Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 214

पुलिस कस्टीडी में बंद आकाश ने पिछली पूरी रात काट दी थी| वह एक छोटा सा कमरा जिसमे एक अदद मेज कुर्सी के अलावा बंद खिड़की से मिली हुई एक बैंच पड़ी थी जिसपर टेक लिए आकाश बैठा था| वह काफी देर से पहलू बदल रहा था पर हर स्थिति में वह खुद को असहज ही महसूस करता| अपने सुविधाजनक स्थान से निकलकर यहाँ दो पल भी उसके लिए रहना असहनीय था जबकि वहां पिछली एक रात वह काट चुका था|

इस पल वह खुद को कितना तनहा और टूटा हुआ महसूस कर रहा था| हर एक वो मंजर उसकी आँखों के सामने से गुजर गया जब वह खुद को गलत करने से रोक सकता था पर उसके अहम् और झूठे दंभ ने उसे कभी रुकने नही दिया और वह खुद को गर्त में डुबोता चला गया|

और आज एक सूनी सी दुनिया उसके आस पास थी जहाँ वह उन सबके होने की कमी महसूस कर रहा था जिनकी उसने कभी कद्र ही नही की| जो हमेशा उसके आस पास रहे पर वह ही था कि उनसे दूर भागता रहा और आज वह उन सबको देखने तक को तरस गया था| उसका अपना परिवार….!!

“मिस्टर आकाश – आपसे आपकी फैमिली से मिलने को कोई आया है|” सिन्हा आकर कहता है और आकाश झट से उस दिशा में देखने लगता है जहाँ वह खड़ा था|

सिन्हा के हटते अब वहां उसे अरुण दिखा और उस पल उसके मन को कितना अच्छा लगा ये बस उसका मन ही जानता था| उसके इतना सब करने के बाद भी उसका परिवार उसके साथ खड़ा था|

सिन्हा उन दोनों को अकेला छोड़कर वहां से चला गया|

उसे अरुण का वहां आना अच्छा तो लगा पर साथ ही दूसरे विचार ने उसे घेर लिया कि हो सकता है अरुण खुद ही यहाँ आया हो| डैड को उसका यहाँ आना पता ही न हो| और भूमि उसे तो शायद कोई मतलब भी न रहा होगा इन सब बातो से| वैसे सब ठीक ही है अपनी जगह| उसने उन सबके साथ जो किया उसके बाद तो उनका ऐसा करना जायज ही है|

वह पल में अपने हाव भाव में ढेरो कठोरता समेटता हुआ कहने लगा –

“क्यों आए हो यहाँ ?”

“भईया..|”

अरुण की बात बीच में अनसुनी करता आकाश अपने मनोभावों को दबाते हुए कहने लगा – “मैंने अपना बयाँ दे दिया है – अब जो सजा मेरे लिए तय होगी वो मुझे मिल जाएगी|”

“ये क्या कह रहे है आप ? कौन सा बयान ?” अरुण तेजी से उसके सामने आता उसकी ओर झुकता हुआ खड़ा हो जाता है|

“आखिर मैंने ही उस क्रिमिनल को काम के पैसे दिए और उसने कर दिया – सब सच ही तो है – आखिर कब तक मैं सच से भागता रहूँगा – कभी तो स्वीकार करना था इसे तो लो स्वीकार कर लिया सब|”

“आपने बयान क्यों दे दिया – आपने कोई मर्डर थोड़े किया है – फिर उस गुंडे ने ऐसा सिर्फ आपके कहने पर किया हो ये सही से प्रूफ कहाँ हुआ – आखिर उस स्टैला के पीछे तो कई लोग लगे थे तो सिर्फ आपको ही क्यों टारगेट किया जा रहा है ?”

अरुण उस वक्त हकबकाया हुआ अपनी बात कह रहा था जबकि आकाश के हाव भाव बेहद शांत बने हुए थे| अपनी नजरो के सामने अपने भाई को अपने लिए इतना परेशान होते देख बहुत कुछ उसके अंतर्मन से गुजर गया|

“कम से कम आपको खुद को डिफेन्स करने का मौका तो देना चाहिए न |”

“आज तक खुद को डिफेन्स ही तो करता आ रहा हूँ – अब और नहीं |” उस पल आकाश सच में वो नही था जो हमेशा बना रहता था| वह आज सच में कुछ और ही हो गया था|

वो सबसे मुश्किल वक्त होता है जब अपनों को टूटते हुए अपनों को देखना पड़ता है और यही कुछ अरुण के सामने हो रहा था जिसकी बेबसी उसके मन को भी भारी किए दे रही थी|

अरुण आगे कुछ कहने वाला था पर उसे रोकने आकाश उसके कंधे पर हाथ रखते हुए आगे कहने लगा –

“ये सब तो होना ही था इसलिए इस सबके बारे में कुछ मत सोचो |” आकाश गहरा श्वांस भीतर से सींचता हुआ कहता रहा – “अब तुम्हारे हवाले है सब मेरे भाई और मुझे अच्छे से पता है कि तुम बिजनेस से लेकर परिवार सबको बहुत अच्छे से संभाल लोगे – मैं तो ये भी नहीं कह सकता कि मुझसे भी अच्छे से क्योंकि मैंने तो कभी कुछ संभाला ही नहीं – डैड के बने बनाए साम्राज्य को संभालता हुआ सोचता रहा कि मैंने बहुत कुछ कर लिया पर नही असल काम बने बनाए को संभालना नही बल्कि बिखरे हुए को संभालना होता है जो इस वक़्त तुम बहुत बेहतर तरीके से कर रहे हो |”

आकाश उसका कन्धा हलके से थपथपाता हुआ कहता रहा – “और परिवार उसकी तो मैंने कभी कोई कद्र की ही नहीं – उसे तो हमेशा भूमि ने संभाला और आगे भी वो बहुत अच्छे से संभाल लेगी – पता नही फिर कभी मैं सबको देख भी पाउँगा कि नहीं – बस एक मलाल रह जाएगा कि समय से मैं किसी से माफ़ी भी नही मांग सका – आखिर मैंने सबको हर्ट किया|”

“भईया..!!” अरुण का स्वर नम हो आया था|

“अब तुम ज्यादा कुछ मत सोचो – जाओ और संभालो परिवार को और मुझे मेरे हाल में छोड़ दो क्योंकि मैं इसी लायक हूँ – ये सब जो मेरे साथ हो रहा है – ये तो होना ही था|”

“यही तो नहीं कर सकता मैं – आपको अकेला कैसे छोड़ सकता हूँ – गुनाहों की माफ़ी तो ईश्वर भी स्वीकार करते है फिर आपको तो कोर्ट में अपने पक्ष को रखने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए |”

“पर मेरे गुनाह माफ़ी लायक नही – मैंने सच में सबके साथ बुरा किया बल्कि उन सबके साथ ज्यादा बुरा किया जिन्होंने मुझपर भरोसा किया – जिन्हें मुझे संभालना था और मैंने उन्हें ही बुरी तरह से बिखेर दिया – तो बस इस सबका अंत यही है – और तुम क्यों मेरे लिए दुखी होते हो – मैं तो अपने कर्मो को ही भुगत रहा हूँ |”

तभी कोई मेसेज टोन बजी और अरुण का ध्यान अपने पॉकेट में रखे मोबाईल की ओर गया| वह बातो का तार वही छोड़कर तुरंत मोबाईल देखने लगा जैसे वह बस इसी के इंतजार में था| स्क्रीन को देखते प्रतिउत्तर में मेसेज टाइप करके वह मोबाईल वापस अपनी पॉकेट के सुपुर्द कर देता है|

“वकील आ रहा है – आपको एथोरटी पेपर पर साइन करने है |”

“मैंने कहा न कि मुझे कोई वकील नहीं चाहिए |”

“मेरे ख्याल से आपको उससे एक बार मिलना चाहिए – |” अरुण के इस तरह कहते आकाश थोड़ा अवाक् बना उसे देखता रहा|

अरुण आगे कह रहा था – “वक़्त सबको संभलने और बदलने का मौका देता है – बहुत सारी चीजे बदल रही है तो एक बार आपको भी खुद के लिए यही सोचना चाहिए – |”

आकाश अरुण का मतलब जबतक समझता एक आहट पर उसका ध्यान दरवाजे की ओर जाता है जहाँ वह जिसे देखता है उसका वहां होना उसकी कल्पना में भी नही था| वह विवेक था और सफ़ेद शर्ट और काली पेंट में खड़ा था| उसके हाथ में कुछ फाइलें और चेहरे पर बेहद सपाट भाव थे जैसे वह विवेक न होकर कोई अनजान शक्स था जो पहली बार उसके सामने आया हो|

आकाश हैरान उसे देखता रहा जो हमेशा नफरत का भाव लिए उसके सामने आता था और आज….

“ये है आपका वकील – विवेक |” अरुण ने कहा और आकाश की आंखे हैरानगी से और चौड़ी हो गई|

“इन पेपर्स पर साइन कर दो क्योंकि अभी कुछ देर में पहली पेशी है|” विवेक भी उतने ही विरक्त भाव से कहता हुआ ठीक उसके सामने खड़ा था|

आकाश से तो जैसे कुछ कहते नही बना| आकाश को चुप देख अरुण कहता है –

“विवेक खुद आपका केस लड़ना चाहता है – तो सोचिए जो आपको खुद एक मौका दे रहा है तो आप क्यों नही खुद तो एक मौका दे देते – कम से कम कोर्ट की प्रक्रिया तो होने दीजिए |”

आखिर आकाश धीरे से कह उठा –

“क्यों कर रहे हो ऐसा ? जबकि तुम्हे तो सबसे ज्यादा खुश होने चाहिए था मुझे इस तरह के हालात में देखकर |”

आकाश अजीब नज़र से उसे देखे जा रहा था जबकि विवेक शांत बना कहने लगा –

“वक़्त में बहुत ताकत होती है – वो कभी कभी इन्सान से वो सब करा लेता है जो कभी उसके लिए अकल्पनीय होता है – मुझे अपने सामने देखकर जितना हैरान हो मैं भी उसी हालात से गुजर रहा हूँ कि मैं ये क्यों कर रहा हूँ ?”

“तो क्यों कर रहे हो ऐसा ?” आकाश पूछता है|

“वक़्त करा रहा है मुझसे ऐसा – मैंने वो सारे सबूत देखे जिनके बल पर स्टैला तुम्हे ब्लैकमेल करती थी – उन सबके पीछे के सच ने मुझे काफी हद तक बदल दिया – या सही से कहा जाए कि मेरी सोच को काफी हद तक बदल दिया – ये सारा ट्रैप है जिसमे तुम्हे जानकर फसाया गया है – बस इस सच को सामने लाना है |”

“तो इससे तुम्हे क्या मिलेगा ?” आकाश अभी भी संशय से उसे देखता रहा|

“अपनी बहन के लिए इंसाफ |”

विवेक के ऐसा कहते दोनों उसे हैरान नज़रो से देखने लगे|

विवेक अब आगे कहता है –

“स्टैला ने मेरी बहन को इस हालात तक पहुँचाया और इस बात की सजा जब उसे मिल गई है तो बेवजह तुम क्यों फसो – तो बस यही सोचकर मदद करने आया था|”

विवेक ने कहा और कुछ पल तक वहां सन्नाटा छाया रहा जैसे कुछ कहने की स्थिति में कोई था ही नहीं|

“आप सभी के मिलने का समय समाप्त हो गया – इन्हें अभी कोर्ट ले जाना है|” सिन्हा बीच में आकर उन्हें टोकता है|

इसका साफ़ मतलब था कि अब उन्हें वहां से जाना होगा| इससे अरुण जल्दी से एक पेपर आकाश की नज़रो के सामने कहता हुआ कहता है –

“इसपर आप साइन कर दीजिए – प्लीज़ |”

अपने अंतिम शब्द के अनिरोध से वह आकाश को आखिर उस पेपर पर साइन करने को मना लेता है| साइन किया पेपर वह विवेक की ओर बढ़ा देता है| पेपर रखते हुए विवेक आकाश की ओर देखता हुआ कहने लगा –

“मुझे बस ये बता दो कि उस बलबन से कब और क्या बात हुई थी ?”

विवेक थोड़ा जल्दी में अपना सवाल पूछता है और आकाश भी जैसे इस घटते हुए समय को समझते हुए जल्दी से उसकी बात का जवाब देता है –

“तक़रीबन दो महीने पहले मुझे दीपांकर ने उससे मिलवाया था और उसके कहने पर ही मैंने उसे पचास हज़ार दिए थे ताकि वह स्टैला से पेन ड्राइव ले आए जिसमे वह नाकाम रहा – फिर उसके बाद से मेरा उससे कोई संपर्क नही हुआ – बस |”

विवेक आकाश की बात पर हामी भरता हुआ अब बाहर निकलने का उपक्रम करने लगा| अरुण अब आकाश के कंधे को छूकर आँखों से भरोसा देता वह भी अब बाहर निकल जाता है|

आखिर क्या होगा आकाश के आगे का जीवन ? विवेक साच में उसके लिए कुछ कर पाएगा ? क्या अरुण बचा पाएगा अपने भाई को ? क्या कभी आकाश की अपने परिवार में वापसी होगी….?

क्रमशः………

17 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 214

  1. Mtlb ye hua ki Akash n barban se stela ki Marne nhi kaha tha sirf pendrive lane kaha tha to katil Akash nhi hi hope so Vivek akash ko bacha le dekhte hi aage . Nice part

  2. कातिल को सुपारी किसी और ने दी है, अब विवेक इस बात को कब तक और कैसे साबित कर पाएगा……
    आकाश के प्रति अरुण का रवैय्या भी बहुत बदला हुआ है….

  3. Vivek kaise akash ko bachayega.. jab ki vo khud byaan de Chuka hai..
    Aur Vivek ka Mann kaise badal gya..
    Arun akash ko kabhi akele nhi chodega .. chahe usne kitna bhi bura kyu na kiya ho

  4. Itna suspense mere to dimag ka fuse udh gaya hai. Aapki kahani ne itna bandh liya hai ki hamesha dimag me aapki kahani chalti rahti hai kya hua aage .

  5. Stell ko kisi or ne hi mara h…..or ab vhi Aakash ko fasa raha h….vivek kya sach me Aakash ko bacha payega or Aaditya ne ye case nhi liya

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