
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 31
सारंगी उस पार से हेलो हेलो कर रही थी और अरुण मोबाईल कान से दूर करे गहरी सांस हवा में छोड़ता हुआ आखिर बिना बोले कॉल डिस्कनेक्ट कर देता है|
“हेलो – कब से हेलो हेलो कर रही और उधर से कोई बोला ही नहीं – अरे कुछ तो बोलता भलेहि रांग नंबर कहकर रख देता – हुन्न |”
रिसीवर रखती हुई सारंगी अब पीछे पलटकर देखती है जहाँ किरन उसकी हालत पर हँसती हुई कह रही थी –
“तुम्हे भी तो हर घंटी पर लपककर फोन उठाना होता है तो होगा कोई जो ऊब गया होगा एक ही आवाज सुनते सुनते |”
“आप भी न – मेरी आवाज अच्छी नही है क्या ?”
सारंगी की रूठी आवाज पर किरन अब प्यार से उसे समेटती हुई बोलती है – “न बाबा – बहुत प्यारी है – बिलकुल सारंगी जैसी…|”
“अरे हाँ उस दिन किसी और ने भी कहा था ये |” सारंगी कुछ पल रूककर सोचती हुई बोली – “हाँ अरुण बाबू के दोस्त ने |”
अरुण का नाम आते जैसे किरन होंठ का किनारा दबाए शरमा गई|
तभी किसी आवाज पर उन दोनों का ध्यान बाहर की ओर जाता है जहाँ कुछ सजी धजी औरते आई हुई मनोहर दास जी को प्रणाम कर रही थी| ये देखती दोनों साथ में वही चल देती है|
“मनोहर भाई तमे हमारी बात से इंकार मत करो छू – बिटिया नहीं जावेगी तो माता अम्बा की गरबा विधि कैसे पूरी होवेगी – हर बार अपने सहकारी स्त्री समूह की पूजा बिटिया के गरबा भरने से ही पूरी होती है – |”
इस पर मनोहर दास हँसते हुए कह रहे थे – “सावित्री बेन आपको पता है न दो दिन बाद ही बिटिया की शादी है फिर कल ही मंडप लग जाएगा |”
उन औरतो में जो सबसे अधेड़ स्त्री थी वह आगे आती हुई बोलती है – “हाँ तो हमे नही पता कि हमारी बिटिया की शादी हो रही है और क्या हम सबके बिना होगी कोई रस्म – बिटिया का हाथ बड़ा शुभ है – वह हर बार की तरह इस बार भी गरबा अपने हाथ से भरकर शुरू करेगी तो माँ अम्बा सब पर अपनी कृपा बनाए रखेंगी |”
इस पर मनोहर दास फिर कुछ कहने वाले थे पर उससे पहले ही वह स्त्री फिर बोल उठी – “बस मनोहर भाई तमे कोई चिंता न करो छु – हम आज की विधि करते कल से बिटिया की मंडप की तैयारी भी मिलकर करा लेंगे – आखिर हम सबकी प्यारी रानी बिटिया की शादी बिना धूम के हो जाने देंगे क्या !!”
अबकी वे मुस्कराकर हामी भर ही देते है साथ में वे दोनों भी मिलकर मुस्करा उठती है|
***
कार के पोर्च में रुकते अरुण भी पल भर को किसी अनदेखे ख्वाब से बाहर आकर खुद में ही मुस्करा उठा था| राजवीर अरुण के उतरने से पहले ही कुछ कह रहा था – “सर अगर शाम कही नही जाना हो तो क्या आज भर की छुट्टी मिल सकती है – वो क्या है आज से गरबा शुरू है तो परिवार के साथ बाजार जाकर गरबा के कपड़े खरीदने है – बिना गरबा के कपड़ो के पूजा में नही जा सकते न इसलिए |”
“नही मुझे कोई काम नही – बल्कि ये कार ले जाओ और आराम से परिवार को शोपिंग कराओ |”
“जी सर – !!” राजवीर इससे अधिक शब्द से अपनी ख़ुशी प्रकट नही कर पाया|
जिस मुस्कान के साथ अरुण कार से उतरा एक पल को ड्राइविंग सीट पर बैठा राजवीर देखता रह गया और खुद भी मुस्करा उठा| अरुण ने देखा भी नही कि भाभी कब से उसका इंतजार करती उसे पुकारने वाली थी पर उसे यूँ जाते देख वह बस ठहरी रह गई जबकि अरुण तो अपनी ही धुन में दो तीन सीढियाँ एक एक फलांग में लांघता कमरे में आते तुरंत फिर कॉल लगा बैठता है|
फिर वही ट्रिंग ट्रिंग की घंटी और उसी क्रमांक में दिल की धड़कने| फोन आखिर उठा लिया जाता है पर हेलो सुनते अरुण बस फिर से काटने ही वाला था कि मन मारे रुक गया|
“हेलो….लो लो – कौन है भाई ?”
“मैं अरुण |”
“क्या…तो दीदी से बात करनी है ?”
“नही – वो गलती से कॉल रिपीट हो गया|”
“ओह्ह – तो नही करनी बात !”
“नही ऐसा तो नही |”
“तो करनी है बात ?”
“हाँ – नहीं वैसे !” अरुण बुरी तरह से झींक रहा था पर करता भी क्या|
“लेकिन आप कैसे बात करेंगे – दीदी तो गरबा के लिए गई है वो सुवली बीच के पास ही बड़ा सा पंडाल सजा है न – कितने सारे लोग आ रहे है – वही गई है – दीदी अपने हाथ से माँ अम्बा की पूजा का गरबा भरेंगी वहां – बड़ा शुभ है उनका हाथ – आप भी जा सकते हो वहां – हेलो हेलो – अरे फोन तो कट गया |” रिसिवर हाथ में लिए वह कुछ पल सोचती हुई कहने लगी – “अगर अरुण बाबू वहां गए भी तो दीदी को पहचानेगे कैसे – उन्होंने तो देखा ही नही दीदी को |”
फिर कंधे उचकाती फोन रखती हुई दूसरी ओर चल देती है|
अरुण को भी नही पता कि कौन सी अनजानी कशिश खींच रही थी जो आज उससे वो कराने जा रही थी जो कभी उसने सपने में भी नही सोचा था| वह पहली बार किसी के लिए पूजा पंडाल में जाने का सोच रहा था| पर जाए तो कैसे ! क्या उसे भी गरबा की कोई ड्रेस पहननी पड़ेगी ! पर क्या !!
वह तुरंत ही ऑनलाइन सर्च करता है| ढेरो ड्रेस के ऑप्शन थे| रंगीन कपड़ो के चमकीले भड़कीले कपड़ो के जत्थे थे पर वैसे कपडे कहाँ कही अरुण ने पहने थे| आखिर बहुत सर्च के बाद अपने लिए सफ़ेद कुर्ते पर काफ्नी कोटी सलेक्ट करता हुआ तुरंत ही ऑर्डर कर देता है|
एक्स्ट्रा डिलवरी चार्ज देते बस पंद्रह मिनट में ही कपड़े उस तक पहुँच जाते है| और उसके अगले दस मिनट में वह तैयार भी हो जाता है| आज खुद को ही शीशे में देख आश्चर्य से भर उठा था| सोच रहा था अगर घर पर किसी ने उसे इन कपड़ो में देख लिया तो पक्का सबको उसके बदले दिल के हाल की खबर भी लग जाएगी|
वह खुद में मुस्करा उठा और बस मौका देखते सबकी नज़रो से बचते वह बाहर निकलने लगा लेकिन वही होता है न जिससे बचना चाहो वही मिलता है| भाभी उसे सीढ़ियों से उतरते ही मिल गई| एक पल को वह मुंह खोले हैरान नज़रो से अरुण को ऊपर से नीचे देखती रह गई फिर खिलखिलाकर हंसती हुई पूछ ही बैठी जिसपर अरुण अपनी हडबडाहट छिपाते हुए बोलता है –
“अरे भाभी – आपको तो पता ही है न – ये योगेश भी मुझसे जाने क्या क्या नाटक कराता रहता है – मैं आता हूँ जल्दी |” बस अपनी बात कहता अरुण तेजी से वहां से निकल जाता है|
जबकि उसे पता ही नही चला कि भाभी के पीछे योगेश खड़ा था जो अरुण से मिलने आने से पहले कुछ देर भाभी से बात करने लग गया था| योगेश अरुण को आवाज देने की वाला था पर भाभी उसे इशारे में रोकती हुई धीरे से कहती है –
“पहली बार झूठ बोला है – वो भी इतना प्यारा – जरुर तुम्हारी मिलाई कॉल का असर है योगेश |”
योगेश भी सीने पर हाथ बांधे बंद होंठो से मुस्करा दिया था|
अरुण की सफ़ेद कार जिससे सभी परिचित थे वह राजवीर ले गया था तो अरुण आज दूसरी कार से सुवली बीच की ओर निकल रहा था| पर उसे नही पता था कि उस पर घात लगाए बैठा गुंडा उसकी कार बदल जाने से उसे ट्रैक नही कर पाया और अरुण आसानी से सुवली गाँव की ओर निकल गया था|
मन में कोई अजनबी तरंग सी मची थी| मन कही टिक ही नही रहा था| कैसी दिखती होगी किरन ये जानने उसका मन आज हर सीमा पार कर देना चाहता था| ऐसा लग रहा था जैसे आज उसका मन आगे और वह पीछे दौड़ रहा था| किसी को देखने की ऐसी ललक उसमे कभी उठेगी कहाँ उसे पता था !! पर आज वही हो रहा था|
…..क्रमशः………….