Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 219

विवेक को बाहर निकलते जय उसे जाता हुआ ही देख पाया था| उसके जाते जय थाने में अंदर आया| उसके कुछ पल बाद एक और वकील एक अन्य आदमी के साथ वहां आता है| देशमुख उस समय वहां था नही जिससे जय को देखते वे ठीक उसके सामने आकर खड़े होकर कहने लगे –

“सर – उस आदमी की बेल करानी है ?”

जय नज़र उठाकर उन दोनों को ऊपर से नीचे तौलता हुआ पूछता है –

“हाँ तो आदमी की ही कराने आए होंगे हाथी की तो कराने आए नही होगे|”

जय की टेढ़ी बात पर वे दोनों एकदम से चिहुँकते हुए उसे देखने लगे|

उनका बना हुआ मुंह देखते पांडेय जो वही बैठा था उनके बीच जल्दी से बोल उठा –

“अरे साहब जी के कहने का मतलब है कि किस आदमी की – अब यहाँ आदमी ही जेल में रहते है जानवर तो है नही कि तुम चूहा बोलो तो चूहा तुम्हारे सामने हाजिर कर दूँ – हाथी बोलो तो हाथी हाजिर हो जाए – आदमी का नाम तो बता दो |”

पांडेय भी उनके  मजे लेता हुआ अब उनका उतरा हुआ चेहरा देखने लगा|

“वकील के साथ आया आदमी कहने लगा –

“उसका नाम सेल्विन है – मेरा किराएदार है – कुछ समय से थोड़ा बीमार चल रहा है – आज सुबह आप पकड़े थे न कोर्ट के बाहर से उसी की बात कर रहे है – अब बीमारी के चलते उससे गलती हो गई|”

“अच्छा उसकी बात कर रहे हो – और ये कौन सी बीमारी हुई है उसे जो लोगो को छूरी मारता घूम रहा है|” जय जल्दी से कहता है|

इस पर पांडेय भी दांत दिखाता बीच में बोल उठा – “वो भी फल वाली |”

“बोला न साहब – कुछ दिमाग चल गया है इसका |”

“अच्छा ये बताओ – मकानमालिक को किराएदार से किराया वसूलते देखा था आज बेल कराते पहली बार देख रहा हूँ – इसकी ख़ास वजह ?” जय भौं जोड़े उसे घूरता है|

“वो अच्छा आदमी है न बस इसलिए |”

“बस इसी कारण से ?”

“हाँ सच में साहब जी – ये अच्छा आदमी है – सबकी मदद करता है – अनाथालय में भी..|” वह आदमी जरा जोश में बोलता जा रहा था तो इसे उसके पीछे खड़ा वकील उसे अपने जूते से ठोकर मारता है जो दुर्भाग्य से जय साफ साफ़ देख लेता है|

इससे वह और उसपर आंखे गड़ाते हुए टोकता है –

“अनाथालय में मदद !! तो ऐसा क्या काम करता है जो वहां मदद कर पाता है ये ?”

अब वह आदमी थोड़ा संभल संभल कर बोलने लगा – “काम का हमे क्या पता साहब – बस अच्छा आदमी है |”

“अबे अच्छा आदमी अच्छा आदमी इसकी शक्ल में लिखा है क्या ? सही से बोलो क्यों जमानत करा रहे हो ?” अबकी जय अकड़ता हुआ बोलता है|

“साहब इसका कोई नहीं है न – तो बस मदद कर रहा था |”

“क्यों तुम अनाथो के गॉड फादर हो क्या ?”

वह आदमी सकपकाया सा खड़ा रह जाता है| इस तरह वह सवालो के घेरे में फस जाएगा उसने सोचा नही था| असल में अपना नाम बीच में न आए इसलिए रंजीत ने उस आदमी को भेजा था| पर उसे क्या पता था कि उसे इस तरह सवालो के बीच घेर लिया जाएगा|

जय फिर अकड़ते हुए पूछता है – “ये पागल क्यों बना हुआ है?”

“साहब बीमार आदमी है न |” अबकी तब से चुप वकील बोल उठा|

“तो जाओ ये डॉक्टर से लिखवा कर लाओ फिर आना – समझे |”

अब दोनों एकदूसरे का मुंह देखने लगे| रंजीत ने बेल कराने को बोला है तो इस काम को किसी हाल में कराना ही है|

इस पर वह आदमी जल्दी से कहने लगा – “साहब लड़की के पीछे पागल हो गया |”

ये सुनते वकील फिर से जूते से ठोकता है| अबकी जय इस बात को साफ़ साफ़ देखता हुआ उस वकील के सामने से घूरता हुआ कहता है – “ऐसा करो जूते से इसके पैर में एक बड़ा सा कीला ठोक दो – बार बार मारने से क्या ही होगा |”

“जी  जी साहब – क्या कह रहे है ?”

“वही जो साफ़ सफा तुम्हारे कान सुन रहे है – |”

अबकी दोनों मौन खड़े रहे और जय बारी बारी से उन्हें घूरता रहा| फिर कुछ संभलते हुए वकील पूछता है –

“जो बेल..|”

“नहीं होगी |”

“क्यों सर ?”

“क्योंकि एस पी सर आएँगे वही इसे देखेंगे |”

इस पर दोनों बड़ा सा थोबड़ा लटकाए उसे यूँ देखने लगे जैसे आँखों आँखों में कह रहे हो कि फिर इतनी देर से क्यों बकवास कर रहे थे हम..?

जय अब आँखों से उन्हें धकेलकर आराम से कुर्सी पर पीठ जोड़े बैठ जाता है| अब उन्हें भी समझ आ गया कि वे दोनों बस अपना समय बर्बादी कर रहे थे| कुछ पल ठहरकर चुपचाप चले गए| लेकिन कुछ ऐसा था जिसपर उनका ध्यान नहीं गया| जब वे आपस में भुनभुनाते हुए बाहर निकल रहे थे तब पांडेय चुपचाप से उनके पीछे हो लिया था|

वकील उस दूसरे आदमी को लगभग डपटते हुए कह रहा था – “तुम पागल हो क्या – वहां क्या बकवास बोलते जा रहे थे? अभी कुछ का कुछ मामला फस जाता जबकि हमे बस इतना बोला गया था कि उसे चुपचाप से बेल करा कर ले आना है |”

“वो पुलिसवाला नही देखा ? कैसे फसा फसाकर सवाल पूछ रहा था?”

“तो तुमसे किसने कहा कि सवाल उत्तर देते रहो – उसपर से लड़की वाला मामला भी बोल दिया – नाम भी बोल देता कि रूबी के पीछे उसने आकाश दीवान पर हमला किया – बस तुझे भी धर लेते और फिर मैं नही आता जमानत कराने |”

दोनों इस तरह आपस में कुटकुटाते हुए वहां से चले गए पर उन्हें नहीं पता था कि वे क्या भेद दे गए थे| पांडेय आकर सब जय को बता देता है जिसे सुनते वह एक दम से चौंकते हुए बोल उठा –

“वो मारा पापड़ वाले को – मुझे लगा ही था कि कुछ तो झोल है – इसने यूँही इतनी बड़ी घटना को अंजाम नहीं दिया – जरुर इस बात का उस क़त्ल से भी कोई न कोई ताल्लुक होगा ही – |”

“तो अब क्या करना है सर ?’

“इस रूबी का पता लगाना है ? हो सकता है उसे खोजते खोजते हम सही कातिल तक पहुँच जाए |”

पांडेय हैरानगी से देखता रहा और जय बाहर निकलने की तैयारी करने लगा|

***
आकाश सरकारी हॉस्पिटल में था और उसे एक कोने के रूम में रोका गया था| अभी अभी डॉक्टर उसे बैंडेज करके गया था| अब वहां एक सिपाही खड़ा था| आकाश उसे एक फेकी नज़र देखकर उस कमरे में अपनी नज़रे दौड़ा देता है|

वह कमरा उसकी नज़र में इतना छोटा था जो सही से स्टोर रूम भी कहलाने योग्य नही था| उसपर कहने को सफ़ेद चादर जो काफी हद तक पीली नजर आ रही थी| सिकुड़ी सी तकिया की खोली में एक मरी हुई तकिया खुसी थी जिसे बुरी तरह से मुंह बनाते हुए आकाश देख रहा था पर करता क्या उसे उसी बिस्तर पर लेटना था|

आकाश मुंह बिचकाए उस बिस्तर पर बैठा था तभी कमरे में एक अन्य सिपाही आकर एक थाली उसकी नज़रो के सामने करता हुआ कहता है –

“खाना है आपके लिए |”

आकाश अपनी नजरो के सामने की थाली को देखता है जिसमे कड़क मजबूत रोटी के साथ पानीदार दाल और सब्जी रखी थी| उसे मुंह बिचकाए वह दो पल तक देखता रहा| उसे इस तरह देखते देख वह सिपाही कहता है –

“कम है क्या – रोटी और लाकर दूँ |”

ये सुनते आकाश तेज आवाज में कहता है –

“ये खाना है ?”

“हाँ |” वह भी उतनी मासूमियत से हाँ बोलता है|

“मतलब मुझे भूख नही – ले जाओ इसे |”

आकाश कहना तो बहुत कुछ चाहता था पर मज़बूरी में मुंह बनाते दूसरी ओर देखने लगा|

सिपाही कुछ समझ नही पाया कि अब क्या करे इससे वह वो खाना वही रखा रहने देता है| तभी वहां एक लड़का आता है जिसके एक हाथ में चाय की केतली तो दूसरे हाथ की उंगलियों के बीच कई कांच के कप फसे थे|

उसे देखते सिपाही अपने अपने लिए चाय लेने लगते है और एक चाय आकाश के लिए भी लेकर उसकी ओर बढाने लगते है| जो बात उनके लिए सामान्य थी उस बात पर आकाश एकदम से बिदक उठा|

“ये कप !! तुमने अपनी उंगली इसके अंदर डाली थी फिर इसी में चाय डाल दी |”

ये सुनते वह लड़का आकाश को अजीब निगाह से देखने लगा जैसे कहना चाह रहा हो कि इसमें क्या अजीब बात है ?

“मुझे नही चाहिए ये |” वह उंगलियों के संकेत से उसे अपने से दूर करने लगता है|

ये देख लड़का बड़ी साफगोई से बोलने लगता है –

“गिलास धुला है साहब जी |” वह आकाश की महंगी सी दिखने वाली शर्ट से उसका साहब होना तय कर लेता है|

“कैसे धुला ? अभी तो उंगली डाली थी इसमें तुमने !!”

“सच्ची साहब जी – धुला है गिलास – अभी बर्तन धोने वाला जो लड़का है उसने एक बड़े से ड्रम में डाल डाल कर इसे धोया है|”

“कैसा ड्रम – पता नहीं कैसा पानी होगा उसमे ?”

“साफ़ पानी रहता है उसमे साहब जी – सुबह मैं उसी ड्रम में घुसकर नहाया और वो लड़का तो उसी ड्रम के अंदर खड़े होकर गिलास साफ़ करता है – वही साबुन के पानी के गिलास एकदम साफ़ साफ़ धुला है|”

लड़का मासूमियत से ये कहता है और आकाश की जबान जैसे कटकर जमीन में गिर पड़ती है| बाकि के सिपाही भी कप मुंह से हटाए उसे घूरने लगते है|

पर इन सारी प्रतिक्रिया से बेखबर वह लड़का सहजता से बोलता हुआ वहां से जाने लगता है –

“पता नहीं उस पानी को क्यों गन्दा बोला – चार दिन से हम सब उसी पानी में तो नहा रहे है – अच्छा खासा साबुन का पानी उसमे इकट्ठा हो गया है|”

लड़के ने कहा और वहां से चला गया| आकाश की क्या हालात हुई ये तो उसे ही पता था पर अब चाय तो उन सिपाहियों से भी न पी गई| वे बेड के पास रखे डस्टबीन में उसे डाल देते है|

ये देखते आकाश उन्हें टोकता हुआ कहता है – “ये डस्टबीन कोई बिस्तर के नीचे रखता है क्या ? कैसा हॉस्पिटल है ये ?”

“सरकारी हॉस्पिटल है आकाश साहब |” इस आवाज के सुनते अब सबका ध्यान उस खुले दरवाजे की ओर जाता है जहाँ से देशमुख प्रवेश कर रहा था|

वह अब ठीक आकाश के सामने खड़ा होता हुआ कहता है – “ये सरकारी हॉस्पिटल है दीवान साहब और आपके कहने से ये प्राइवेट में  नही बदल जाएगा – चलिए दो दिन यहाँ की खातिर उठा लीजिए फिर रिमाड रूम में आपका स्वागत करता हूँ न |”

ये सुनते आकाश अब उससे नज़रे हटाकर इधर उधर कर लेता है| कुछ पल बाद वह अपने सिपाहियों को जरुरी निर्दश देकर वहां से चला जाता है| अब वे सिपाही कमरे के बाहर खड़े होने चले जाते है| खाना अभी भी आकाश की नजरो के सामने था| इस वक़्त भूख से उसके पेट में चूहे दौड़ रहे थे इससे झक मारे वह उस खाने को किसी तरह से निगलने लगा|

इस वक़त शायद इस बात का उसे अंदाजा भी नही हुआ पर वह वही कर रहा था जो विवेक चाहता था| आखिर किसी वक्त उसकी बहन जिसके पास सब कुछ था फिर भी वह आकाश की वजह से एक कमरे में कैद बदतर हालत के साथ रह रही थी|

क्रमशः………

12 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 219

  1. ये तो शुरुवात है आकाश दिवान, आगे आगे देखना क्या क्या मिलता है,,,,,,,,

  2. Akash ka ye haal bechara .Pr usko uske kiye ki saza to milni thi ye to shuruwat hi or pata nhi ky – ky zhelana baki hi . Nice part

  3. Garibo ko keede makode samjhne wale ke saath aisa hi hona chahiye..
    Par vo chae wale ka paani.. kuch jyada nhi ho gya.. ab to bahar ki chae Peete waqt sochna padega 😁

  4. Bahut hi badhiya part hai maam.
    Aakash aaj zameen par aaya hai.
    Garibo ko kuch nahi samjhne wale aakash ke sath achcha salook ho raha hai. Maza aa gaya aaj to ab to Jay Babu bada dhamaka karenge.

  5. Aaksh ke sath bahut sahi ho rha h…..ab to bahar chai ki chai peene se pahle aapke gilash dhone wala pani jarur aayega….isliye me bahar sirf disposal me hi chai piti hu

  6. Thanks for the marvelous posting! I genuinely enjoyed reading it, you could be a great author.I will be sure to bookmark your blog and definitely will come back at some point. I want to encourage you to ultimately continue your great writing, have a nice holiday weekend!

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