टर सिन्हा मौजूद थे और एक कांच के पार से अरुण की हालत पर बराबर नज़र बनाए थे| ये बात अलग थी कि वे ही सिर्फ उसे देख सकते थे और रिमांड रूम से देखने में वह महज एक बंद खिड़की की तरह लगता|
अरुण इस वक़्त भी बैंच पर बैठा था| उसके शरीर का सारा भार बैंच पर टिके उसके हाथो में था| वह कही शून्य में देख रहा था जबकि सिन्हा की निगाह उसी पर ठहरी हुई थी|
सिन्हा उसे ध्यान से देखता हुआ कहने लगा – “सर – दो दिन से देख रहा हूँ – आपने जगाने को बोला हुआ है पर ये शक्स तो खुद ही नही सो रहा – अब तक कोई आम व्यक्ति होता तो टूट कर बिखर जाता या अंट शंट बोलता हंगामा कर देता पर इसे देखकर लगता है जैसे कितना दर्द भरा है इसके अंदर – जैसे बेइंतहा दर्द की कोई अनकही जुबान है ये..|”
“क्या बात है सिन्हा तुम तो शायरी करने लगे|” वही चेयर पर बैठे बैठे अब वह कोई पेपर समेट रहा था|
“पता नहीं कैसे शायरी की तरह निकल गया पर ये सच ही है – मैंने इतने बड़े आदमी को इतनी तकलीफ में कभी नहीं देखा |”
“और तुमने अब तक कितने बड़े आदमियों को देखा है |”
“हाँ ज्यादा तो नहीं – लेकिन सर आपने तो देखा होगा न – आप ही बताए कि जिसके पास इतना सब कुछ है – हर सुख साधन है उसे किस बात का दुःख होगा – क्यों ऐसे शख्स के चेहरे पर सुकून नहीं है – |”
“सिन्हा ये जिंदगी सिर्फ पैसे से सुकून देती और अगर ऐसा होता तो ये रईस सबसे आगे बढ़कर इसे खरीद लेते|” अब देशमुख टेबल पर रहे एक बैग को खंगालने लगा था|
“फिर सर सुकून किसमे है |”
“सुकून तो बस इसमें है |” कहता हुआ देशमुख अब एक टिफिन मेज पर रखकर खोलने लगा था|
“इसमें !!” सिन्हा भौं सिकोड़े देखता रहा| वह टिफिन था जो देशमुख रोजाना अपने घर से लाता| सिन्हा जानता था कि देशमुख की पत्नी बीमार रहती थी पर कभी भी अपने पति को बिना टिफिन जाने नही देती और देशमुख भी चाहे कितना व्यस्त रहता हो या बेटाइम हो जाए लेकिन वह टिफिन खा ली लेता था|
सिन्हा जल्दी से उसके आगे आता हुआ कहता है – “सर टिफिन ठंडा हो गया होगा – लाइए मैं गर्म करा लाता हूँ |”
देशमुख जैसे उसकी बात सुन ही नहीं पाता और पूरी आत्मीयता से टिफिन खाने लगता है|
सिन्हा नई उम्र का था इसलिए न वह देशमुख के सुकून को समझ पा रहा था और न अरुण की घुटन ही उसे समझ आई पर उसका ध्यान अभी भी अरुण की ओर था जिससे वह कह उठा –
“कही सर हमने गलत इन्सान को तो सस्पेक्ट नही बना दिया !!”
सिन्हा के ये कहते देशमुख एकदम से खाते खाते थम जाता है और फिर से उस कांच के परे देखने लगा|
यही समय था जब जय तेजी से उस कमरे में प्रवेश करता है और बिना उनकी ओर ध्यान दिए कहता है –
“सर स्टैला केस में एक बहुत बड़ा ग्लिच मिला है |”
उसके एकदम से आने और इस तरह कहने से दोनों का ध्यान उसकी तरफ चला गया| जय जिस तरह आते अपनी बात कहता हुआ देशमुख का मुंह देखने लगा उससे उसे जिस प्रतिउत्तर की उम्मीद थी देशमुख उसके विपरीत कहता हुआ उठ गया –
“तुम्हे जिस काम के लिए भेजा था वो करा लाए – लाओ |”
जय एक पेपर उसकी ओर बढ़ाते हुए उसका चेहरा ध्यान से देखने लगा| देशमुख उस पेपर को लिए अब उस कमरे से बाहर निकल गया और दोनों मौन उसे देखते रहे|
***
एक रात की ढेर बेचैनी सब तरफ फैली थी| लग रहा था जैसे उस रात को रबड़ की तरह लम्बा खींच दिया गया हो|
आदित्य योगेश के नर्सिंग होम में था और अभी अभी वर्तिका की बनाई कॉफ़ी पीते पीते उसकी ओर देख रहा था जिसका ध्यान जाने कहाँ था| आदित्य को केस की जो तैयारी करनी थी शायद उसने कर ली थी उसने तो इस रात को मौके की तरह लिया था वह वर्तिका के साथ कुछ समय बिताना चाहता था|
पर ये भी सच था कि वर्तिका के वह जितना पास आता वह उसे उतनी ही दूर दिखती| एक दो बार उसे अपनी बातो के लच्छे में फंसा कर वह हँसा भी देता लेकिन कोई गहन उदासी थी जो जाने कहाँ से चुपचाप आकर उसके होंठो पर जम जाती और इतनी गहरी जम जाती कि वह काफी देर तक जैसे मुस्कराना ही भूल जाती|
वह अभी सोफे का कोना पकड़े अन्यत्र देख रही थी और आदित्य किसी भारी किताब के पीछे से उसे बार बार झांक लेता| वह हर एक घन्टे उसे कॉफ़ी के बहाने टोक लेता पर इस बार काफी देर हो गई और न वर्तिका ने कुछ कहा और न आदित्य ने उसे टोका|
तभी उस रूम के दरवाजे के खुलने की आहट हुई तो आदित्य जल्दी से दौड़कर दरवाजे के पास आकर उसे बिन आवाज के खोलकर देखता है| उस पार योगेश था|
योगेश कुछ कहने वाला था पर आदित्य उसे होंठ पर उंगली रखे चुप रहने का कहता उसे अंदर आने का संकेत करता है| योगेश नासमझी का भाव लिए अंदर आने लगता है कि तभी वह देखता है कि आदित्य वर्तिका के पास जाकर उसे अपना कोट ओढ़ा रहा था| असल में वर्तिका बैठे बैठे ही सो गई थी|
ये देखते योगेश धीरे से मुस्करा देता है|
***
दीवान मेंशन में मौजूद दीवान परिवार के दिलो में जितना सन्नाटा था उससे कही ज्यादा सन्नाटा मेंशन में पसरा था| किरन के मन को ढांढस देने वाला तो खैर कोई शब्द ही नहीं बना था बस भूमि खुद उसके पास रहकर उसे सांत्वना दिए थी जबकि कोई नहीं जानता था कि कल अरुण की बेल का क्या होगा|
भूमि क्षितिज को इन सबसे दूर रखना चाहती थी या उसके सवालों से खुद को बचाना चाहती थी इसलिए उसे फार्म हाउस में ही छोड़ दिया था और मेनका को उसके पास रुकने को कह रखा था|
नन्हा क्षितिज कहाँ जानता था कि उसके आस पास क्या घट रहा है उसकी मासूम दुनिया में तो बस वही पल उसका था जो उसकी मासूम नज़रे देख पा रही थी| वह अपने दोस्तों की उपस्थिति में जादू के शो से बहुत खुश था और मेनका को अपने हाथो के एक्शन के साथ उसका एक एक हिस्सा बता रहा था|
मेनका को जानती थी सब कुछ पर फिर भी खुद को क्षितिज के सामने सहज बनाए थी और बड़ी दिलचस्पी से उसकी बात सुन रही थी|
“बुआ – आपको नहीं पता पाशा सबसे बड़ा मैजिशियन है – वो अपने मैजिक से सब कुछ कर सकता है – उसकी वो कैप और स्टिक में बहुत सारा जादू है |”
वह अपना मुंह गोल गोल किए उसका खास होना बता रहा था जबकि मेनका उसे पकडती हुई कहने लगी –
“हाँ तो अब जल्दी से आंख बंद कर के सोने वाला जादू करते है -|”
मेनका उसे मनाती हुई आखिर लेटा ही देती है लेकिन क्षितिज बोलना बंद नही करता| वह कहता रहा –
“पता है बुआ कल मैं पाशा से उसकी कैप और स्टिक एक दिन के लिए मांग लूँगा |”
“क्यों – अपने दोस्तों को मैजिक दिखाने के लिए ?”
“नहीं आपको नही पता बुआ – पाशा की कैप में बहुत जादू है – वो स्टिक घुमाता है और कैप से रैबिट निकल आता है |”
उसके भोलेपन पर मेनका हलके से मुस्करा देती है|
“अच्छा अब तुम सो जाओ – फिर कल का मैजिक भी तो देखना है न !”
मेनका उसके माथे पर हौले हौले हथेली रखती उसे सुलाने की कोशिश कर रही थी पर नन्हा क्षितिज कहने लगा –
“बुआ मैं उस कैप पर मैजिक करूँगा तो रैबिट की जगह बडी भी निकल सकता है न !! जाने कहाँ चला गया बडी !!”
उस पल जिस बात को मासूम क्षितिज कह गया उस बात पर मेनका का दिल धक से होकर रह गया| मेनका की आंख भर आई पर कमरे की हलकी रौशनी में वह अपना दर्द उससे छिपा ले गई और किसी तरह से क्षितिज को सुलाकर चुपचाप बाहर निकल गई|
***
कितने मजबूर हालात थे जब दिल और दिमाग दोनों अलग अलग दिशाओ में भागा जा रहा था| कितना कुछ उसके आस पास से होकर गुजर गया और वह बस उन पलो को बेचैनी से देखती रह गई|
वह अपने कमरे में आराम कुर्सी पर घुटनों पर सर टिकाए बैठी थी| उसके कमरे की बालकनी को जाने वाला कांच का बड़ा सा डोर खुला हुआ था| उस समय बाहर का मौसम कुछ खराब हो चला था| तेज बारिश के साथ तेज तेज हवा भी चल रही थी| उस खुले दरवाजे से आती तेज तेज हवा उसकी देह में ठिठुरन पैदा कर दे रही थी पर अपने में गुम मेनका की हिम्मत नहीं हुई कि वह उठकर डोर को बंद कर दे| कितना दर्द और तड़प थी उसकी जिंदगी में जहाँ सुकून न के बराबर था| एक छोटा सा सपना तो देखा था वो भी उसकी आँखों में किरचे बनकर रह गया| वह अपनी भीगी बांह में पहलु बदलती है कि तभी उसे कुछ अहसास होता है और झटके के साथ वह नज़रे उठाकर सामने देखने लगी|
“विवेक….!!” कमरे के काफी अँधेरा था फिर भी क्या उस शख्स को पहचानने में वह जरा भी गलती नही कर सकती थी|
वह तुरंत खड़ी होती उसे स्पर्श करती जैसे खुद को यकीन दिलाती है कि कही वह कोई सपना तो नहीं !!
“तुम – तुम कैसे आए ?” मेनका उसकी बांह थामे उसे हौले से हिलाती हुई पूछ रही थी|
फिर उसे अहसास होता है कि वह बुरी तरह से भीगा हुआ है| वह उसका चेहरा स्पर्श करती हुई कहने लगी तो विवेक हलके से लड़खड़ा जाता है|
“विवेक तुम शराब पीकर आए हो !!”
“हाँ – बहुत बहुत पी – इतनी कि तुम्हे भूल सकूँ – तुम्हे दिल के कोने कोने से निकाल सकूँ लेकिन देखो तुम्हारे बिना रह भी लेता है मन और तुम्हारे बिना रहा भी नहीं जाता – मैं कितनी दूर भागते भागते भी तुम्हारे पास आ गया – मेनका |” विवेक अब उसका चेहरा अपनी हथेली में भरता हुआ कहता रहा – “तुम्ही मेरा दर्द और – तुम्ही मेरा सुकून हो – कहाँ और किससे भाग कर जाऊं मैं – एक तरफ कशमकश से भरी जिंदगी है तो दूसरी तरफ ये तुम्हारी आंखे – जो मुझे जाने किस उम्मीद से बांधे रखती है – टूट चुका हूँ इतना कि – बस तुम्हारे कंधे पर बिखर जाना चाहता हूँ |” विवेक अपनी भीगी देह मेनका की देह पर ढीली छोड़ देता है|
मेनका बड़ी मुश्किल से उसे संभालती है| वह समझ रही थी कि इस वक़्त विवेक किस दोराहे में खड़ा है न उसे आगे जाने का रास्ता ही मिल रहा है और न पीछे ही लौट कर अपने अतीत को ही अपना सकता है| उसकी बेचैनी जैसे मेनका में मन में भी हौले हौले उतरने लगी|
विवेक की भीगी देह को सँभालने में मेनका की नाईटी भी भीग चुकी थी पर उस पल प्रेम के स्पर्श से उसका मन उससे कही ज्यादा भीग आया था| वह उसे अपनी बांह में समेटे जैसे हर तूफ़ान से बचा लेना चाहती थी लेकिन इस वक़्त दो जिस्मो के पास आने से जो तूफान उनकी रोम रोम में मचल उठा अब शायद ही वे इससे खुद को बचा पाए|
विवेक मेनका को अपनी बांह के कस कर समेटे उसके अंग अंग को बेताबी से चूमे जा रहा था| मेनका भी आज उस प्यार में खुद को खोने को उतनी ही बेचैन हो उठी| वह उसकी भीगी शर्ट को उसकी देह से हटाने लगी| तभी जोर से बिजली चमकी और दो निरावृत जिस्म एकदूसरे में समा गए|
क्रमशः………..
और कितना दर्द पढ़ना पड़ेगा जी ? अब और नहीं बस कुछ भी करो और अरुण किरण को मिला दो…..
Ohho kya part tha behad bhavuk
Please ab bs bhi kijiye sabhi ko apne apne hisse ka pyar dila dijiye. Arur- Kiran, Aaditya – Vartika, Vivek – Menka, Selvin- Rubi, ye sab log bahut dard jhel chuke hai.🥺🥺🥺
Sach me ye kahani beintehaa hi hai.. beintehaa ishq, beintehaa nafrat aur beintehaa dard…
Udhar Arun aur idhar menka aur Vivek sab apne beintehaa dard se lad rhe hai..
Ye deshmukh kahi jaan bujh kar to Arun ko nhi fassa rha jo Jai ki baat bhi nhi suni..
Nice 👍👍👍👍
Nice 👍👍
Very Nice Part.
Arun Ko Bell Kaise Milegi?
Ye sach me beintehaa hi h
SB kuchh yha beintehaa h
Pyaar beintehaa h
Dard beintehaa h
Nafrat beintehaa h
Judai bhi beintehaa h
Ab jaldi se Milan bhi beintehaa karwa dijiye Archana ji….
Mam is kahani ka nam beintehaa safar dard ka rakh dijiye….sukun hai hi nhi kisi ki b jindagi me isme..agar hai to sirf dard
Really very sensitive part
Please ma’am ab to Arun ki bell Kara dijiye,hum se uska dard dekha nahi ja raha hai. Ab to is beintehaa dard ka khatam kar dijiye please 🙏🙏
Sach m kha se kha chle gye sab ek pl sab kuch shi agle hi pl sabki jindgi m tufan mach gya h dose na hote huye bhi ek begunah ko aja mil rhi h ar kab Tak chlega ye sab mem ky aane wala din Arun ka hoga
Very very🤔🤔🤔
Bachche apni hi dunia me mast rahte h na koi dukh or na hi koi taklif……sabse pre hote h…..bade hone pr hi tention badti h
Kitni mushkil se kuchh khusi aayi thi Arun ki jindagi me fir itna dard or taklif bhar di pls jaldi use bahar nikal do Jail se.
बेचारा अरुण कितने कष्ट झेल रहा है और वो भी आकाश के कारण सारे बेर कर्म कर बड़े ने और सज़ा मिल रही है अरुण और किरण को अब तो दोनों को मिला दो और ये विवेक मेनका 😢😢