Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 37

गौरा की आवाज अब तक किरन के पिता तक भी पहुँच चुकी थी, वे भी उसे देखने वही आ गए| किरन के स्नेहपूर्ण स्पर्श से गौरा अब शांत हो गई थी पर अपनी हथेली की मिटी हुई मेहँदी से उसका मन उदास हो गया था, मेहँदी से उसे अरुण का ख्याल आता है और उसके ख्याल से उसे अपना फोन यूँही छोड़कर आना जैसे ही याद आता है तो वह और परेशान हो उठती है पर अपने बाबू जी के आने से वह वहां से हिल भी नही पा रही थी|
वे भी आते गौरा को ध्यान से देखते हुए कहने लगे – “अभी तो ठीक है – पता नहीं क्या हुआ होगा – बेचारे बेजुबान जीव है – जाने क्या तकलीफ रही होगी – किरन !”
किरन का ध्यान अपनी ओर करने वे उसे पुकारते है जो इशारे से सारंगी को अरुण के फोन के बारे में बता रही थी|
“जी बाबू जी – पता नही क्या हुआ – मैं तो घबरा के जल्दी में भागी चली आई|”
किरन की घबराई आवाज में यूँही फोन छोड़ देने का मलाल भी था| पर क्या करे यूँही वापस भी नही जा सकती थी तो सारंगी उसे हाथ से इशारा करती खुद चली जाती है|
सारंगी को लगा था कि फोन अबतक कट गया होगा पर रिसीवर उठाते और हेलो कहते इंतज़ार की बेख्याली का उसे भी अंदाजा हो जाता है| किरन के फोन अचानक छोड़ने के कारण को सारंगी जस का तस बताती हुई फोन रख देती है|
अरुण अब उठकर खिड़की से खुले आसमान की ओर देखता खड़ा था| उसका एक हाथ चौखट पर तो दूसरे हाथ की उंगली के बीच एक सिगरेट सुलगती पड़ी थी| उसकी आँखों के सामने विशाल आसमान के नीले सफ़ेद बादलो का जमावड़ था जो बार बार आपस में घुमड़ता जाने क्या क्या आकार ले ले रहा था| कभी लगता कोई तीखे नयन उसे ही ताक रहे है तो कभी लगता कोई अधखुले होंठ उसका नाम लेकर काँप गए है ये महसूसते वह खुद की बेखुदी पर ही हँस पड़ता है|
कितना कुछ कहना था उसे किरन से पर हर बार वक़्त कम पड़ जाता है| वह उसे बताना चाहता था कि कौन कमबख्त सूरत से प्यार करता है, तस्वीर तो उसे अपनी याद को एक शक्ल देने के लिए चाहिए थी….उसे तो उसके दिल से प्यार हो गया है….जितना वह उसे जानता गया उसी में घुलता चला गया….उसकी अनछुई मासूमियत कब उसके दिल में गहरे से उतरती गई वह खुद भी नही जान पाया…कब उसकी सूनी जिंदगी का इंतजार वह बन गई…कब उसके सन्नाटे की झंकार वह बन गई वह खुद भी नही जान सका….बताना था उसे कि उसे कितना टूट कर वह प्यार करना चाहता है….उसके जिस्म से पहले उसकी रूह में उतरना चाहता है….उससे भी पूछना था कि क्या उसे भी यही लगता है…क्या उसे भी उसका इतना ही इंतजार है….क्या वह भी अपना सारा प्यार उसपर लुटा देगी…क्या उसके जैसी हालत उसकी भी है…ये बेचैनी ये तड़प उसमे भी उठती है….कभी वह उसे मंझधार में छोड़कर तो नहीं जाएगी न…!! पर वह तो कभी कुछ कहती ही नही…!!
वह खुद में मुस्कराता हुआ अब बहुत देर से जल रही सिगरेट का गहरा कश अन्दर तक उतारता आंख बंद किए खिड़की का टेक लिए उसकी धुंधली सूरत अपने मन के आईने में बनाते बनाते कोई गीत गुनगुनाने लगता है….
जब मैं बादल बन जाऊं…
तुम बारिश बन जाना…
जो कम पड़ जाए साँसे…
तू मेरा दिल बन जाना..
तेरे लबो से आए कभी भी..
हो नाम पहला मेरा तेरी जुबा पे..
चाहे जमाना मुंह मोड़ ले…
बस हर पल तू रहना मेरा….
जब मैं बादल बन जाऊं…
तुम बारिश बन जाना….
***
अभी कुछ वक़्त गुजरा ही था कि होटल से किसी का फोन आते अरुण एकाएक सजग हो उठता है| फोन पर बात सुनते सुनते उसके चेहरे के हाव भाव बदल जाते है और वह तुरंत ही फोन रखकर बाहर जाने को निकल जाता है|
जब तक राजवीर उसे रोक पाता अरुण खुद कार लिए तेजी से बाहर की ओर निकल गया था और अगले कुछ पल में वह तेजी से पोर्च से होता सीधे होटल के अंदर प्रवेश कर रहा था| उसे देखती रिसेप्निस्ट भी चौंक जाती है| सबको पता था एक दिन बाद उसकी शादी है तो शायद वह नही आएगा| बाकी का स्टाफ भी उसे देख चौक गया था और उससे भी ज्यादा चौंकने वाली बात ये थी कि अरुण ने न किसी की ओर देखा न कुछ कहा बस सीधे सीढ़ियों से तेजी से चढ़ता हुआ ऊपर जाने लगा|
स्टाफ ने उसे देखा तो दीपांकर को आनन फानन में उसके आने की खबर दी गई| पर अरुण के सीढ़ियों से जाने के कारण कोई नही जानता था कि वह किस फ्लोर में जा रहा है| दीपांकर भी ऊपर के फ्लोर में था और जैसे ही अरुण के आने की खबर लगी वह भी सीढ़ियों की ओर तेजी से भागा|
दीपांकर जिस फ्लोर में था अरुण अब ठीक उसी फ्लोर पर उसके सामने खड़ा था| वह बुरी तरह से सकपका गया था पर अपनी हडबडाहट छुपाने के लिए वह स्वागत भरी मुस्कान के साथ कह रहा था –
“वेलकम सर – ऑफिस में चले |”
अरुण उसकी बात पर कोई प्रतिक्रिया न देता सीधे उसी फ्लोर के एक रूम की ओर बढने लगता है| ये देखते दीपांकर उसके पीछे पीछे चलता हुआ कह रहा था – “सर वो होटल हेरिटेज के लिए गवर्नमेंट रिकमेन्डेशन लेटर तैयार है तो चले ऑफिस सर !”
दीपांकर उसके तेज तेज कदमो के पीछे पीछे चलता हुआ कहता रहा –
“सर फिमेल स्टाफ के ड्रेस चेंज के लिए कुछ सजेशन जो आपने स्टाफ से मँगाए थे उसे देख ले !” एक तरह से दीपांकर अरुण को रोकना चाहता था पर अरुण के तेज कदम किसी निश्चित रूम नंबर को तलाश रहे थे|
उसके पीछे पीछे चलता हुआ दीपांकर पसीने पसीने हुआ जा रहा था और तभी वही हुआ जो वह शायद कतई नही चाहता था|
अरुण झटके से एक रूम नम्बर को पढ़ते तुरंत उसका डोर खोलता हुआ दरवाजे पर खड़ा अंदर का हाल देखने लगता है|
रूम का दरवाजा अचानक खुलते उस रूम में मौजूद कई चेहरे भी सन्न भाव से दरवाजे की ओर देखने लगे थे| वे सभी बहुत ही स्टाइलिश और भड़काऊ कपड़ो में कुछ जवान लड़कियां थी| उनमे से कुछ विदेशी रंग रूप की तो कुछ भारतीय दिख रही थी| अरुण तीखी नज़र से उन्हें एक नज़र देखता हुआ अब मुड़कर दीपांकर को देख रहा था जो घबराहट में अपने माथे का पसीना पोछने लगा था|
अरुण के लिए ये दृश्य इतना बताने को काफी था कि वे सभी लड़कियां यहाँ क्यों है? वह तुरंत ही दरवाजा बंद करता दीपांकर की ओर घूमता है जो लड़खड़ाते शब्दों में कह रहा था –
“वो सर – होटल में ऑनडिमांड अरेंजमेंट रखना पड़ता है – वो – कुछ ख़ास गेस्ट के लिए – मैं बस इतना ही जानता हूँ – आकाश सर..|” वह आकाश का नाम लेता अपनी बात अधूरी छोड़ देता है|
अरुण का चेहरा बुरी तरह से तमतमा गया था| उससे पता था दीपांकर को कहने का कोई फायदा नही था सब आकाश के कहने पर हो रहा था इसलिए बिना समय गंवाए वह तुरंत ही वहां से निकलकर वैसे ही तेजी से सीढियां उतरने लगता है| दीपांकर अपनी जगह खड़ा अब एक नज़र उस बंद दरवाजे की ओर तो दूसरी नज़र उन कुछ स्टाफ की ओर डालता है जो अरुण के पीछे पीछे वहां आ गए थे पर उस रूम तक जाते देख वे सभी अपनी अपनी जगह बुत बने रह गए थे|
दीपांकर जबड़े कसता हुआ उस स्टाफ को एक घूरती नज़र से देखता है जैसे बिना शब्द के कह रहा था कि ये सब किसी न किसी स्टाफ को खबर करने से हुआ है पर कौन ये वो पता चलते बस फायर कर देना है उसे|
***
अरुण जिस तेजी से आया था उसी तेजी से अब वह बाहर निकलकर सीधे अपनी कार की ओर बढ़ गया था| दीपांकर का उखड़ा चेहरा और कुछ आँखों देखी हाल देखने वाले स्टाफ से अब सभी को अरुण का अचानक आना पता चल गया था| अब आगे क्या होगा इस पर सभी का संशय बना था|
लेकिन अरुण को पता था कि अब उसे क्या करना है इसलिए वह सीधे आकाश से मिलने उसके ऑफिस की ओर निकल रहा था|
वह तेजी से स्टेरिंग घुमाता हुआ वहां से निकला| पर उसे नही पता था कि होटल से ऑफिस जाने के सुनसान रास्ते के बीच में उसका सामना चिंगारी भाई और उसके आदमियों से होने वाला है| वह लगातार उसे ट्रेस कर रहा था और उसके होटल से निकलने के दोनों मार्ग पर उसने अपने आदमी छोड़ रखे थे| जब ऑफिस जाने के रास्ते पर उसे जाते देखा तो बाकी के आदमियों को भी वही आने को कहता सड़क का रास्ते पर रुकावट डाल वह उसका इंतजार करने लगता है|
सड़क पर एक पलटी बाइक और घायल आदमी को देखते अरुण तेजी से ब्रेक पर पैर जमाते कार रोक लेता है और उस घायल आदमी को तुरंत सहायता पहुँचाने कार से उतरकर उसके पास चल देता है|
वह ज्योंही उसे पलटकर देखने अपना हाथ बढाता है कोई धक्का अचानक से पीछे से आता उसे जमीन की ओर धकेल देता है|
त्वरित प्रतिक्रिया के लिए अरुण तैयार नही था इससे जमीन पर गिरा वह अब अपने सामने देखता है|
दस बीस गुंडे टाइप आदमियों ने उसे घेर रखा था|
“हाँ बे अब बता – कितना दम है तुझमे !”
आवाज सुनते अरुण का ध्यान उन सभी गुंडों में से उस खास गुंडे पर जाता है जो ठीक उसके सामने और उन गुंडों के बीच में खड़ा था| अब माजरा समझते उसे देर नही लगती| वह समझता है कि उस रात का बदला लेने आया होगा|
“तू बहुत उडाता है न लोगो को – आज देख हम तुझमे कितनी हवा भरते तुझे उड़ाते है – ही ही |” चिंगारी भाई हँसते हँसते अपने गाल पर हाथ रख लेता है जैसे अचानक पुराना दर्द याद हो आया हो|
अरुण देखता है कि पीछे से दो चार और गुंडे आकर खड़े हो जाते है| एक तो आते सीधे चिंगारी भाई की ओर देखता तीली अपने दांत के बीच फसाते हुए कहता है –
“बॉस यही है क्या – साला एक आदमी और अपने बॉस की बजा डाली |”
चिंगारी भाई अब उसे घूरने लगता है वह वही आदमी था जो पिछली बार सेल्विन के सामने उसकी उतार चुका था| इससे वह खीजता हुआ उसकी ओर देखता हुआ कहता है –
“तो जा आगे बढ़कर तू आज इसकी बजा डाल |”
“और क्या बॉस – एक थप्पड़ में ये देखना सड़क पर नाचने लगेगा |”
“अच्छा !! एक ही थप्पड़ में !!” चिंगारी भाई मुंह बनाते हुए कहता है|
“और क्या – अपुन भी केकड़ा भाई है |”
चिंगारी भाई कुछ न कहता बस अपने गाल को चुपचाप सहलाते हुए उसे देखता रहा|
उन सबकी बातो के बीच अरुण उठता हुआ अपने कपड़े झाड़ता हुआ खड़ा एक नजर से सबको देखता हुआ कह रहा था –
“बच्चों जो भी मस्ती करनी है कही और जाकर करो – मेरा दिमाग इस समय बहुत गर्म है और बहुत ही जरुरी काम से मुझे जाना है इसलिए प्लीज़ मेरा समय मत बर्बाद करो|”
“क्या बे – तू हमको बच्चा बोला – तू खुद को खली समझता है – |” केकड़ा बुरी तरह फुंकार उठा था|
“बलि न बनो इसकी चेतावनी दे रहा हूँ |” अरुण अब हथेली की धूल झाड़ने लगता है|
“देख बे – आज न हम तेरी ऐसी बजाने वाले है कि जिंदगी भर के लिए तू टे टे करना भूल जाएगा – चाहे तो अभी भी हमारे पैरो पर गिर कर माफ़ी मांग ले |”
केकड़ा खी खी करता हँसता हुआ बाकी के गुंडों की ओर देखता है जबकि चिंगारी भाई का चेहरा वैसा ही सख्त बना हुआ था|
सारे गुंडे तैयार थे कुछ के हाथ में सरिया तो कुछ चाकू तो कुछ बिना औजार तनकर खड़े थे| वे सभी अरुण को चारो ओर से घेरे थे| उस घेरे में केकड़ा भी था पर चिंगारी भाई उस घेरे से बाहर खड़ा था|
उन गुंडों को एक वक्र दृष्टि से देखता हुआ अरुण कहता है –
“देखो तुम सब मेरा समय बर्बाद कर रहे हो |”
“अरे ये तो मिनमिनाने लगा |” एक बार फिर उसे गहरे हुए गुंडे कसकर हँस पड़े कि तभी हवा चली या या तूफान आया| पल में केकड़ा जमीन पर पड़ा था और बाकि भी हवा से नीचे एक एक करके टपकते जा रहे थे| वे सभी अरुण को हलके में ले रहे थे और वह उनका बैंड बजाने की तैयारी कर चुका था|
उन सबका ध्यान अरुण से हटा और उनसे सीधे नीचे झुकते हुए एक पैर को चक्र की तरह घुमाते हुए अरुण सबको एक बारगी में नीचे गिरा देता है| यहाँ तहां वे सभी पत्थर पर तो कोई कोंक्रिट की जमीन पर गिर पड़े थे| वे सभी अभी संभल भी नही पाए थे कि उनपर लात रखते अरुण एक लम्बी फलांग में उन्हें लांघता हुआ सीधे अपनी कार तक पहुँच गया था|
चिंगारी भाई मुंह खोले सब देखता रहा| वह इस मार से बच गया था लेकिन बाकि के जमीन पर पड़े गुंडे अब अरुण की ओर उसे पकड़ने भागने लगते है|
“बाद में कभी खेलूँगा तुम लोगो के साथ – अभी जल्दी है मुझे क्योंकि मैं नही चाहता मेरा सारा गुस्सा तुम लोगो पर ही जाया हो जाए|” अरुण कार की ड्राइविंग सीट पर बैठता हुआ उन लोगो को बोलता है|
सभी मुंह खोले उसकी फुर्ती देखते ही रह जाते है|
चिंगारी भाई किनारे खड़ा खुद का बचा रहना सोच ही रहा था कि कार को ड्राइव करते करते उसके बगल से निकलते अरुण खिड़की से हाथ बढाकर एक तेज का थप्पड़ आखिर उसे रसीद कर ही देता है जिससे वह एक बार फिर घूमता हुआ धडाम से रोड साइड पत्थर से टकराता हुआ नीचे गिर पड़ता है|
“इसे मेरी ओर से अपने लिए रिटर्न गिफ्ट समझ लेना|” कहता हुआ अरुण निकल गया था|
अरुण को वे सभी मिलकर भी नही रोक पाए और वह आसानी से उनके सामने से निकल गया था| पीछे घायल पड़े गुंडे अभी भी कराह रहे थे|
चिंगारी भाई केकड़ा के पास ही गिरा था जो खुद कराह रहा था और उससे नज़रे चुरा रहा था ये देखते चिंगारी भाई कराहते हुए बोलता है –
“तुम तो एक थप्पड़ में हिलाने वाले थे उसको – क्या हुआ ?”
“तो तुम्हारी भी तो बैंड बजा गया – चिंगारी से फुलझड़ी भाई बन गया – |”
चिंगारी भाई अब उसे गुस्से से देखने लगा था|
……………क्रमशः…..

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