Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 185

इस वक़्त बस वे तीनो दोस्त थे और एकदूसरे को कसकर भीचे जैसे उस अहसास को अंतरस उतार रहे थे जिसने उन्हें बिन रक्त सम्बन्ध के भी एकदूसरे से जोड़े रखा था| अरुण के पिता भी इसमें कोई हस्तक्षेप नही करना चाहते थे इससे वे आराम से गलियारे में खड़े उसकी प्रतीक्षा करने लगे| वे ज्यादा बाहर तक नही गए क्योंकि उन्हें पता था मीडिया वाले भी इसी टोह में बैठे होंगे|

वे वही खड़े अब अरुण का इंतजार कर रहे थे|

“अरे ऐडी कहाँ गया |” जब योगेश ने अरुण से उससे पर्सनली मिलवाने के लिए अपने आस पास देखा तो उसे आदित्य कही नज़र नही आया|

“अभी तो यही था – मैं देखती हूँ – शायद अभी बाहर ही हो !!” कहती हुई वर्तिका बाहर की ओर चल देती है|

योगेश अब अरुण के कंधे पर बांह फैलाए हुए कहता है – “यार अब तू ये सब भूल जा और जाकर आराम कर – तेरी आंखे देखकर लग रहा है कि दो दिन से तू सोया नहीं है |”

“हाँ समझ गया – इसलिए यही सलाह मैं तुम्हे भी दूंगा |”

“है !!”

“तो तू क्या समझता है तू डॉक्टर है जो समझ गया – मैं बिन देखे भी जानता हूँ कि तू खुद दो रातो से चैन से नही सोया होगा – अब तू भी जाकर आराम कर और रही बात आदित्य से मिलने की तो शाम को आकर मिलता हूँ उससे – फिर यार मिलकर गम गलत करेंगे |”

इस पर वे दो दोस्त वाकई साथ में मुस्करा लेते है|

योगेश अरुण अब बाहर सेठ दीवान के सामने खड़े थे| वे अरुण को देखकर सहमती में सर हिलाते खुद को भरसक सहज दिखाते है| पिता पुत्र न कही गले लगे और न उन्होंने कभी इसकी कोशिश की| अजब सी अहम् की दीवार उनके आस पास रहती थी जिससे वे कभी खुद को बाहर नही निकालते थे| अब वे साथ में कोर्ट से बाहर निकलने लगे|

मीडिया यहाँ भी मौजूद थी पर अभी वह पुलिस वालो को घेरे खड़ी इस अपील के खारिज होने पर पुलिस वालो पर सवालों की बौछार कर रही थी| इससे वे बच कर अपनी कार तक आ गए|

वर्तिका जो आदित्य को देखने बाहर आई पर उसे कही न पाकर वह पार्किंग में उसकी कार ढूँढने लगी जैसे उसे विश्वास ही न हो रहा हो कि आदित्य उसे बिना बताए चला गया| पहली बार उसे आदित्य का इस तरह बिना बताए जाना बुरा लगा| फिर गहरा श्वांस खींचती हुई वह भी अपनी कार की तरफ बढ़ जाती है|

***

मेंशन में अरुण के पहुँचने से पहले उसकी आने की खबर भी पहुँच गई| तब से वीरान पड़ा मेशन जैसे शोर से गुलजार ही उठा| कुछ रिपोर्ट्स भी मेंशन के बाहर डेरा जमाए बैठे थे| इससे कार बिना रुके मेंशन में तेजी से समा गई और वे सभी हाथ मलते देखते रह गए|

अरुण दो दिन बाद लौटा था और इन दिनों में ही उसकी हालत काफी पस्त  दिखने लगी थी| बुझा चेहरा बिखरे बाल और उसपर वही शर्ट जो वह उस दिन पहन कर गया था| पर कुछ और था जो बदल गया था उसमे उसकी नाउम्मीदी में बुझी आँखों में अब कुछ राहत थी|

वह अपने सुकून की ओर वापस लौट आया था| सब उससे मिले पर कोई था जिसे उसकी आंखे खोज रही थी पर वह कही नही दिखी|

भूमि उसे अब अपने कमरे में आराम करने को कहती फार्म हाउस की ओर चल दी|

अरुण बेहद थका था पर अपने घर वापसी का सुकून अब उसके हाव भाव में नज़र आने लगा था| वह अपने कमरे में पहुँचते दरवाजे को धकेलता अंदर पहुँचता है| वह अभी कमरे में आ कर खड़ी ही हुआ था कि किरन दौड़ती उससे आकर लिपट गई| अरुण का शरीर हलके से पीछे की ओर हिल गया| किरन उसके चौड़े सीने से लिपटी फूट फूट कर रो रही थी|

वह इस तरह रो रही थी जैसे जाने कब से उसने अपनी आँखों के आगे बाँध बना रखा हो जो तूफानी मंजर में आज बाँध खोले उससे मिल लिया हो| वह अपना चेहरा उसके सीने में छिपाई देर तक बिलखती रही| ये देख अरुण उसे अपनी बांहों के घेरे में लेता कह उठा –

“ए रो रही हो ?”

“नही – मैं नहीं रो रही |”

हिल्की लेती वह यूँ कहती है कि अरुण को हौले से हँसी आ जाती है|

“क्या सच में !!”

वह उसे और अपनी बांहों में कसे रूह तक उतारने लगता है| किरन अब धीरे धीरे सुबकने लगी थी तो अरुण उसके बालो में हलके हलके से उंगलियाँ फेरता कह रहा था –

“तुम भी क्या सोचती होगी कि क्या मुश्किल इन्सान है !! हमेशा ये मुश्किलों से ही घिरा रहता है |”

वह अभी भी उसके बालो पर हौले हौल्रे अपना अहसास दौड़ा रहा था तो वही किरन उसके सीने में दुबकी जैसे उससे अलग होने को तैयार ही नही थी|

“हाँ सोचती तो हूँ फिर ये सोचकर सुकून होता है कि उन सारी मुश्किलों में मैं आपके साथ तो हूँ |”

“तुम साथ हो तभी तो आज कमरा घर जैसा सुकून दे रहा है – पहली बार मन घर लौटने का कर रहा था|”

“आपने कहा था न कि जल्दी आएँगे फिर आते आते कितनी मुद्दत लगा दी आपने |”

“मेरे लिए भी ये दो दिन तुम्हारे बिना दो जन्म से गुजरे – बस मन करता तुम्हे अपने दिल में समेटे यूँही सारी उम्र गुजार दूँ – किरन |”

“हूँ !!!”

“तुम्हे पता है न मैं किस केस में पुलिस कस्टीडी में था – क्या कुछ जानना या पूछना नहीं चाहोगी – तुम्हे हक़ है – पूछ लो मुझसे जो भी प्रश्न तुम्हारे मन में आए|”

“मुझे कुछ नही पूछना और न जानना है – मुझे आप पर खुद पर से भी ज्यादा भरोसा है |”

“इतना भरोसा !!”

“आपसे प्रेम करने से पहले मैंने आपपर भरोसा किया है – वही भरोसा कि वो अनदेखा चेहरा एक दिन मेरे जीवन में आएगा और फिर कभी मुझे छोड़कर नहीं जाएगा |”

“तुमने तो मुझे डरा दिया – अब तो खुद को तुम्हारे लिए संभालना ही पड़ेगा पर तुम्हे पास पाकर ये दिल नही संभलता – ये बस तुम्हे बाहों में लेकर तुममे डूब जाना चाहता है – तुम्हे अपने प्यार से अपने अंदर समेट लेना चाहता है – इतना कि हमारे बीच गुस्ताख हवा भी न पनाह पा सके |”

वह किरन को अपनी बाहों में कसकर भींचे उसके रेशमी बालो पर अपने होंठ फिरा रहा था साथ ही उसकी शरारती उंगलियाँ किरन के बल खाते देह पर अपना अहसास छोडती मचलती जा रही थी|

किरन मुस्कराती हुई अब अपना सर उठाकर उसकी नज़रो में देखती हुई कहने लगी –

“दो दिन से वही शर्ट पहने है – चलिए आप नहा लीजिए – मैं आपके लिए चाय लाती हूँ |”

कहती हुई वह अरुण से अलग होकर अपने बिखरे बाल बाँधने लगी| ऐसा करते उसकी देह एक ओर को तन सी गई थी| पर उसे नहीं पता था कि अरुण की निगाह उसी पर जमी है जिससे वह उसकी कमर पर अपनी बांह लपेटे उसे अपनी ओर खीच लेता है| वह भी उसकी बांहों में खिंची आती है| अब उसके लम्बे बाल फिर से बिखर गए थे|

वह हौले से खुद को छुड़ाने का उपक्रम करती कहने लगी – “पहले नहा लीजिए न – गन्दा लग रहा होगा आपको |”

अरुण उसकी पतली कमर के चारो ओर अपनी बाँहे घेरे किरन को फिर से अपने से लिपटाए था| किरन की पीठ अब उसे सीने से चिपकी थी और वह अपनी गर्म सांसे उसकी देह पर छोड़ता हुआ कह रहा था –

“गन्दी तो अब तुम भी हो गई – यूँ नही चिपकाना था न मुझसे |” कहते कहते वह उसकी गर्दन तक अपने होठ लाते कहने लगा|

किरन अपनी हंसी होंठो के भीतर करती कहने लगी –

“ठीक है आप नहा लीजिए तब मैं भी नहा लुंगी |”

“तब तो बड़ा टाइम वेस्ट होगा – पहले मैं फिर तुम…..|”

“तो….!!”

फिर शब्द जैसे होंठो पर आकर थिरक उठे और अरुण ने किरन को अपनी बाहों में उठा लिया| अब उसकी निगाह किरन के सलोने चेहरे पर थी| किरन ने भी अरुण की बांह कसकर थाम ली|

***
तूफान रुका नहीं था बस उसने अपना रुख मोड़ लिया था| मेनका जिस ख्याल से लिपटी सो रही थी क्या पता था उसे कि वही उसका डर बन जाएगा|

उसके दरवाजे पर तेज दस्तख होने लगी| वह दस्तख इतनी हड़बड़ी वाली थी कि उसका प्यारा ख्याल पल में छिटक कर दूर जा गिरा| वह जल्दी से कपडे पहनकर दरवाजा खोलती है बाहर कोई सर्वेंट खड़ी थी और जल्दी जल्दी कह रही थी –

“छोटी मालकिन – क्या क्षितिज बाबा आपके साथ है !!”

“नही – वो तो रात में अपने कमरे में सोया था |”

“वहां नही है -|”

“क्या कह रही हो ?”

“जी सही कह रही हूँ – मैंने सब जगह खोज लिया पर बाबा कही नही मिले |”

“कहाँ जाएगा – रुको मैं देखती हूँ – वो जरुर शरारत में छिप गया होगा |”

मेनका हडबडाहट के साथ कमरे से निकलकर पहले क्षितिज के कमरे में गई जहाँ सच में वह नहीं था फिर बाहर लॉन से लेकर मेज के नीचे तक उसने क्षितिज कि खोज कर डाली पर वह कही नहीं मिला| कुछ देर तो उसे लगा कि वह जरुर जादूगर वाला कोई खेल खेल रहा होगा पर बार बार उसे पुकारने पर भी जब क्षितिज नहीं मिला तो उसके अगले ही पल मेनका के होश ही उड़ गए|

यही वक़्त था जब पोर्च पर भूमि की कार रुकी|

अगले कुछ समय तक पूरे फार्म हाउस में जैसे कोई जलजला सा आ गया| भूमि मेनका से लेकर वहां के सारे नौकरों ने कोना कोना खंगाल डाला पर क्षितिज उन्हें कही नहीं मिला|

वह वहां होता तो मिलता न| भूमि अब रुआंसी होती मेनका की बाजू पकड़कर हिलाती हुई पूछने लगी –

“मेनका कहाँ गया क्षितिज ? कौन ले गया मेरे बच्चे को ?”

भूमि विलाप करती वही ढह गई| ये देख सब नौकर उसकी ओर भागे| वही मेनका सर पर हाथ रखे दम साधे बैठी थी| लग रहा था जैसे उसका दिल अब धडकना ही भूल गया| न आंसू ही आँखों से निकले न मुंह से कोई शब्द ही निकला| आखिर कितना बड़ा धोखा उसे मिला था….विवेक क्या इस मकसद से वहां आया था…वो अपने मकसद के लिए इतना नीचे गिर गया….सोचा नही था सब इस तरह खत्म करोगे….तुम्हे अपने पास पाकर लगा अब तुम कभी मुझसे दूर नही जाओगे…..काश तुम वापस ही नही लौटे होते….!!

क्रमशः……….

15 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 185

  1. Sukoon se bhara hua but kisi aane waale toofan ka sanket bhi lag rha hai dil nhi kehta ki Vivek ne kshitij ko kidnap Kiya hoga but waqt ka kuch pta nhi kab kya ho jaaye

  2. Oh ho.. to kya sach me Vivek aisa bhi kar sakta hai.. akash se badle ke liye shitij ko kidnap Kiya.. vo bhi menka ko dhokha de kar.. ye to boht galat Kiya usne.. ek taraf sakoon ki dhoop abhi khili hi think fir se dukh k badal a gye.. ye kahani bhi monsoon ke jaisi ho gyi hai

  3. Ye kya adha bhag padte padte khushi mili to bhi last me dhamaka…. Dekhte h ab aage kya hona baki h…

  4. Arun ghar aaya or ab chitij gayab…..aakhir deewans ki musibat khatm hi nhi ho rhi h…..vivek ne esa kiya h to usne bahut galat kiya h

  5. Wao ky romantic seen tha ar ye ky hua itna bda झटका chitij को kon ky sach m Vivek le gya par aakas SSE bdla lene ke liye ky uske bacche ko Mohra bnayega ab

  6. Bechari menka hamesha use hi dhoka kyu milta hai. Kshitij ko kon le gaya hai.yesa lagta hai ki diwan pariwar ki pareshani itni jaldi khatam nahi hogi .

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