Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 34

सारंगी हैरान ये देखती रह गई कि किरन फोन रखती हुई मुस्करा रही थी और हवा में देखती कभी पलके झुका लेती| अपना सर खुजाती वह किरन का हाथ पकड़ती हुई बोलती है –
“क्या हुआ दीदी – ऐसी क्या मुस्काने की बात मैंने कह दी – गौरा को तो रोज बांधकर आती हूँ |’
न किरन उसे बता पायी न शायद भोली सारंगी ही समझ पाई बस किरन के पीछे पीछे चलती हुई उसके साथ छत पर आ गई जहाँ किरन इधर उधर देख रही थी|
“क्या दीदी !! किसी को आना है क्या ?”
अब तो किरन को बताना ही था वह अपने मनोभावों को संभालती हुई कहती है – “हाँ वो कोरियर वाला आ रहा है |”
“क्या मंगाया है ?”
“ओहो सवाल कितना पूछती हो – बस आ रहा है – अरे वो आ गया क्या !” चौंककर एक कोरियर वाले को बड़े से बैग के साथ आता देखती किरन कहती है|
सारंगी भी झांककर देखती है वो सच में कोई डिलवरी बॉय था|
“सारंगी तू जाकर ले आएगी – |”
“हाँ पर है क्या उसमे ?”
किरन होंठ सिकोड़ती बड़ी मुश्किल से कहती है – “मोबाईल |”
“मोबाईल !! आपने मंगाया है ?”
“फिर वही बात – कितना सवाल पूछती हो – जा न ले आ – किसी ने भेजा है |” किरन जिस तरह शरमाकर झूमती हुई कहती है सारंगी को अब जाकर माजरा समझ आता है और वह लगभग उछलती हुई बोलती है –
“ओहो – अब समझी – तो ये सारी मुस्कान किसके लिए है – मोबाईल अरुण बाबू ने भेजा है – है न !!”
“श श श ….जा और चुपचाप ले आ |”
किरन मन की घबराहट छिपाती हुई सारंगी को टोकती है|
सारंगी भी हवा बनी लहराती हुई नीचे की ओर भागती है| वह दौड़कर दरवाजा खोलती है और सामने खड़ा जिसे पाती है उसे देख उसकी ऑंखें हवा में टंगी की टंगी रह जाती है|
“लो बिटिया – हमारे खटखटाने से पहले ही दरवाजा खोल दिया – पर भगोना कहाँ है ?”
सामने भोला नाम का दूध वाला था जो अपना डब्बा सामान लेकर दरवाजा घेरे बैठ गया था| सारंगी उसके पीछे दूर तक देखती है जहाँ मुख्य गेट के पार वही कोरियर वाला अपने बड़े से बैग को खंगाल रहा था| शायद बहुत सारे पैकेट में से इस पते वाला पैकेट ढूंढ रहा था|
“का बिटिया – लाओ न भगौना |” भोला अपना दूध का डब्बा खोलते हुए कह रहा था|
“क्या हुआ सारंगी ?”
आवाज सुनते सारंगी का ध्यान अब अपने पीछे जाता है जहाँ मनोहर दास अख़बार लिए वही बैठक में आकर बैठ गए थे| अब तो सारंगी बुरी तरह से अचकचा गई| एक तरफ भोला काका तो दूसरी तरफ बाबू जी| अब वह चुपचाप कोरियर कैसे लेगी?
इसलिए दौड़कर वह भगौना ले आती है ताकि जल्दी से दूध लेकर उसे तो कम से कम रफा दफा करे|
भोला बड़े आराम से नाप नाप कर दूध डालता हुआ बोलता है – “आज देखा न बिटिया – आ गए न जल्दी – रोज कहती थी तो आज सोचा सबसे पहले तुम्ही के घर चले – अरे का हुआ ?”
“बस बस काका – आज इतना ही लेना है -|” वह जल्दी से भगौना हटाती हुई बोली|
“काहे – फिर उन जीवो को कही कम न पड़ जाए – अब हम बंदर, कुत्ता कहेंगे तो बिटिया खफा हो जाएगी न !”
“हाँ हाँ सबको पूरा पड़ जाएगा -|”सारंगी उससे जल्दी से छुटकारा पाना चाहती थी क्योंकि भोला की हर बात पर टांग अड़ाने वाली आदत से वाकिफ थी|
सारंगी झट से अंदर भगौना लेकर दौड़ गई ताकि लौटकर कोरियर ले सके| वह जैसे ही लौटकर वापस आई आखिर उसका डर जीवित हो उठा| दरवाजे पर अभी भी भोला मौजूद था और कोरियर वाले को घूरता हुआ देख रहा था|
“मास्टर जी ये कोरियर वाला आया है |” मनोहर दास का ध्यान न होने पर भी भोला उनका ध्यान उसकी ओर दिलाता हुआ जोर से बोलता है तो सारंगी भगौना लिए तो सीढ़ी से उतरती किरन अपनी अपनी जगह बस जमी रह जाती है|
अब दरवाजे पर कोरियर वाला एक छोटा पैकेट मनोहर दास की ओर बढ़ा रहा था|
“ये आपके नाम का है |”
“क्या है इसमें ?” मनोहर दास शंका से पूछते है|
“मुझे नही पता – मैं तो बस डिलवरी देने आया हूँ – लीजिए |”
“कहाँ से आया है ?” वे बिना उसकी ओर हाथ बढ़ाते फिर पूछते है|
“देने वाला का नाम नही है – ये हमारी स्पेशल सर्विस है जिसमे सेंडर का नाम नही होता – बस पते पर सामान की डिलवरी हो जाती है|”
“ये क्या बात हुई ?” वे उस पैकेट को लेकर इधर उधर पलटने लगते है|
पर उसी वक़्त वही हुआ जिसका डर किरन और सारंगी को था| भोला झट से बीच में आता पैकेट मनोहर दास के हाथ से ले कर उस कोरियर वाले को वापस करते हुए कहता है –
“हम तो ये पहली बार सुने है कि भेजे वाला नाम नही बताए है |”
कोरियर वाला हकबकाए हुए उसकी ओर देखने लगा जबकि वह अपना ज्ञान झाड़ना शुरू कर चुका था|
“हाँ तो मास्टर जी – आप कोरीयर से क्या मंगाते है – दाल चावल और क्या तो अब इतने छोटे पैकेट में दाल चावल तो आने से रहा – फिर क्या होगा !! आज कल आपको तो पता नही पर हम तो बाहर शहर में देखते है न – कोई कोई तो डाक से बम भेज देता है – नही नहीं बिना पता वाला सामान नही लेना मास्टर जी को – पता नही क्या होगा इसमें ?”
“अरे आपको कुछ पैसे भी नही देने बस रिसीव करना है |” कोरयर वाला बुरी तरह से झुंझुला उठा था|
“अब तो कतई नही लेंगे – और कौन है भला मानस जो मुफ्त में सामान भेजेगा – क्यों मास्टर जी – आप तो कुछ नही मँगाए न ?”
“नही नही मैंने कुछ नही मंगाया |” मनोहर दास जल्दी से कहते है|
“तो ठीक – बस अब आप मुझे न इससे निपटने दीजिए – तो भईया – तुम न अपना ये मुफ्त का सामान ले जाओ – नही चाहिए हमारे मास्टर जी को – न भेजने वाले का पता न सामान का नाम लिखा फिर काहे ले ऐसा सामान -|”
“लेकिन ..!!” कोरियर वाला मुंह बनाए खड़ा रह गया|
इधर सारा तमाशा देखती जहाँ सारंगी अपना सर पर हाथ मारती खड़ी थी वही किरन मन मारे उसका हाथ पकड़े उसे जाने भी नही दे रही थी|
और अंत में भोला खुद को ही अपनी कामयाबी पर शाबासी देता चला गया पर उससे पहले वह उस कोरियर वाले को भी रफा दफा करता गया| मनोहर दास फिर अखबार लेकर बैठ गए तो वही किरन उदासी से कमरे की ओर चली गई और सारंगी सर पकड़े बस ये नज़ारा देखती रह गई|
***
अरुण यूँ तैयार होकर कमरे से निकला मानो किसी नशे में झूमता हुआ चल रहा हो| चेहरे पर छिपी हंसी थी तो दिल में ढेरो मचलती हसरते| अब तो बस किरन द्वारा मोबाईल स्टार्ट करने का इंतजार था| वह ये सोचता सोचता होटल की ओर निकल लेता है|
***
पिछले दिन की हरकत से रूबी ये तो अच्छे से समझ गई कि बॉस की नजर में उसकी क्या स्थिति है पर साथ ही वह अपनी व्यक्तिगत स्थिति से भी अच्छे से वाकिफ थी| वही जानती थी कि किस तरह से ये नौकरी उसके लिए बहुत ही जरुरी थी| वह अपनी माँ को बिस्तर पर लेटे लेटे देखती हुई अपनी त्रस्त दुनिया में देर तक घुमड़ती रही|
अपनी माँ के कैंसर की कीमो थैरिपी पर होने वाले साप्ताहिक खर्च और रोजाना की दवाई उसकी पस्त हालत को और भी पस्त कर देते थे| एक एक पैसा वह किस किस तरह से जोड़कर अपनी माँ के इलाज में खर्च करती ये बस उसका दिल ही जानता था|
सौभाग्य से नौकरी अच्छी थी पर आकाश का व्यवहार उसे अंदर तक हिला गया था| एक मन तो नौकरी छोड़ने का करता तो दूसरा माँ की हालत पर उसे बेबस कर देता| वह खुद भी नही जानती थी कि आने वाला वक़्त उसकी किस हद तक परीक्षा लेने वाला है !
क्या बदल जाने वाला है इन सबकी जिंदगी में !! जानने के लिए जुड़े रहे बेइंतहा से……..
……………..क्रमशः………….

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