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बेइंतहा सफ़र इश्क का – 189

ये विवेक का अंदाजा भर था पर सच कुछ इस तरह सामने आने वाला है ये उसे कहाँ पता था| विवेक धडधडाते हुए सेल्विन के घर पहुंचा| खुले दरवाजे से अंदर प्रवेश करते उसे सेल्विन बेहद बुरी हालत में मिला| वह फर्श पर दीवार से सर पीछे की ओर टिकाए बैठा था| दिन के बावजूद कमरे में बेइंतहा अँधेरा था, इतना कि किसी को रात होने का भ्रम हो जाए|

विवेक उसके पास आकर उसकी ओर झुकते हुए उसे पुकारता है पर सेल्विन यूँही बैठा रहा जैसे उसने कुछ सुना ही न हो|

“सेल्विन !! क्या हुआ है तुम्हे ?” वह दुबारा उसे झंझोड़ता है तो वह एक ओर को लुढ़क जाता है जिससे कुछ गिरने की आवाज आती है| वह शराब की बोतल थी जो उसने अपने हाथ में दबोच रखी थी| उसकी आवाज से जैसे उसी तन्द्रा भंग हुई और वह हलके से अपना सर झटकता हुआ दुबारा बोतल उठाकर अपने मुंह में लगाने लगा लेकिन उससे पहले विवेक उसे रोकता हुआ बोल उठा –

“पहले मेरे सवाल का जवाब दो – क्षितिज के बारे में तुम्हे कुछ पता है ? उसका कल रात किडनैप हो गया उसी फार्म हाउस से जहाँ मैं गया था और ये बात सिर्फ तुम्हे पता थी – मुझे जानना है कि ये इतफाक है या इसके पीछे कोई और है ?”

“क्यों तुम्हे क्या मतलब है इससे ?” सेल्विन अपनी नशे में डूबी आंखे उठाता हुआ कहता है – “दीवान कतरा कतरा बिखर जाए यही तो तुम चाहते थे फिर अब क्या हो गया ?”

“ओह तो इसका मतलब है कि मैं सही था – तुम्हे जरुर कुछ पता है – बोलो कहाँ है वो ?”

“अपनी सही जगह पर |”

सेल्विन के कहते विवेक एकदम से उसे झंझोड़ते हुए तेजी से बोला – “पागल मत बनो – वो बच्चा है और वैसे भी तुम्हे क्या दीवान से प्रोब्लम है ?”

“प्रोबलम !!! वो सारे दीवान ही प्रोबलम है – सब के सब प्रोबलम है |” विवेक हैरानगी से उसे देख रहा था जबकि सेल्विन अपनी धुन में बोलता जा रहा था – “आकाश दीवान से तुम्हे प्रोब्लम है – रंजित साहब को अरुण दीवान से प्रोबलम है – भूमि दीवान से कल्याण को प्रोबलम है – ये सारे के सारे सिर्फ प्रोब्लम ही है इसलिए अच्छा है इनकी जड़ें खत्म हो जाए |”

“मुझे बताओ वो बच्चा कहाँ है ?”

“बड़ी फ़िक्र हो रही है – ओह्ह – दामाद बनने की तैयारी है |”

“पागल मत बनो सेल्विन – बताओ कहाँ है वो बच्चा ? उससे तुम्हारी क्या दुश्मनी है?”

“है दुश्मनी – वो एक कमीने का खून है – मैं उसके अंदर भी अपने को खोने का दर्द देखना चाहता हूँ – पता तो चले आखिर उसे भी कि अचानक जब किसी की जिंदगी से उसका अपना गुम हो जाता है तो कैसा लगता है ?” सेल्विन नशे में धुत आवाज में कहता रहा – “तुम्हे तो बल्कि खुश होना चाहिए – आखिर तुम्हारी बहन भी तो इसी परिवार के कारण खो गई – मर जाने दो उस पिल्ले को |”

“सेल्विन वो एक बच्चा है – मैं इतना नीचे नहीं गिरा कि एक बच्चे के कंधे पर धरकर गोली चलाऊ – मुझे इंसाफ चाहिए अपनी बहन के लिए – समझे – और अगर मुझे आकाश को मारना ही होता तो कबका मार चुका होता – इंसाफ जिन्दा इन्सान से किया जाता है मरे से नहीं |” विवेक सेल्विन का गिरेबान पकड़े चिल्ला पड़ा|

“अरे जा – सब दोगली बाते निकली तुम्हारी – मुझे लगा था कि तुम बदला लोगे पर तुम तो उन्ही के रंग में रंगे चले आए मेरे पास – |” अबकी सेल्विन विवेक को पीछे धकेलता है जबकि नशे की हालत में होने से विवेक तो अपनी जगह से न हिला बल्कि सेल्विन ही पीछे गिर पड़ता है|

वह फिर भी बोलता रहा – “मौका भी मिला तुम्हे – ले सकते हो वैसा ही बदला आकाश दीवान से जैसा उसने तुम्हारी बहन से साथ किया – लेकिन नहीं तुम्हारे बीच तो प्यार ही साला खत्म नही होता – उस दिन भी चलाई थी गोली पर देखो फिर भी बच गई – ये दीवान…|”

“क्या !! तो तुमने चलाई थी मेनका पर गोली ?” विवेक सेल्विन की ओर झुका उसका गिरेबान पकड़ता हुआ चीखा – “तुम्हे पता है – वो मर भी सकती थी उससे !! क्यों किया तुमने ऐसा ? क्या मिला तुम्हे ऐसा करके ?”

“बदला – पर नहीं हुआ पूरा लेकिन अबकी हो जाएगा – जब अपने पिल्ले की लाश देखेगा वो आकाश |” कहता हुआ सेल्विन बुरी तरह अट्टहास कर उठा|

“किस बात का बदला ?”

“रूबी का बदला |”

“रूबी !! क्या हुआ उसे ?”

“यही तो नहीं पता – उस कमीने ने ही जरुर कुछ किया होगा |” सेल्विन खोया खोया सा कहने लगा|

“मतलब !! कहाँ है रूबी ? क्या हुआ है उसे ?”

“कब से ढूंढ रहा हूँ उसे पर उसका कुछ पता नही चल रहा – उस दिन आखिरी बार उसने मुझे फोन किया था जब उस आकाश कमीने ने उसे धमकी दी थी तब वो नौकरी छोड़ना चाहती थी पर मैंने ही उसे रोक लिया कि वो स्टैला का पता चलने तक रुक जाए – उसके बाद से उसका कुछ पता नही है – पता नही कहाँ चली गई या उस कमीने से उसे गायब करवा दिया – वो अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकता है – काश मैंने रूबी की बात मान ली होती – छोड़ देने देता उसे नौकरी – मैं अपने मतलब के लिए उसे इस्तमाल करता रहा –  उससे प्यार का ढोंग करता रहा – काश वो एक बार वापस आ जाती तो मैं उसे बता पाता कि ढोंग करते करते उसे सच में चाहने लगा हूँ – उसके आगे अपना सच स्वीकारना चाहता हूँ – रूबी..|” उस वक़्त सेल्विन की हालत पागलो जैसी हो गई थी, वह बुरी तरह से रूबी का नाम लेकर चीत्कार उठा|

विवेक के लिए इस तड़प को समझना कोई मुश्किल नहीं था, आखिर उसने भी अपने प्यार को जानकर धोखा दिया| सेल्विन की बिखरी हालत उसका सच भी उसके सामने ला दे रही थी पर उसी पल उस बच्चे का ख्याल आते जैसे बाकी के शब्द कही और छिटक गए|

वही सेल्विन बची बोतल को हलक में उतारता लड़खड़ाते गिर पड़ा था| विवेक अब उसके पास आता उसे झंझोड़ते हुए पूछने लगा –

“बच्चा कहाँ है सेल्विन ? सेल्विन !!” विवेक उसे झंझोड़ता रहा पर वो तो अपने होशो हवाश खोता बेहोश हो चुका था|

विवेक बुरी तरह से उलझ उठा| अब उसे ये तो पता चल गया कि क्षितिज का पता सेल्विन को है पर वो है कहाँ ये बताने से पहले ही वो अपने होश खो बैठा था| इस वक़्त उसे भी नहीं पता पर सच में उसे उस बच्चे की बहुत फ़िक्र हो रही थी| पर उसे कहाँ ढूंढें ? और कही ऐसे में देर हो गई तो !!

अभी विवेक अपनी सोच में उलझा ही था कि कोई रिंग की आवाज सुनाई पड़ी जिससे विबेक इधर उधर देखने लगा| वो सेल्विन का फोन था जो बजा था| रिंग की दिशा से वह उसका मोबाईल पा जाता है|

उसमे कोई अननोन नंबर शो कर रहा था, विवेक को कुछ समझ नहीं आया बस वह कॉल रिसीव करके उसे कान से सटा लेता है| इससे पहले कि विवेक कुछ बोलता दूसरी ओर से आवाज आती है –

“सेल्विन भाई जल्दी आओ – बताओ क्या करना है इस बच्चे का – तब से रो रोकर दिमाग खराब कर रखा है – मन करता है इसके मुंह में कपड़ा ठूसकर इसे गड्ढे में दफना दूँ – |”

“तुम कहाँ हो इस वक़्त ?”

“मैं तो अभी वही हूँ सरकारी जल विभाग की पुरानी बिल्डिंग के पीछे खाली पड़े स्कूल में – क्यों कही और ले जाना है इसे ? मैं तो कहता हूँ खत्म करते है इसका किस्सा |”

“नही !! तुम रुको मैं आता हूँ |”

विवेक पता समझ चुका था जिससे वह झट से मोबाईल वही छोड़ता अब इधर उधर कुछ तलाशने लगता है| तभी मेज के कोने पर उसे बुलेट की चाभी दिखी जिसे अपनी गिरफ्त में लेता हुआ वह सेल्विन की ओर देखता हुआ कहता है –

“तुम्हारी बुलेट ले जा रहा हूँ |”

विवेक ने कहा और तुरंत ही बाहर निकल गया जबकि सुनने वाला तो अभी भी वैसे ही बेहोश पड़ा था|

अगले कुछ पल में ही विवेक उस सुनिश्चित स्थान तक पहुँच गया था जहाँ कल्याण क्षितिज को कैद किए था| वो कोई खंडहर हो चुका स्कूल था जिसमे बस एक दो कमरे ही कुछ सही हालत में थे| वहां का मुख्य फाटक से अंदर तक बस सूखी हुई बेल और गिरी हुई ईंटो का फैलाव था| विवेक बुलेट उसके पास रोककर अंदर जाने लगा|

अंदर जाते हुए उसे दूर रौशनी का एक टुकड़ा दिखा जिसे देखते देखते वह उसी दिशा की ओर बढ़ने लगा|

सबसे आखिर में एक बिना दरवाजे का कमरा था जिसके कोने में शराब पीता हुआ कल्याण अब उठता हुआ बुदबुदाता है – ‘लगता है – सेल्विन भैया – आ गया |’

वह उसकी बुलेट की आवाज पहचानता था| अभी वह अपना नशे में डूबा शरीर कुछ संभाल पाता कि उसकी नज़रो के सामने उसे विवेक दिखा| अभी शाम का वक़्त था इससे कुछ कुछ आसमान में भी रौशनी बची रह गई थी| इसी रौशनी के टुकड़े में विवेक एक वक्र दृष्टि से सब देख डालता है| कल्याण जिसे वह पहचानता नही था तो दूसरे कोने में एक बच्चा दिखा जो बुरी तरह से तड़प रहा था| थोड़ा और ध्यान से देखने में पता चला कि उसके मुंह पर कपड़ा बंधा था और शायद सांस लेने की कोशिश में वह बच्चा बुरी तरह से तड़प रहा था|

ये देखते विवेक तुरंत उसकी ओर भागता है|

“ऐ – कौन है तू ? यहाँ कैसे आया ? दूर हट उससे नहीं तो….|”

विवेक उसकी बात को अनसुना करता अब तक उस बच्चे के मुंह से कपड़ा हटा चुका था| तब से घुंटी हुई अपनी सांस को संयंत करता क्षितिज तेज तेज साँसे लेने लगा|

कल्याण अब उसे ही घूरता हुआ उसपर बुरी तरह चीत्कारता हुआ वहां पड़ी ईंटे उसपर बरसाने लगा| विवेक का तो सारा का सारा ध्यान क्षितिज पर था| इससे एक दो ईंटे आकर सीधे उसकी पीठ और पीछे सर की ओर लगी| विवेक उसकी इस लगातार की हरकत से चोटिल हो रहा था फिर भी किसी भी तरह से उसने क्षितिज को अपनी गोद में समेटे एक भी ईंट नहीं लगने दी|

कल्याण पागलो की तरह उसपर ईंट बरसा रहा था| विवेक इस सबके बीच जल्दी से क्षितिज को अपनी गोद में लिए कल्याण की ओर आता उसे खींचकर थप्पड़ मारता है| विवेक का एक ही थप्पड़ उस एक ढांचे के लिए काफी था| वह दूर जाकर गिर पड़ता है|

दो पल रूककर विवेक उसे देखता है पर जब उसे उठता हुआ नही पाता तो जल्दी से क्षितिज को लिए बाहर निकल जाता है| इन सबके बीच वो मासूम बच्चा इतना डरा हुआ हो गया था कि वह विवेक से कसकर लिपट गया था|

उसे अपनी गोद में समेटे विवेक अब बाहर की ओर निकलते निकलते मोबाईल से कोई मेसेज टाइप कर रहा था| वह मेनका को उस जगह की सुचना दे रहा था पर उसे लगा कि कॉल करके ही वह जल्दी से बता देगा|

वह आखिर मेनका को कॉल लगा देता है|

इधर अपनी बेचैन हालत में अरुण बहुत देर तक वही खड़ा विवेक के लौटने का इंतजार करने लगा जहाँ वह विवेक से मिला था| समय तेजी से बीच रहा था और वे सभी क्षितिज का पता नही लगा पाए थे|

आकाश भी कब से इधर उधर करता बेहद बेचैन बना हुआ था| आखिर जब उससे नहीं रहा गया तो वह भी तेजी से वहां से निकल गया क्षितिज को खोजने|

मेनका को उम्मीद नही थी पर जब विवेक का फोन देखा तो उसका मन बुरी तरह से तड़प उठा जिसमे नफरत और दर्द के मिले जुले भाव थे|

उसकी कॉल रिसीव करते मेनका बुरी तरह से चीख पड़ी –

“अब उस नन्हे बच्चे की जान की कीमत लेने के लिए कॉल किया है तुमने ? मुझे तुमसे ये उम्मीद नही थी – तुमने आज एक बार फिर मेरे विश्वास का खून कर दिया – अब शायद ही मैं तुम्हे कभी दुबारा मौका दे पाऊं अपनी जिंदगी में आने का…|”

“मेनका सुनो मेरी बात – क्षितिज मेरे पास है और मैं पुराने जल विभाग के पास के स्कूल पर खड़ा हूँ….|”

विवेक अपनी बात कहता कहता क्षितिज को गोद में लिए बुलेट तक आ पहुँच था और क्लच लेकर रेस पर हाथ दाबे वह ब्रेक लिए था कि तभी अचानक से उसका सर बुरी तरह से घूम गया| उसे पता भी नहीं चला कि कब कल्याण उठकर आता कोई लोहे का रॉड से उसपर पीछे से वार कर देता है|

एकदम से चोट असर करती उसका सर चकरा जाता है| उसी पल दो प्रतिक्रिया एकसाथ होती है| चोट लगते जहाँ विवेक का पैर क्लच से हटता है और हाथ से मोबाईल दूर जाकर छिटकता है दूसरी ओर विवेक उसी हाथ से घुमाकर कल्याण पर वार करता है|

वह इतना करारा वार था कि कल्याण एक दम से पीछे की ओर गिरता हुआ बेहोश हो गया लेकिन तब तक चोट अपना असर दिखा चुकी थी जिससे अब दूसरा हाथ जो ब्रेक पर था एकदम से छूट जाता है जिसे बुलेट बिना बाधा के आगे की बढ़ जाती है| अभी बुलेट पर पर नियंत्रण खोते वह आगे किसी पेड़ से टकराती हुई एक ओर को गिर पड़ती है|

इधर हैरान परेशान मेनका उन आवाजो को सुनती है जो किसी धमाके की तरह उसे सुनाई दी थी| अब उसका मन किसी अनहोनी से डर उठा| वह बार बार विवेक का नाम लेकर उसे पुकारने लगी  जबकि उस सुनसान रस्ते में एक तरफ को कल्याण पड़ा था तो बुलेट के छिटक कर गिरते विवेक और क्षितिज पड़े थे, खून से लतफत…..

क्रमशः……..

15 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 189

  1. Ohhh nhi … Plz shitij mil to gya par use kuch hona nhi chahiye.. plz.. in sab me is masoom ki koi galti nhi thi.. kalayan ki aur selvin ki dushmani ka bhugtaan nanha kyu kare… Boht hi emotional ho rhi hu main to…

  2. विवेक ने क्षितिज को तो बचा लिया, अब देखना है कि विवेक और क्षितिज को कितनी चोट लगी है और उनके पास पहुंचता कौन है…..

    1. और इस सारे फसाद की जड़ salvin है, उसी ने मेनका पर गोली चलाई थी और बच्चे को भी इसी ने उठाया है….

  3. Nhi ye bahut hi bura hua. Shayad ab sab kuchh saf ho Jaye aur Sara sach samne aa jaye.

  4. Aakhir pata chal hi gya ki ye sab salvin ne kiya tha. Ab aage kon sa mod lene wali hai kahani janna aur bhi intresting hoga.next part ka besabri se intzaar rahega.

  5. Oh my god ab kya kya hoga…
    Vivek ko arun ko b sath lena chahiya tha…..
    Ab menka ko to sayad yhi lgega k ye kidnapping vivek ne hi ki h…..

  6. मुझे पहले पार्ट में सेल्विन ही लग रहा था बस नाम याद न आ रहा था अब मेनका और अरुण वहां आ ही जायेंगे किस तरह से दुश्मनी निभाते है

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