
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 36
“अरे भाभी घर पर बैठकर करूँगा क्या मैं |”
“मुझे नही पता बस आज कल और फिर तो शादी होनी है – अब से इन दो दिन बिलकुल बाहर नही निकलोगे समझे |”
भाभी की नाराजगी पर अरुण सीने पर हाथ बांधे देखता हुआ कहता है – “आप बोलो तो उसके अगले दिन भी बाहर नहीं निकलता |”
“ओहो |” भूमि अब उसे तिरछी नजर से घूरती हुई मुस्कराते हुए कह उठी – “क्या सच में !! तो बारात लेकर कौन जाएगा?”
भाभी अब उसे इस तरह देखने लगी कि अरुण बस नज़रे बचाते हुए वहां से निकलने लगा| वह दो तीन सीढियां एक साथ फलांगकर पार कर अपने कमरे की ओर चल दिया ताकि असमय आई मुस्कान छिपा सके| तभी पीछे से उसे छेड़ती हुई भाभी की आवाज सुनाई पड़ती है|
“कहाँ चले – ओह लगता है अब फोन करके ये पूछा जाएगा क्या – |”
भूमि की हंसी जहाँ उसका मन गुदगुदा गई वही फोन के नाम पर अब सच में उसका रुकना मुश्किल हो गया|
बैठक में लगा फोन ज्यादातर सारंगी ही उठाती| अभी अभी मेहँदी लगाकर काकी गई थी जिससे बैठक में वे दोनों अकेली ही थी| सारंगी सामान समेटती किरन की मेंहदी देखती मुस्कराती हुई कह रही थी –
“काकी ने कितनी अच्छी मेहँदी लगाईं है – अब देखना जब रचेगी तो सब देखते रह जाएँगे – आखिर प्यार भी उनका उतना ही गहरा होगा न |”
सारंगी की हंसी की फुहार पर किरन गुस्से का दिखावा करती टेक लेकर लेट जाती है| अब दोनों हथेली सहेजकर भी रखनी थी और तब से बैठे बैठे कमर दुःख गई|
अभी सारंगी हंस ही रही थी कि अचानक से फोन बज उठा तो दोनों हैरान एकदूसरे की ओर देखने लगी| मेहँदी न होती तो किरन झट से फोन उठा लेती पर मनमसोजे सारंगी को देखने लगी| उसे भी जाने क्या मस्ती सूझी थी वह जानकर सामान उठाती हुई फोन की ओर ध्यान नही देती|
ये देख किरन झींकती हुई बोल उठी – “फोन उठा न सारंगी |”
“होगा किसी का – आप आराम करो न – |”
“बार बार बज रहा है उठा न |”
“क्यों किसी ख़ास का फोन आना है ?”
सारंगी मस्ती में मुस्कराती हुई कहती है तो किरन का चेहरा गुस्से से भरने लगता है|
फोन दो बार पूरी पूरी रिंग जाकर कट गया था| वही किरन की बेचैनी बढ़ रही थी तो सारंगी की हंसी भी|
“अरे तुम दोनों यहाँ बैठी हो तो फोन क्यों नही उठा रही |” तभी किरन का ध्यान आवाज से दरवाजे की ओर जाता है जहाँ से उसके बाबू जी चले आ रहे थे| ये देख सारंगी हंसी भूलती झट से फोन उठाती हुई बाबू जी ओर देखती हुई बोलती है –
“हाँ वो पंडित जी है न सामान पूछ रहे थे – बस उनकी लिस्ट ढूँढने लगी थी बाबू जी |”
“लाओ क्या मैं करूँ बात ?”
“नही नही बाबू जी अब तो बता दिया – अब मैं ही बोल देती हूँ कि लिस्ट मिल गई |” सारंगी बात बनाती हुई मिमियाती हुई कह रही थी वही किरन अपनी साँसे रोके नीचे देखती रही|
सारंगी अबकी झट से फोन उठा लेती है ये देख वे बाहर निकल जाते है और दोनों की सांस में सांस वापस आती है|
एक हेलो की आवाज से सारा इंतजार भांप लिया जाता है| अरुण को तो इंतजार था कि मोबाइल मिलते किरन से उसका सामना होगा पर शायद वक़्त को अभी ये मंजूर नही था| सारंगी फोन उठाते ही सारी बात कह सुनाती है|
क्या कहता अब उस भोला का गोला बनाने का मन कर भी रहा होगा तो करे क्या ! सारंगी अब फोन किरन की ओर बढाती है पर हाथो पर मेहँदी की वजह से वह फोन ले नहीं पाती तो सारंगी उसके कानो से फोन सटाकर उसके पास बैठ जाती है|
“कितना इंतजार कराओगी – तड़पा कर जान ही ले लोगी क्या !”
“न..|” किरन का मन कांप उठा|
“अब तो तुम्हे देखने की तड़प और भी बढ़ गई है – बताओ क्या करूँ इस तड़प का ?” वह लेटे लेटे करवट लेता तकिया सीने से भींच लेता है|
“मैं अपनी तस्वीर पोस्ट से भेज देती हूँ |” रुआंसी होती किरन धीरे से कहती है|
उस पार से उसकी रुआंसी भोली सी आवाज को दिल से महसूसते अरुण बंद होठो से कसकर मुस्करा उठता है|
“और मान लो डाकिया भी बेईमान निकला तो !”
“तो !” एक ओर को झुक आए वे नयन सोचने लगे|
पर उसे क्या पता कि उसका भोलापन किसी में अंतर्मन में सीधा उतरता जा रहा था| इस ज़माने ने वे पोस्ट से अपनी तस्वीर भेजेगी !! ये सोचते उसके मन की गुदगुदी रुक ही नही रही थी|
इधर किरन सच में सोच में पड़ी थी|
उन दोनों के बीच फंसी सारंगी की हालत पर तो उन दोनों का ध्यान ही नही गया| वह बार बार अपने पैर का एंगल बदलती पर फोन उसे वैसे ही पकड़कर रखना था| आखिर ऊबकर वह अर्धलेटी किरन के कानो के पास फोन कुशन का टेक लगाकर रखती वहां से निकलने लगती है|
फोन सारंगी के हाथो से अब कुशन से टिका था पर किरन का तो सारंगी की ओर ध्यान ही नही गया कि वह कब कमरे से बाहर चली गई|
“क्या कहे कि हम क्या क्या भूले…नाम भूले..काम भूले तेरी याद में अपनी बिसात ही भूले…बड़ा गुमान था हमे अपने पत्थर ए दिल पे पर तेरे अहसास में हम अपना जहाँ ही भूले…|”
इस पर किरन धीरे से खिलखिला उठती है|
“अच्छा बोलो क्या तुम्हारे दिल में ये अरमान नही उमड़ता कि अपना सपना सच में अपने सामने देखूं !”
“हूँ अ उतना नही |” वह न में सर हिलाती निचले होठ का किनारा दबा लेती है|
“क्यों ?”
“मैंने देखा है आपको – |”
“कब कहाँ !!”
“आपके सामने तो थी |”
“कब !!”
“गरबा में बिलकुकल आपके सामने |” अब किरन का मन भी शरारत से खिल उठा था|
“ओह…|” अब जाकर अरुण समझ पाया कि जिसके संग वह पार्टनर बना गरबा खेल रहा था वह वही थी| उफ़ खुद पर ही गुस्सा आ गया कि वह उसके कितने पास थी और वह जान भी नही पाया साथ ही ये सोचकर भी हंसी आ गई कि तब कितना अनाड़ी की तरह वह गरबा खेल रहा था| तभी उसे अब अहसास हुआ कि क्यों वह इतना अच्छा खेलने के बाद भी उसके पास से नही हट रही थी| अबकी वह भी धीरे से मुस्करा उठा|
“ये तो गलत बात है – मेरी इज़ाज़त के बिना मेरा दीदार और मुझे एक झलक भी मयस्सर नही – बड़ी बेरहम कातिल हो – हमे घायल भी कर दिया और हमे पता भी नही चलने दिया |”
एक मीठा सा दर्द लहर बनकर किरन के तन मन को हिला गया| अब उसका मौन ही साँसे बन यूँही आर पार अपनी यात्रा तय करता रहा|
“जाओ अब मैं तुम्हे नही देखूंगा |”
“क्यों !!” किरन पल में बेचैन हो उठी|
“क्योंकि अब मैं तुम्हे तभी देखूंगा तब तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में होगा और हमारे बीच बस एक सांस भर की दूरी होगी – तब देखना ये रुत ये हवा ये मौसम भी थम जाएगा – बस एकटक मैं तुम्हे देर तक निहारता रहूँगा – तुम्हारी आँखों के समन्दर में पूरी तरह से डूब जाऊंगा – बह जाऊंगा कतरा कतरा होकर – तब बस एक तुम और मैं होऊंगा आमने सामने – अब बस इसी पल के बाद से मैं तुम्हे अपने पास देखूंगा रोजाना – तब मेरी हर सुबह हर शाम तुम होगी – मेरी हर सांस बस तुम्हारे होने को ही अपने अंतरस महसूस करेगी – उस पल का शिद्दत से इंतज़ार रहेगा मुझे |”
किरन कुछ कहना भूलकर बस आँख बंद किए उस इन्तखाब में जीने लगी थी|
“किरन |”
एकदम से अरुण की आवाज में ढेर अनुरक्ति उमड़ आई जिसने किरन के मन को भी बेचैन कर दिया|
“जब बिन देखे तुम्हारे नाम ने मेरा मन में इतनी कशिश भर दी तो न जाने तुममे कितनी कशिश होगी – अब तो तुम्हे सामने देखने के लिए बड़ा दिल सँभालते हुए आने का हौसला करना होगा – न जाने किस तीर से घायल हो जाए मेरा बेचारा मन |”
किरन तो होंठ दाबे बस अपनी बढ़ी हुई धड़कने ही गिनती रही|
“बहुत अकेला था मेरा मन पर जाने कब तुम्हारे अहसास ने मेरे अकेलेपन को अपने में समेट लिया – किरन तुम मुझे भी यूँही अपने अंक में समेट लेना – बस तुममे खो जाना चाहता हूँ – अपना वजूद तुममे समाता हुआ देखना चाहता हूँ – बहुत अकेलेपन की कर्कश धूप में जला है मेरा मन क्या इसे अपने प्यार की बौछार से सहला दोगी तुम – बोलो क्या इतना प्यार दोगी मुझे – मैं प्यासा समन्दर हूँ क्या अपने प्यार के समन्दर में समेट लोगी मुझे |”
किरन निशब्द थी बस उसकी उफनती हुई सांसे जैसे उसके मन का आभास उस पार पहुंचा दे रही थी| कुछ पल यूँही ख़ामोशी को सुनते वे मौन एकदूसरे के मन में चुपचाप उतरते रहे|
“मुझे छोड़कर मत जाना किरन – नही तो दीवाना तो हूँ पागल और हो जाऊंगा |” कहता हुआ अरुण हंस रहा था तो किरन आंख बंद किए अभी भी उसी आभासी दुनिया में घूम रही थी|
तभी किसी आवाज के तेजी से आते वह उसे हडबडा देती है| वह आंख खोले सुनने लगती है| गौरा बुरी तरह से रम्भा रही थी|
अरुण रिसीवर लिए रहा पर किरन फोन छोड़कर उठ गई थी| उसने आजतक गौरा की इतनी तेज रंभाती आवाज नही सुनी थी| ये तो क्रंदन था| वह झट से उठती हुई बाहर की ओर भागती है|
ज्यो ज्यो वह बाहर गौरा के पास पहुँच रही थी उसका क्रंदन उसे परेशान करता जा रहा था|
वह तेजी से दौड़ती हुई वहां पहुंची जहाँ सारे जानवर बंधे होते थे| सारंगी गौरा के पास खड़ी उसे संभाल रही थी पर गौरा थी कि बार बार मुंह झटकती रम्भाना रोक ही नही रही थी|
“क्या हुआ है गौरा को ?” किरन परेशान होती उसके पास आ पहुंची थी|
“पता नही दीदी – आज न खा रही है न पी रही है – बस ऐसे ही राम्भाए जा रही है -|”
“कही कोई इसे तकलीफ तो नही ? डॉक्टर चाचा को बुलाए क्या ?” किरन गौर को लेकर कुछ ज्यादा ही परेशान थी| असल में वह गौरा को माँ मानकर बड़े प्यार से उसकी देख रेख करती थी| उसे परेशान देख वह बेचैनी से गौरा के पास आती उसके मुंह के पास घास का ढेर सरकाने लगती है पर जब वह अपना मुंह घुमा लेती है तो किरन एक हाथ से उसकी पीठ सहलाती दूसरे हाथ से उसका चेहरा सहलाने लगती है| यही पल था जब गौरा किरन का हाथ चाटने लगती है|
“ये क्या किया दीदी – आपकी सारी मेहँदी तो खराब हो गई – अब रचेगी कैसे ?”
सारंगी की बात पर किरन का भी ध्यान अब अपनी दोनों हथेली की ओर जाता है| गौरा को सँभालने में वह अपने हाथ की मेहँदी भूल ही गई थी| अब रुआंसी सी होती अपनी दोनों हथेली अपनी आँखों के सामने करती हुई कह उठी – “ये क्या किया गौरा ?”
गौरा ने बची मेहँदी भी उसके हाथ से चाट ली थी|
क्रमशः…………………………किरन के जीवन का ये कौन सा संकेत है..!!!