Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 48

जो रात प्यार भरी होनी थी वो आज अंगारों भरी हो गई थी| एक भीषण तूफ़ान सा अरुण के सीने में उमड़ रहा था| वह बेचैनी में अपने सर के बाल खींचते हुए चीख पड़ा पर उसके एकांत में उसके साथ कोई नही था जो उसके बेइंतहा दर्द की गहराई माप सकता|
जब मन खुद में अनियंत्रण हो उठा तो वह सीधे बार में आ पहुंचा और पहली बार उस जहर को अपने हलक में तेजी से उतारने लगा| ऑंखें भीचे वह लम्बे लम्बे घूँट में शराब की एक पूरी बोतल गटक गया| नशा उस पर तारी होने लगा जिससे उसके पैर लड़खड़ा उठे और वह इजी चेअर पर बैठते बैठते जमीन पर गिर पड़ा| एकदम से गिरने पर शरीर पर चोट लगी पर दिल ने उफ़ तक नही किया| इस वक़्त शरीर के दर्द से कही ज्यादा दर्द से उसका दिल कराह उठा था|
वह फर्श पर पड़े पड़े लोट उठा| ढेरो आवाजो का शोर उसमे बेचैनी भरने लगा| हर तरफ शोर का तूफान सा उठने लगा| वह इस शोर से बचने किसी तरह से उठकर खड़ा हो कर बार से निकलने की कोशिश करता है पर हर बार उसके पैर लडखडा जाते और वह किसी न किसी चीज से बुरी तरह से टकरा कर चोटिल हो जाता|
वह उठकर बार से निकलकर अब अपने कमरे में जाने की कोशिश करने लगा पर वे आवाजे बेतहाशा उसे बार बार अपने पाश में समेटती अंदर तक तोड़ दे रही थी|
धोखा, विश्वासघात शब्द उसके अंतर्मन को चीरे दे रहे थे| एक पल को वह चौंककर दो कदम पीछे हट गया उसे लगा सामने सड़क है जिसपर एक गिरी पड़ी बाइक है जिसके आस पास खून से लथपथ कई शरीर पड़े थे जो घायल आँखों से उसे ही घूरे जा रहे थे| वह बुरी तरह घबरा गया|
एक शोर अचानक उसके कानो के आस पास गूँज उठा और पल भर में वह आज से पांच साल पहले के वक़्त में चला गया|
***
बहुत जल्दी तो नहीं थी पर बहुत जोश में अरुण कार चला रहा था| योगेश बार बार उसे फोन करके जल्दी आने को बोल रहा था| योगेश किसी दूसरे रास्ते से जहाँ कॉलेज पहुँच रहा था वही अरुण किसी अन्य रास्ते से निकला था| दोनों दोस्तों में शर्त थी कि कौन पहले पहुंचेगा| इस बात पर अरुण अपनी कार की स्पीड कुछ ज्यादा ही किए था| वह बार बार समान्तर ब्रेक और एक्सीलेटर का प्रयोग करता कार को भीड़ भरे रास्ते से भी निकाल ले जाता|
गोल मार्किट से निकलते वह तेजी से मुख्य सड़क तक पहुँच जाना चाहता था जहाँ से वह और तेज जल्दी से अपने कॉलेज पहुँच सकता था लेकिन अगर वह अड़चन नही आ जाती तो…!!
वह अपनी भरसक कोशिश में कार को उस बाइक के बगल से निकाल ले जाता लेकिन तभी दूसरी ओर से गली से एक कुत्ता भागता हुआ आ गया और दोनों के बीच समय और दूरी का ऐसा घालमेल हुआ कि अरुण चाहकर भी उस बाइक को नही बचा सका जो उसकी कार से टकरा कर तेजी से दूसरी ओर पलट गई थी|
पल भर का दृश्य बदल चुका था| उस वक़्त उस सड़क पर बहुत कम ट्रेफिक था और पैदल लोग तो और भी कम| अरुण जब तक कार को ब्रेक लगाकर रोकता वक़्त उसके हाथ से निकल चुका था| वह तुरंत कार से बाहर निकल कर देखता है उसकी निगाह के सामने एक बाइक पलटी हुई थी जिसमे सवार एक आदमी और उसकी पत्नी जिसकी गोद में कोई बच्चा था सभी सड़क पर बेसुध पड़े थे|
टक्कर जोरदार थी पर कार सह गई लेकिन वह बाइक न सह सकी| एक परिवार जख्मी हालत में उसकी नज़रो के सामने पड़ा था| अरुण बुरी तरह से घबरा गया| पल भर को उसे कुछ समझ नही आया कि क्या करे| वह चाहता तो तुरंत वहां से निकल सकता था लेकिन वह ऐसा न कर सका और एम्बुलेंस को फोन करने के बजाए किसी तरह से उन स्त्री पुरुष और उसके बच्चे को अपनी कार में लिए हॉस्पिटल भागता है|
उस वक़्त जो नजदीकी हॉस्पिटल मिला वह उन्हें वही लेकर पहुँच गया| वह कोई छोटा हॉस्पिटल था| अचानक तीन तीन जख्मी लोगो को देखते डॉक्टर तुरंत भागते हुए आ गए लेकिन जैसे ही ये एक्सीडेंट केस पता चला तुरंत अरुण को पुलिस को सूचित करने को कहते है पर उसका सारा ध्यान उनके इलाज की ओर था|
“पहले आप इनका इलाज करिए फिर जो कहेंगे मैं करूँगा |”
डॉक्टर सपाट भाव से कहता है – “ये एक्सीडेंट केस है और जब तक पुलिस वेरिफिकेशन नही होगा हम कुछ नही कर सकते – वैसे आप इनके क्या लगते है और किसने इनको चोट पहुंचाई ?”
डॉक्टर जिस बात को सहजता से पूछ रहा था उसे अरुण के मुंह से सुनते एकदम से सन्न रह गया|
“मैं इन्हें नही जानता और ये मेरी कार की टक्कर से जख्मी हो गए|”
डॉक्टर सन्न भाव से अब अरुण को ऊपर से नीचे देखता है वह कोई बीस इक्कीस साल का नौजवान था और देखने से ही बहुत बड़े घर का लगता था| हॉस्पिटल के गेट पर अभी भी उसकी महंगी सी दिखने वाली कार खड़ी थी| तब ये किस तरह का शख्स है ? डॉक्टर दो पल तक अपने मन में मंथन करता रहा ! उसकी समझ में ऐसा नौजवान अकसर अपनी जिम्मेदारी से भाग जाता न कि उन घायलों को लेकर हॉस्पिटल में डॉक्टर से विनती कर रहा होता|
“प्लीज डॉक्टर मैं सब कर दूंगा – आप फीस की भी परवाह मत करिए – जब तक पुलिस नहीं आ जाएगी मैं कही नही जाऊंगा – आप बस इन्हें बचा लीजिए|”
डॉक्टर अब तुरंत उन मरीजो को देखने स्ट्रेचर की ओर बढ़ता है और दो पल बाद ही नर्स को उस आदमी और बच्चे को ओपरेशन थियटर में ले जाने को बोलता है| डॉक्टर के निर्देश पर एक वार्ड बॉय और नर्स बच्चे और पुरुष की स्ट्रेचर ले जाते है ये देखते अरुण फिर डॉक्टर के पास आता है|
“डॉक्टर उस महिला को भी देखिए |”
डॉक्टर तुरंत अरुण की ओर पलटता हुआ कहता है – “तुमको पता भी है वो महिला मर चुकी है – देखो तुम भले घर के अच्छे लड़के लगते हो तो इसे मेरी व्यक्तिगत राय समझो – ये एक बड़ा केस बन चुका है जिसमे एक केजुलटी भी हो गई अब अगर पुलिस आ गई तो तुमपर केस चल सकता है और तुम जेल भी जा सकते हो – इसलिए चाहो तो तुम जा सकते हो – मैं बाक़ी इन दोनों का इलाज करता हूँ |”
डॉक्टर अपनी बात कहकर दो पल तक अरुण को देखता रहा| जिसका अब सारा ध्यान उस महिला के शांत शरीर पर था|
डॉक्टर अब उसे वही छोड़कर अंदर चला जाता है|
कुछ देर बाद वह कार से मोबाईल निकाल कर कोई परिचित कॉल करता है|
***
अरुण बेहद बेबसी में अपना सर दोनों हाथ से थामे अभी भी हॉस्पिटल के वेटिंग रूम में बैठा था| ये हादसा उसके वजूद में छा सा गया था| जिसकी गहन तकलीफ उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ देखी जा सकती थी|
“छोटे मालिक !”
पहचानी आवाज पर अरुण सर उठाकर देखता है वह उसके पिता का ड्राईवर रामानंद था| वह उससे कह रहा था –
“आप का जैसे ही फोन आया साहब परेशान हो उठे पर आप यहाँ क्यों बैठे है – चलिए – साहब बाहर गाड़ी में आपका वेट कर रहे है|”
अरुण क्लांत सा उठकर उसके साथ साथ बाहर की ओर चलने लगता है| हॉस्पिटल से कुछ दूर एक दूसरी कार खड़ी थी| जिसके गेट के पास अरुण के पहुँचते देख रामानंद जल्दी से बढ़कर पीछे के दूसरे साइड का दरवाजा खोल देता है| अरुण के बैठते रामानंद अब कार के बाहर खड़ा रहता है |
कार की पिछली सीट पर अरुण के पिता बैठे थे जो अरुण को देखते थोड़े सख्त लहजे में कहते है –
“ये सब करने से पहले तुमने मुझसे क्यों नही बताया ? और फिर यहाँ हॉस्पिटल में बैठने का क्या मतलब था ? तुम समझ नही रहे कि ये सब कितना कोम्प्लिकेटेड हो सकता है – खैर तुमने किसी को मतलब पुलिस को कुछ कहा तो नहीं !”
“मैंने अपना बयान दे दिया |”
अरुण जिस बात को सहजता से कहता है उसके पिता ये सुनते एकदम से चौंक जाते है – “ये क्या किया तुमने ?”
“मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हुआ है – मेरी वजह से एक परिवार बिखर गया |”
“अरुण !! ये सब होता रहता है सड़क पर – जब गाड़िया चलती है तो हो जाता है इसमें कोई बड़ी बात नही – सड़क पर रोजाना हजारो हादसे होते है |”
“पर ये मुझसे हुआ – मेरी वजह से हुआ – इसका जिम्मेदार सिर्फ मैं ही हूँ |”
अरुण के चेहरे पर आए हाव भाव वे चकित भाव से देखते रह गए| आगे वे कुछ न कहकर कार के शीशे के पार हॉस्पिटल के बाहर खड़ी अरुण की कार को देखते है जिसके आस पास अब एक दो पुलिस वाले खड़े थे| वे तुरंत हाथ बाहर निकालकर रामानंद को चलने का इशारा करते है|
घर पर अरुण को छोड़कर वे तुरंत ऑफिस में पहुँचते है|
“आकाश बात हुई लीगल एडवाइजर से ?”
“यस डैड – उसने अपना क्रिमिनल लॉयर भेज दिया है|”
“बुलाओ उसे |”
इस वक़्त वे अपने केबिन में थे और आकाश के द्वारा फोन पर किसी को निर्देशित करने पर उसके अगले ही पल एक वकील उनकी नज़रो के सामने था जिसे वे बैठने का इशारा देते है|
“मैंने पूरा केस देख लिया है – ये केस तो बहुत बिगड़ चुका है – उन्हें अपना बयान दर्ज नही कराना था |”
वकील की बात पर सेठ दीवान बिगड़ते हुए बोलते है – “क्या हुआ ये नही क्या हो सकता है इसपर बात करो – मुझे ये केस तक पहुँचने ही नही देना है – बस ऐसा कोई उपाय बताओ जिससे इसे रफा दफा किया जा सके |”
वकील अब संभलते हुए कहता है – “दो लोग घायल है और एक की मौत हो चुकी है अन्डर सेक्शन 279, 338 और 304 ए दफा लगाईं गई है – 279 लापरवाही से गाड़ी चलाने और 338 गंभीर चोट पहुँचाने और 304 ए कोजिंग डेथ बी नेग्लिजेंस लगी है और उसपर उन्होंने अपना बयान देकर उनका केस और मजबूत कर दिया है जिससे उन्हें दो साल तक ही जेल और जुर्माना भरना पड़ सकता है |”
“जुर्माना कितना – मैं मुंह माँगा दूंगा पर अपने बेटे को जेल मैं एक पल भी नही देख सकता – इससे मेरी साख खराब हो जाएगी |” सेठ कर्कश भाव से बोलते है|
फिर आकाश को इशारा करते है जिससे वह एक चेक उस वकील की नजरो के सामने करता हुआ मेज पर रख देता है|
“ये लो – और जो तुम्हे समझ आता है करो – बस मुझे ये केस खत्म चाहिए फॉर एनी कौस्ट |”
अब वकील संकोच से उस चेक को झांककर देखता है और उसमे लिखे अमाउंट को देखते उसकी ऑंखें ही बाहर आ जाती है| वह अमाउंट इतना था वकील चाहकर भी अपनी आँखों की चमक छिपा न सका| वह तुरंत चेक अपनी पॉकेट के हवाले करता हुआ कहता है –
“आप जैसा चाहते है वैसा हो जाएगा – |”
वकील अब तुरंत ही बाहर निकल जाता है| उसके निकलते आकाश अपनी पिता के सामने बैठता हुआ कहता है –
“डैड आप कहते तो मैं खुद ले देकर ये मामला शांत करा देता |”
“नही आकाश ये केस अब ऐसा नही रहा और फिर अरुण के दिमाग पर इसका कुछ ज्यादा ही प्रभाव पड़ा है – मुझे उसे भी सही करना है – |”
आकाश अपने पिता की ओर देखता रहा जो अब फोन उठाकर कहीं कॉल लगा रहे थे|
दूसरी ओर से फोन उठते ही वे कहते है – “तुरंत सिडनी के कॉलेज का पता करके एक पेमेंट सीट का अरेंजमेंट करो |”
***
वकील अब अपनी रणनीति तय करने अपनी फर्म के वकील से कह रहा था – “सबसे पहले जमानती कागज तैयार रखो – फिर इस एक्सीडेंट वाले का स्टेटस पता करो – कुछ समझौता कराना होगा |”
“वो तो ठीक है सर पर सेक्शन 304 ए में तो समझौता योग्य नही है |” एक नया नया वकील जल्दी से अपना प्रश्न रखता है|
इस पर वो वकील अपनी कुटिल मुस्कान के साथ कहता है – “मेरा नाम क्या है जोशभाई तो ये जोशभई जब पैसों का भार देखता है तो कुछ ज्यादा ही जोश में आ जाता है – अब मेरे साथ जुड़े हो तो तुम भी सीख जाओगे – ये समझौते कानून की किताब से बाहर के होते है लेकिन इन्हें कानून की तरह की वैलिड मानो समझे |”
वह भी अब उसी तरह मुस्करा देता है|
***
अरुण सच में किसी सदमे में था| उसकी नज़रे बार बार जमीन की ओर यूँ झुक आती जैसे वह लाश अभी भी उसके सामने पड़ी हो| ये अनजाने में हुआ पर उसके लिए बेहद दुखद हादसा था| वह कमरे में बेचैनी में टहलता रहा| इस सदमे के भय से सारी रात उसने आंख खोले काट दी| आखिर उसके पिता ने अरुण को दिल्ली ये कहकर भेज दिया कि वे सिडनी जाने के पहले के कुछ पेपर वर्क के लिए कुछ दिन वही रहे| वह अभी कही नही जाना चाहता था पर पिता की बात हमेशा की तरह चुपचाप मान लेता है|
उसे लग रहा था कि खुद को सजा देकर ही शायद वह इस सदमे से बाहर आ पाए| बार बार उस आदमी और उसके बच्चे का खून से सना चेहरा नज़र आ जाता तो कभी उस महिला का खून से लथपथ शरीर जो देर तक उसमे बेचैनी भर जाता|
वह एक दिन चुपचाप बिना किसी को बताए वापस सूरत आ गया ताकि पता कर सके कि इतने दिन से इस केस में चल क्या रहा है| वह पहले उस आदमी से मिलने हॉस्पिटल पहुँचता है|
वह आदमी अभी भी भारी पट्टी में था पर चल फिर रहा था उसका बच्चा शायद अभी भी हॉस्पिटल में एड्मिड था जिसके कारण वह वही बना हुआ था|
अचानक उस व्यक्ति के सामने आते अरुण उसका हाल पूछने लगता है – “मैं अपनी गलती के लिए बहुत ज्यादा ही शर्मिंदा हूँ – मुझे अहसास है कि मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हुआ है और आप इसके लिए जो चाहे मुझे सजा दे मैं तैयार हूँ – |”
अरुण नज़रे झुकाए उस आदमी के सामने खड़ा था|
वह आदमी बेदह सपाट भाव से कहता है – “तुम कौन हो – क्यों मुझसे इस तरह की बता कर रहे हो ?”
“जी !! मैं !!” अरुण आगे कहते कहते सकपका गया|
“मैं तुम्हे नही पहचानता और मेरा समय बिलकुल बर्बाद न करो – हटो मुझे जाना है |” कहता हुआ वह आदमी तुरंत उसके विपरीत चला जाता है|
लेकिन उसके पीछे खड़ा अरुण हैरान नजरो से देखता रह जाता है| उसे यकीन नही आ रहा था कि ऐसा ये व्यक्ति क्यों बोल रहा है| वह तुरंत बाहर निकलता है| उसे बाहर ही गेट पर उस आदमी के साथ एक वकील खड़ा दिखता है जो उस आदमी को कोई ब्रीफकेस पकड़ा रहा था| अरुण उस वकील को पहचानता था जो उसका केस देख रहा था| ये देखते वह तुरंत उस वकील और उस आदमी की ओर बढ़ता है पर उनकी एक आवाज पर उसके कदम वही ठहर जाते है|
“अब बस भी करो कितनी कीमत वसूलोगे सेठ से इस बात की – अब से ये तुम्हारी मेरी आखिरी मुलाकात है |” कहता हुआ वकील तुरंत बाहर की ओर निकल जाता है|
उन्हें जाता देख और ये सुनने के बाद अरुण अब उनकी ओर बढ़ने के बजाये उनसे बचता हुआ उनके विपरीत चला देता है|
वह कार में बैठता है जिसकी ड्राइविंग सीट पर राजवीर था|
“चलो एअरपोर्ट – मैं इसी वक़्त सिडनी जाना चाहता हूँ |”
“पर सर अभी तो टिकट बुक नही है |”
“मैं तब तक वही वेट करूँगा और रुको जरा सिगरेट लेकर आना |”
राजवीर अरुण की बात पर अचानक चौंकता हुआ कहता है – “पर सर आप तो पीते नही है |”
राजवीर की बात पर खुद पर हँसते हुए कहता है – “अब से पियूँगा तभी तो इस दर्द से शायद निकल सकूँगा – जाओ लेकर आओ |”
अतीत किसी दर्द की तरह अरुण के मन पर तीर सा गुजर गया| वह बेसुध पड़ा था बस एक बार जरा सी आंख खोलकर उसने देखा कि नौकर उसे अपना सहारा दिए उसे उसके कमरे तक पहुंचा रहे थे|
क्रमशः……….

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