Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 33

बस दो दिन बाद ही शादी थी, अब तो ये बात खुद उसके लिए भी यकीन करनी मुश्किल हो रही थी| उसका दिल भी तो यूँ बेचैन था जैसे अभी दौड़कर किरन के दीदार कर लेगा| अपनी इस बेखुदी पर वह खुद ही मुस्करा उठा| रात तो बस जिस्म के लिए थी मन तो पलकों को ताकता जागता ही रहा|
मन किया अभी इसी वक़्त आवाज तो सुन ही ले पर किसी तरह से दिल समेटे खुद को बहलाता रहा| सिगरेट तो कबकी जलाकर उसने एस्ट्रे पर छोड़ रखी थी पर उसे उठाना तो वह भूल ही गया था| जाने क्या बदलता जा रहा था उसमे कि वह बार बार मोबाईल उठाता और वापस रख देता पर कॉल न कर सका|
रात से कब दिन हुआ उसके खुली पलकों को अच्छे से पता थी तभी तो रात की बेखुदी दिन में भी वैसे ही ताजा थी जैसे मन का कमल मुरझाया ही न हो| न उसे ये पता चला कि उसकी बेखुदी पर किसी और की भी नज़र टिकी थी| वह योगेश था जो हमेशा की तरह बेधड़क उसके कमरे में आ गया था और बदले हुए मंजर को चुपचाप मुस्कराते हुए देख भी रहा था|
तब से बार बार मोबाईल उठाकर वापस रखते देख अब उसकी हंसी छूट ही गई जिससे अरुण का ध्यान उसपर जाते वह एकदम से चौंक बैठा|
“अब मिला भी ले आखिर कितनी मिस कॉल देगा |”
“मिस कॉल !! कहाँ किसे क्या बात कर रहा है ?” उठते ही अपनी हडबडाहट छुपाने वह अधजली सिगरेट उठाकर फूकने लगता है पर अगले ही पल उसकी उंगली में उसका अंगारा छूते उसे दूर झिड़कते पैकेट की ओर हाथ बढ़ा देता है|
“वैसे आजकल तू सुबह सुबह इधर का रास्ता बहुत भूल रहा है – क्या बात है ?”
“जा नहीं आ रहा अबसे |”
एकदम से नाराज होकर योगेश अपनी जगह से उठने लगता है तो अरुण उसका कन्धा पकड़कर उसे रोकता हुआ कहता है –
“अरे यार मेरा मतलब था तू तो मेरा लकी चार्म है – सुबह सुबह ही आया कर |” पहली कॉल को याद करता वह मन ही मन मुस्करा लेता है|
पर इसके विपरीत योगेश मुंह बनाए ही बैठा रहा तो अरुण एक धौल जमाते हुए पूछता है – “अब ये सडा सा मुंह बनाकर क्यों बैठा है ?”
“यार आज बहुत बड़ा अरमान टूटने जा रहा है तो मुंह नही बनेगा |”
योगेश की गोल गोल बात पर अरुण औचक उसकी ओर देखता रहा और योगेश उसी तर्ज पर बोलता रहा – “सोचा था तेरी शादी में धूम मचाऊंगा – दिल के सारे दबे अरमान पूरे करूँगा – भाभी की सहेलियों को छेड़ने का अरमान भी पूरा करना था – दुल्हे का ख़ास म ख़ास दोस्त होने का नखरा दिखाना था पर इस सेमिनार को अभी ही होना था – इसने मेरे सारे अरमान ही बैठा दिए |”
“मतलब – कहाँ जा रहा है तू – यार तेरे बिना क्या करूँगा मैं – ?”
“वही तो – कितना कुछ प्लान किया था पर जिस सेमिनार का मैं इतने समय से वेट कर रहा था उसे भी परसों ही होना था वो भी पैरिस में – कितनी भी जरुरी हो – मैं छोड़ दूंगा इसे |”
अरुण सच में योगेश के जाने से परेशान हो उठा था पर अगले ही पल बात सँभालते हुए कहता है – “नही यार – अगर इतना जरुरी है तो जा – मौके बार बार नही मिलते |”
“नही यार – मैं कुछ डिसाइड ही नही कर पा रहा – तेरी शादी से मेरा बेस्ट अरमान जुड़ा था यार |”
“अब ज्यादा नाटक मत कर बोल रहा हूँ न – तू सेमिनार में जा – और वैसे भी ऐसा कौन सा अरमान है जो तेरा अभी भी अधूरा रह गया – और कितने कांड करेगा तू |” अबकी एक धौल उसके पेट में जमाते हुए कहता है|
इसपर दोनों साथ में कसकर हँस पड़ते है| उसके यार में कुछ तो बदल गया था पर जो भी था उसे अंदर तक बहुत सुकून दे रहा था| अच्छा लग रहा था अपने जिगरी दोस्त को जिंदगी जीते देख|
योगेश अब उठकर जाने लगता है तो अरुण की निगाह फिर से मोबाईल तक दौड़ जाती है|
जाते जाते योगेश पलटकर पीछे देखता हुआ कहता है – “वैसे मोबाईल घूरने से कोई नही दिखता – हाँ अगर मोबाईल गिफ्ट करके वीडियो कॉल पर बात की जाए तो शायद कुछ बात बने – |”
योगेश की बात पर अरुण के चेहरे पर सच में एक चमक खिल आती है जिसे देखते योगेश भी मुस्कराते हुए कह रहा था – “डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन है हंड्रेड परसेंट काम करेगा |”
योगेश अपना काम करके चला गया और सच में अरुण ने अगले ही पल ऑनलाइन एक मोबाईल बुक करके उसे सुवली गाँव के एड्रेस पर अर्जेंट बेस पर भिजवा दिया|
अब तो बस कुछ पल बाद के समय का इंतजार था फिर ख्याल आया कि कम से कम किरन को इसके बारे बता तो दे| ये सोचते वह फिर उसी जाने पहचनाने नंबर पर कॉल लगाता है| पर फिर वही डर, कई बार एक एक रिंग पर कॉल काटने के बाद आखिर अगली कॉल लगा ही लेता है|
***
एक घंटी बजती और ज्योंही सारंगी फोन उठाने जाती रिंग कट जाती, वह फिर वापस को कदम बढाती तो फिर फोन बज उठता. फिर से वह ज्योंही पहुँचती कॉल फिर कट जाती| ऐसा एक दो बार होने से सारंगी चिडचिडाती हुई खुद में ही बडबडा उठी और उसकी ऐसी बडबडाहट देख किरन की हँसी छूट जाती है|
“आपको हंसी सूझ रही है – और तब से ये फोन भी जैसे रुक रूककर हँस रहा हो – जैसे पहुँचती हूँ झट से कट जाता है|”
सारंगी अभी भी मुंह बनाती हुई कह रही थी और किरन उसकी हालत पर हँसे जा रही थी कि तभी फिर वैसे ही कॉल बजती है और तुरंत ही कट जाती है| ये देख सारंगी वैसे ही बडबडा उठी पर किरन की हंसी एकदम से रुक गई और उसके मन ने चुपके से उससे कुछ कह दिया|
“देखा न दीदी यही हो रहा है तब से |”
“हाँ हाँ देखा भी और सुना भी – अच्छा सारंगी एक काम तो कर दे – गौरा को जरा देख आएगी – मैंने बिना रस्सी के उसे बाहर छोड़ा था |”
“अच्छा – अभी देखकर आती हूँ |”
सारंगी चली गई और किरन के चोर मन ने जैसे किसी और के चोर मन को भी ताड़ लिया था| अबकी फिर वैसे ही घंटी बजी तो किरन ने भी तुरंत ही माउथपीस उठाकर हेलो बोला और आखिर वही हुआ अबकी कॉल बिलकुल डिस्कनेक्ट नही हुई|
उस पार अरुण मोबाईल पर झुका था तो इस पार किरन रिसीवर यूँ पकड़े थी मानो भागते मन को बड़ी मुश्किल से पकड़ पायी हो|
कुछ पल तक दोनों यूँही अपने अपने स्थान पर जमे रह गए| बड़ी अजीब दुविधा थी कहना ढेर था पर पर शब्द लापता थे|
अगले क्षण अरुण पुकारता है – “किरन |”
नाम सुनते किरन की धड़कने जैसे धौकनी हो जाती है तो साँसे तपते लावे सी उफनती उस पार तक महसूस की जाती है|
“एक तुम्हारे नाम और अहसास ने न जाने कैसे मेरे वजूद को डगमगा दिया है – जाने क्या कशिश है तुममे कि सोचता हूँ तुम्हे देखकर मुझे क्या लगेगा – क्या पूरा का पूरा डूब जाऊंगा मैं तुममे – एक बार मैं अपनी उस तड़प को मचलते हुए देखना चाहता हूँ – अपनी डूबती साँसों को तुममे घुलता हुआ महसूस करना चाहता हूँ – बोलो – कुछ तो बोलो किरन |”
क्या कहती किरन उसकी उफनती साँसे तो बेकाबू होती हर शब्द पर अटक अटक जा रही थी| बस बड़ी मुश्किल से हूँ कहती फिर खामोश हो गई| बस हौले हौले सांसो का स्पंदन आर पार स्वतः आता जाता रहा|
“तुम्हे देखने की बेचैनी को मैं रोक नही पा रहा – बोलो न कुछ – क्या करूँ मैं इस तड़प का |” अरुण का मन कसमसा उठा था|
“बस दो दिन और |”
“और ये दो दिन मन रुकने को तैयार न हुआ तो !”
“जो आप कहे |”
“सच में |”
“हूँ |”
“चलो वीडियो कॉल में ही अपनी झलक दिखा दो – मोबाईल भेजा है – इसी से बहला कर मन को समझा लेंगे |” एक ठंडी आह छोड़ते हुए अरुण ने कहा तो किरन की हंसी छूट गई|
तब तक वे एक दूसरे का आभास में डूबे रहे जब तक सारंगी ने आकर किरन को ये बताने लगी कि वही भुक्कड़ है गौरा तो अभी भी बंधी हुई थी| इसपर जाने कितनी देर किरन हंसती रही और सारंगी यही नही समझ पाई कि अब इसमें ऐसी कौन सी हँसने वाली बात है|
***
सेल्विन का पारा तभी से चढ़ा था जब से उसे पता चला था कि चिंगारी भाई अपना काम नही कर पाया था| वह उसी तमतमाए तेवर में उसके अड्डे पहुँचते उस पर रौबीले अंदाज में भमकते हुए बोला तो चिंगारी भाई का आदमी जो तबसे उसके गाल सेंक रहा वह उल्टा उसी पर बिगड़ते हुए बोला –
“पहले बोलना था न – आदमी दमदार है – ऐसे फालतू में अपने बॉस को पिटवा दिया – पूरे तीन दांत पीछे के हिल गए है – कितना परेशान हो रहे है हमारे चिंगारी भाई इसका अंदाजा भी है – जो भाई मटन खाए बिना नही रहता था वो सुबह से खिचड़ी खा रहे है – पूछो कोई ऐसे मारता है क्या – हमारे चिंगारी भाई की चिंगारी बुझा कर रख दी – अब न पचास पेटी और लगेगा इस काम का – पता नही दांत नया लगवाना पड़ेगा अपने भाई को अब इस उम्र में नया दांत तो निकलेगा नही……|”
अपने आदमी को इस तरह अपनी बखिया उखाड़ते सुन कितना गुस्सा भर रहा था चिंगारी भाई में मन में बस उसे ही खबर थी| अगर आज उसकी ऐसी हालत न होती तो सबसे पहले अपने इसी आदमी की जमकर कुटाई करता|
………..क्या होगा चिंगारी भाई की चिंगारी का और क्या होगा अरुण का हाल किरन को अपने सामने देखकर…..
क्रमशः……..

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