
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 25
भूमि इस वक़्त इतनी खुश थी कि उससे ख़ुशी संभाले नही संभल रही थी| लगा जिसके आने भर की अनुभूति से ही इतना अच्छा लग रहा हो तो जब वह आ जाएगी तो घर सच में खुशियों से भर उठेगा| ये सोचती हुई भूमि मन ही मन मुस्करा पड़ी| वह सबसे पहले दादा जी को आकर इसकी खबर देती है| उस वक़्त लगा उनके चेहरे की झुरियां भी मुस्करा उठी हो| लेकिन उसके अगले पल ही आगे की सोचते वे थोड़ा चिंतित हो उठे|
“लेकिन बहु इतने कम समय में सब होगा कैसे – श्याम ने तो तारिख तय करते किसी से पूछा तक नही बस फैसला सुना दिया |”
“तो कोई बात नही दादा जी – अच्छा ही है जो जल्दी सब हो रहा है उतनी ही जल्दी किरन भी यहाँ आ जाएगी और फिर ये शादी तो पूरे रस्मो रिवाज से हो ही चुकी है बस समझिए ये खानापूर्ति ही है और आप अरेंजमेंट की बिलकुल चिंता मत करिए वो सब हो जाएगा – अरे हाँ पहले तो शगुन भेजना होगा – च्च – कैसे भूल गई – अच्छा दादा जी मैं चलती हूँ – इतना सारा काम है और समय कम – मुझे तो बेस्ट बनानी है ये शादी |”
भूमि की व्यग्रता पर वे सुकून की सांस लेते हुए कहते है – “तुम्हारे होने से मुझे इस बात पर कोई संशय भी नही – एकबार फिर से पूरे धूम से शादी होगी मेरे अरुण की |” वे सुकून से ऑंखें बंद करते मुस्करा देते है|
उनकी बात पर अपनी सहमति भरी मुस्कान देती भूमि तेजी से बाहर निकल जाती है| अभी वह कुछ सोचती सोचती बाहर निकल ही रही थी कि मुख्य द्वार की ओर तेजी से बढ़ती हुई मेनका पर उसकी नज़र जाती है जो बाहर निकलने को कुछ ज्यादा ही व्यग्र नज़र आ रही थी|
मेनका को देखते भूमि उसे आवाज देकर रोकती है| मेनका भी उनकी तरफ इस तरह से पलटती है जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो|
“इतनी सुबह कहाँ चली मेनका ?”
“हाँ भाभी मेरी एक दोस्त है न वैशाली वो पंचगनी जा रही है तो बस वहां से कुछ मंगाना था और उससे मिलना भी था इसलिए थोड़ा जल्दी थी |” अपनी बात बहुत धीमे से वह खत्म करती है|
“और तुझे पता भी है कि यहाँ क्या हो क्या ?”
“हाँ भाभी अभी कुछ देर पहले ही पता चला – अरुण भईया की शादी न !!” अपनी बात पक्की करने वह अंत में प्रश्न के साथ अपनी बात खत्म करती भूमि की ओर तेजी से आती है|
भूमि भी पूरी उत्सुकता से उसके कंधे पकड़कर झूमती हुई कहती है – “और क्या – इतनी बड़ी खबर सुनकर भी तू जोश में नहीं आई ?”
“क्या बात करती हो भाभी – मुझे भी न बस आपकी तरह ही लग रहा है कि कसकर झूम जाऊं – आपकी शादी की वक़्त तो मैं छोटी थी इसलिए सोचती थी जिस दिन अरुण भईया की शादी होगी उस दिन दिल के सारे अरमान पूरे कर लुंगी |”
“हाँ सच्ची – तो जा अभी अपना काम करके आ – फिर हमे साथ में कितनी शोपिंग करनी है – सबसे पहले शगुन भेजना है – उसमे मैं कोई कमी नही रखने देने वाली |”
मेनका भाभी के कंधे से लगकर हटती हुई बोली – “बिलकुल भाभी जल्दी आती हूँ लौट के मैं |”
भूमि ख़ुशी से झूमती हुई पलटकर देखती है तो हरिमन काका मिठाई का भोग थाली दादा जी के कमरे से वापस आते उल्लास से सभी नौकरों को मिठाई बाँट रहे थे| उस वक़्त हरिमन काका से लेकर सभी के चेहरे आगामी ख़ुशी के उल्लास से भर उठे थे|
भूमि मुस्कराती हुई कुछ पल तक ये दृश्य देखती रही| आखिर कितने समय बाद बल्कि देखा जाए तो क्षितिज के जन्म के बाद कोई बड़ा पारिवारिक जलजा होने जा रहा था जिसकी उमंग सबके चेहरे पर साफ़ साफ़ देखी जा सकती थी|
***
रंजीत वापस आते सेल्विन को हुक्म देता कह रहा था – “सेल्विन मुझे इसमें कोई कमी नही चाहिए – सेठ घनश्याम दीवान से आज अभी इसी वक़्त भेंट का जल्द से जल्द अरेंजमेंट करो और मेरी ओर से दीवान मेंशन में इतने उपहार भिजवाओ जितने उन्होंने कभी देखे भी न हो – पिछली बार दुबई से जो डायमंड पॉट लाया था वो भी, पर्शियन कालीन भी और उनके नौकरों के लिए भी उम्दा गिफ्ट होने चाहिए आखिर मालूम पड़े किस परिवार से रिश्ता होने जा रहा है और हाँ पश्मीना का बेस्ट शाल उनके ग्रैंड फादर के लिए भिजवाना नही भूलना – मेरा बस चलता तो एक शहर नाम कर देता उनके – समझ नही आ रहा कि अपनी गुड़िया की ख़ुशी के लिए मैं क्या क्या नही लुटा दूँ |”
रंजीत बेहद मुस्कान के साथ अपने निजी एअरपोर्ट पर खड़ा था| वह अभी अभी वापस आया था और घर में प्रवेश करने से पहले सेल्विन को हुक्म दे रहा था|
***
भूमि अरुण को खोजती हुई दादा जी के कमरे की ओर बढ़ रही थी तो सामने से हरिमन काका आते दिख गए|
“काका – ये अरुण कहाँ गया – सुबह से ही नज़र नही आया |”
“बहु जी छोटे मालिक तो दादा जी को सुवली गाँव छोड़ने गए है |”
“क्या !!” हैरानगी से भूमि मुस्कराती हुई बोली – “देख रहे है काका पहुँच गया ससुराल – अभी से भाभी की छुट्टी हो गई – जाने से पहले बोल कर भी नही गया |”
अति मुस्कान से कहती हुई भूमि क्षितिज की नैनी को आवाज लगाकर बुलाती हुई कहती है – “कहाँ है क्षितिज ?”
तीस पैतीस साल की एक स्थूलकाय नैनी सुनीता भूमि के सामने खड़ी होती हुई कहती है – “बस अभी आ रहे है बाबा – |”
“है कहाँ ये पूछ रही हूँ – बोला था न कि समय से तैयार कर देना – आज मैं स्कूल छोड़ने जाउंगी उसे |”
इस पर नैनी घबराती हुई बोलती है – “वो क्या है मैम बाबा तो तैयार हो गया पर लास्ट टाइम पर पौटी आ गई |”
“क्यों – क्या सुबह नही गया था – उसकी तबियत तो ठीक है न !” पल भर में भूमि घबरा गई|
“नही नही तबियत तो बिलकुल ठीक है – बस बाबा का मन नही था सुबह जाने का तो…|”
“तो !! वो तो बच्चा है – उसे डिसिप्लिन में रखना भी एक काम है – न की हरदम उसकी हर एक बात मान लेना –|”
“सॉरी मैडम जी पर जिद्द कैसे करती ?”
“तो समझाती – बहलाती – वह तो बच्चा है न – उफ़ सब काम की तरह लेते है – कोई ऐसी नही मिलती जो माँ की तरह संभाल सके – अब जाओ और उसे जल्दी लेकर आओ –|” कहती हुई भूमि बाहर को निकलने लगती है|
ड्राईवर भूमि की कार पोर्च में पार्क करके किनारे खड़ा हो जाता है| भूमि ड्राइविंग सीट पर बैठती हुई अचानक से सामने की ओर देखती हुई कार से उतरती हुई कह रही थी – “अरे राजवीर तुम यहाँ हो तो क्या अरुण फिर अकेला गया है ?”
राजवीर जल्दी से भूमि की ओर आता उसे अभिवादन करता बस हाँ में सर हिला देता है|
“ओहो ये तो किसी की सुनता ही नही – फिर अकेला चल दिया – कल की घटना के बाद से मना किया था अकेले जाने से – सुनता ही नही किसी की – लगता है नई नवेली को बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी इस पर – उफ़ |” परेशानी में सर न में हिलाती हुई दुबारा कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ जाती है तो वही क्षितिज दौड़ता हुआ उसके बगल की सीट में बैठता हुआ मुस्करा रहा था तो उसकी नैनी पीछे की सीट पर बैठ रही थी|
भूमि स्टेरिंग पर हाथ रखे रखे उसकी ओर देखती हुई कहती है – “लगता है तुम चाचा भतीजे की क्लास लेनी ही पड़ेगी|”
इस पर क्षितिज बत्तीसी दिखाता हुआ देखने लगा था|
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अरुण दादा जी को मनोहर दास के घर के बाहर ही बडी और उसके सेवक मोनू के साथ छोड़ देता है| मोनू एक उन्नीस बीस साल का खुशदिल लड़का था जो बडी का बखूबी ख्याल रखता था| बडी भी यहाँ आता अपने तीन साथियों बबलू, काली और चमेली से मिलने को उत्सुक बना हुआ था इसलिए वह सीधे घर के पीछे के हिस्से की ओर भाग जाता है|
“बेटा एक बार साथ में अन्दर चलते तो अच्छा लगता |” दादा जी अरुण को रोकने की चेष्टा करते है|
अरुण दादा जी के कंधे को आश्वासन से अपनी बाजु में भरता हुआ कहता है – “जरुर चलता पर आज बहुत जरुरी है समय पर पहुँचना – आप आराम से जब तक चाहे रुकिए मैं गाड़ी भिजवा दूंगा – चलता हुआ दादा जी |” वह आज अपने पहले दिन के लिए उनका आशीर्वाद लेने उनका पैर छूकर जाने लगता है तो वह उसका माथा अपनी ओर झुकाकर चूमते हुए ढेरो आशीष देकर उसे विदा करते है|
दादा जी घर के अंदर चल दिए थे तो अरुण अपनी कार की ओर बढ़ जाता है जो उसने मुख्य फाटक के बाहर पार्क की थी| वह बस कार का दरवाजा खोलकर बैठने ही वाला था कि कोई महीन आवाज उसके कदम वही रोक देती है|
वह आवाज की ओर पीछे पलटकर देखता है तो कोई उसकी ओर लगभग भागती हुई आ रही थी|
“अरे – हफ – आप तो रुकते ही – हफ – नही – कितनी तेज चलते है हफ हफ |”
वह अब ठीक उसकी नजरो के सामने खड़ी थी|
“मेरा नाम न – सारंगी है – हफ |” वह फिर एक साँस राहत की छोड़ती है|
“तो !”
“दीदी जी ने मुझे आपकी तबियत पूछने भेजा है |”
“कौन !”
“किरन दीदी..|” कहती हुई वह घर की छत की ओर उंगली से इशारा करती है जहाँ एक सतरंगी दुपट्टा लहरहा रहा था| वह हवा में बलखाता बार बार कुछ इस तरह मुड जा रहा कि उसके पीछे खड़ी काया स्पष्ट हो जाती| दो क्षण तक अरुण उस काया का आभास देखता रहा पर वो काया उसकी नज़रो के सामने नही आई| वह दुपट्टा मानो उस काया पर लिपटा उसे अपने में छिपा ले जा रहा था| सारंगी भी उस ओर देख रही थी तभी अरुण कहता हुआ ड्राइविंग सीट पर बैठने लगता है|
“कहना मैं ठीक हूँ |”
“अच्छा….|” जब तक सारंगी अरुण की ओर मुडती आगे कुछ कहती वह जा चुका था, बस नज़रो से दूर होती उसकी सफ़ेद कार किसी बिंदु की तरह देखती रहती है – “लो – चले भी गए |”
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अब तक रंजीत को भी अरुण की शादी की खबर मिल गई थी जिसकी नाराजगी उसकी लाल ऑंखें थी जो क्रोध और आक्रोश से भर उठी थी| सेल्विन सर झुकाए झुकाए अपनी बात खत्म करता है|
“है कौन वो लड़की – क्या ख़ास बात है उसमे कि सेठ दीवान अपने बेटे की शादी उससे करने को राज़ी हो गया – पता करो सेल्विन – हर एक बात को पता करो कि ऐसा क्या है कि शादी को पांच दिन ही कर डालना चाहता है |” दांत गुस्से में भींचे रंजीत जमीं को यूँ घूरता रहा मानो अभी वहां से कोई सैलाब फूट पड़ेगा|
…..क्या होगा अरुण के जीवन में आगे ?? क्या बच पाएगा इस आगामी तूफ़ान से ? क्रमशः……….