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बेइंतहा सफ़र इश्क का – 194

भूमि ने कभी सोचा नही था कि उसे तारा के प्रति क्या व्यवहार करना होगा ? उसके लिए तो तारा अजनबी से भी ज्यादा अजनबी थी फिर भी ये अजीब विरोधाभास था कि वह उसे जानती थी|

उसके मन ने जैसे तय कर लिया कि वह जाकर जरुर देखेगी कि वह तारा है या  नहीं ? और फिर उसका सोचा सत्य ही साबित हुआ| वह तारा थी जो कमरे के कोने में अपने में ही सिमटी बैठी थी| उस पल वह कमरे के कोने में किसी सामान की तरह बैठी थी मानो सदियों से वह वही हो और अब यहाँ से कतई नही उठने वाली| भूमि दो पल तक उसे देखती रही फिर अपनी पलकों को सयंत करती उसके विपरीत मुड़ जाती है|

अब वह एक लेडी डॉक्टर के सामने बैठी थी जो उसे बता रही थी –

“डिमेंशिया लगता है |” फिर भूमि के हाव भाव की अनभिज्ञता को समझती हुई आगे कहती है – “डिमेंशिया में तंत्रिका कोशिकाओ के नष्ट होने से यादाश्त का ज्यादातर हिस्सा प्रभावित हो जाता है जिससे मरीज को सामान्य बाते भी याद नही रहती और ये संभव है किसी ट्रामा या एक्सीडेंट के कारण हुआ हो – वैसे इसकी भी संभावना है कि उसका जला चेहरा उसे उसके अतीत से बाहर ही न आने दे रहा हो |”

“तो डॉक्टर इसका क्या इलाज हो सकता है ? और ये कबतक ठीक हो सकती है ?”

“इलाज का प्रोसेस तो लम्बा जा सकता है क्योंकि उसके लिए दो से तीन सर्जरी करनी होगी और फिर उसके लिए हमारे पास इतने एक्सपर्ट भी नहीं है |”

“आप बस इलाज बताए मैं सारी व्यवस्था कर दूंगी – जितना खर्च होगा वो सब संस्था की ओर से नही बल्कि मेरे निजी खाते से होगा |”

“इसके लिए मैं डॉक्टर माथुर का नाम सजेस्ट करुँगी – वे इस समय मथुरा में है – अगर वे मान गए तो यकीनन अवेसम रिजल्ट मिलेंगे वे न्यूरोलोजिस्ट के साथ साथ योगा में भी बिलीव करते है – उनमे वे काबिलियत है कि वे एक बार जिस मरीज का इलाज शुरू करते है उसे ठीक किए बिना नहीं छोड़ते पर उनका ओपिन्त्मेंट मिलना ही मुश्किल है |”

“मैं उनकी मुंहमांगी फीस दूंगी – बस आप उन्हें राजी कर ले – इसके लिए मेरी ओर से आप विनती कर दीजिएगा |”

“जी मैं कोशिश करती हूँ तब तक मैं एंटीसाइकोटिक डोज देती हूँ |”

“आप कुछ भी करिए – और हो सके तो प्लास्टिक सर्जरी करा दे – मुझे हर हाल में उसका इलाज चाहिए चाहे जितना खर्च हो जाए |”

भूमि जिस भावोवेश में कहे जा रही थी उससे डॉक्टर थोड़ा ध्यान से उसे देखती हुई पूछ उठी –

“इफ यू डोंट माइंड – क्या मैं जान सकती हूँ कि ये आपकी कौन है ?”

इस पर भूमि अब कुर्सी छोड़कर खड़ी होती हुई उस दिशा में देख रही थी जहाँ से वह तारा को देखकर वापस आई थी|

“तारा है वो – आसमान और जमीन के बीच अटका अकेला तनहा तारा |”

इसके आगे न भूमि ने कुछ कहा और न डॉक्टर कुछ पूछ पायी|

***
रंजीत अपने ऑफिस में बैठा ही था कि पीछे से सुकेस आकर उसके सामने एक लेटर रखता हुआ कहता है –

“सर ये पर्सनल पोस्ट आई है |”

अपनी स्लीव पर हाथ फिराते हुए वह लेटर को ऊपर से देखता है जिसमे उसके नाम के ठीक ऊपर पर्सनल लिखा था|

सुकेस रंजीत के अगले आदेश के लिए खड़ा अभी भी उसकी ओर देख रहा था| रंजित उसे संकेत से उस लेटर को खोलने का संकेत करता है जिससे सुकेस तुरन्त उसे उठाकर उसके किनारी फाड़कर उसमे से एक कागज निकालता हुआ रंजीत की नज़रो के सामने रख देता है|

रंजीत बिना उस कागज को छुए उसे सरसरी दृष्टि से देखने लगा| देखते देखते जैसे उसके चेहरे के भाव ही बदल गए और झटके से उस कागज को उठाकर मरोड़ कर डस्टबिन के हवाले कर देता है| ये सब इतना जल्दी हुआ कि सुकेस हैरानगी से सब देखता रहा पर कुछ समझ नही पाया|

रंजीत भी कुछ नही कहता बस आँखों से उसे जाने को बोलता खुद को अपने एकांत में समेट ल्रेता है| सुकेस अब चुपचाप बाहर जा चुका था क्योंकि रंजीत के साथ रहते उसके साथ कई ऐसे चीजे होती जो उसकी समझ से परे होती पर वह चाहकर भी रंजीत से कभी प्रश्न नहीं कर पाता|

जो बात सुकेस नही समझ पाया वो रंजीत के गले के फांस सी अटकी थी| वो अनमोल जी द्वारा धवल भाई की पुण्यतिथि का निमंत्रण लेटर था जिसे देखते ही वह मरोड़कर फेक देता है| ये उसका वो अतीत था जो आज भी उसे बुरी तरह से किसी शूल की तरह चुभता था…| उसे याद दिलाता था कि कैसे दोस्ती की आड़ में उसके पिता को ठगा गया|

हर साल आता हुआ ये लेटर फाड़कर अपनी चुभन को हर बार वह कम करने की कोशिश करता पर हर बार असफल होता| क्योंकि इस दुश्मनी निभाने को न धवल जिन्दा थे और न दुश्मनी की तपन को तरावट समझने उसके पिता ही| फिर भी कुछ था जो उसे हर भार ताजे घाव का उसे अहसास कराता|

वह अब उस कागज को अपने ध्यान से हटाता हुआ सिगरेट जला लेता है|

वही आश्रम में अपने ऑफिस का काम निपटाकर अनमोल जी बाहर बरामदे में आए तो उन्हें कोई इंतजार करता मिला जिसे अपने साथ चलने का संकेत करते वे घास के मैदान में टहलते हुए उससे बात करने लगे|

वह भी एक अधेड़ उम्र का साफ़ सुथरे कपड़ो वाला शख्स था जो अनमोल जी कर रहा था –

“सर जी – आपने जैसा बताया वो सारे व्यवस्था कर दी – लेटर भी सारे पोस्ट हो चुके है – और कोई सेवा हो तो बता दीजिए -|”

“नहीं – सब ठीक है – वैसे भी इस तरह निमंत्रण भेजने की औपचारिका की कोई जरुरत ही नहीं – धवल भाई को कभी कोई भूल ही नहीं सकता –|”

“जी वो तो है – और आप क्या उसी दिन आएँगे ?”

अब कुछ पल ठहर कर वे सोचने की मुद्रा में उसकी ओर देखते हुए पूछने लगे –

“शर्मा ये बताओ – धनपतराय जी के यहाँ निमंत्रण भेजा ?”

“आप उनके बेटे रंजीत की बात कर रहे है न – जी बिलकुल – हमेशा ही जाता है पर उनकी तरफ कोई कहाँ आता है ?”

“हाँ – इतने साल हो गए – कभी न रंजीत दिखा और न आया – क्या कारण हो सकता है ?”

“अब ये नई उम्र है वो रिश्तो का वो मर्म कहाँ रखती है सर जी – वो तो उन दो दोस्तों में दोस्ती थी जो उन दोनों के जाते खत्म ही हो गई|”

“हाँ हो सकता है ऐसा पर मन कहता है – काश एक बार रंजीत से जरुर मिलूं |” गहरा उच्छ्वास भरते हुए वे कहते है – “खैर तुम सारी व्यवस्था कर लेना – हो सकता है मैं एक दिन पहले ही आ जाऊं |”

ठीक है कहता वह चला जाता है और उसके जाते अनमोल जी दुबारा ऑफिस की ओर बढ़ जाते है|

क्रमशः……….

19 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 194

  1. बहुत ही मार्मिक भाग, क्या तारा ठीक हो पाएगी? क्या रंजीत जाएगा वहां?? क्षितिज का सच कब आएगा सामने?

  2. Bhoomi bohot achi hai.. Tara ko thik to kar degi par fir uski zindgi ka kya… Kya hoga jab Tara ko sab yaad a jayega.. Haan is se Vivek ke ghav pe to kuch marham lagegi..

  3. Bahut hi badhiya part hai. Kya hoga jab bhumi aur ranjeet ka samna hoga .
    Kshitij ka raaz janne ki besabri hai hume .

  4. आकाश भूमि pr शक कर रहा है गड़बड़ तो कहीं और ही है

  5. Bhut hi acha part…. Bhumi ne jimmedari li h to ab tara thk ho hi jayegi… Ranjeet ek bar anmol uncle se mile to sayad uski misunderstanding thk ho jaye….
    Apne kha tha iss part me bhumi ko ranjeet se milbayengi par wo to ab nhi mile…

  6. अब भूमी और तारा की जिंदगी क्या रंग लायेगी

  7. Tara bhumi ke pass h ab vo uska achche se ilalaj karva degi……lekin Ranjit ko hamesha konsi baat h jo bechain kr deti h

  8. Ab Tara thek ho jaygi to bhumi ki zindagi m kya hoga kya bhumi Ranjit ko mil jaygi to phir ushma ka kya hoga

  9. Heart touching part mujhe Tara ke liye bahut dukh hota hai usne to sirf pyar Kiya wo saccha Aakash ko dhoke ke baad bhi use sirf apna bachhe chahiye tha wo bhi Aakash ne cheen liya abhi to Aakash ko or bhi bure din aayenge aage dekhte hai bahut marmik part ❣️💕❣️💕❣️💕❣️

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