Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 210

सभी की जिंदगी जैसे किसी भूचाल के बीच थी| दीवान साहब का चेकअप करके डॉक्टर की टीम जा चुकी थी| उस वक़्त वे स्ट्रेस से ग्रस्त थे इससे उनके लिए आराम से बड़ी कोई दवा नही थी| ये तो डॉक्टर का ओपिनियन था पर बाकि परिवार के सदस्य जानते थे कि जब तक ये तूफान नही थमेगा तब तक उन सबकी जिंदगी भी स्थिर नही होगी|

उन्हें आराम करने की स्थिति में छोड़कर मेनका और भूमि बात कर रही थी जबकि किरन क्षितिज के पास थी| वह अभी भी अपनी उजला आंटी के साथ ही सहज होता था|

“मेनका एक बात थी जो मुझे तुमसे कहनी थी |” भूमि बातो का सिरा अब उस बात पर लाती है जो बहुत देर से उसके दिमाग में हलचल मचाए थी|

“कौन सी बात ?”

“तुमने पूछा था न मेनका कि आखिर कौन सी बात है जिस कारण से मैं ये रिश्ता ढोह रही हूँ तो वो वजह है क्षितिज – मैं क्षितिज से उसका परिवार जुदा नही कर सकती और न उसके बिना ही मैं रह सकती हूँ – क्षितिज मेरी जिंदगी है |”

“भाभी |” भूमि के भीगे हुए शब्द मेनका का मन भी भिगो गए| वह भूमि का हाथ पकडती उसे सांत्वना देती हुई कहने लगी – “मैं आपकी बात अच्छे से समझ गई – इसलिए आप सब आरोप सहने के बाद भी इस सच को कहना नही चाहती थी – आज भी आपने क्षितिज के खातिर सब कहा और यकीन मानिए मैं ये सच विवेक को नहीं बताउंगी |”

“मेनका |” भूमि अब कसकर उसकी हथेली थाम लेती है|

“हाँ भाभी – आप जैसी माँ तो तक़दीर से मिलती है और जग गवाह है कि कृष्णा भी अपने जन्म का सच जानने के बाद भी अपनी यशोदा माँ के पास रहे और आज भी यशोदानंदन पहले कहलाते है|”

भूमि की पलके भारी हो आई| वह बड़ी मुश्किल से खुद को बहने से रोक पाई|

“और वैसे भी उसकी तारा दीदी कहाँ है कैसी है – किसी को नहीं पता – वे तो अभी खुद को ही सँभालने की स्थिति में नहीं है..|”

“तारा मेरे आश्रम में है |” मेनका की बातो के बीच में एकदम से भूमि कह उठी तो मेनका बदहवास सी उसे देखने लगी|

भूमि आगे कहती है – “मुझे अभी कुछ दिन पहले ही उसके बारे में पता चला – मुझे लगता है जिस दिन वह विवेक के पास से गई तो सीधे आश्रम की वैन में आ गई – और वे उसकी हालत के कारण उसे आश्रम के हॉस्पिटल में भर्ती कर दिए -|”

“ये क्या कह रही है आप भाभी ? क्या वे सच में आपके पास है ?”

“हाँ – मैं खुद उससे मिली हूँ और अब तो उसका इलाज भी शुरू हो गया है |”

भूमि की बात पर वह थोड़ा हिचकती हुई कहती है – “क्या उन्होंने आपको पहचाना ?”

“वो तो खुद को पहचानने की हालत में ही नहीं है – बहुत बुरी हालत में वो है लेकिन डॉक्टर ने बोला है कि वह जल्दी ही ठीक हो जाएगी |”

ये कहते भूमि खामोश हो गई| कुछ पल तक दोनों जैसे अपने अपने मन में इस बात को मथते रहे|

फिर ख़ामोशी तोड़ती हुई मेनका कहती है –

“भाभी आपके दिल की हालत तो मैं शब्दों में बयाँ भी नही कर सकती – पता नहीं आपके इस काम को आपकी सहहृदयता कहूँ या सबसे बड़ी भूल – अगर तारा दीदी ठीक हो गई तब क्या होगा ? मैं तो समझ ही नहीं पा रही इस बात को |”

“मुझे नहीं पता कि तब क्या होगा पर उसे इस हालत में मैं नहीं छोड़ सकती – बस क्षितिज से किसी भी हालत में दूर नही हो सकती – उसमे मेरी जान बसती है |”

उस वक़्त भूमि का चेहरा ऐसा हो आया जैसे वह रो ही देगी पर बड़ी मुश्किल से वह खुद को काबू में किए बैठी थी| मेनका उसके हालत समझती हुई आगे कहती है –

“क्षितिज के लिए आपसे बेहतर कोई माँ हो ही नही सकती और वक़्त ने जब उसकी माँ आपको बना दिया तो बाकी कुछ क्यों आप सोचती है – आपको तारा दीदी के लिए कोई हीन भावना नही होनी चाहिए – आपने तो वो किया जो कोई सोचने का हौसला भी नहीं कर सकता – बस आप ये बात यही भूल जाइए – विवेक को क्षितिज के बारे में कभी पता नही चलेगा – मैं उससे कुछ नही कहूँगी पर…|”

भूमि चौंककर उसकी ओर देखती है|

“मुझे लगता है – अगर विवेक को उसकी दीदी का पता बता दे तो शायद उसका गुस्सा कुछ कम हो जाए – वैसे आप जैसा ठीक समझे |”

“हाँ ये मुझे भी लगता है – वैसे जो कुछ भी तारा की जिंदगी में हुआ उसका प्रभाव तुम दोनों के रिश्ते में न ही और पड़े तो ज्यादा अच्छा है – मैं तो चाहूंगी कि जल्दी सब ठीक हो और डैडी जी तुम दोनों के रिश्ते पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगाए |”

इसपर मेनका अब हलके से मुस्करा देती है|

अब भूमि मेनका को बताती है कि तारा का इलाज बहुत अच्छे डॉक्टर कर रहे है और इस वक़्त वह उन्ही के पास है| मेनका उन डॉक्टर का पता लेकर विवेक को बताने के बारे में सोचती हुई उसे तुरंत ही कॉल लगाती है पर जैसा कि विवेक उसके हर कॉल पर करता इस बार भी उसने उसका कॉल रिसीव नही किया तो वह उस डॉक्टर का पता और नंबर के साथ उसे ये भो बताती हुई मेसेज कर देती है कि किस संयोग से उसकी दीदी भूमि भाभी को मिली और वे ही उसका बहुत अच्छे से इलाज करा रही है|

अब बस उसे इस मेसेज का उसके द्वारा पढ़े जाने और उसकी अगली प्रतिक्रिया का इंतजार था….

***

मुश्किल जैसे दिवान्स की जिंदगी का हिस्सा बन चुकी थी| एक मुश्किल हटती नही कि दूसरी गले आ लगती| आदित्य का इस तरह जाना अरुण को कुछ खटका था इसलिए योगेश से उसकी बात होने का बस उसे इंतजार था|

अब वह फैक्ट्री निकलने का मूड बनाता हुआ माधव को कॉल करने ज्योंही मोबाईल उठाता है वह रिंग कर उठता है|

“हाँ माधव बोलो – |”

“सर यहाँ बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई है – सारे मजदूर चाहते थे कि बात करने आप आए और जब आप कि जगह मैं पहुंचा तो…|”

माधव का पॉज़ लम्बा होते अरुण तुरंत पूछ उठा –

“तो क्या….?”

“तो वो सारे गुस्से में मेंशन की ओर चले गए है – वे काफी आक्रोश में है |”

“क्या….?”

“सर आप बोले तो मैं पुलिस को कॉल करूँ ?”

इस पर अरुण कुछ सोचते हुए कहता है – “नहीं – इससे मामला और बिगड़ जाएगा |”

“कही सर वे हिंसा पर उतर आए तो ?”

“वैसे हुआ क्या है वो मामला तो तुमने मुझे बताया नही ?”

माधव जल्दी से अपनी बात कहता है – “ओह हाँ सर – असल में मेन प्रोडक्शन नम्बर ग्यारह में मशीन से एक मजदूर घायल हो गया है – उसकी लेफ्ट हैण्ड की उंगलियाँ बुरी तरह से डैमिज हो गई – हमने उसे तुरंत अच्छा मेडिकेयर किया साथ ही उसका हर्जाना भी तुरंत ही जारी कर दिया गया फिर भी मजदूर उसी बात को लेकर हंगामा मचाए हुए है|”

“सब कुछ करने के बाद भी वे क्यों नही मान रहे – इसकी कोई खास वजह ?”

अब माधव थोडा हिचकते हुए बताता है – “क्योंकि ऐसा पहले भी कई बार हुआ है और हर बार उसी मशीन से कोई न कोई मजदूर इंजर्ड हो जाता है – बस अब उनका ये कहना है कि अब वे इसे और बर्दाश्त नही करेगे |”

“ऐसा पहले भी हुआ तो तब क्या एक्शन लिया गया ?”

“मजदूरों की पाली बदल दी गई |”

“ये किस तरह का डिसीजन हुआ ?”

“अब मेनेजमेंट यही डिसाइड करता था हर बार |”

माधव का ये कहना था कि अरुण को बात समझते देर न लगी कि ऐसा किस की शह पर हुआ होगा| आकाश का गलत करना और उसपर उसके पिता का हमेशा ही लिपा पोती करने का रवैया अब अरुण से छिपा नहीं था पर अब जब वह सीइओ था तो अब उसे सही निर्णय लेना था|

“मैं हैंडिल करता हूँ इसे |” कहता हुआ वह तुरंत ही मेंशन की ओर निकल पड़ता है|

बहुत तुफानो से घिर आई थी सबकी जिंदगी….बस देखना था कि इस तूफान से वह अपने हिस्से में क्या बचा लेते है|

***
आकाश की गिरफ़्तारी से शहर ही नहीं जय भी अवाक् रह गया| इस एक्शन को देशमुख ने इतना गुप्त रखा था कि जय तक को जब सब हो गया तब जाकर सब खबर हुई| वह व्यग्रता से देशमुख के सामने खड़ा था पर उसके कुछ कहने से पहले ही वह उठता हुआ उसके कंधे पर हाथ थपकते हुए कहने लगा –

“वेल्डन – तुमने तो मेरा काम आसान कर दिया – दीपांकर का मुंह खुला और सारा सच सामने आ गया – उसी ने आकाश दीवान और स्टैला के सम्बन्ध के बारे में बताया – उसी ने बलबन नाम के हिस्ट्रीशीटर के बारे बताया जिसे आकाश दीवान ने सुपारी दी थी – सारा केस ही तुमने सोल्व कर दिया तो अब तुम रेस्ट करो और बाकि का कम मुझपर छोड़ दो |”

देशमुख अपनी बात कहकर दुबारा अपनी कुर्सी पर बैठ गया और अपना ध्यान पूरी तरह से जय पर से हटा लिया| इससे जय के पास भी अब कुछ कहने को नहीं था| वह उसे सैलूट करते केबिन से बाहर निकल गया|

क्रमशः……

14 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 210

  1. मुझे लगता है अगर तारा क्षितिज का सच जानकर भी उसे भूमि से अलग नहीं करेगी……

  2. Kafi kuch kh gya aaj ka part…..Jha bhumi k karan sb shi ho skta h Tara shi ho skti h whi jb Tara shi hogi tb kya hoga ye dekhne Layak hoga….mujhe to lgta h sb Sach jankr Tara bhi bhumi ka sath de de….whi Aakash k karan sb kitne pareshan ho gye h…..or bechara Jai to kuch kr hi nhi paa rha

  3. Bahut badhiya part hai. Na jane kab thamega ye tufaan aur kya bachega diwan pariwar ke pass. Waiting for next part.

  4. Par Vivek ne agar sun liya hoga sach .. to fir.. uska kya reaction hoga..
    Tara ke baare me jankar kuch to tassali hogi use ya nhi..
    Arun kaise sambhale ga majdooron ko..

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