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बेइंतहा सफ़र इश्क का – 221

“ढूँढने से भगवान मिल जाते है फिर तो ये समस्या का हल है|” अरुण इत्मिनान से कहता है और ब्रिज हैरान सब सुनते रहे|

वह इस समय ऑफिस में था और आगे की रुपरेखा पर बात कर रहा था –

“मैनिफैक्च्रिंग के काम के साथ साथ हम पैकिजिंग का काम भी कराते जाएँगे – |”

“पर अरुण एकसाथ सब करना पोसिबल नही है|”

“मैंने एक साथ कब कहाँ – हम सारा काम बाँट कर करेंगे – हम ऑर्डर्स को उनकी प्राथमिकता के अनुसार पूरा करेंगे – इसके लिए पहले जो ऑर्डर्स पूरे होने होंगे उसे कुछ यहाँ और कुछ भावनगर की फैक्ट्री में पूरा करा लेंगे और उसी के साथ साथ सहकारी समूह की स्त्रियाँ इसमें हमारी मदद करेंगी – वे सारी वहां जाकर एक एक स्किल्ड लेबर के साथ मिलकर पैकिजिंग का काम करेंगी – इस तरह उनके काम सीख कर करने में टाइम भी वेस्ट नही होगा – और जैसे जैसे वे काम सीखती जाएंगी – वे अगले को उससे जोडती जाएंगी – समझिए ये सब किसी चेन सिस्टम की तरह होगा |”

एक सांस में अरुण अपनी बात कहता है और ब्रिज हैरान उसे अपलक देखते रह जाते है| इस पर वह ताली बजाकर उन्हें होश में लाता है|

आवाज से अपनी तन्द्रा में वापस आते वो एकदम से खुश होते हुए बोलते है – “वाह क्या गज़ब का आइडिया है – इससे तो हम कम से कम समय में सारा काम करा सकते है – सच में क्या आइडिया लगाते हो – कहाँ से लाते हो ये दिमाग – |”

“फ़िलहाल तो ये आइडिया मेरा नही है |”

“फिर !!”

“किरन का |”

“तभी तो कहते हो जोड़ियाँ ऊपर से बनकर आती है – बहुत अच्छा आइडिया लगाया है – मैं आज ही एक्शन मोड में आ जाता हूँ |”

“हाँ पर एक ख़ास बात और – मैं ये आप पर छोड़ता हूँ कि आप ध्यान रखिए कि उन सहकारी समूह की लेडिज को यहाँ कोई दिक्कत न हो |”

“बिलकुल नही होगी – मैं उनके रहने खाने का सब बढ़िया इंतजाम कर दूंगा -|”

उनकी समस्या का हल मिल चुका था इससे जिसका उत्साह उनके चेहरे पर साफ़ साफ नज़र आ रहा था| अब कुछ देर और बैठकर वे सारी रूपरेखा तैयार करते है| ऑफिस का काम निपटाकर अरुण अब निकलने से पहले विवेक को कॉल लगाता है|

“विवेक – क्या भईया से आज मुलाकात हो सकती है ?”

“हाँ क्यों नही – मैं केस के लिए जा रहा था तो मैं कम समय ले लूँगा तो बाकि में तुम मिल लेना |”

“क्या मतलब ?”

“अरुण केस चल रहा है तो मिलने का समय सीमित है – अगर उसमे दो लोगो को मिलना होगा तो टाइम में उसी हिसाब से डिवाइड हो जाएगा न |”

“ओह ऐसा है क्या – |”

“हाँ – वैसे आज केस के लिए मुझे थोड़ा ज्यादा समय चाहिए था – चलो कोई बात नही |”

“नही फिर तुम्हारा मिलना ज्यादा जरुरी है – विवेक मैं बस चाहता हूँ कि कुछ पोजिटिव हो |”

अरुण की परेशानी पर अपने नरम शब्द का लेप लगाता हुआ कहता है – “मैं कोशिश में हूँ |”

“और एक बात थी – मैं उनके कुछ कपडे भिजवा रहा हूँ तुम्हारे पास – तुम परमिशन लेकर उनतक पहुंचवा देना – दो दिन से वही कपडे पहने होंगे और क्या खाने के लिए परमिशन ले सकते हो |”

“ओके – मैं कोशिश करता हूँ – वो एसपी थोड़ा टेढ़ा आदमी है |”

बात खत्म करके अरुण एक गहरा श्वांस भीतर से बाहर छोड़ता है|

इधर विवेक आराम से कुर्सी पर पैर पसारे बैठा था| अरुण ने कहा और इधर राजवीर एक पैकेट में आकाश के कपडे उसे देकर चला गया| इसके बाद वह हॉस्पिटल में उससे मिलने चल दिया|

***
आकाश जिस रूम में था वो बेहद संकरा था अगर उसके अलावा दो लोग भी वहां खड़े हो जाए तो कमरा भरा भरा लगने लगता| पिछली सारी रात उसकी कैसी कटी ये बस उसे ही खबर थी| करवट बदलते बदलते किसी तरह सुबह जाकर उसकी नींद लगी तो तेज शोर से उसकी आंख एकदम से खुल गई| उस वक़्त उसका दिमाग नींद की खुमारी में इतना डूबा था कि उसे कुछ पल लग गया उस आवाज की दिशा पता करने में| कुछ आवाजे बाहर से आ रही थी जो शायद इसी होस्पिटल का ही हिस्सा थी|

“ये हॉस्पिटल है या मछली बाज़ार – शांत ही नही होता – सारी रात गुजर गई पर कमबख्तों को नीद नही आई|” झुझलाते हुए आकाश उठकर बैठ जाता है|

“कोई है क्या ?” आकाश आवाज लगाता है|

तभी एक सिपाही जो पिछली रात से ड्यूटी में था वहां उंघते हुए आता है|

“ये सब शोर कैसा है – ये कैसा कचरा रूम दिया है – यहाँ दो पल की शांति नही |”

सिपाही उसकी बात पर उबता हुआ जवाब देता है – “बगल में 24X7 का ओपीडी है तो शांत कैसा रहेगा – आप को और कुछ चाहिए हो तो बोलो – बड़े साहब आने वाले है |” कहकर वह फिर बाहर निकल गया|

सिपाही की बात से आकाश को अपनी स्थिति का ध्यान हो आया कि वह किस तरह के हालात में फसा था| सिर्फ खुद पर ही झुंझलाहट निकालने के सिवा वह कुछ नही कर सकता था| अधूरी नीद से उसका सर तेज दुःख रहा था जिससे अपना सर एक हाथ से थामे वह उसी रूम में लगे बाथरूम की ओर जाने लगता है|

उसका दरवाजा खुला था जिसमे वह घुसने ही वाला था कि एक कड़क आवाज उसे टोक देती है –

“रुको तुम्हीच वहां – अभी अपन सफाई कर रेली यहाँ |”

आवाज के साथ उसका ध्यान अब बोलने वाली पर जाता है वो कोई स्थूलकाय अधेढ़ स्त्री थी जो गाल के एक ओर मसाला दबाए खड़ी थी| उसकी साड़ी एक ओर को उठी कमर में खुसी थी तो एक हाथ में झाडू और दूसरा हाथ उसका नल में टिका था| नल का पानी बाल्टी पर गिर रहा था|

उस बाथरूम की हालात भी अच्छी खासी खराब थी| उसका कोना इतना मटमैला था जैसे काला रंग कोने कोने अच्छे से प्लास्टर कर दिया गया हो| उस बाथरूम में खड़ी वह भरी बाल्टी में हाथ डुबो कर अब पोछा धो रही थी| ये सब देखते आकाश का मन खराब हो आया|

उस पल उसके अलावा कोई उसकी हालात नहीं समझ सकता था| अपने स्वीट रूम में एश से रहने वाला आकाश उस वक़्त क्या महसूस कर रहा था ये तो उसके मन को ही खबर थी|

वह उस औरत पर से अपना ध्यान हटाना चाहता था पर न चाहते हुए भी उसका ध्यान उसपर चला गया| वह उस पोछें से कमरे का फर्श पोछकर अब उसी से आकाश के बेड की साइड टेबल पोछने लगी| ये देख आकाश एकदम से चिहुकते हुए बोल उठा –

“ये ये क्या करती हो – कितना गन्दा कपडा है – और इससे फ्लोर पोछकर टेबल क्यों पोछ रही हो ?”

आकाश की बात पर अब वह कमर पर हाथ दिए उसे घूरने लगी जैसे आँखों से बता रही हो कि उसका काम है और उसे करने दो|

वह मसाला खाए मुंह को तिरछा किए कहने लगी –

“अभी तो पोछा धोई न तुम्हारे सामने – अब इससे साफ़ और नही होइंगा |”

आकाश मन ही मन भुनभुना कर रह गया पर वो औरत चुप नही हुई और आगे कहने लगी –

“तुम चोर है – तुम किसी का मारा है या रंगदारी किए है |”               

“क्या बकवास कर रही हो तुम |

“तो क्या खराब बोली मैं – ये यहीच कमरा है जहाँ चोर उचक्का को इलाज की जरुरत होती तो पुलिस उसको एड्मिद करती – तुम क्या किया बोलो – |”

“मैं मैं तुम्हे चोर उचक्का दिखता हूँ |”

“तो क्या कोई बड़ा साहब हो तुम – यहाँ हो तो कोई न कोई जरुर लोच्चा किया होइंगा – पण मेरे को क्या – तुम यही रहो – मैं बाथरूम साफ़ कर दी – अब तुम जा सकता |”

कहती हुई वह उस बाल्टी को बाथरूम की ओर सरका देती है| ये देख आकाश दुबारा चिहुकता हुआ चीख उठा – “इस बकेट में तो तुमने पोछा डाला था |”

“तो क्या – अब मैं साफ़ कर दी न – और कोई पोछा इसमें चिपक थोड़े गया -|” कहती हुई वह उस बाल्टी का पानी उस बाथरूम में फैला देती है| अब बाथरूम में गन्दा पानी भरा हुआ था| ये सब देखते आकाश को कस कर उबकाई आने लगी पर किसी तरह से अपना ध्यान इधर उधर करके खुद को शांत करने लगा|

उसे पानी की तलब लगी तो वह पानी लेने उठा पर टेबल में रखा प्लास्टिक का घिसा हुआ जग खाली था| उसे देखकर ही उसका उसे छूने का मन नही हुआ पर प्यास से उसका गला सूखा जा रहा था|

वह औरत अब आकाश को पानी देने झट से जग को उठाकर उसे लिए बाथरूम में गई और पानी भर लाई| आकाश के लिए ये दृश्य भी कम भयावह नहीं था| उस औरत की आधी उंगली उस जग में डूबी थी उसपर वह बाथरूम से पानी भर लाई| ये सब देखते आकाश का मन इतना खराब हो गया कि वह सूखे गले के साथ ही वही बैठ गया पर जग को उसने हाथ भी नही लगाया|

ये देख वह औरत मुंह बनाती हुई अब बोलने लगी – “तुम बोलो तो नास्ता ला दूँ ?”

“नही बिलकुल नही |” आकाश मुंह बनाए बैठा रहा|

अब वह औरत भी मुंह बिचकाती उस कमरे से चली गई| उसे जाते देख आकाश उसे यूँ घूरता रहा जैसे तय नही कर पा रहा हो कि वह कमरा साफ़ करके गई या गन्दा !!

उसके लिए वहां एक एक पल काटना मुश्किल हो रहा था| लग रहा था जैसे ये भी उसके लिए सजा हो| यही वक़्त था जब विवेक वहां आया| उसे देख पहली बार आकाश को ख़ुशी महसूस हुई| वह झट से उसके पास आता लगभग गिडगिडाने लगा –

“विवेक – ये कैसा अरेंजमेंट है इनका – लग रहा है इस गन्दगी से ही मैं मर जाऊंगा – तुम उस एसपी से बोलो न – सब कितना अनहाईजिनिक है – तुम उससे परमिश लो कि मैं खाना घर का मंगा सकूँ |”

“हाँ मैं देखता हूँ – डोंट वरी – मैं हूँ न – लो इस पेपर पर साइन कर दो – |”

“क्या है ये ?”

“परमिशन अपील – मैं एसपी साहब से तुम्हारे लिए खास रिक्वेस्ट करने वाला हूँ|”

“क्या सच में – ओह थैंक्स – तुम जल्दी से कर दो – पता नहीं यहाँ कैसे लोग सरवाइव करते है – मुझसे तो दो पल भी नही रुका जा रहा|”

विवेक आकाश के सामने खड़ा था और आकाश उसके आगे गिडगिड़ा रहा था| ये दृश्य उसके मन को अंदर ही अंदर सुकून दे रहा था| आकाश की हालात वाकई खराब नज़र आ रही थी| उसके कपडे गंदे दिख रहे थे और चेहरा बिलकुल मलिन| उसे ऐसा देखकर कह पाना मुश्किल था कि वह किस आलीशान सुख सुविधाओ में रहता होगा पर आज उसे मूलभूत जरूरते भी नही मिल पा रही थी|

विवेक उसे सांत्वना देता चला गया और आकाश दुबारा मुरझाया सा बैठ गया| बाहर निकलते समय उसके चेहरे पर एह सुकून भरी मुस्कान थी| वह अपनी पॉकेट में हाथ डालकर कुछ नोट निकालकर उसकी ओर बढ़ा रहा था जो निकासी द्वार के किनारे खड़ी उसी का इंतजार रही थी| वह वही अधेड़ औरत थी जो आकाश के कमरे की सफाई करके आई थी| वह मसाला खाए होंठो को तिरछा करती मुस्कराती उसके विपरीत चली गई|

अब बाहर आकर विवेक उस कागज को पॉकेट से निकालकर जिसपर परमिशन का साइन उसने आकाश से लिया था उसके टुकड़ा टुकड़ा करके बड़े से कूड़ेदान के हवाले कर देता है फिर एक नज़र उस कूड़ेदान पर फेकता आगे बढ़ जाता है| क्योंकि उन कागजो के नीचे वही पैकेट पड़ा था जिसमे अरुण ने आकाश के लिए कपडे भिजवाए थे|

उसपल उसके संज्ञान में वो पल कौंध गया तब उसकी बहन कमरे में अकेली गन्दगी के बीच पड़ी अपनी जिदगी काट रही थी| क्रमशः……………

17 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 221

  1. Ooh to Vivek Jo uski bhn ne jhela usse aakas ko rubru krana chahta h taki ki aakash ko bhi in sab ka ehsas ho sake ar aakas ke liye yhi sabse badi saja hogi bahut badhiya very very very nice parts

  2. Aakash ke sath yhj hona chahiye tb hi use kisi or ki takleef ka ahsash hoga…. nhi to fir se vhi purana aakash bn jayega…..aapne to gandgi ka esasasa varn kiya …..lga ki vhi h hospital me….same ye sab mera experience raha jb meri sas sms hospital jaipur me admit thi….mene to husband ko bolkar ward hi change karva liya

  3. ओह तो विवेक चाहता है की आकाश को कोई सुविधा न मिले 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

  4. Bechara akash kabhi sapne me bhi is tarah ki kalpana bhi nhi ki hogi ki uske sath esa ho raha . Pr Vivek to alag he rang dikha Raha waise dekha Jay to wo bhi galat nhi hi usko to apni bahan ka badla Lena hi.nice part

  5. Vivek ab is tarah se badla le rha hai. Ye tarika bhi sahi hai.. par akash ko ye bhi ehsaas hona chahiye k uske sath aisa kyu ho rha hai..

  6. Vivek aakash ka hitashi bn kr us se badla le rha h waise acha he h uski behn k sath bhi aakash ne bhut galat kiya

  7. Bahut hi badhiya part hai maam. Aakash ko uske kiye ki saza mil rahi hai ek anokhe andaz me. Waiting for next part.

    1. जैसे को तैसा ही यहां जरूरी है विवेक बिलकुल सही कर रहा है उसके हिसाब से 👏👏👌👌

  8. Hmmmmm toh vivek yeh chahta hai….
    Dukh to humen bhi hua tha Tara ke bare me jankar ki wo ek chote se kamre me kaise rehti thi uper se pregnant soch kar hi man bhar jata hai
    Aakash ko ek na ek din apne kiye ki saza to milni hi thi toh ab jab Vivek use yeh saza de Raha hai wo bhi apni behen ka badla lene ke liye to ye bhi thik sahi👍🏻
    Very nice part mam 👌🏻

  9. बोये पेड़ बबुल के तो आम कहाँ से खाय…..
    आकाश इसी लायक है, उसने कभी आदमी को आदमी नहीं समझा 👌👌👌👌👌👌👌👌👌🙏🙏

  10. OMG bechare aakash ki kya halat ho gyi h yha… Or us par se vakeel b vivek h jo uski halat or v badtar krne me laga h…..
    Arun or kiran to super duper hit h.. dono ne milkar factory ki samasya k liya jo hal nikala h wo koi or kar hi nhi sakta tha…..
    Or ye rubi aakhir h kha.. iska to aaj tak koi clue hi nhi diya aapne… Or na hi abi tak Stella ke murderer ka koi clue diya?? Jitne b clue jay ko mile wo to ab tak sab hume pahle se pata hi the………..

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