Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 213

देशमुख की बात सुनते जय उसके केबिन से बाहर निकलने लगता है| वह अभी पूरी तरह से बाहर निकला भी नही था कि कोई आवाज सुनते वह आधे में ही थमा रहा गया| देशमुख स्पीकर पर लगाकर कमिश्नर से बात कर रहा था|

“गुड जॉब देखमुख – अब आगे सारे एविडेंट सुरक्षित रखना – चाहे आकाश दीवान कुछ भी स्टेटमेंट दे एविडेंट उसके खिलाफ तो बने रहेंगे|”

“यस सर – मैंने कॉल डिटेल्स भी रखी है एविडेंस में – पर सर स्टैला ने और भी लोगो को ब्लैकमेल कर रखा था वो…..|”

“देखमुख जब सारा कुछ आकाश दीवान के खिलाफ है तो बाकि इसमें शामिल करने की क्या जरुरत है – तुम केस  की दिशा मत मोड़ो और बस आकाश दीवान पर फोकस करो|”

“ओके सर |”

“और हाँ वो नया इंस्पेक्टर….क्या नाम है उसका..?”

“जय त्रिपाठी|”

“हाँ – उसे बोलना उसने केस में जो हेल्प की उसका ये इन्क्रीमेंट में जुड़ जाएगा – वो भी एक विटनेस की तरह केस में काम आएगा और हाँ आकाश दीवान के अलावा बाकी के सस्पेक्ट के नाम हटा लो – अब बस केस कोर्ट में जाते तुरंत ही बाईंड अप भी हो जाएगा|”

ओके सर कहता देशमुख जैसे ही कॉल कट करता है सुका ध्यान वापस आत्ते जय पर जाता है| जय अब वापस आकर उसके सामने खड़ा था| उसे इस तरह खड़ा देख देशमुख कहता है –

“कमिश्नर सर का कॉल था – तुमने जो केस को सोल्व करने में मदद किया है उसका इन्क्रीमेंट तुम्हे मिल जाएगा |”

देशमुख अपनी बात कहता हुआ जय की ओर देखता है पर जब वह इसपर कोई प्रतिक्रिया नही देता तो वह आगे कहता है –

“कुछ और कहना है तुम्हे ? तुमने केस सोल्व किया है – तुम्हे खुश होना चाहिए |”

“केस सोल्व हुआ है या सोल्व कराया गया है सर ?”

“क्या मतलब ?”

“मतलब बिलकुल साफ़ है सर कि केस जिस दिशा में जा रहा उसे केस की रिक्वैरमेंट नही बल्कि कमिश्नर सर की रिक्वैरमेंट ज्यादा शो कर रही है – क्या आपको ऐसा नही लगता ?”

कहता हुआ जय वहां से निकल जाता है और देशमुख सोचने की मुद्रा में बैठा रह जाता है|

***
आकाश की गिरफ़्तारी की खबर न्यूज में देखते हुए रंजीत के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान तैर जाती है| वह इस समय अपने ऑफिस के केबिन में था और जब से आकाश की गिरफ़्तारी की खबर सुनी थी वह इस खबर पर बराबर अपनी नज़र बनाए था|

उस वक़्त वह केबिन में अकेला था और खुद से ही बाते कर रहा था|

‘कर्मा इज बैक – कुछ भी बकाया नही रहता सब यही इस दुनिया में वापस मिलता है – पहले एक बेटे के जेल के बाद उसकी वापसी तो हो गई पर इस बार लगता है तुम्हे तुम्हारे गुनाहों का बराबर से हिसाब मिलेगा और तब शायद तुम्हे वो पल याद आए जब मेरे पिता निर्दोष होते हुए भी जेल गए – कहने को वे जेल से बाहर तो आए लेकिन तब तक अपनी जिंदगी से वे कितना दूर निकल गए – उसके बाद मैंने कितना कुछ झेला – उसे देखते अभी भी बहुत कुछ झेलना तुम्हारा बाकी है दीवान -|’ कहते कहते उसके जबड़े कसने लगे और आँखों में प्रतिशोध की ज्वाला और भड़क उठी|

तभी एक सूटेड बूटेड शक्स उस केबिन में नॉक करके प्रवेश करता है|

“सर एक एक्सीलेंट न्यूज है|”

रंजीत के संकेत पर वह आगे कहने लगता है –

“मिस्टर अरुण दीवान का एक फैसला – आप सुनेगे तो हैरान रह जाएँगे |”

“कहानी नही बात सुनाओ |”

उसके अतिरिक्त जोश पर रंजीत उसे टोकता हुआ कहता है जिससे वह थोड़ा संभलते हुए कहने लगा –

“सॉरी सर|”

“बोलो |”

“सर दीवान की फैक्ट्री में एक मजदूर की कैजुलटी होने से मजदूरों ने टूल डाउन कर दिया |”

“तो इसमें क्या ख़ास बात है ?”

“सर बात उनके फैसले की है – एक्चुली उनकी फैक्ट्री की एक मशीन सेक्शन में यही कई बार कैजुलटी हुई और हर बार उस मशीन के खिलाफ मजदूर हंगामा मचाते – इस बार भी यही किया – वे चाहते थे कि मशीने बदली जाए जो सर टेक्निकल और न इकनोमिकली इतनी जल्दी पोसिबल नही है – सबको लगा था उनका सीईओ उनसे कोई समझोता करेगा पर अरुण दीवान ने सबको ये कहकर हैरान कर दिया कि वे उस यूरोपियन कंपनी पर मजदूर के बिहाफ पर केस करेगे जहाँ से वे मशीने आई है और इसमें अगर उनकी कम्पनी की भी कोई जिम्मेदारी आएगी तो वे उसे भी स्वीकार करने से गुरेज नही करेंगे – अब सर आप ही सोचिए कोई कम्पनी ऐसा कभी कर सकती है क्या – ये तो किसी कम्पनी के इतिहास की पहली घटना होगी – इस तरह से वे तो अपने पैरो पर ही कुल्हाड़ी मार रहे है |”

वह जोश में कहता रहा – “सर अब तो आपको कुछ करने की जरुरत ही नहीं – वे अपनी बर्बादी की कहानी खुद ही लिख रहे है – केस पर क्या होगा वो तो बाद की बात है सर – लेकिन इस तरह अगर टूल डाउन रहा तो वे समय से अपना कांट्रेक्ट कम्प्लीट नही कर पाएगे – और उसके बाद कांट्रेक्ट कैंसिल होते तो उनकी कम्पनी का शेयर गिर जाएगे – फिर एग्रीमेंट के अनुसार उन सारी कम्पनी पर आपका होल्ड हो जाएगा |”

रंजीत ये सब सुनता हुआ अब तक अपनी जगह से उठकर टहलने हुए सिगरेट जलाने लगा था| व एक गहरा कश बाहर उझेलता हुआ कहता है –

“मुझे लगा नही था कि अरुण दीवान इतना बेवकूफ निकलेगा – ये तो दीवान की बर्बादी की रही सही कसर मेरे कुछ किए बिना ही खुद ही पूरी कर देगा|”

“यस सर|” वह भी उतने ही जोश में हाँ में हाँ मिलाता है|

***
मथुरा नाम है भगवान् कृष्णा की नगरी का और मथुरा वृन्दावन रोड पर बने उस बड़े से हॉस्पिटल का नाम भी श्री कृष्ण स्पेशलिटी हॉस्पिटल था| विवेक पता करते करते आखिर उस सही जगह पहुँच ही गया जहाँ तारा का इलाज हो रहा था|

वह उस हॉस्पिटल को हैरानगी से देखता देखता उसके अंदर प्रवेश करता है| एक नज़र में उसे हॉस्पिटल कहा जा सकता था पर उसका ऊपरी आवरण उसे एक मंदिर के भी काफी करीब रखता था| उसके उपरी आवरण में एक हॉस्पिटल जैसी बात थी पर उसके आतंरिक आवरण में बस कृष्णा ही समाए लगते थे|

रिसेप्शन के पास बना भव्य मूर्ति वाला वाला मंदिर उसका सबसे आकर्षित हिस्सा था| वहां राधा कृष्ण की बड़ी सी मूर्ति स्थापित थी| वह इतनी सुंदर थी कि उसे देखकर लगता था कि जैसे वह अभी मुस्करा पड़ेंगे|

कुछ पल तक विवेक उन्हें देखता रहा गया|

“यस सर !!”

विवेक आवाज पर ध्यान देता हुआ देखता है कि रिसेप्शन पर बैठी एक लेडी उसी को देख रही थी| अब विवेक उसे देखता हुआ पूछता है –

“डॉक्टर पुष्पेन्द्र सचिदानंद जी से मिलना था – |”

“क्या आपका ओपिन्टमेंट है उनसे ?”

“जी कल ही ले लिया था –|”

“किस नाम से ?”

“विवेक फ्रॉम सूरत |”

“ओके|” कहती हुई वह कही कॉल लगाती है उसके बाद उससे आगे कहती है –

“रूम नम्बर सेवन राईट तो लेफ्ट फिफ्थ रूम है – आप वही चले जाए |”

उसके द्वारा दिशा निर्देश देते विवेक उसी ओर बढ़ जाता है| जैसे जैसे वह उस सुनिश्चित रूम की ओर बढ़ रहा था अब उसके कानो में हलके हलके भजन का संगीत सुनाई दे रहा था जो गैलरी में लगे स्पीकर से आ रहा था| वह इतना धीमा था कि बिना किसी अतिरिक्त ध्यान के वह मन में सीधा उतर रहा था|

सफ़ेद दीवारों पर अब उसे कृष्ण से सम्बंधित चिन्ह की तस्वीर और उसके साथ भगवत गीता का ज्ञान लिखा दिख रहा था| वहां सब कुछ कृष्णमय था जिसे देखते कोई भी उसमे खो सकता था|

सुनिश्चित रूम में प्रवेश करते वह पहली नज़र में सामने के दृश्य पर दौड़ा देता है जहाँ प्लेटफोर्म पर पूजा का सामान रखा था और चौकी पर तीन फुट के लड्डू गोपाल रखे थे| कोई वहां लड्डू गोपाल को सजा रही थी| उसपर पल को उसका ध्यान गया ही था कि कोई आवाज उसे टोकती है –

“सर आप यही वेट करिए डॉक्टर साहब आ रहे होंगे|”

अचानक आवाज से उसका ध्यान अपने बगल में जाता है जहाँ एक नर्स उससे ये कहकर वहां से निकल जाती है| विवेक को ये बड़ा अजीब लगा कि ये बाहर से क्या लगता है पर अंदर तो हॉस्पिटल कम मंदिर ज्यादा लगता है|

पर अब तो उसे डॉक्टर का इंतजार था| वह वही खड़ा रहा क्योकि वह एक हॉल था जहाँ बैठने के लिए कोई कुर्सी नही थी| जरुर वहां पूजा के लिए बाद में कालीन बिछाए जाते होंगे| अगर पूजा ही होती ई यहाँ तो इलाज कहाँ होता होगा ? कैसा हॉस्पिटल है ये ?

“मिस्टर विवेक ?”

विवेक आवाज पर चौंककर देखता है वाइट एप्रेन में एक डॉक्टर खड़ा था| विवेक थोड़ा हैरानगी से उसे देखने लगा क्योंकि वह जिस डॉक्टर से मिलने आया था उसका नाम सुनकर ही लगता था कि वे कोई पपचास साठ की उम्र के होंगे जबकि ये तो पैतींस के पार भी नही थे|

“डॉक्टर पुष्पेन्द्र !!” वह प्रश्नात्मक भाव से उन्हें देखता हुआ पूछता है|

“यस एम् आई |”

“ओह – मुझे लगा आपके पिता होंगे वो|” विवेक कहने से खुद को रोक न पाया|

इसपर डॉक्टर बस मुस्करा कर रह गया|

“आप ही मेरी दीदी तारा का इलाज कर रहे है ? मैं उन्ही से मिलने आया था – क्या मैं उन्हें एक नज़र देख सकता हूँ ?”

“एक नज़र क्यों – जी भर कर देखो – वो तो है |” कहते हुए वह विवेक का ध्यान उस ओर कर देता है जहाँ लड्डू गोपाल को कोई सजा रही थी| विवेक ने पहले ही एक सरसरी नज़र से उधर देखा था पर वो उसकी बहन हो सकती है ये उसकी कल्पना में भी नहीं था|

मतलब इतने कम समय में उसी बहन इतना भी कर पा रही है ये उसकी कल्पना में भी नहीं था| उसपल उसके हाव भाव में ख़ुशी से कही ज्यादा आश्चर्य के भाव थे|

विवेक उसकी ओर बढ़ने लगा यो डॉक्टर उसे टोकते हुए कहने लगे –

“मैंने कहा देख सकते हो पर मिल नहीं सकते|”

इतना सुनते उसके पैर वही जम गए|

“अभी इस हालात में भी वह बड़ी मुश्किल से आई है और तुम्हे थोड़ा और इंतजार करना होगा – जब वह अपनों का सामना कर सके – व्यक्ति के लिए दूसरो से सामना करने से पहले जरुरी होता है पहले खुद का सामना करना और मैं उसी की कोशिश कर रहा हूँ|”

डॉक्टर की बात सुनते विवेक अब अपनी जगह खड़ा रह जाता है| ये तो उसका दिल ही जानता था कि अपनी बहन की वापसी के लिए कुछ दिन क्या वह तो हर दिन इंतजार करता है|

भाग 210 में जय देशमुख के केबिन से निकल रहा था वही से स्टार्ट पॉइंट है..असल में मेरी कहानी में एक दिन में एक एक पल पर इतना गहरे से लिख देती हूँ कि एक दिन की घटना पर कभी कभी अकेले दस एपिसोड तैयार हो जाते है….इसलिए आपको कोई किरदार मिसिंग लगने लगता है….

क्रमशः…… ..मैं सुबह सबसे पहले आप सबकी प्रतिक्रिया ही पढ़ती हूँ…ये सच है कि मैं कहानी के लिए बहुत सारी तैयारी करती हूँ पर जब उसमें आपका प्रोत्साहन मिल जाता है तो जोश बस सुपरमैन हो जाता है…आप सबके कमेन्ट का एक ही उत्तर बहुत बड़ा थैंक्स कि कहानी से जुड़कर आप अपनी प्रतिक्रिया देते है…

16 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 213

  1. Ab jai ho kuch karega.. akash ko mujrim bnaya gya hai.. jai asli mujrim dhoondhega..
    Tara thik ho rhi hai..boht acha lga ye dekh kar.. ab Vivek ka gussa shant ho jayega..

  2. Itni jaldi Tara thik hi jayegi ye socha nhi tha or Vivek ko or ky chahiye tha ki uski bahan thik ho Jaye pr ab dekhte hi Jai ky karta hi or Vivek akash ko kaise jel se bahar lekar ata hi . Nice part

  3. Wao very lovely parts bhai bhn ka pyar hi esa hota h very very nice parts ye akhir mujrim kon h akas ni ranjeet ni Vivek nhi to ky vo news wala ho sakta h ya inke alawa bhi hm kuch mis kar rhe h

  4. Police कमिश्नर bs is case ko band karna chahte h ya or kuch h kisi ko bachana chahte h…..ab jai hi koi saboot layega ya vivek kuch kr payega….achcha h ab tara thik ho rhi h

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