
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 49
अगली सुबह दीवान मेंशन की कुछ अलग सी बेहद खामोश और उदास भरी थी| ऐसा लग रहा था जैसे मेंशन के बाहर कोई तूफान इंतजार कर रहा है जबकि मेंशन उस तूफान को अपने अपने सीने में दाबे खामोश था| परिवार के सभी सदस्य अपने अपने कमरे में खुद को बंद किए थे|
मुख्य गेट आज किसी बाहर वाले के लिए खोले ही नही गए| रात से रिपोर्टर अरुण की शादी की खबर को लेकर मेंशन के आस पास मंडराते रहे पर घर के किसी लोगो से लेकर नौकरों तक को उनसे बात करने की इज़ाज़त नही थी लेकिन बीती रात की सुगबुगाहट मुख्य खबर बनकर हर अखबार और मीडिया माध्यम में छा गई थी|
बदनामी का गहरा दाग अब दीवान परिवार के दामन में लगने से कोई नहीं रोक पाया| इस कारण न भूमि, मेनका कही बाहर गई और न क्षितिज को स्कूल जाने दिया गया भलेही वे अच्छे से जानते थे कि बहुत देर तक वे इस सवाल से बचकर नही रह सकते फिर भी खुद को शायद संभलने देने के लिए उन्हें एक दिन की मोहलत तो चाहिए ही थी| अब ये खबर पूरे शहर में फ़ैल चुकी थी|
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रंजीत अपलक वर्तिका को देखता रहा| वह होश में होकर भी बेहोश ही थी| न बात करती न कुछ कहती| अजीब सी ख़ामोशी उसने अपने अंदर अख्तियार कर ली थी| उसकी हालत देखते रंजीत का मन कई टुकडो में बंट जाता पर वह वक़्त के हाथो मजबूर था| उसे पता था कि वर्तिका को सँभलने में अभी वक़्त लगेगा| लेकिन ये एक एक पल रंजीत पर कितना भारी गुजर रहा था ये वही जानता था|
कुछ पल तक वह वर्तिका के पास बना रहा पर इस बीच न वर्तिका ने उसकी ओर देखा न कुछ कहा| इस ख़ामोशी को अपने अंदर समेटे आखिर रंजीत भारी मन से उसके पास से उठा जाता है|
वर्तिका को सोते देख उसकी देखरेख में लगी दोनों नौकरानियों को पलक भी न झपकाने का निर्देश देकर मुख्य हॉल में आ जाता है जहाँ सेल्विन इस ताज़ी खबर के साथ उसका इंतजार कर रहा था|
लेकिन इस खबर के साथ एक चौकाने वाला प्रश्न भी था|
सेल्विन बता रहा था – “मुझे अभी तक पता नही चल पाया है पर जल्दी ही उस शख्स का पता लगा ही लूँगा कि किसने ये काम किया है |”
सेल्विन की बात पर रंजीत भी उसी गंभीर भाव से कहता है – “हाँ कोई तो है जो हमारी तरह ही दीवान परिवार से बदला लेना चाहता है – जल्दी ही उसका पता करो कि हमारी नाक के नीचे से उस लड़की को कौन ले गया लेकिन सेल्विन कही वह लड़की खुद तो नही चली गई !”
“नही क्योंकि वो जेवर चिंगारी भाई का आदमी ले गया – मैंने सब पता कर लिया – उसके आदमी के पहुँचने से पहले ही वो लड़की गायब थी तो जरुर कोई तीसरा है जो पहले से ही नज़र लगाए बैठा था और मौका उसे मिल गया|”
“खैर काम तो हो गया न – ये बदनामी दीवान परिवार के लिए उनकी बर्बादी की पहली क़िस्त है और अभी तो बहुत कुछ देना बचा है – बस तुम उस का पता करो कि ये उनका अनजाना दुश्मन कौन है ! अब ये हमारे लिए जानना बहुत जरुरी है|”
रंजीत की बात पर हामी भरता हुआ सेल्विन तुरंत ही बाहर की ओर निकल जाता है|
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सूरज आसमान की छाती पर चमक रहा था| हरिमन काका हांफते हुए भागते हुए अरुण के कमरे की ओर बढ़ रहे थे| अरुण के कमरे का दरवाजा झटके से खोलते ही उनकी नज़र कमरे की अस्त व्यस्त हालत पर चली गई|
कमरे को देखकर उन्होंने साफ़ अंदाजा लगा लिया कि उन्माद और आक्रोश में कमरे की सजावट को नष्ट किया गया था| वो कमरा जिसे कल रात तक जन्नत की तरह सजवाया गया था| बिस्तर पर चमेली और लिली की सजावट थी तो फानूस से नीचे तक मोगरे और ट्यूलिप की लड़ियाँ लहरहा रही थी पर अब वे सभी फूल बुरी तरह कुचले हुए अपनी बर्बादी की कहानी खुद बयाँ कर रहे थे|
पलंग के नीचे शराब की कई खाली बोतले पड़ी थी तो चारो तरफ सिगरेट की राख और उसके अधजले ढेरों टुकडे पड़े हुए थे| वे कुछ और अन्दर आए कि उनके पैर से कोई चीज टकराई| वह झुककर उस चीज को देखते है वह कोई हार था| उससे नजर हटाकर हरिमन काका की नजर पलंग पर औंधे लेटे अरुण पर गई जिसकी गर्दन पलंग से नीचे लगभग लटक सी रही थी| चारो ओर उदासी और बेबसी का आलम था|
अरुण के करीब आकर उसे झंझोड़ते हुए वे लगभग तेजी से बोले – “छोटे मालिक – छोटे मालिक – जल्दी उठिए |”
अरुण ने अपनी अधखुली आँखों से हरिमन काका को देखा फिर ऑंखें बंद करते हुए कहा –
“काका – क्यों आए हो – दुलहन के लिए चाय लेकर आए हो ! हैं न !” फीकी सी हँसी हँसता हुआ कहता रहा – “लेकिन काका – दुल्हन तो चाय नही पीती – वो वो तो – वो तो दर्द का लहू पीती है – उसे तो किसी के मिटते अरमानो की लाश नोचने, उम्मीदों को जलाकर राख करने में मजा आता है |”
अरुण के दर्द से हरिमन काका अंदर ही अंदर काँप जाते है| उनकी नज़र कभी अरुण से टकराती है तो कभी उन फूलो से जो अभी भी सेज पर पड़े अपने दर्द की कहानी कह रहे थे|
“छोटे मालिक – होश में आइए |”
“क्यों और किसके लिए ?” उसने गुस्से में मुट्ठी में चादर भींच लेता है|
“मैं आपको ये देने आया था|” अपने हाथ में पकड़े कागज के पुलिंदे को अरुण के आगे रख दिया|
अरुण अब अपनी ऑंखें जबरन खोलता बिस्तर पर औंधे लेटे लेटे ही उस कागज के पुलिंदे को खोलकर पढ़ना शुरू ही किया था कि अरुण यूँ उछल पड़ा मानो उसने बिजली का नंगा तार छू लिया हो फिर वह जितनी तेजी से उठा उतने ही तेज कदमो के साथ वह कमरे से बाहर निकल जाता है|
जाते हुए अरुण के मुंह से काका ने सिर्फ इतना ही सुना – “ये नही हो सकता – ये कभी नही हो सकता |”
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बिना किसी को बताए अरुण अकेले कार लेकर मेंशन से बाहर निकल गया| वह बेहद तेजी से बाहर की ओर निकला था| अब तक किसी पहले को मेंशन से बाहर निकलते देख कुछ पत्रकार उसका पीछा करने की कोशिश करते है पर वह तुरंत ही वहां से निकल जाता है जिससे अब वे सभी उसके लौटने का इंतजार करने लगते|
काफी समय बाद अरुण उसी रफ़्तार से वापस भी आ जाता है| जैसा वह अकेला गया था वैसा ही वह अकेला वापस आया था| जब तक वह गेट से अंदर आने के कुछ पलो के लिए कार धीमी करता है तब से इंतजार कर रहे रिपोर्ट्स उसकी ओर दौड़े चले आते है| अरुण को अपनी साइड की खुली विंडो का होश नही था और सारे रिपोर्ट्स के पास यही समय था जिससे तुरंत वे सारे इस मौके का फायदा उठाते एक एक करके प्रश्नों की झड़ी लगा देते है|
“सर अब क्या कहना चाहेंगे इस पर कि आपकी पत्नी भाग गई –?”
“सर क्या अब आप डाइवोर्स का केस फ़ाइल करेंगे या आप इस शादी को कंटिन्यु करेंगे ?”
“आपको क्या लगता है आपकी पत्नी का कोई पुराना अफेयर था ? क्या ये शादी जबरजस्ती हो रही थी ?”
“कितनी कीमत के जेवर लेकर भागी है आपकी पत्नी ?”
इस तरह से प्रश्नों से एकदम से अरुण का ध्यान अब उन रिपोटर्स की ओर जाता है जो लगातार अनाप शनाप प्रश्न किए जा रहे थे| अब सामने का गेट खुल गया था पर अरुण कार की रेस देने के बजाये हैण्ड ब्रेक लगा देता है| उन सवालो ने उसके दिमाग को जैसे जलती भट्टी में झोक दिया था| वह तुरंत कार से उतरकर एकदम से सबसे आगे खड़े रिपोटर का गिरेबान पकड़ लेता है| अचानक हुए इस व्यवहार पर वे सारे सकपका जाते है|
अरुण दोनों हाथो से उसका गिरेबान पकड़े उसे बाकी के पत्रकारों की ओर धक्का देता हुआ उनपर चिल्लाता है| एक दम से वहां अफरा तफरी का माहौल बन जाता है| कुछ पत्रकार जहाँ इस वक़्त की भी रिकार्डिंग कर रहे थे वही बाकी के उसकी पकड़ से उस पत्रकार को छुडाने की कोशिश करने लगे|
अरुण को ऐसे देख गेट के दरबान भी वहां भागते हुए आते है| कुछ अरुण को सँभालते हुए उसकी कार की ओर ले जाने लगते है तो कुछ दरबार उन पत्रकारों को वहां से रफा दफा करने में लग गए|
पर इस अन्यास हुए व्यवहार पर पत्रकार बुरी तरह से खीजते हुए चिल्ला उठे – “पत्रकारों पर हाथ उठाकर अच्छा नही किया – एक प्रश्न पर इतनी मिर्ची लगी न तो अब पूरी खबर न्यूज में सुनना -|” वे सभी बुरी तरह से उखड़ते हुए वहां से जाने लगते है|
दरबान अब अरुण को उसकी कार में बैठा देते है जिससे वह आक्रोश में गहरी गहरी सांसे भरता फिर मेंशन के अन्दर चल देता है|
क्रमशः………………..
ये दास्ताँ यूँही डूबते उबरते अभी आपको ढेरो जज्बातों से गुजारती चलेगी तो जरा दिल थामे पढ़ते रहे होकर बेइंतहा……