Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 187

क्षितिज के कपड़े पर खून का धब्बा देखने के बाद से ही सबकी हालत तड़पने जैसी हो गई| वो नन्हा बच्चा जो उस घर की और घर के सदस्यों की जान था उसपर कोई खरोच नही सह सकता और यहाँ तो….!!

भूमि का बीपी एकदम से गिर गया| उसे वही सोफे पर लेटाकर डॉक्टर उसका ट्रीटमेंट कर रहे थे| दीवान साहब की हालत भी खराब होने लगी पर किसी तरह से हौसला करते वे वही बैठ गए पर वहां से कही गए नही| किरन दौड़कर उनके लिए पानी ले आई| अरुण उन्हें हॉस्पिटल ले जाना चाहा पर वे कही नही गए| आकाश वही बाल नोचता खड़ा रहा| उसका चेहरा देखकर ऐसा लग रहा था जैसे अभी अभी वह अपनी लाश दफन करके लौटा हो| बेचैनी और तड़प उसके हाव भाव से टपक रही थी वही बाकियों के चेहरों पर दर्दीले भाव पसर चुके थे| मेनका के हाव भाव भी तकलीफ और नफरत के मिले जुले भाव प्रदर्शित कर रहे थे|

इन सबके बीच इन्स्पेक्टर कपड़े लाने वाले सिपाही से बात करता हुआ उस कपड़े को अच्छे से देखता हुआ कहता है – “आपका बच्चा सुरक्षित है – |”

इन्स्पेक्टर की बात सुनते अब सबकी नजर उसी की ओर मुड़ गई|

“ये खून नहीं लाल रंग है – |” कहते हुए वह कपड़ा उन सबकी निगाह के आगे करता हुआ कहता रहा – “इसका साफ़ साफ़ अर्थ है कि जिस किसी ने आपके बेटे का किडनैप किया है उसका मकसद आपको डराना है – इसलिए उसने कपड़े फार्म हाउस के पास ही जानकर छोड़ दिया – अब आप बताए कि आपको किस पर शक है ?”

इन्स्पेक्टर उन सबका चेहरा बारी बारी से देखता है वही सभी के चेहरे पर सब समझ लेने वाले भाव अब दिखने लगे थे|

“मैं बताती हूँ उस शख्स का नाम – आप उसे गिरफ्तार करिए और कैसे भी क्षितिज को लेकर आइए |”

उस पल किसी ने उम्मीद नही की थी कि ऐसा कुछ मेनका बोल जाएगी| हैरानगी उन चेहरों से हटी ही नहीं|

मेनका बस आगे बोलने ही वाली थी कि अरुण आगे बढ़कर मेनका का हाथ पकड़कर उसे रोकता हुआ कहता है –

“इन्स्पेक्टर आप अपनी इन्क्वारी जारी रखे – हमे किसी पर शक होगा तो हम आपको इन्फॉर्म कर देगे |”

ये सुनते इन्स्पेक्टर संशय से उसे देखता हुआ कहता है – “ठीक है फिर तो मेरी यहाँ जरुरत नही – क्योंकि हालात बता रहे है कि अब कोई फिरौती के लिए कॉल नहीं आएगी – आपको कुछ भी पता चलता है तो आप मुझे फोन कर दीजिएगा |”

अरुण के मौन हामी भरते इन्स्पेक्टर बाहर निकल जाता है| उसके साथ साथ बाकि के पुलिसवाले भी चले जाते है|

उन सबके जाते अब आकाश दांत पीसते हुए कहता है – “मुझे पता है ये सब उस विवेक की कारस्तानी है – मैं अब खुद उससे निपटूंगा |”

आकाश गुस्से में बस निकलने ही वाला था कि अरुण उसे टोकता हुआ कहता है –

“आप यही रुकिए – मैं जाकर आज इस किस्से का अंत कर ही दूंगा |” कहता हुआ वह बिना किसी के प्रतिउत्तर का इंतजार किए तेजी से बाहर निकल जाता है|

वह जिस तरह से गुस्से में बाहर निकला था उससे कोई उसे रोक नही सका पर किरन उसके पीछे दौड़ जाती है| अरुण लम्बे लम्बे डग भरता हुआ बाहर इतनी तेजी से निकल गया कि जब तक किरन बाहर तक आई तो अरुण उसे कही नही दिखा| वह परेशान सी इधर उधर देखने लगी|

तभी राजवीर उसकी ओर दौड़ता हुआ आता है शायद वह अरुण का इस तरह जाना देख चुका था|

किरन उसे देखती हुई जल्दी से कहती है – “राजवीर भैया ये तेजी से कहाँ चले गए – मुझे तो कुछ सही नही लग रहा|”

राजवीर भी उतना ही चिंतित स्वर में बोला – “मुझे भी वे कभी इतने गुस्से में कभी नही दिखे – उन्होंने तो मेरा इंतजार भी नहीं किया और खुद ही कार लेकर चले गए |”

ये सुनते किरन की घबराहट और बढ़ गई वह जल्दी से अरुण के पीछे चलने को बोलती राजवीर के साथ चल दी|

उसे पता था शांत समंदर जब तक शांत रहता है कोई उसके अंदर का तूफान का अंदाजा नही लगा पाता लेकिन वही जब उसमे हिलोरे होनी शुरू हो जाती है तब कोई नहीं जानता कि कब वे हिलोरे सुनामी का रूप धर लेती| किरन को बस इस बात की चिंता थी|

राजवीर अपनी भरसक तेजी से कार चलाते अरुण की कार का पीछा करता हुआ मेंशन पहुँच जाता है| जब तक किरन पोर्च तक आती है तब तक अरुण अपने कमरे की ओर चल दिया था|

***
अरुण एक साथ कई सीढियां लांघता हुआ अपने कमरे में पहुँचते अपनी कबर्ड की ओर झुका था| उसके पीछे पीछे किरन भी थी| वह आते ही ज्योंही अरुण के कंधे पर हाथ रखती है वैसे ही उसकी आँखों में सहमे हुए भाव आ जाते है|

“ये क्या करने जा रहे है आप ?”

किरन उसकी नजरो के सामने आती उसका हाथ पकडती हुई पूछती है जिसमे अब अरुण की पिस्टल चमक रही थी|

अरुण भरे आक्रोश से कहता है – “पिछली बार गलती हो गई पर इस बार निशाने में कोई गलती नही होगी – उस विवेक ने अपने बदले के लिए इस बार एक मासूम बच्चे को चुना है – इससे पहले वह अपनी हदे बढ़ाता जाए – मुझे उसे रोकना ही होगा – आज इस किस्से का अंत होना तय ही है |”

अरुण किरन का हाथ हटाकर जाने लगा तो वह जल्दी से उसकी बांह पकड़कर उसे रोकती हुई बोल उठी –

“ये आप क्या कर रहे है – गुस्से में लिया गया हर फैसला गलत ही होता है – किसी भी समस्या का हल आक्रोश में नही होता –|”

“तो तुम क्या चाहती हो – मैं इस समय चुप होकर ये देखूं कि वो मेरे परिवार को किस तरह नुकसान पहुंचा रहा है !!”

“पिछली बार इसी गुस्से की वजह से मेनका की जान कितनी मुश्किल में फस गई थी – ये तो याद है न आपको – प्लीज़ अभी आप पहले खुद को शांत करिए और सोच समझकर कोई भी कदम उठाइए – मैं आपको फिर से किसी मुश्किल में फसते हुए नहीं देख सकती – नहीं खो सकती मैं आपको ||”

बिफरती हुई किरन जाते हुए अरुण की पीठ से चिमटती हुई उसे रोकने की कोशिश करती है पर अरुण में तो जैसे कोई जूनून सा सवार हो गया जिससे वह किरन का हाथ छुड़ाकर आगे बढ़ने लगा| किरन उसे जाने से रोने उसकी बांह पकडती है और इसी चक्कर में अरुण के हाथ से पिस्टल छूटकर नीचे गिर पड़ती है|

उस समय उसका लॉक खुला ही था जिसे उसका मैगजीन अलग होकर गिर पड़ता है| ये देखते अरुण झुककर उसे उठाने लगता है कि तभी उसकी निगाह कुछ ऐसा देखती है जिसे देखते वह वही बुत बना रह जाता है| उसकी नज़रो के सामने खुली मैगजीन और पिस्टल पड़ी थी जिसे हाथ में उठाते वह धीरे से बोलता है –

“ये क्या – अगर मैगजीन अभी भी फुल लोडेड है तो उस दिन मेनका पर गोली कैसे चली – तो क्या मेनका पर किसी और ने गोली चलाई !! क्या कोई और भी है विवेक और मेनका के बीच !!”

“आप..!” किरन को कहने से रोकता हुआ अरुण अब मैगजीन लिए बैठते हुए कहता है – “किरन तुम सही हो कुछ तो है तो बीच में से मिसिंग है और उसे मैं गुस्से में देख नहीं पा रहा|”

किरन भी अब अरुण की बात को समझती हुई कहती है – “मुझे भी पूरा  घटनाक्रम कुछ और ही संकेत कर रहा है – आप खुद ही सोचिए कि अगर विवेक को ऐसा करना ही था तो वह मेनका के पास क्यों गया जबकि उसे पता है कि वैसे भी पहला शक उसी पर जाएगा – आप पूरे सच का पता लगाइए फिर कोई कदम उठाइए |”

“उसके लिए भी मुझे विवेक से मिलना होगा – वो कुछ तो क्षितिज का सुराग दे सकता है |”

कहता हुआ अरुण अब पिस्टल वापस रखता हुआ बाहर निकल जाता है|

***
कमिश्नर ऑफिस में देशमुख खड़ा था और वह उसपर नाराज़ होता हुआ कह रहा था –

“तुम रिमांड नहीं ले सके – कोई क्लू नही तुम्हारे पास – तो ऐसा करते है केस ये कहकर बंद कर देते है कि पुलिस ने अब चूड़ियाँ पहन ली है और कातिल के पीछे भागना उसके बस का नहीं |”

“सर मैंने अपनी तरफ से कोशिश कर रखी है |”

“क्या कोशिश की है ?”

“सर – मैंने पहले ही कहा था कि इस सस्पेक्ट से कुछ हासिल नही होगा – मुझे तो कुछ और ही लगता है – और मैं जिस दिशा में सोच रहा हूँ वो ठीक है तो मुझे स्टैला का इतिहास खंगालना पड़ेगा |”

“क्या बेकार बात कर रहे हो – मैं जितना कह रहा हूँ उतना करो – अब दूसरे सस्पेक्ट पर नज़र रखो लेकिन इस बात पुख्ता सबूत होने चाहिए तुम्हारे पास |”

“ओके सर |” देशमुख आगे कुछ न कहकर सैलूट करते बाहर निकल जाता है|

बाहर सिन्हा खड़ा था| जो उसके पीछे पीछे चलता हुआ उसके साथ बाहर निकल रहा था|

देशमुख जीप में बैठता है वैसे ही सिन्हा पूछता है – “कमिश्नर सर ने क्या कहा ?”

सिन्हा के प्रश्न को नज़रन्दाज करता हुआ देशमुख कहता है – “सिन्हा – मुझे कल तक इस स्टैला की जन्मकुंडली चाहिए – समझे |”

और अगले ही पल जीप वहां से तेजी से निकल जाती है|

क्रमशः…..

आज सच में व्यस्त थी पर पार्ट छोटा ही सही पर आपके लिए ले ही आई……

16 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 187

  1. Vivek aisa nhi kr skta wo bechara chota sa bachha pta nhi kha hoga or kis hal m hoga aakhir kon h wo jisne menka pr goli chlae or ab kshitij ko le gya

  2. हमारा शक सही निकला, मेनका पर गोली किसी और ने ही चलाई थी l और शायद बच्चे को भी उसी ने उठाया है l लेकिन ये है कौन???

  3. Oh to menka pr goli arun ne nhi chalayi thi….
    To ye koi dusra hi saksh h jo kshitij ko b le gya or sayad isi ne Stella ko b mara ho….
    Pr ye shatir dimag aakhir h kon??🤔🤔

  4. Ab koi naya kirdaar hai ya selvin ya Ranjit hi kar Raha hai sab.. ye Shak to sahi tha k menka par goli Arun ne nhi chalai.. ab goli chalane wala aur kidnaper kaun hai .. ye samjh k bahar ho raha hai

  5. Menka ko goli kisi or ne hi mari thi….kyuki Arun to esa kr hi nhi sakta h….achcha h ab kiran arun ko sambhal legi

  6. ओह अब दिशा बदल गई है रंजीत भी ये काम नही कर सकता क्योंकि वो भूमि को चोट नहीं पहुंचा सकता कोई और ही है

  7. Nice part ma’am. Diwan’s ka naya dushman kon ho sakta hai ya phir ye sab Selvin aur ranjeet ne kiya hai.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!