Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 220

मुसीबत बस कुछ वक्त को टली थी खत्म नही हुई थी| अरुण समझ रहा था कि वक़्त कम है और उसे अपना कांट्रेक्ट सही समय पर पूरा करना है जो अब उसे असंभव दिख रहा था| वह फोन पर अपने पीए माधव से बात करता उसे सम्बंधित निर्देश दे रहा था –

“कम से कम जितना आर्डर पूरा कर सकते है उतना तो कर लिया जाए बाकि का देखा जाएगा – अभी इस बारे में मेरे दिमाग में कोई आइडिया नही है |”

हताशा से वह फोन रखकर सामने देखता है जहाँ किरन खड़ी थी| वह अरुण की परेशानी देखकर खुद भी परेशान नज़र आने लगी थी| ये देख अरुण उसे सहज करने उसका हाथ थामते मुस्करा देता है|

किरन पूछती है – “क्यों परेशान है आप ?”

“ये सब तो बिजनेस में चलता रहता है – छोड़ो |”

“मैं आपको कई दिनों से देख रही हूँ – आप बता कर ही मन हल्का कर लीजिए |” वह भी सांत्वना देती उसके बगल में बैठ जाती है|

उस पल अरुण के मन के भीतर कितनी चिंगारी फूट रही थी ये बस उसका मन ही जानता था| आकाश की परेशानी में तो उसका कोई बस नही था पर बिजनेस तो अब उसके ही कंधे पर था और उसे ही सब संभालना था पर इन सबके बीच वह अपने परिवार को परेशानी में नही डाल सकता था|

“हड़ताल तो खत्म हो गई और सब आपने इतनी अच्छी तरह से किया कि टीवी में बस आप ही छाए है – पता है बाबू जी भी बस आपकी तारीफ करते नही थकते है|” वह अब उसके कंधे पर सर टिकाए कह रही थी – “फिर अब आप किस बात पर परेशान है ?”

“परेशानी की बात ही है किरन – अब क्या बताऊँ – मैनिफैक्च्रिंग तो इनिशिएट हो गई पर पैकिजिंग पर सब कुछ आकर अटक गया – एक प्रॉब्लम नहीं कई सारी है – समय पर आर्डर पूरे नही हुए तो वो सारे ऑर्डर कैंसिल हो जाएँगे और उस एवज में कम्पनी को क्षतिपूर्ति में उसकी कई गुना कीमत चुकानी पड़ सकती है|”

“मतलब ?”

“जिन मशीनों पर ये काम होना है वे एक हफ्ते बाद तैयार होगी और तब तक सब कुछ लेट हो चुका होगा – सारा का सारा सामान यूँही रखा रह जाएगा |” एक गहरा श्वांस भीतर से खींचता हुआ वह आगे कहता है – “खैर तुम इन सबसे परेशान मत हो – मैं सोचता हूँ कुछ ?”

“पता है हमारे गाँव में भी एक बार यही हुआ था|” किरन अपनी बात किस्से की तरह कहने लगी और अरुण अन्यत्र देखता खुद में गुम हो गया|

“तब कौशल्या काकी की बेटी की मंगनी थी – सब कुछ तय था – लडके वाले भी आने वाले थे पर तब हमारे गाँव में इतनी बारिश हुई कि खाना बनाने वाला आया ही नही – काकी तो बस रुआंसी होती सबको मना ही करने वाली थी लेकिन तभी हम सबने तय किया कि अगर हम सब खाने की जिम्मेदारी बाँट ले तो समस्या ही हल हो जाएगी और किसी एक पर बोझा भी नही पड़ेगा – तब हर घर से कुछ न कुछ आ गया और चंद घंटो में पचास लोगो का खाना बन गया – |”

“ओह अच्छा |” ठन्डे लहजे से वह बस उसकी बात का अनुमोदन करता है|

“तो अगर फैक्ट्री का काम भी बाँट लिया जाए तो काम कम समय में भी जल्दी हो जाएगा न !”

किरन जिस सहजता से अपनी बात कहती है उसका कुछ ज्यादा ही गहरा प्रभाव अरुण पर दिखा कि वह हैरान उसे देखने लगता है|

“वे सहकारी समूह की महिलाए हो सकता है आपकी कोई मदद कर सके –|”

“पर कैसे ? मैनुअली तो बहुत समय लग जाएगा – ये संभव ही नही – फिर स्किल्ड लोग चाहिए |”

“तो एक स्किल्ड व्यक्ति के साथ चार महिलाए जुड़कर काम में मदद भी कर देगी और काम भी हो जाएगा |”

किरन के पास जैसे उसके हर प्रश्न का उत्तर था|

“काम होगा या नही लेकिन तुम्हारी बातो से मनोबल बहुत मिला है – तुम सच में मेरी सच्ची साथी हो|”

“वो तो हूँ ही |” वह भी मुस्कराकर उसकी बांह से लिपट जाती है|

“अच्छा इसी बात पर चाय तो पिलाओ |”

“चाय !! रात के ग्यारह बजे !!”

“अब टाइम देखकर कौन चाय पीता है ?”

“पर चाय का कोई तो समय होना चाहिए और फिर इतनी ज्यादा चाय ठीक नही होती सेहत के लिए – आज से आप चाय ही नही पिएंगे |”

“अरे ऐसे गजब मत करो – ये चाय नही सुकून है मेरा |”

“ये बस आपको लगता है – अभी आप चाय पिएंगे तो देर तक जागते रहेंगे |”

“मुझे चाय बनानी नही आती न इसलिए तुम मुझे ऐसे तड़पा रही हो – बस एक कप ही तो चाय मांगी है|”

“ये आज की आपकी आठवी चाय है – और ऑफिस में तो जाने कितनी पीते होंगे|”

कहती हुई किरन उठ जाती है और उसे टोकता हुआ अरुण कहने लगा –

“अरे सुनो तो यार..|”

“यार नही पत्नी हूँ इसलिए आपका ख्याल रखना भी मेरा काम है – चलिए अब सो जाइए |”

वह उसे बच्चों सा हड़काती है| अरुण उसे टोकना चाहता है पर किरन उसकी सुने बिना लाइट ऑफ़ करके सोने का उपक्रम करने लगती है| दोनों बिस्तर में अगल बगल थे किरन जहाँ आंख बंद किए सोने का मन बना चुकी थी| वही अरुण टकटकी बांधे उसे देखने लगा|

तभी कुछ खट की आहट हुई और किरन आंख खोले देखती है| अरुण साइड टेबल पर से गिलास ले रहा था इस पर वह उसे ही एकटक देखने लगी|

“अब पानी तो पी सकता हूँ न !”

फिर आंख से हामी भरती वह फिर से आंखे बंद कर लेती है| अभी कुछ क्षण बीता ही था कि फिर खट की आवाज होती है और किरन आंख खोलकर फिर से आवाज की दिशा में देखती है|

अबकी अरुण गिलास हाथ में लिए संकेत से उसे कहता है| इसपर बस गुस्सा सांसो में पीकर वह करवट लेकर लेट जाती है| अभी कुछ पल बीता ही था कि फिर खट से आहट हुई और किरन अब गुस्से में उठकर बैठ गई|

वो कुछ कहने ही वाली थी उससे पहले ही अरुण बोल उठा –

“वो पानी पीते पीते पानी खत्म हो गया तो जग भरने जा रहा था|”

किरन समझ गई कि अरुण के दिमाग में चल क्या रहा इससे वह बिना बोले ही उठकर उसके हाथ से जग लेकर बाहर निकलने लगी|

“अरे सुनो – जरा पानी गर्म कर देना किरन |”

वह पलटकर हामी भरती हुई कमरे से बाहर निकल गई| किचेन में पहुंचकर वह पैन में पानी गर्म करने को चढ़ा देती है|

वह गैस की तरफ मुंह किए खड़ी थी और उसका सारा ध्यान गर्म होते पानी की ओर था| तभी कोई बांह उसे पीछे से आती अपने पाश में ले लेती है| ये अरुण था जो उसे अपनी बांहों के घेर्रे में ले लेता है इसपर किरन बिना होंठो को विस्तार दिए मुस्करा लेती है|

किरन धीरे से पूछती है – “अब और क्या चाहिए ?”

“जब पानी गर्म हो ही रहा है तो चाय पत्ती भी डाल ही दो |”

“अच्छा – फिर !!”

“फिर इतनी रात चाय बनवाने वाले पति पर जो गुस्सा आ रहा है उसे इस अदरक को कूट कूटकर इसी पर निकाल दो |”

“ओह फिर…!!”

“इसमे थोडा सा दूध और एक इलाइची भी डाल ही दो|”

“और चीनी !!!”

“हम्म उसकी जरुरत नही – बस एक घूँट पीकर दे देना – हाँ बस एक घूँट पीना कही ज्यादा देर इसे तुम्हारे शहद जैसे होंठो का स्वाद मिल गया तो चाय नही चाशनी हो जाएगी |”

वह लहकते हुए कहते अपने होठ उसके कंधे पर स्पर्श कर लेता है जिससे वह उसे अपने से परे धकेलती अब उसकी ओर मुडती हुई कहने लगी –

“आपको चाय बनानी भी आती है और बाते भी आप खूब बना लेते है – आखिर मुझसे चाय बनवा ही ली न |” वह नाराजगी से कहती उसके सीने पर हौले से हाथ मारती हुई कहती है|

वह नाराजगी से उसके सामने पलके झुकाए खड़ी थी जिसपर अरुण उसका चेहरा अपनी हथेली में भरता हुआ कहने लगा –

“पता है – मैं ऑफिस में बिलकुल चाय नही पीता – मेरे लिए चाय और इश्क दोनों एक जैसा है – जिसे बस तुम्हारा साथ ही चाहिए |”

“आपका किरदार भी न बस चाय जैसा है – बस एक बार लत लग गई सो लग गई फिर दिल जाने किस हद चला जाए |”

“सच में !!”

वह उसे अपने पाश में कसकर समेट लेता है इधर पैन में चाय अभी भी खौलती अपना रंग गाढ़ा करती जा रही थी जैसे इश्क पर इश्क बस परत दर परत चढ़ रहा हो| दोनों एकदूसरे की पनाह में पूरी तरह गुम थे पर मन में हलकी खलिश भी थी कि जल्दी ही उनके परिवार की सारी परेशानी दूर हो जाए…..

क्रमशः……………..

तो किसे चाय से यही वाला इश्क है…..!!

15 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 220

  1. Lagta h aap b chai ki deewani h…..pahli baar kisi ne chai ki tulna isaq se ki h🤗🤗🤗waah waah ji kya baat h chai wala isaq…..hame b h chai wala isaq

  2. लगता है किरण बिल्कुल सही कह रही है और अरुण भी किरण की बात मानेगा……

  3. Kya baat hai chai aur. Ishq .. wah…
    Main bhi Arun ki tarah chai ki diwani hu.. par bani Hui mil jaye.. jaise Arun ko.. khud na bnani pade😁
    Kiran ne rasta bhi sahi sujhaya..

  4. Chai se Ishq to hume bhi hai wo bhi sirf apne hath ki bani hui😉
    Aur logon ko kya pata Mera taste isliye
    Kiran hi Arun ki problem solve karegi very nice part 👌🏻

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