Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 42

वक़्त के दो अलग पाटो में जिंदगी अलग अलग गुजर रही थी जहाँ वर्तिका खुद को सबसे लुटा हुआ महसूस कर रही थी वही अरुण और किरन नई राह में हमसफर होने को बढ़े जा रहे थे|
रंजीत अपने नौकरों की मदद से आखिर उस दरवाजे को तोड़ ही देता है और उसके पार जो दृश्य उसे दिखता है वो उसकी आन्तरिक तन्द्रा को बुरी तरह कंपकपा देता है| कमरे से खुलते बालकनी के दरवाजे के पास बालकनी की मोहरी पर वर्तिका घुटनों में सर दिए बैठी थी| ये देखते रंजीत के होश ही उड़ गए|
वे इस वक़्त पहली मंजिल में थे पर बालकनी के पार घाटी थी और वहां से जरा भी वर्तिका सरकी तो बस क्या होने वाला था ये सोचते रंजीत के रोंगटे खड़े हो गए|
“वर्तिका…!” रंजीत उसकी ओर बढ़ता हुआ उसे आवाज देता है|
“मेरे पास मत आना भईया |” एकदम से सर उठाती वर्तिका चीखी|
ये सुनते रंजीत के पैर बर्फ हो गए| उसने कभी सोचा नही था कि वर्तिका इस हद तक गुजर जाएगी| वह उससे कुछ मीटर की दूरी पर खड़ा सबसे मायूस था| पर अपनी बहन का आंसुओ से भीगा चेहरा साफ़ साफ़ देख पा रहा था इससे उसे अंदाजा हो गया कि वह उससे जो छिपाना चाहता था वो अब उसे पता चल चुका है|
सेठ दीवान ने शादी को बहुत गुप्त रखने की कोशिश की लेकिन इतने बड़े बिजनेस टाइकून की शादी और वो खबरों की सुर्खी न बने ऐसा होना असंभव था| हर बिजनेस मैगजीन से लेकर अख़बार तक ये खबर पहुँच चुकी थी| भलेही सबके लिए दुलहन कैसी है सस्पेंस बना हो पर अभी तो फिलहाल शादी की खबर ही अपने आप में बड़ी खबर थी|
“वर्तिका – मेरा बच्चा – वहां नही बैठते – आओ इधर |” रंजीत अपने अहसास दबाते हुए वर्तिका को मनाने की कोशिश करता है|
लेकिन शायद अब तीर कमान से निकल चुका था| वह उसी तरह बिफरती हुई फूट पड़ी|
“नही आप ने एक कदम भी मेरी ओर बढ़ाया तो मैं तुरंत अपने कदम पीछे कर लुंगी |”
“नही…..!”
“आपने इतनी बड़ी बात मुझसे छिपाया – तभी यहाँ लेकर आए थे – है न !!”
“देखो मैं..|”
“झूठ बोला आपने – झूठे हो आप |” वह पागलो की तरह बिफरती रही – “मुझसे वादा किया था आपने – मुझे भरोसा दिलाया था आपने – सब झूठा सब झूठा निकला – अरुण कभी मेरा नही हो सकता – उसे मैं इस जिंदगी में हार चुकी हूँ..|” वह बुरी तरह से बिलखती हुई कहती रही|
“बच्चा बात तो सुनो – मैं…|”
“नही – अब कोई झूठा दिलासा नही – कोई झूठ नही चलेगा – सब कुछ खत्म हो गया – मैं हार गई – आज वो अपने जीवन के सबसे खूबसूरत पल में खड़ा है और मैं !!! मैं सबसे बदसूरत पल में खड़ी हूँ पूरी तरह से तनहा…अकेली..टूटी हुई जहाँ सिर्फ आपकी झूठी उम्मीद है और कुछ नही..|” वह हिकलती हुई एक एक शब्द आंसुओ की तरह टपकाती रही|
रंजीतके पास आज अपने झूठ को बचाने को कोई शब्द नही बचता वह बुरी तरह से घबराया हुआ अपने हाथ मसल रहा था| अपनी बहन को टूटते हुए देखने को वह आज कितना मजबूर था| जी कर रहा था उसे अपने अंक में लिए दुनिया की बुरी नज़र से बचा ले पर वर्तिका के एक कदम से सहमा वह वही सर्द होता खड़ा रह गया|
***
मन की पूरी उमंग के साथ अरुण अधूरी बारात लिए आखिर सुवली गाँव पहुँच गया वहां पलके बिछाए बारात का इंतजार हो रहा था लेकिन बारात को देखते सबके मुंह छोटे से हो गए| लोगो से ज्यादा तो गाड़ियों का मेला था| उनके घर जाने का मार्ग चमकती शानदार गाड़ियों से अट सा गया था|
कुल जमा बीस लोगो के बीच पन्द्रहा गाड़ियों का रेला था| उनमे भी कुछ सुरक्षाकर्मी नजर आ रहे थे तो परिवार कहाँ था !! सबके दिमाग अब यही प्रश्न ढूंढ रहे थे| न कोई बैंड न बाजा बस गाड़ियों की धूल के गुबार में गाड़ियों के इंजन की आवाज गूंज रही थी|
यहाँ सौ डेढ़ सौ लोगो के साथ वे स्वागत में हाथ जोड़े इंतजार कर रहे थे और ये दृश्य देखते मनोहर दास के होश ही उड़ गए| सब तरफ कानाफूसी शुरू हो गई| लोग तरह तरह की बात करने लगे| वे सर झुकाए किसी तरह से बारात का स्वागत करने पहुंचे|
उनकी नज़रो के सामने सेहरा में अरुण खड़ा था तो साथ में आकाश और उसके पीछे बाक़ी के लोग चौकस निगाह के साथ खड़े थे| न किसी की भाव भंगिमा में शादी का उत्साह था और न उमंग !! ये कैसी शादी होने जा रही थी ये देखते उनका मन बुरी तरह से काँप उठा|
द्वारचार के लिए हाथो में आरती की थाली लिए कुसुम बेन और बाकी की महिलाए भी अपनी जगह जमी रह गई| किसी से कुछ कहते न बन| उनके गाए गीत एकदम से शांत हो गए|
ऐसा लग रहा था जैसे सिर्फ अरुण ही अकेला शादी के लिए आया है बाकी तो अनजानी भीड़ थी|
मनोहर दास किसी तरह से मन को हौसला देते आगे बढ़ते है| एक तरफ अनजानों ने किरन को अपनाते उसकी शादी का हर संस्कार किसी परिवार वाले से बढ़कर किया था| सारंगी का पिता किरन का मामा के फर्ज निभाते अपनी सामर्थ से कही अधिक ही उसके लिए फेरे की साड़ी लाया| कुसुम बेन, कौशल्या बेन ने भी हर रस्म की जो किरन की माँ करती| आखिर क्या रिश्ता था उनका उससे !! बस प्रेम का…वही आकाश के चेहरे के हर हाव हाव में पयारापन समाया था| आखिर किस तरह के परिवार में उनकी बेटी जा रही थी ? ये सोचते उनकी आंख को सूखी रही पर मन गंगा जमुना सा बह निकला|
अरुण की ओर बढ़ती स्वागत भीड़ को देखते आकाश दूसरी ओर चल दिया| मनोहर दास बारात के स्वागत के लिए माला लिए खड़े रह गए| आकाश अब उनसे दूर हटकर खड़ा होता सिगरेट फूक रहा था और उसके आस पास उसके साथ आए लोग मौजूद थे जबकि अरुण अब अकेला स्वागत द्वार पर खड़ा था|
अब मनोहर दास ने अरुण को ही बारात मान लिया और उसके स्वागत के लिए उसे एक चौकी में बैठने का हाथ जोड़कर निवेदन करते है| उस पल उनके हाव भाव में एक बेटी के पिता होने की बेबसी साफ साफ़ देखी जा सकती थी| अरुण निर्देश का पालन करता उस सजी रंगोली के बीच सजी चौकी पर बैठ जाता है|
अब वही खड़ा पंडित मनोहर दास को आगे की विधि विधान के लिए निर्देशित करते है|
“जजमान आपके द्वार आपके होने वाले जमाता पधारे है तो आप इनका स्वागत इनके चरण धोकर करे |”
पंडित के निर्देश पर मनोहर दास अरुण के सामने बैठते एक कांस की बड़ी सी थाली रखते विधि की तैयारी कर ही रहे थे पर अचानक अरुण खड़ा हो गया| सभी हैरान देखते रह गए| वैसे भी इन बारात को देखते उनका मन ढेरो कयास से भर उठा था|
अब आगे क्या होगा ये प्रश्न सबके मष्तिष्क में एक साथ कौंध गया|
“बेटा – बैठना था आपको..|” मनोहर दास कांपती आवाज में कहते है| उसके चेहरे पर विनती के ढेरों स्वर उमड़ आए थे| बाकी की स्त्रियाँ भी औचक उनकी ओर देखती रही| उस पल ऐसा माहौल हो गया लगने लगा जैसे अगले स्वर में कोई फूट फूट कर रो ही देगा|
जबकि इसके विपरीत अपने शांत स्वर में अरुण कह रहा था – “मैं ऐसे रिवाज को नही मानता |”
“प..!” मनोहर दास कुछ कहना चाहते थे| पंडित जी अपनी पूजा की थाली लिए स्तब्ध देखते रहे|
“मैं ऐसा कोई रिवाज नही मानता जिसमे बड़ो को छोटो के पैर छूने पड़े – मुझे माफ़ करिएगा|” कहता हुआ अरुण उनके आगे हाथ जोड़ लेता है – “आप बड़े है और कायदे से मुझे आपके पैर छूने चाहिए |” कहते हुए अरुण तुरंत झुककर उनके पैर छू लेता है|
मनोहर दास तो यूँ अवाक् रह जाते है कि वे अपना हाथ आशीर्वाद देने भी न उठा सके| सारी बारात भी यूँ हैरान रह जाती है कि जो अभी अभी हुआ वह उनकी किसी भी स्मृति में है ही नही| दामाद के आगे बेटी के पिता को झुकते तो सबने देखा पर कभी दामाद को नही !
इसके अगले ही पल सबके चेहरे खिल आए और अपने होश में वापस आते मनोहर दास अपने दोनों हाथ से अरुण की ओर आशीर्वाद के रूप में कर देते है| ऐसा करते कोई बोल उनके मुंह से नही फूटता जैसे अभी कुछ बोले तो शर्तिया वे रो पड़ेंगे|
अब कुसुम बेन पूजा की थाली लिए आगे आती अरुण के माथे पर तिलक करती हुई कहती है – “अमारे गुजरात में दामाद की नाक पकड़ने का रिवाज छे पण अमे लागू छु आज दामाद का हाथ पकड़ कर लावी छे |” कहती हुई उसके सर पर चावल झिड़कती उसका हाथ पकड़कर उसे बड़े प्यार से अंदर लाने लगती है|
इस एक पल जैसे सब कुछ बदल गया| सारे चेहरे मुस्करा उठे| आखिर ये रिवाज होते भी तो इसलिए है कि लोग एकदूसरे की समझ का स्तर समझ सके !! और सबने अरुण का स्तर बहुत अच्छे से समझ लिया था|
अरुण के व्यवहार पर जैसे गई खुशियाँ फिर लौट आई थी| सभी औरतो की भीड़ उसके पास पास मंडराती उसे वरमाला के लिए लाती है|
……..क्रमशः……..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!