
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 38
उन गुंडों से निपटकर अरुण उसी तेवर में आकाश के केबिन की ओर बढ़ रहा था| उसके आने से पहले ही दीपांकर आकाश को फोन करके सारा घटनाक्रम बता चुका था|
झटके के साथ अरुण केबिन का दरवाजा खोलकर अंदर प्रवेश करता है| वह जिस आक्रोश के साथ आकाश के सामने खड़ा था आकाश उसके प्रति उतना ही सहज बना हुआ मोबाईल रखते हुए उससे कह रहा था –
“वैसे तहजीब तो यही कहती है कि तुम्हे नॉक करके आना चाहिए – चलो ये गलती भी तुम्हारी माफ़ की |”
आकाश जितनी शांति से कह रहा था अरुण का मिजाज उतना ही चढ़ा जा रहा था, वह उसी भाव में बोल उठा – “तहजीब की सीमा तो आपने लांघी है और मैं इसके लिए बिलकुल माफ़ नही करने वाला हूँ |”
अरुण उसके सामने की मेज के कोने पकडे उसकी ओर झुका हुआ कह रहा था|
“आराम से बैठकर बात करो – ऐसा कौन सा तूफान आ गया ?” अब वह सिगरेट सुलगाते हुए आराम से टेक लेता हुआ कहता है|
“वैसे मेरे आने से पहले खबर तो मिल ही गई होगी तो अब आप बताएँगे कि होटल को आपने हर इललीगल काम का अड्डा क्यों बना रखा है ?” अरुण अभी भी खड़ा खड़ा चीख रहा था – “पब, डांस बार, यहाँ तक कि केसिनो भी जबकि ये इस स्टेट में बैन है और अब ये लड़कियां….डिस्कसटिंग आल दिस |”
“कम ऑन अरुण – तुम बच्चे नहीं हो कि मुझे तुम्हे ये सब क्यों है बताना पड़ेगा – माय डियर ये होटल बिजनेस है और होटल में कोई प्रवचन सुनने नही आता – ये सब आज कल की डिमांड है – समझना चाहिए तुम्हे |” एक गहरा कश छोड़ते हुए अभी भी वह अपनी बात बड़े इत्मिनान से कहता है|
“कोई भी गलत काम आज कल की डिमांड है कहकर नही किया जा सकता !”
“अभी तुम्हे बहुत कुछ सीखना है – इसलिए ये सब मुझसे सीखो तब तुम आगे बढ़ पाओगे – कोई यहाँ दूध का धुला नही बैठा है – अगर कुछ गलत है तो कौन है वे लोग जो अब तक आंख बंद किए ये सब होने दे रहे है – वही जो ऊँची जगह बैठे है और हम जैसो के पैसो पर बार बार चुनकर आते है – जब उन्हें कुछ नही दिख रहा तो बेहतर होगा तुम भी अपनी ऑंखें इस ओर से फेर लो |”
“नही कर सकता -|” वह तनकर खड़ा होता कहता है|
इससे आकाश के तेवर उखड़ने लगते है और वह सिगरेट को कुचलते हुए खड़ा होता हुआ उसी तेजी में चीखता हुआ कहता है – “तुम रोकोगे इसे !”
“हाँ ये सब मैं अब और नही होने दूंगा – |”
“अरुण |” आकाश चीखता हुआ बढ़कर उसका गिरेबान अपनी पकड़ में करता हुआ कहता है – “तुम्हे अंदाजा भी है कि मैंने अपने ग्यारह साल में कैसे और किस तरह से ग्यारह फाइव स्टार होटल की हर एक बड़े शहर में चेन बनाई ! उसे तुम अपनी नादानी से धराशाई नही कर सकते |”
अरुण आकाश के हाथ अपने गिरेबान से झटकते हुए कहता है – “बेदह अफ़सोस होता है कि काश मैं अपने बड़े भाई के इन ग्यारह सालों के अनुभव से कुछ सीख पाता पर नही – ये अनुभव नही मजबूर लोगो के कंधो पर खड़ी की गई वह इमारत है जिसमे जाने कितने मजबूरो की बेकसी की मिट्टी मिली होगी – इसलिए नही सीखना मुझे आपसे कुछ |”
अब आकाश तंज भरी हंसी से कहता है – “किन मजबूर और किन बेबस लोगो की बात कर रहे हो ? शायद तुम खुद भूल रहे हो कि ये वही मजबूर लोग है जिन्होंने आज से पांच साल पहले तुम्हे ही सारी दुनिया के सामने धोखा दिया था – |”
अचानक अरुण के चेहरे के हाव भाव बदल जाते है| अब वहां डर और तनाव नज़र आने लगा था|
“नही याद होगा तो याद कराता हूँ मैं -|” आकाश अब उसके आस पास घूमते हुए कह रहा था – “तभी भी तुम सच के साथ खड़े थे तब क्या हुआ था तुम्हारे इन सो कॉल मजबूर लोगो को – जिन्होंने एक झटके में पैसे को चुना न कि सच को – क्योंकि इस सच से तुम अपनी आँखे बंद कर रहे हो कि ये मजबूर लोग अपनी बेबसी को ट्रंप कार्ड की तरह खेलते है – जैसे ही मौका मिलता है बस पैसे को चुन लेते है – इनका भगवान सिर्फ पैसा होता है बस पैसा – इनपर तरस नही खाओ बल्कि इनका यूज करना सीखो |”
अरुण अब अपने होंठ चबाता खड़ा हुआ था|
“वैसे आज एक बहुत बड़ी सीख देता हूँ मैं तुम्हे – इस दुनिया में न बस दो तरह के लोग है एक वे जो दूसरो को यूज करना जानते है और दूसरे वे जो बस यूज होते है – तो मैं पहला हूँ और इसलिए यहाँ इतने ऊपर खड़ा हूँ और यहाँ तक हर कोई नहीं पहुँच पाता – तुम सोचो आखिर ये इतने सारे लोग जो रोजाना कीड़े मकोडो की तरह मर के खप जाते है – इन्हें कोई जान भी नही पाता तो अगर इनका हम जैसे लोग थोड़ा यूज कर भी लेते है तो इन्हें तो हमारा शुक्रगुजार होना चाहिए |”
आकाश अरुण की घबराहट अच्छे से भांप गया था कि पांच साल पहले का ट्रामा उसपर कितना असर डालता था इसलिए वह इस वेदना में अपनी तीक्ष्णता डालता हुआ कहता रहा –
“ये बेचारे वेचारे कुछ नही होते बस ढोंग करते है बेचारगी का – इनपर तरस खाने की कोई जरुरत नही है – तुम समझ रहे हो न मेरी बात !”
अब अरुण निढाल हो रहा था तो आकाश उसे बैठाता हुआ उसके कंधे पर हाथ रखे कहता रहा – “इन दो टके के लोगो का कोई दीन धरम नही होता – इनका भगवान बस पैसा है और वो हमारे पास है तो बस पैसा फेको और इनका यूज करो – तुम तो मेरे भाई हो मैं तुम्हे कुछ गलत थोड़े कहूँगा – इस बात को समझो तुम – नही तो एक बार फिर से तुम धोखा खाओगे – और इस बार तुमने इन बेचारे लोगो पर तरस खाया तो इस धोखे से तुम कभी भी नही संभल पाओगे – |”
अरुण बेचैनी में अपनी शर्ट के ऊपरी बटन को खींचने लगा था|
“मैं तो कहता हूँ – तुम अभी घर वापस जाओ और ये सब मुझपर छोड़ दो – मुझपर भरोसा करो अरुण – जाओ – अभी तुम्हे घर वापस जाना चाहिए |”
कहते हुए आकाश उसके कंधे से हाथ हटा लेता है जिससे अरुण तुरंत उठता हुआ बाहर निकल जाता है|
***
इस वक़्त अरुण की हालत बेहद बेचैनी भरी हो गई थी| पिछला सभी उसकी आँखों के आगे तस्वीर सा आने लगा था| वह अकुलाहट में अपना कोट उतारकर फेंक देता है| वह अपने कमरे में था और तब से इस तिलमिलाहट से दो चार होता लगातार सिगरेट फूकता जा रहा था| एक खत्म होती तो वह अगली सुलगा लेता पर बार बार साँसों को धुंए में उझेलते हुए भी उसके मन की बेचैनी थी कि खत्म होने का नाम ही नही ले रही थी| उसका मन बुरी तरह छटपटा रहा था पर कौन था जिससे वह अपना दर्द कह पाता| देर तक यूँही सिगरेट फूंकते अब उसे तेज खासी आ गई जिससे वह एकदम से खड़ा होता साइड टेबल पर रखे जग का पानी गटकने लगता है|
भरोसे का टूटना सबसे दर्दनाक होता है और इस वक़्त उससे बेहतर ये कौन जानता था| ऐसे समय बस एक आसरा उसके पास था जहाँ उसका मन कुछ पल का सुकून महसूस करता था| इस वक़्त सबसे ज्यादा उसे किरन के साथ की जरुरत थी| कोई तो होता जो प्यार से उसके मन की उत्कंठा को सहला सकता| उसकी बेचैनी को अपने स्पर्श से राहत पहुंचा सकता|
वह सिगरेट का अंतिम सिरा फेककर तुरंत मोबाईल उठा लेता है लेकिन जाने क्या सोच वह मोबाईल सीने पर रखे अब धीरे से ऑंखें बंद कर लेता है|
आखिर इस बेचैनी का कभी अंत होगा या होगा कुछ और….जानने के लिए पढ़ते रहे और बताते रहे कि क्या असर डाल रहा है आपके मन पर बेइंतहा…..!
क्रमशः…..