
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 40
रात भर आकाश की बात सोचते रहने से अरुण का सर भारी और मन बोझिल हो उठा था जिससे वह सुबह काफी देर तक बिस्तर पर पड़ा रहा जबतक हरिमन काका चाय लेकर नही आ गए|
उनके आने की आहट पर अरुण नजर घुमाकर उनकी ओर देखता है तो वे बड़े स्नेह से उसके पास आते हुए कप में चाय उड़ेलते उड़ेलते कहते है – “कल से तो सब बदल जाएगा – तो आज का आखिरी कप हमारे हाथ से ले लो बिटवा |”
एकांत में वे अरुण पर पिता स्वरुप स्नेह लुटाते बिटवा ही कहते पर बड़े साहब के डर से वे सबके सामने अरुण को छोटे मालिक ही कहते| अरुण को भी उनसे ख़ास लगाव था जिससे उसने बिटवा सुन वे सच में वही छोटा बच्चा बन जाता जो बचपन में उनके आगे पीछे घूमा करता था| सेठ घनश्याम अपने गाँव से अपने परिवार और हरिमन इन्ही को लेकर आए थे| वह वहां भी उनके परिवार की सेवा करते थे जो आज तक भी निरतरता से करते आ रहे|
“कल से छोटी बहू ही चाय लाएगी |” वे यूँ आँखे नचाते हुए कहते है जिसे देख अरुण हलके से हँस पड़ता है|
“और क्या काका – कल से हो सकता है ये हमे पहचानने से भी इंकार कर दे |”
आवाज की गर्मजोशी से अरुण दरवाजे से अंदर आती भाभी को देखता है|
भूमि अन्दर आती हुई अरुण के पास खड़ी होती हुई कह रही थी – “देखना कल से सब कुछ बदल जाएगा – बस हमारा अरुण न बदले |”
“क्या भाभी – सुबह सुबह मेरी खिचाई कर रही हो |” अरुण अब उठकर बैठ गया तो हिरामन काका हँसते हुए कप उसके हाथ में पकड़ाते हुए बाहर निकल जाते है|
“सुबह !! ग्यारह बज रहे है – अब तो लगता है समय भी नही कट रहा |” भाभी पूरी तरह लय में थी और अरुण सर नीचे किए अपनी मुस्कान दबाए कप को बस होठो से लगाए था|
अब कमरे में मेनका और उसके साथ साथ कुछ सेवक अपने हाथ में पकड़े लाए बॉक्स वही ज़माने लगते है, अरुण ये सब देखते चौंकता हुआ पूछता है – “ये सब क्या है ?”
“सामान है भईया – साड़ियाँ, ज्वेलरी, कोस्मेटिक, पर्स….|”
“अरे बस बस – ये कमरा है या स्टोर !” अरुण मेनका को बीच में टोकता हुआ कहता एकदम से चिहुंक पड़ता है| सेवक सारा सामान रखकर जा चुके थे|
“तो नई नवेली के लिए ख़रीदा सामान हम कही और रखा दे – जब रहेगी इसी कमरे में तो सामान बताओ कहाँ रखाए ?” भूमि कमर पर हाथ रखती अरुण की ओर देखती है तो वह नज़रे बचाता हुआ अन्यत्र देखने लगता है|
“भईया पहले ये देखिए ! कैसे है ये जेवर ?” जल्दी से दो तीन ज्वेलरी बॉक्स अरुण की नज़रो के सामने खोलती हुई मेनका चहकती हुई पूछती है|
“क्या चखकर बताऊँ ?” कप टेबल में रखता बिस्तर से उठता हुआ कहता है|
“भईया बात हँसी में मत उड़ाओ –|”
“तो मैं क्या करूँ – इनसे मेरा क्या मतलब !”
मेनका मुंह लटकाए खड़ी रह गई तो भूमि आगे आती हुई कहती है – “अरे शादी तेरी हो रही है और तुझसे न पूछे ?”
“हाँ भईया – बताओ न – देखो भाभी और मैंने एक एक यूनिक ज्वेलरी सलेक्ट की है|”
“अभी बता दे अरुण – कही कुछ कमी रह गई तो तू ही कहेगा कि तेरी दुल्हन का हमने ख्याल नही रखा |”
दोनों अरुण के चेहरे पर आए भावों को बड़ी रोचकता से देख रही थी वही अरुण उनसे नज़रे बचाता हुआ अन्यत्र देखता हुआ उनसे जान छुडाने की कोशिश कर था था – “क्या भाभी आप भी – मुझे उससे क्या – मैं तो पूरा दिन बाहर रहूँगा – उसे तो आप लोगो के साथ रहना है – ये सब आप लोग ही जानो |”
अरुण जल्दी से वहां से निकलने लगता है तो मेनका दौड़कर उसका हाथ पकड़ती हुई कहती है –
“ठहरो तो भईया |”
भूमि भी अपने होंठो के बीच हँसी दबाती हुई अरुण के पास आती हुई कहती है – “ठीक है ये सब नही देखना तो ये ही देख लो |” भूमि एक ख़ास गिफ्टेड बॉक्स को अरुण की नज़रो के सामने करती उसे खोलती हुई कहती है – “ये यूनिक डायमंड सेट – कैसा है ? आज ही सुनार दे गया – लगता है स्पेशल ऑर्डर वाला है – मैंने तो ऐसा डिजाइन देखा ही नही |”
“ये – !” अचानक अरुण सकपकाते हुए अपने चेहरे पर लापरवाही भरा भाव लाता हुआ कहता है – “अच्छा है – अब मैं चलू !!”
“अरे मेनका देख तो अपना अरुण कैसा शरमा रहा है|”
मेनका अरुण की हालत देख खिलखिला उठी थी|
“अ अरे – जाओ नहीं – वैसे इतना प्यारा हार बनवाया किसके लिए ये भी बता दो हमे !”
“ये ये – ये हार – अच्छा ये हार !”
“जी हाँ – यही हार |” सर हिलाती हुई भूमि कहती है|
“ये तो मैंने मेनका के लिए बनवाया था – उसके जन्मदिन के लिए |”
“पर भईया – मेरा जन्मदिन आने में तो अभी आठ महीने है |”
“तो क्या हुआ – आने वाला तो है न |” अरुण बड़ी मुश्किल से अपने मनो भाव छिपाते हुए कहता है|
“सुन मेनका – मैं तुझे बताती हूँ कि ये हार किसके लिए है |” भूमि अरुण की फंसी फंसी सी हालत को देखती देखती मुस्कराती हुई कहती है|
“हाँ हाँ भाभी – बताईए |” मेनका भी उतने ही मजे लेती हुई पूछती है|
“क्या बता दूँ मैं अरुण ?” भूमि अब उसका चेहरा ध्यान से देखती हुई पूछती है|
“म मैंने बता तो दिया न भाभी |”
“सच्ची में ?”
“अरे भाभी – आप भी न – बस यूँही बनवा लिया था |”
अरुण की झेपी हालत पर दोनों कसकर हँस पड़ती है|
“एक मिनट – मैं समझ गई |” उछलती हुई मेनका कहती है – “तो ये हमारी नई भाभी की मुंह दिखाई तैयार करवाई है भईया ने |”
“तू तू न मेनका |” अरुण चेहरे पर बनावटी गुस्सा लाते हुए कहता है|
“क्यों भईया चोरी पकड़ी गई न !”
“देखना मेनका वह आएगी तो अरुण तो हमे भूल ही जाएगा |”
“क्या बात करती हो भाभी – वो मेरी भाभी से अच्छी थोड़े ही होगी |” अरुण मचलता हुआ कहता है|
“बाकी का तो पता नही पर रूप रंग तो कुछ अलग ही है उनका |” मेनका भूमि के पीछे खड़ी होती अरुण को चिढ़ाती हुई स्वर में बोलती हुई कहती है – “मैंने देखा तो नही पर सुना है – नई भाभी के रूप रंग की तारीफ |”
मेनका अरुण के चेहरे पर आते जाते भावों पर हँसती हुई कहती रही – “मैंने सुना है – भाभी का रंग – भैंस से कुछ ज्यादा और कोयले से कुछ कम है |”
“अब – अब मान जा – नही – नही मानी तो !”
“तो क्या भईया फोन से मेरी शिकायत किरन भाभी से करोगे ?”
“भाभी ये छुटकी बहुत बोलने लगी है|”
“अच्छा अच्छा – अब लड़ना बंद करो – मैंने तो बस यूँही पूछ लिया था – मैं तो जानती थी कि अरुण ने ये हार इसलिए बनवाया है कि शादी वाले दिन ये खुद इसे पहनकर जाएगा – क्यों ऐसा ही है न अरुण !”
भूमि और मेनका अरुण की हालत पर जोर से हँस पड़ी| अरुण भी सर पर हाथ फिराते उनसे नज़रे फेरता धीरे से मुस्करा लेता है|
***
उस बंद कमरे में चिंगारी भाई के बगल में खड़ा एक गुंडा टाइप आदमी बर्फ की सिकाई उसके गालो पर कर रहा था जिसके बीच बीच में वह दर्द से कराह उठता| तो वही केकड़ा बुरी तरह हाथ मसलते हुए बडबडा रहा था –
“कहा था सीधे गोली मार के टपका डालते है पर नही – तुमको तो उस्तादी दिखानी थी – अब हो गया मन हरा – करा ली बेइज्जती – फोड़ लिए बम – अब आ रहा होगा मजा –|”
ये सुनते चिंगारी भाई जो तब से भरा बैठा था अपने गाल पकड़े बोलने की कोशिश करता है पर दर्द से सारे शब्द लार की तरह होंठ के किनारे से निकल जाते है|
“अब बस तुम चुप बैठो – अगली बार फिर कुछ किया तो बता रहे है अबकी तुमको अपाहिज बनाकर वह भिखारी की तरह छोड़ देगा – बड़े आए चिंगारी भाई – अब खिचड़ी खाने के भी दांत नही रहे|”
चिंगारी अपनी जगह बैठा बैठा फूटता रहा पर उसके बोल कुछ समझ नही आए|
“अब देखना उस साले को मैं कितना चुपचाप खत्म करता हूँ – चूऊ भी न निकलेगा उसके मुंह से |” कहता कहता केकड़ा भाई अपनी गन पर हाथ फिराने लगता है|
क्रमशः………