
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 45
विवाह के संस्कार, विधि और रस्मे असल में रिश्तो का भावात्मक आदान प्रदान है| रिश्तो के मर्म को समझने की एक समझ है| जिससे आज हर कोई मन गुजर रहा था|
पाणिग्रहण संस्कार को पूर्ण करते हल्दियाए मन कुछ ज्यादा ही भावुक हो उठे थे| अब उनके हाथ पृथक करके फेरो के लिए तैयार किया गया|
पंडित मंत्रो के उच्चारण और विधि की व्याख्या के साथ कहते रहे –
“वधु के वरण के साथ अब सप्तपदी अर्थात दोनों पक्ष साथ साथ सात कदम चलते अग्नि की प्रदक्षिणा करेंगे |” कहते हुए वे दोनों को साथ में खड़ा होने का अनुनय करते मंत्रो का उच्चारण जारी रखते है|
विवाह के इस अवसर पर जहाँ किरन के साथ उसके पिता व परिजन थे वही अरुण उन सबमे अकेला था| उसके मन में इस समय क्या गुजर रहा था ये कहाँ किसी को पता था| एक अनजान रिश्ते में बंधते समय आज उसके साथ उसके अपने ही खड़े नही थे| भलेही ये रस्मे ये संस्कार उसके लिए उसकी अपनी माँ की आखिरी इच्छा की पूर्ति की तरह था फिर भी वह इसे सब पूर्ण मन से ग्रहण कर रहा था| एक एक पल को अपने अन्दर आत्मसात कर रहा था|
ये संस्कार सिर्फ वधु के जीवन को ही नही बल्कि वर के जीवन को भी पूर्णतया प्रभावित करते है| उसका जीवन एक नए मोड़ से प्रारंभ होने जा रहा था| सभी लड़की के मन के बदलाव की व्याख्या तो करते है पर उस समय एक लड़का भी अपने मन की ढेरो उथल पुथल से गुजर रहा होता है| अब उसके जीवन का सामूल परिवर्तित होकर इससे उसका भावी जीवन निर्मित होना था|
फेरो के लिए पंडित के निर्देशों का पालन करते वे दोनों खड़े थे|
“सभी देवी देवताओ का आवाहन करते अग्नि की प्रदक्षिणा के लिए अब वधु वर के आगे आएगी – प्रथम तीन प्रदक्षिणा में वधु वर के आगे चलती धर्म, अर्थ और कामना के संस्कारो में सदैव वर से आगे बढ़ चढ़कर पूर्ण करेगी वही चौथी प्रदक्षिणा में वर अपने पुरषार्थ से साहस करता मुक्ति कार्य में वधु के आगे रहेगा|”
पंडित के निर्देश के अनुसार किरन को आगे करके उसका हाथ अरुण के हाथ में दे दिया जाता है| वह भी पूर्ण विश्वास से उसका हाथ थामे उसके पीछे पीछे अपने कदम बढ़ाता रहता है|
इधर समयानुकूल विवाह के गीत कुछ यूँ हो उठते है –
“सात फेरों के सातों वचन
प्यारी दुल्हनियाँ भूल न जाना
सात फेरों के सातों वचन
प्यारी दुल्हनियाँ भूल न जाना
प्यार का एक मंदिर है मन
मन में मूरत सजन की बसाना हो ओ….
सात फेरों के सातों वचन
प्यारी दुल्हनियाँ भूल न जाना
आज मन से बंधी डोर मन की
तू हुई अब तो अपने सजन की
आज मन से बंधी डोर मन की
तू हुई अब तो अपने सजन की
अपने सजन की
हो ओ…. एक संजोग है ये मिलन
लाज इसकी सदा तुम निभाना हो ओ….
सात फेरों के सातों वचन
प्यारी दुल्हनियाँ भूल न जाना
प्यार से तुम पिया संग रहना
सारे सुख दुःख संग संग सहना
प्यार से तुम पिया संग रहना
सारे सुख दुःख संग संग सहना
संग संग सहना…..|”
एक एक फेरे और वचनों के साथ दो अनजान अब से सदैव के लिए एक अटूट बंधन में बंध गए| किरन के क्षणिक स्पर्श से जैसे अरुण के मन के भीतर कोई छाप सी उतर गई थी|
फेरो के बाद किरन को अरुण के वाम अंग में बैठाकर सदैव के लिए उसकी धर्मपत्नी का दर्जा दे दिया गया| अब वे आज से जन जमांतर के साथी बन गए| सारंगी अब उसके बीच फिर से पर्दा करती है| अरुण अब पंडित के निर्देश पर बिना देखे किरन की मांग में सिंदूर डालते उसके बाद उसे मंगलसूत्र पहना देता है|
निर्देशों का पालन करते सभी संस्कारो को विधि विधान से पूरा करते वे अब कुछ समय के फिर से पृथक कर दिए जाते है|
शादी अब पूर्ण हो चुकी थी| अगला और अंतिम संस्कार विदाई का था जिसके लिए सभी को अपने मन को पहले तैयार करना था| इसके लिए सारंगी किरन को अपने साथ ले जाने को तैयार थी| तभी पंडित जी के ये कहते कि सारे संस्कार पूर्ण हुए अरुण मंडप से उठते हुए सारंगी की ओर देखता हुआ कहता है –
“अभी कहाँ – जूता चुराई की रस्म तो रह ही गई !”
अचानक अरुण के ये कहते सभी की नज़रे अरुण की ओर उठ गई थी| किसी की भी अपेक्षा में ये सुनना था ही नही| जैसी बारात उनके द्वार आई थी उसमे विवाह ही सम्पन्न हो जाए यही बहुत था उसमे अरुण का ये विनोद भाव सभी को आश्चर्य से भर गया| सारंगी तो किरन को थामे अपनी जगह खड़ी ही रह गई|
कहने करने को तो उसकी बहुत उमंग थी पर उन सबपर आकाश का डर ज्यादा हावी हो उठा| सारंगी चुप खड़ी थी तो उसके बगल में घूंघट में किरन भी वही थमी रह गई|
अरुण अपनी मोजरी पहनता हुआ अब ठीक उनके सामने खड़ा था साथ ही उसके चेहरे पर एक मोहक मुस्कान तैर रही थी| आकाश भलेही अन्दर नही आया था लेकिन दीपांकर बराबर वहां मौजूद बना था जो बस उनके निर्देशों का पालन कर रहा था| अरुण के इशारे पर वह आगे बढ़कर कोई लिफाफा उसकी ओर बढाकर फिर अपनी जगह जाकर खड़ा हो जाता है|
“मैं ज्यादा कुछ तो नही जानता विवाह के संस्कार के बारे में पर ये मेरी भाभी ने बताया था कि मैं जूता चुराई की रस्म पर ये भेंट दूँ – |”
सभी मौन अवाक् खड़े थे| सारंगी के मुंह से तो कोई बोल ही नही फूट रहे थे|अरुण जो लिफाफा उसकी ओर बढ़ा रहा था उसे स्वीकारने उसकी हिम्मत ही नही हो रही थी| ये देखते दीपांकर जल्दी से आगे आकर कुछ बोलने को होता है उससे पहले ही उसे रुकने का इशारा करते अरुण अब खुद उस लिफाफे को खोलता हुआ कह रहा था –
“सौगाते सिर्फ धन समप्रदा की नही होती – वे जितना मान देने वाले के लिए होती है उतनी ही स्वीकारने वाले के लिए भी होती है – ये पेपर उन जमीन के है जिसमे कामगार महिलाओं के लिए रात्रि स्कूल चलता है जहाँ अब से तीन महीने में एक पक्का स्कूल तैयार हो जाएगा – आखिर अब से इस परिवार का हिस्सा होते हुए मेरा भी उनके प्रति कोई फर्ज है तो प्लीज इसे स्वीकार करे |”
सारंगी की आश्चर्य से फैली आँखों और खुले मुंह से कोई बोल ही नही फूटे| वह अभी भी अवाक् खड़ी थी| पर एक बार मनोहर दास से नज़र मिलते उनके समर्थन से सारंगी आगे बढ़कर वह लिफाफा ले लेती है|
उस पल का माहौल एकदम से बदल गया था| अरुण पर तो जैसे सभी रीझ उठे| सभी ऐसे प्रेम से उसे देखने लगे मानो कह रहे हो कि वह अपनी पहली झलक में ही सबका दिल जीत चुका है और अब इस जीते हुए दिल को और कितनी बार जीतोगे| सबके मन खिलखिला उठे थे| मनोहर दास आगे बढ़कर अरुण को जनवासे की ओर ले जाते है तो वही घूंघट के पीछे किरन मुस्कराती हुई सारंगी के साथ अपने कमरे में चल दी थी| शादी के सम्पन्न होते सभी भीड़ तितर बितर हो गई थी और उसी भीड़ का फायदा उठाते केकड़ा भाई अपने एक साथी के साथ वहां आ पहुंचा था| उसने एक वेटर का वेश धरा था जिससे किसी का ध्यान उस पर नही गया| वह अपने कपड़े के अंदर एक हाई केलिबर पिस्टल छिपाए था जिससे तय था कि उसका इरादा बहुत ही खतरनाक है|
वह बस सुनिश्चित समय की ताक में था जब वह अरुण पर निशाना तानकर उसपर हमला करके आसानी से वहां से भाग सके| तभी उसका साथी उसे किसी फोन के बारे में बताता है जो कुछ समय पहले आया था|
केकड़ा धीरे से फुसफुसाता है – “क्या कहता है बे |”
“सही कहता हूँ – बॉस का फोन आया था वो कॉन्ट्रैक्ट देने वाले ने टारगेट बदलने का बोला है |”
“टारगेट बदलने का क्या मतलब – सही से बोल |” केकड़ा दांत के भीतर से चीखा|
“लड़के की जगह लड़की को उड़ाने का है |”
“अबे हम क्या घंटा आदमी है जो इधर से उधर बजता रहेगा – |”
“अब बोला है बॉस ने तो क्या करना है ?”
“वहीच तो |” केकड़ा बुरी तरह से तिलमिला उठा था – “अभी तो करेगा वही अपुन लेकिन उस लड़के से साला पर्सनली भी निपटेगा – अपने को घनचक्कर बनाया था न – चल – लड़की ऊपर कमरे में गई है – चल के निपटाकर निकलते है|”
केकड़ा के कहते वह साथी हामी में मुंडी घुमाते उसके पीछे पीछे चल देता है|
***
किरन कमरे में सारंगी के साथ थी| उस वक़्त ख़ुशी और गम के मिले जुले भाव उनके चेहरे पर थे| अभी कुछ देर में विदाई होनी थी| तभी कोई आवाज पर उनका ध्यान गया|
“ये गौरा क्यों रम्भा रही है – सारंगी – तुझे भी सुनाई पड़ रहा है न !! ये कैसी आवाज है जैसे गौरा दर्द में है |”
“हाँ लग तो रहा है पर आप परेशान न हो|”
“नही सारंगी – गौरा ठीक उसी दिन की तरह रम्भा रही है और उस दिन बस उसे प्यार से सहलाते वह शांत हो गई थी -|”
“अच्छा तो मैं जाकर देखती हूँ – आप तब तक तैयार हो जाओ |”
“सच्ची सारंगी देख आ – पता नही मैं फिर कब उसकी आवाज भी सुन पाऊँगी ?”
सारंगी झट से टोकती हुई बोली – “ऐसा क्यों कहती हो दीदी – ये भी आपका घर है – आती रहोगी न !”
सारंगी किरन का उतरा चेहरा देखती रही जहाँ आज कुछ अलग से भाव थे| वह उसका चेहरा देख ही रही थी कि किरन उसके गले लग गई|
“मेरा मन बुरी तरह से घबरा रहा है – जाने क्या होने को है ?”
“दीदी ऐसा तो लगता ही है – आप फ़िक्र मत करो – मैं अभी उसे शांत करा कर आती हूँ |” सारंगी बच्ची सी लिपटी किरन का सर प्यार से सहलाती बाहर निकल जाती है| अब कमरे में किरन अकेली थी|
क्या संकेत है ये होनी का ?
क्रमशः……………………..