Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 5

सबसे मिलने के बाद अब अरुण की पेशी अपने पिता यानि घनश्याम दीवान के सामने होनी थी उनसे मिलना उसके लिए किसी पेशी से कम नही था| उसे बाकायदा उनके पीए द्वारा मिलने का समय दिया गया और उसी निश्चित समय पर उसे उनसे मिलने पहुँच ना था|
रात के नौ बजे जब घनश्याम दीवान किताबो के बीच अपनी इजीचेअर पर बैठे सिगार का अंतिम सिरा एस्ट्रे में बुझा रहे थे तब अरुण उनके सामने सपाट भाव से खड़ा था वे भी निर्लिप्त भाव से उसे देखते हुए उसे बैठने का इशारा करते है|
वह बैठ जाता है|
“सो वैल तुम दो दिन पहले आ गए – कोई खास वजह?” वे कहते कहते अपनी सख्त ऑंखें उस पर गडाए हुए उसे बोलने का मौका न देते हुए अपनी बात कहते रहे – “सोचा था ये चार साल तुममे कुछ तो बदलाव लाएँगे पर शायद नही |”
उनकी सख्त नज़र पर वह दूसरी ओर देखने लगा था|
“अरुण जिंदगी हमे सीखने का हर बार मौका देती है पर उसी वक़्त अगर हम चूक जाते है तो मौका भी हमारे हाथ से चुक जाता है – मैंने तुम्हे खुलकर आजादी दी ताकि जिंदगी को तुम जानो, पहचानो, उसे खंगालो पर लगता है तुमने इससे कुछ नही सीखा – |” कहते कहते वे तेजी से उसकी ओर झुकते हुए कहते है – “अगर सीखा होता तो तुम उस छोटे आदमी के लिए अपना धन और समय दोनों नही बर्बाद करते |” वे अपना आखिरी शब्द तेज स्वर में बोलते हुए अरुण को घूरते हुए आगे कहते है – “बोलते क्यों नही – क्या सोचकर किया तुमने ऐसा ?”
उनके उकसावे में तब से शांत बैठा अरुण अब उनकी आँखों की सीध में देखता हुआ धीरे से कहता है – “सोचता हूँ कही मेरे बोलते आपको कुछ बुरा न लग जाए !”
“बोलो – मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हे कि इन चार सालो का क्या निचोड़ है ?”
“तो डैड मुझे लगा चार साल के लम्बे समय बाद राजवीर का परिवार उसका कितना दिल से इंतजार कर रहा होगा – फिर उसकी बहन की शादी है – सबकी आँखों में उसके इंतजार का सैलाब होगा – इसलिए दो दिन पहले आकर देखना चाहता था कि किसी परिवार को उसके अपने को अचानक देखकर कैसा लगता है – क्या राजवीर अपने पिता के सीने से लग गया होगा !! उसकी बहन तो फूट कर रो पड़ी होगी – और माँ उनके जज्बात की तो मैं कल्पना भी नही कर सका – बस कभी कभी किसी लागत की सही कीमत नही आंक पाता मैं – बस मेरे चार साल का यही निचोड़ है |” बेहद सपाट भाव से कहता अरुण अभी भी अपने पिता की नज़रो में सीधा देख रहा था जबकि वे उससे नज़र बचाते सिगार बॉक्स में से सिगार निकालते हुए सिगार कटर से उसका अगला सिरा काटने की कोशिश कर रहे थे पर बार बार उनका हाथ कांप जाता ये देख अरुण धीरे से हाथ बढाकर उनके हाथ से सिगार काटने में मदद कर देता है इससे वे सर हिलाते अब लाइटर उठाने लगते है|
सिगार जलाकर उसका गहरा धुआ फेंकते हुए वे बिना अरुण की ओर देखते हुए कहते है – “बहुत रात हो गई है सो जाओ – कल बोर्ड ऑफ़ मेंबर से मिलने के लिए दस बजे तक ऑफिस पहुँच जाना -|”
उनके ऐसा कहते अरुण समझ गया कि उनकी ओर से बात खत्म हो गई तो वह ओके कहता हुआ उठकर जाने लगा| तभी पीछे से आवाज लगाते वे कहते है –
“अरुण – उम्मीद है कल तुम समय पर आओगे – मैं चाहता हूँ कि हमारे नए होटल प्रोजेक्ट का एस्क्युटिव डाइरेक्टर तुम्हे बनाया जाए |”
उनकी बात पर अरुण बस दो पल ठहर कर हाँ में सर हिलाता हुआ तुरत ही आगे बढ़ जाता है|
अरुण जा चुका था पर जैसे बहुत देर तक उसकी मौजूदगी को महसूस करते वे अभी भी उसी अवस्था में बैठे सिगार का धुँआ उगल रहे थे| ये उनके अहम् की सबसे मजबूत दीवार थी जिसे न वे खुद लांघते थे और न कोई और उसे लांघ पाता था|
***
सुबह अपने निश्चित वादे के साथ अरुण दादा जी को लिए उनके मनपसंद आश्रम तक उन्हें ले आया था जो किसी बड़े तालाब के किनारे बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला था पर वातावरण वहां का इतना निर्मल था कि उसके निकास से अन्दर तक पहुँचने का डेढ़ किलोमीटर का रास्ता भी चुटकियों में कट जाता था| दादा जी पैदल ही जाना चाहते थे इसलिए अरुण उनका हाथ पकड़े उन्हें अंदर तक लाता है| वहां उनके जैसे बहुत बहुत वयोवृद्ध थे जो शायद उनके मित्र होंगे इसलिए उन्हें आता देख वे मुस्करा कर उनका स्वागत करते है|
अरुण उन्हें उनके सहज वातावरण में छोड़कर बाहर आ जाता है| क्योंकि साथ में वह बडी को भी सैर कराने लाया था| सुबह का वक़्त था इससे वहां बड़ी निर्मल हवा चल रही थी| अरुण दादा जी के लौटने का समय काटने कुछ देर इधर उधर टहलते हुए सिगरेट फूक रहा था और बडी आज अपने सेवक की बात को बिलकुल न मानते हुए अरुण के आगे पीछे दौड़ लगा रहा था| वह इस वक़्त आश्रम से बाहर था क्योंकि वह अच्छे से जानता था कि आश्रम के अन्दर वह सिगरेट नही पी सकता था और बडी के लिए भी ये जगह कुछ अलग और नई थी जिससे वह कुछ ज्यादा ही खुश था|
कार के बोनट पर पीठ टिकाए सुबह की लालिमा को आसमान में घुलता हुआ वह बड़ी ख़ामोशी से देख रहा था कि उसे किसी का हाथ अपने कंधे पर महसूस हुआ| वह पलटकर देखता है|
“योगेश !! तुम यहाँ – क्यों मरीजो ने लात मार के निकाल दिया क्या ?” उसे देखते अरुण हलकी हंसी के साथ उसे देखता हुआ कहता है|
“लात तो तूने मेरी जिंदगी को मार रखी है |” योगेश की बात पर अरुण उसे चौंककर देखता है जो अभी भी कह रहा था – “सुबह से दस फोन कर चुका हूँ पर छोटे सरकार हमेशा की तरह बिना मोबाईल के घर से निकल जाते है फिर अगर किसी को कोई मेसेज देना हो तो जाओ और उन्हें खोजो और तब उन्हें मेसेज दो – और मैं तो दुनिया का सबसे फालतू आदमी हूँ जो तेरे पीछे पीछे चला आया |”
अपनी गलती पर अरुण होठ सिकोड़ लेता है|
“अच्छा हो गया बस – तुझे पता है न मोबाईल मुझसे नही रखा जाता – लगता है जैसे हर पल कोई मुझे ट्रैक कर रहा है |”
“हाँ तो तुझे कौन ट्रैक कर सकता है – आप को तो एक दिन उन्मुक्त परिदा जो बनना है – कभी देखा है किसी परिंदे के पास मोबाईल फोन |”
योगेश कुछ इस तरह अपनी बात कहता है कि अरुण हलके से हँस पड़ता है|
“हाँ हाँ हँस ले बे – मेरी हालत हँसने वाली ही है |”
अच्छा अब ड्रामा बंद कर और बता कि क्यों सुबह सुबह मुझे खोजता फिर रहा है – पूरे सूरत के लोग स्वस्थ हो गए है क्या ?” अबकी अरुण फिर हंसी की फुलझड़ी छोड़ता है|
“तो तू मुझे डॉक्टर समझता भी है – नहीं तो इस तरह मेरे सामने खड़ा अपने फेफड़े नही फूंक रहा होता |” कहता हुआ योगेश उसकी उंगलियों में फसी सिगरेट एकदम से छीनता हुआ फेंक देता है|
“अब बोल भी |”
“आज दोपहर तीन बजे से फुल रात तक का पार्टी का प्रोग्राम बनाया है – तुझे पता नही कितना मेनेज किया है मैंने इसके लिए – अगर कोई इमरजेंसी नही आती तो अपन दोस्त मिलकर फुल मस्ती करेंगे और तब फूक लिजीओ अपना फेफड़ा |”
“और कहाँ ?”
“तेरे फार्म हाउस में और कहाँ – इंतजाम सब मेरा बस डेस्टिनेशन तेरा |”
अबतक बडी दूर से दौड़ता हुआ वापस आता अरुण के पैरो के पास लोट रहा था और अरुण भी उसकी ओर झुका उसकी गर्दन प्यार से थपथपा रहा था|
“बस इतनी सी बात कहने के लिए बीस किलोमीटर तेरा पीछा करते मुझे आना पड़ा इसलिए तो कहा लात मार रखी है तूने मेरी जिंदगी की – अगर इतना किसी लड़की के पीछे गया होता तो अबतक चार बच्चो का बाप होता मैं |”
“तो जा न किसने रोका है |”
“तेरी दोस्ती ने रोका है – तू कोई लफड़ा करता नही और मुझसे तुझे अकेला छोड़ा नही जाता |”
“तू डॉक्टरी छोड़कर नाटक में क्यों नही भरती हो जाता तेरा ड्रामा न हाउसफुल चलेगा – बात करता है – तुझे न बहुत अच्छे से जानता हूँ मैं – अब तक बीस गर्ल फ्रेंड बनाकर छोड़ चुका है – खुद कही टिका है कभी|”
“अच्छा अच्छा ठीक है – अब मैं चलता हूँ – बस तू टाइम पर पहुँच जाइयो |” अपनी कलाई घड़ी देखता हुआ योगेश जिस तेजी से आया था उसी तेजी से निकल भी जाता है|
अरुण भी बडी को साथ आए नौकर के भरोसे छोड़कर आश्रम के अंदर चल देता है|
…..किस बेनाम दिल की मंजिल में खड़ा है अरुण ?? जानने के पढ़ते रहे…
क्रमशः……………….

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