Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 46

केकड़ा भाई अपने साथी के साथ अब उस कमरे के बाहर खड़ा था जिसके अंदर किरन अकेली थी| वह वेटर का वेश धरे था इसलिए वहां तक आने में उसे कोई परेशानी नहीं हुई| अब उसे उस कमरे के अंदर जाना था| वह अपने साथी को इशारा करके अंदर जाने के लिए एक खिड़की को चुनता है|
वह खिड़की कमरे के दरवाजे के विपरीत एक बालकनी में खुलती थी| बस केकड़ा भाई को उस बालकनी तक पहुँच कर उस खिड़की से अंदर जाना था| उसका साथी अपने आस पास देखता हुआ सुनिश्चित समय पर उसे जैसे ही इशारा करता है वह तुरंत कूदकर अंदर खिड़की से कमरे में दाखिल हो जाता है|
उसका साथी अभी भी निगरानी करने बाहर खड़ा था तो केकड़ा अंदर था| अभी कुछ देर समय बीता ही था कि केकड़ा हडबडाता हुआ उसी खिड़की से झांककर अपने साथी को भी अंदर आने का संकेत करता है|
घर के सभी रात की निन्दासी में अब विदाई की तैयारी में लगे थे जिससे किरन के कमरे के आस पास काफी सन्नाटा था| इसी बात का फायदा उठाकर अब दोनों उस कमरे के अंदर थे| केकड़ा के साथी को लगा था कि अब तक उसने अपना काम कर दिया होगा पर उस कमरे का हाल देख वह चौंकते हुए पूछता है –
“छोकरी कहाँ है ?”
केकड़ा भी उतना ही भन्नाया हुआ बोलता है – “अबे वही तो मैं भी ढूढ़ रहा हूँ – मेरे आने से पहले ही लड़की गायब थी – साला कोई खेल खेल रहा है हमसे या कोई बहुत बड़ी वाली गड़बड़ होने वाली है |”
अब दोनों एकसाथ कमरे का हाल देखते है| बिस्तर पर किरन का शादी वाला जोड़ा जस का तस पड़ा था साथ ही उसके सारे जेवर भी| अगर सब यही है तो लड़की कहाँ है ? ये सवाल उनके दिमाग में कौंध गया|
“अबे घसीटे उधर घूरने से क्या नई लौडिया पैदा होगी? यहाँ या तो पहले ही कोई कमीना खेल खेल गया या लौडिया ही चालू निकली |”
“तो अब क्या करे ?”
“ये माल बटोर के चल अपन भी निकलते है |”
केकड़ा की बात सुनते उसका साथी जल्दी से अपने कमर में बंधे कपडे को खोलकर तुरंत सारे जेवर उसमे बांध कर अपने साथ लिए तश्तरी में उसे रखते ढंककर बिजली की फुर्ती से वहां से निकल जाते है|
अगला तूफान तो अब आने वाला था|
***
नीचे जनवासे में बैठा अरुण और बाहर बैठा आकाश तो उस घर में रुके सभी मेहमानों को अब दुल्हन की विदाई का इंतज़ार था| मनोहर दास बाहर आकर आकाश के सामने खड़े उसे उन सामानों के बारे में बता रहे थे जो लड़की के साथ उसके ससुराल जाते है इस पर वह भमकते हुए बोल रहा था –
“देखो लड़की की विदाई करो ऑलरेडी मेरा बहुत टाइम वेस्ट हो चुका है और इस सब वेस्ट को हमारे साथ भेजने के बारे में सोचना भी नही – |”
“पर ये तो सबने दूल्हा दुल्हन को गिफ्ट दिए है तो कुछ मान है बेटा इन्हें बेटियां अपने ससुराल ले जाती है मायके की निशानी के तौर पर – मैं इन्हें कैसे रख सकता हूँ |” वे विनती करते हुए कहते है|
इस पर आकाश दीपांकर को बुलाकर कहता है – “ठीक है तुम्हे भी नही चाहिए तो – दीपांकर ये जो भी सामान वैगरह है उसे गरीबो में बंटवा दो|”
आकाश की इस निर्लजता पर मनोहरदास अवाक् उसे देखते रह गए कि तभी सारंगी हवा की तरह भागती हुई उनके पास आती है| वह मनोहरदास को कुछ कहने किनारे चलने का आग्रह कर रही थी लेकिन उसके बदहवास तरीके से आने और उड़े हुए हाव भाव अपनी कहानी खुद ही कह रहे थे|
आकाश को भी कुछ खटकने लगा जिससे वह उन्हें घूरने लगा था|
सारंगी जो बात मनोहरदास को कहती है उसे सुनते उनका हाव भाव भी बदल जाता है और वे हडबडाते हुए अपनी भरसक तेजी में अंदर की ओर चल देते है| ये सब देखते आकाश तुरंत दीपांकर को भी मामला पता करने का इशारा करता है|
***
विदाई की सारी तैयारी हो चुकी थी बस दुल्हन को उसके कमरे से लाना शेष था| सभी के खिले चेहरे दुल्हन का इंतजार कर रहे थे| मनोहर दास आगे बढ़ते हुए सारंगी से पूछते है –
“क्या हुआ – किरन कहाँ है ?”
“दीदी जी ऊपर नही है |”
ये सुनते ही सभी के चेहरे फक पड़ जाते है| मनोहरदास यूँ देखने लगते है मानो उन्हें सांप सूंघ गया हो|
“क्या कहती हो – ऊपर कमरे में ही होगी – ठीक से देख तो |”
“मैंने सब जगह ढूंढ लिया – मैं खुद नही समझ पा रही कि आखिर वह इस वक़्त जाएगी कहाँ ?” सारंगी सुबकती हुई कहती है|
“मैं – मैं देखता हूँ |”
जनातियों ने भी पूरे घर में दुल्हन को ढूंढना शुरू कर दिया|
“दुल्हन भाग गई !!” हर तरफ शोर सा उठने लगा|
अचानक आकाश के कान से जैसे धुँआ निकल गया| गुस्से में उसके जबड़े कस गए| भलेही उसे इस शादी से कोई ज्यादा सरोकार नही था लेकिन वह तो यहाँ ऐसी ही किसी गलती के इंतज़ार में था जिसमे वह यहाँ हंगामा मचा सके|
वह चीखता हुआ वहां आता है –
“ये सब क्या तमाशा है – अगर तुम्हारी लड़की को यही तमाशा करना था तो उसने शादी क्यों की ?”
“नही बेटे – ऐसा कुछ नही हुआ है – मैं देखता हूँ – वह जरुर ऊपर ही होगी – वह तो बहुत खुश थी – फिर ऐसा क्यों – मैं देखता हूँ |” कहते कहते वे सीढियां चढ़ते हुए ऊपर जा पहुँचते है|
नीचे सब तरफ कानाफूसी शुरू हो जाती है| कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ|
खबर अरुण तक भी पहुंची वह भी उसी बदहवासी में भागा भागा वहां आया| अचानक सारा घटनाक्रम बदल चुका था| अरुण की समझ में कुछ नही आ रहा था| वह खामोश खड़ा किसी बुत की तरह अपलक उस सीढ़ी की ओर देखे जा रहा था जहाँ से दुल्हन को उतरना था|
***
सारंगी रोते रोते किरन के कमरे में खड़ी बता रही थी कि वह यही किरन को अकेला छोड़कर बाहर कुछ देर के लिए गई थी और जब वापस आई तो किरन यहाँ नही थी|
सारंगी जो बात रोते रोते कह रही थी उसे दिल थामे मनोहर दास सुन रहे थे| दीपांकर के साथ अब वहां अरुण भी ऊपर के कमरे में आ गया था| वह भी उतने ही अवाक् भाव से नजर घुमाकर सारे कमरे को खंगालता है| बिस्तर पर अभी भी वही जोड़ा बेतरतीबी से फैला था जो किरन ने शादी के समय पहना था तो क्या सच में वह कही चली गई !!
अरुण अब सारंगी से पूछता है – “हो सकता है वो भी तुम्हारे पीछे पीछे गई हो !”
सारंगी को अपनी रोती हालत से कुछ कहते न बना वह बेबस सी खड़ी रही लेकिन जब अरुण उसे उसके साथ बाहर चलकर देखने को कहता है तो वह बिसूरती हुई उसके साथ साथ चल देती है|
अब तक दीपांकर जाकर आकाश को सारा माजरा बता चुका था जिससे उसका गुस्सा अब सांतवे आसमान पर था|
तभी मनोहर दास गुमसुम से सीढ़ी के ऊपरी सिरे पर दिखे| सभी की सवालियां नज़रे उनकी तरफ उठ गई| अपनी तरफ इस तरह देखती नज़रो से बचने के लिए वे अपनी नज़रे झुका लेते है| उनके मुरझाए चेहरे को देख सभी ने अपना अपना अनुमान सच मान लिया|
सीढ़ियों के ऊपर बेबस से हाथ जोड़े खड़े मनोहर दास सर से पैर तक कांप गए वही सीढ़ी के नीचे खड़ा आकाश उनकी ओर देखता कटाक्ष करता है –
“क्या हुआ – नही मिली दुल्हन – मिलेगी भी कैसे – भाग गयी होगी अपने किसी यार के साथ – दिखा ही आखिर तुम छोटे लोगो ने अपनी औकात – शादी किसी के साथ और गुलछर्रे किसी और के साथ |”
“नही..ऐसा मत कहो – अब वो आपके घर की बहु है – उसमे इतना बड़ा लांछन न लगाए |” मनोहरदास के हलक से दर्द फूट पड़ा|
“सारे सच का सबूत है सामने – कोई लड़की सारे जेवर लेकर शादी के घर से क्यों फरार होती है ये सब समझ रहे है या फिर तुम ये बाप बेटी का कोई नया खेल है!! शादी करके हमसे पैसे एंठने का !|”
“न – नही नही – ऐसा – मत कहो |” उनकी आवाज अब लड़खड़ाने लगी थी|
“एक बार नही हज़ार बार कहेंगे – तुम छोटे लोग खुद तो बेहया होते हो साथ ही तुमने हमारी इज्जत भी आज बाज़ार में लाकर खड़ी कर दी – तुम्हारी बेहया लड़की हमारे खानदान के लायक नही थी फिर भी हमने उसे अपनाया – उसका ये सिला दिया तुमने ! अब से जान लो तुम्हारी लड़की जिन्दा मिले या मुर्दा उसका हमारे परिवार से अब कोई रिश्ता नही है – मैं आज इसी वक़्त इस रिश्ते को यही खत्म करता हूँ |”
यही वक़्त था जब अरुण सारंगी के साथ वहां प्रवेश करता है| आकाश गुस्से में सजी लड़ी पर इस तरह हाथ मारता है कि लड़ी जलते कुंड में जा गिरती है|
अरुण मौन खड़ा उस अग्नि में जलते फूलो को देख रहा था कि तभी एक तीव्र चीख उस वातावरण में गूंजी और मनोहर दास किसी बेजान वस्तु के सामान लुढकते हुए सीढ़ी से नीचे आ गिरे|
सभी जनाती उनकी ओर लपके| इस बेइज्जती से तिलमिलाया आकाश तुरंत वहां से रवाना हो जाना चाहता था पर अरुण की हमदर्दी मनोहर दास के साथ देख उसे भी वही रुकना पड़ा| जहाँ से किरन की डोली उठनी थी अब वही से मनोहरदास स्ट्रेचर पर हॉस्पिटल पहुंचाए गए|
सभी को उनसे हमदर्दी थी और किरन के लिए आक्रोश| जो दिल अब तक लाखो दुआए देते नही थक रहे थे अब नफरत की आग उगलने लगे थे| न चाहते हुए भी आकाश को कुछ देर वही रुकना पड़ा पर जब पता चला कि वे कोमा में चले गए तो आखिर अरुण को आकाश के साथ वापस लौट जाना पड़ा|
…………….क्रमशः………….

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