
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 47
मेंशन के अन्दर सजावट का काम अभी भी चल रहा था| रसोई में पकवान बनाए जा रहे थे| अरुण की शादी की ख़ुशी का सेलिब्रेशन घनश्याम कालोनी में भी हो रहा था| वही होटल में भी पर्सनली होटल का स्टाफ अरुण की वापसी पर एक जोरदार पार्टी के साथ तैयार था|
जिन तक अभी ये खबर नही पहुंची थी वे सभी दिल बेचैनी से बारात की वापसी का इंतजार कर रहे थे| दादा जी की उमंग चरम पर थी| वे ख़ुशी ख़ुशी सारा इंतजाम देख रहे थे| भूमि अरुण का कमरा सजवा रही थी तो मेनका आरती की थाली में खुद से रंगोली बना रही थी|
दादा जी हँसते हँसते कभी नौकरों को झिड़क भी देते|
“चुप – मैं तो सारे जहाँ का दादा जी हो गया |” कहते हुए वे हंस देते है|
“अच्छा जिगना जाकर बहु से पूछ तो बारात वापसी में इतनी देर क्यों लग रही है |” अपनी छड़ी सँभालते हुए दादा जी कहते है|
जिगना अभी भूमि की ओर चला ही था कि वह उन्हें उनकी ओर ही आती हुई दिखी जो कुछ परेशान लग रही थी|
“क्या हुआ बहु – बात हुई क्या ?” वे भी थोड़ा परेशान होते हुए पूछते है|
“पता नही किसी का भी कॉल नही लग रहा – खैर परेशानी की क्या बात है हो सकता है नेटवर्क नही होगा – बस एक बार अरुण नवेली को लेकर वापस आ जाए |” भूमि झूमती हुई कहती है|
दादा जी भी मुस्करा उठते है| वे भूमि को देखते हुए कहने लगे –
“ऐसा उल्लास देख जैसे बीस साल पहले का वक़्त सामने आ गया – जब अरुण और किरन की शादी हुई थी तब यही उल्लास कावेरी की आँखों में भी दिखा था – आज जरुर उसकी आत्मा को सुकून आ गया होगा |”
“क्यों नही दादा जी – मैं तो बस दुल्हन के रूप में किरन को देखने को व्यग्र हुई जा रही हूँ |”
“मैं भी भाभी |” झट से वहां आती मेनका कहती है जिसके हाथ में अब आरती की थाली तैयार थी – “पर दादा जी आप तो दूसरी बार देखेंगे न – मुझे तो ये सोचकर हंसी आती है कि छुटपन में भईया भाभी शादी के जोड़े में कैसे लगे होंगे ?”
इस पर भूमि के साथ साथ दादा जी हंस पड़ते है|
दादा जी कहते है – “ये तो सही कहा बिटिया – मैं भी यही सोच रहा था – |” फिर कुछ इस तरह सोचते हुए अपनी बात कहते रहे जैसे उनकी आँखों के सामने कोई अतीत का चलचित्र चल दिया हो – “आज भी मेरी आँखों में वो पल वैसा ही सजीव है जब फेरे लेते नन्हे अरुण ने कितने ध्यान से किरन का हाथ थाम रखा था – वह तो बेचारी जैसे नींद में चल रही थी कभी इधर को लुढ़कती तो कभी उधर को पर एक बार जो अरुण की माँ ने किरन का हाथ उसके हाथ में दिया तो तब तक वह उसका हाथ पकडे रहा जब तक पूरा विवाह संपन्न नही हो गया – क्या अनुपम दृश्य था – लाल लाल आलता वाले दो जोड़ी पैर कैसे एक साथ साथ उठते चलते |”
“दादा जी आपने तो एकदम सटीक चित्र आँखों में खीच दिया – वाकई बचपन में कैसे प्यारे दिखे होंगे |” भूमि भी मुस्कराती हुई कहती है|
इस पर मेनका चहकती हुई कहती है – “मैं तो इस बात पर भईया भाभी को बहुत चिढ़ाने वाली हूँ पर ये देर किस बात की लग रही – अब तो शाम होने को आई है|”
मेनका की अधीरता अब सबके चेहरे पर नजर आने लगी थी|
“भूमि !” तभी एक कड़क आवाज से सबका ध्यान उस ओर जाता है जहाँ घनश्याम दीवान मुट्ठी बांधे खड़े कह रहे थे – “क्या तुम्हारी बात हुई किसी से – |”
“नही डैडी जी |” भूमि धीरेसे न में सर हिलाती है|
“ये आकाश पता नही क्यों फोन नही उठा रहा – |” वे बेचैनी से कहते है|
तभी एक नौकर आकर भूमि की ओर देखता हुआ कहता है – “मालकिन बाहर सब रास्ते पर फूल बिछवा दिया है |”
भूमि अपनी ओर से सारा अरेंजमेंट करवा रही थी जबकि उसे अंदाजा था कि उसके ससुर ये शादी बेमन से स्वीकार कर रहे है इसलिए उस वक़्त वह थोडा संकुचा जाती है| पर तभी घनश्याम दीवान कुछ ऐसा कहते है जिसकी किसी ने उम्मीद भी नही की थी|
वे नौकर को निर्देशित करते हुए कहते है – “मुख्य सड़क से मेंशन आने वाले रास्ते तक फूल बिछवा दो और हाँ ये भी ध्यान रखना कि आज रास्ते में कोई भिक्मंगा न नजर आए – सबको ले देकर रफा दफा कर देना |”
उनकी बात पर सभी धीरे से मुस्करा लेते है| ये उनकी अपेक्षा से कुछ अलग था|
दादा जी अपनी ख़ुशी व्यक्त करते आखिर कह उठे – “मुझे ख़ुशी है श्याम कि तुमने अपना फैसला..|”
वे झट से दादा जी की बात काटते हुए बोलते है – “मैंने अपना कोई फैसला नही बदला है बस जो इस परिवार की शान है उस बात में मैं कोई कमी नही रहने दे सकता और अभी तो मिडिया वाले भी इकट्ठे होंगे – सबको मालूम पड़ेगा कि मैंने कैसे एक गरीब घर की लड़की को अपने घर में अपनाकर उसपर कितना बड़ा उपकार किया है|”
वे अपने दंभ भरे स्वर में कहते है|
नौकर बाहर जा चुका था| अभी कुछ पल बीता ही था कि एक नौकर भागता हुआ बारात की वापसी की खबर सबको देता है| ये सुनते भूमि और मेनका के चेहरे एकदम से चमक उठते है| दादा जी तो यूँ पलके झपकाने लगते है मानो ख़ुशी से उनकी आंख ही भर आई हो|
***
बहुत देर के इंतजार के बाद आखिर बारात वापस आ ही गई जब सूरज अपनी सारी रौशनी को अपनी बाहों में समेटता हुआ लगातार डूबता जा रहा था| लेकिन बारात की वापसी पर जो शहनाई गूंजनी चाहिए थी वो अब शोक में डूबी खामोश हो चुकी थी| आकाश उन स्वागत फूलो को बुरी तरह रौदता हुआ अंदर प्रवेश करता है| द्वार के प्रारंभ से लेकर अंदर के मुख्य हॉल तक पहले नौकरों की कतार उसके बाद मेनका और भूमि आरती की थाली लिए खड़ी थी जिन्हें अनदेखा करता आकाश सीधे अपने पिता के सामने जा कर खड़ा होता है|
कोई कुछ समझ नही पा रहा था न आकाश की तल्खी न अरुण की ख़ामोशी और बाकी के लोग तो मेंशन में प्रवेश ही नही किए थे| सारा माहौल एकदम से रुखा रुखा और बेजान सा हो रहा था|
मेनका और भूमि एकदूसरे को उलझी हुई देखती है तो वही दादा जी अजीब नजर से कभी आकाश को तो कभी अरुण को देख रहे थे| आकाश को देखकर तो लग रहा था कि बस वह अभी बम की तरह फटने वाला है| गुस्से से तमतमाया चेहरा अंगार हो रहा था वही अरुण भी किसी सजायाफ्ता की तरह ख़ामोशी ओढ़े खड़ा था| हर चेहरे पर हजारो प्रश्न उमड़ आए थे|
आकाश को गुस्से में आता देख सेठ घनश्याम को इतना को समझ आ गया कि कोई बड़ी बात तो हुई है|
दादा जी तुरंत पूछ बैठे – “बारात बिना दुल्हन के कैसे वापस आ गई – दुलहन कहाँ है बेटा ?”
“कैसी दुल्हन !! कैसी बारात !!” आकाश दांत पीसते हुए बोलता है|
ये सुनते सेठ घनश्याम आगे आते हुए पूछते है – “आकाश – ये क्या माज़रा है – आखिर हुआ क्या ?”
आकाश उसी तेजी से कह उठा – “होने को बाकी क्या रहा डैड – वहां जाना ही हमारी भूल थी – वहां हमारी बेइज्जती की गई – शादी तो हो गई पर जब विदाई का समय आया तो वो बेहया लड़की सारे जेवर लेकर अपने यार के साथ भाग गई |”
“अ – आकाश !!” दादा जी की आवाज काँप गई|
अब आकाश उनकी तरफ मुड़ते हुए उसी आक्रोश से बोलता रहा – “दादा जी – आप ही कह रहे थे न कि दुल्हन के आते ये घर स्वर्ग सा बन जाएगा – वो तो अच्छा हुआ जो वह यहाँ नही आई – नही तो पता नही क्या गुल खिलाती – क्या पता अपने आशिको की लाइन लगा देती |”
“आकाश भईया – आप जो कह रहे है उसे सोचिए तो जरा !” तब से अपने अंदर दर्द का ज्वालामुखी पालते अरुण एकदम से चीख पड़ा|
“ओह तो जनाब की हमदर्दी अभी बाकी है उस बदचलन के लिए |”
आकाश की बात सुन अरुण की ऑंखें गुस्से से सुर्ख लाल हो उठी| वह अपने गुस्से को बगल के रखे कांच के बड़े लैम्पोस्ट पर निकाल बैठता है|
पल में उस जगह छन्न की आवाज गूँज उठी| आकाश अभी भी गुस्से में अरुण को घूर रहा था| अरुण गुस्से में उस कांच को कुचलता हुआ और न सुनने की इच्छा तेजी से अपने कमरे की ओर चला जाता है|
भूमि हाथ में पूजा की थाली लिए अवाक् खड़ी रह गई तो वही मेनका दूर सहमी खड़ी थी| जिस माहौल में अभी तक संगीत गूँज रहा था अब वहां शोर और नफरत की हवाए चलने लगी थी|
“आखिर कोई ये तो बताए कि हुआ क्या है ?”
अपने पिता की बात सुन आकाश ने सारी घटना कह सुनाई जिसे सुनते ही वे गरजते हुए दादा जी के सामने आ गए –
“मैं जानता था – मैं जानता था – ऐसा कुछ जरुर होगा – उस मनोहर ने अपनी बदचलन लड़की हमारे खानदान के पल्ले बांधनी चाही – वो तो अच्छा हुआ कि यहाँ गुल खिलाने से पहले ही भाग गई – मैं वहां नही गया वरना उस मनोहर का गला ही दबा देता जिसने हमारे खानदान पर ऐसा धब्बा लगाया है – जिस दीवान परिवार की ओर कोई आंख उठाने की हिम्मत नही करता था अब वही लोग हमारे बारे में तरह तरह की बाते करेंगे – अरे हमारी भी तो लड़की है पर मजाल है जो हमारे किसी फैसले के खिलाफ चली जाए |”
अपने पिता की यह बात सुनते मेनका अपने कदम पीछे लेती चुपचाप वहां से चली जाती है|
पर वे अभी भी कहे जा रहे थे – “वाह क्या राम सीता की जोड़ी मिलाई आपने चाचा जी – राम को सदा का वनवास देकर सीता चली गई – वाकई आपकी पसंद लाजवाब रही |”
“श्याम…!” रुन्धती आवाज में दादा जी कहते है – “ श्याम कावेरी को भी तो मैंने ही तुम्हारे लिए पसंद किया था – क्या वो..|”
“कावेरी की तुलना उस लड़की से मत करिए और कृपा करके अब तो हमे हमारे हालात पर छोड़ दीजिए – दया कीजिए हम पर |” वे बेहद आक्रोश में हाथ जोड़ते हुए चीखते है|
उनके इस वाक्य से दादा जी एकदम से टूट गए और लड़खड़ाते कदमो से चुपचाप अपने कमरे में चले गए| वातावरण में मातमी आसार नजर आने लगे थे, वे अभी भी गुस्से में चीख रहे थे|
पल में वहां का सारा माहौल बदल चुका था| भूमि भी चुपचाप वहां से चली गई|
क्रमशः………………