Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 52

पूरा दिन योगेश का ये सोचते गुजरा कि वह आखिर कर भी क्या सकता है जिन्हें वह जानता पहचानता भी नही फिर उनसे वह कैसे और किस तरह से भेंट की उम्मीद रखे|
मन में संशय तो था फिर भी योगेश आखिर सुवली गाँव की ओर निकल पड़ता है| वह अब उसी हॉस्पिटल में था जहाँ मनोहरदास एड्मिड थे| योगेश सही वार्ड का पता करता सारंगी के पिता के सामने खड़ा था| वह उन्हें कहना तो बहुत कुछ चाहता था पर वे तुरंत ही भड़क उठे –
“आप क्या मदद करेंगे – माना गलती हमारी ओर से हुई तो क्या जो मन में आएगा अनाप शनाप लांछन लगा देंगे – जो जी में आया मीडिया को कह सुनाएँगे – हम तो खुद ही बेबस हो चले – समझ ही नहीं पाए की क्या करे ऊपर से आपने अपना वकील भेजकर डाइवोर्स का पेपर भेज दिया – अरे साहब साइन किससे कराओगे – लड़की मिल गई होती तो क्या ये सब तोहमत सहते – हम पर केस करने का दवाब बना दिया अब क्या बोले एक तरफ मास्टर जी की ये हालत है तो दूसरी ओर हमारी बेबसी – अगर कुछ कर सकते है तो हमे हमारे हाल पर छोड़ दीजिए बस |” वह रुंधी आवाज में योगेश के आगे हाथ जोड़ लेते है|
योगेश बेबस सा उन्हें देखता रहा| आखिर जो कुछ हो रहा था उसमे उसका बस ही कहाँ था ? वह जानता था ये डाइवोर्स पेपर वाली बात से अरुण जरुर अनभिग्ज्ञ होगा | फिर भी उसे अपने दोस्त के लिए कुछ तो करना ही होगा|
“क्या आपने किरन का कुछ पता किया ? या पुलिस में रिपोर्ट लिखाई ?”
योगेश की बात पर वे फिर भड़क उठे –
“आप कही और से आए है क्या ? आपको कुछ नही पता ?”
“मतलब ?” योगेश चौंक उठा|
“आपकी ओर से यही धमकाने तो वकील आया कि हम पुलिस में रिपोर्ट न लिखाए – अगर रिपोर्ट लिखा देंगे तो वे हम पर बदनामी का लांछन कैसे थोपेंगे –|” उनकी बात पर योगेश के होश ही उड़ गए जबकि वे अपने में बडबडाते हुए बोले जा रहे थे – “एक तरफ हमारी बेटी गई दूसरी तरफ उसे खोजने की रिपोर्ट भी नही लिखा सकते – सारी की सारी बदनामी बस हम पर थोप दी गई – क्या सच है क्या झूठ बिना जाने – इसलिए कहता हूँ हमे हमारे हाल पर छोड़ दीजिए – हर रोज नई नई धमकी से तंग आ गए है – |”
ये सब सुनते योगेश सन्न रह गया था| वह एक बात तो अच्छे से समझ गया कि जो कुछ भी अब हो रहा है उससे अरुण और भूमि भाभी जरुर अनजान रहे होंगे| अब ये सुनने के बाद उन्हें वह क्या दिलासा देता इसलिए चुपचाप वहां से जाने लगा|
“सुनिए..|”
योगेश हॉस्पिटल से बाहर निकल रहा था तभी कोई पुकारती आवाज उसे सुनाई पड़ी| वह आवाज के साथ शक्ल भी उसके लिए अनजानी थी| वह कोई थी जो भागती हुई उसके अब ठीक उसके सामने खड़ी थी|
“क्या आपने मुझे बुलाया ?” योगेश अपने आस पास के लोगो को देखता हुआ अब उसकी ओर देखता है|
“जी आपको ही – आप जरुर योगेश बाबू है न ?”
“हाँ पर…आपको कैसे पता ?”
“मैं सारंगी – मैंने आपनी और अपने पिता जी की बात सुनी पर उनके सामने तो मैं कुछ नही कह सकती थी इसलिए आपके जाते हुए आपको टोका |”
अब रूककर पल भर को योगेश उसे देखता है और याद करते समझ जाता है कि वह कौन है|
वह अभी भी कहे जा रही थी – “आप समझ नही रहे कि हम पर क्या बीत रही है पर अब जो कुछ हो रहा है वो बिलकुल सही नही है – दीदी पर इतना बुरा लांछन !”
“जो हुआ है वही तो कहा जा रहा है |” योगेश थोड़ी सख्ती से कहता है|
“हाँ यही होता है – लड़की घर से बाहर निकलती है और सबको अपनी जबान से सब कहने का मौका मिल जाता है पर मेरा यकीन इससे बिलकुल अलग है – जिस दिन दीदी मिलेगी वो सारा सच भी सामने आ जाएगा |”
योगेश हैरानगी से उसका चेहरा देखता रहा जिसमे गजब का विश्वास समाया था|
वह कह रही थी – “दुनिया चाहे जितनी बाते कर ले लेकिन मैं जानती हूँ उन्हें – जिस शादी के बारे में अरुण बाबू को अब मालूम पड़ा मेरी दीदी तो उसे अपने बालपन से निभाती आ रही है – किसी और की सूरत तब उनके दिल में बनती जब अरुण बाबू की सूरत हटी होती – ये जाने बिना कि इस शादी का आगे क्या होगा वे हमेशा इस शादी के साथ जीती रही – अब इसे किस तरह का प्यार कहेंगे आप – क्या ये सच्चा प्यार नही है ? या इसका भी कोई सबूत चाहिए ?”
“तो मेरे यार ने भी तो बिन देखे जिसे अपने मन में बसाकर दिल से चाहा और आज जिसके लिए वह बुरी तरह से टूट गया तो क्या वो प्यार नही है – इसमें उसकी क्या गलती है बताओ ? उसने तो अपनी दुल्हन की शक्ल तक नही देखी ?”
दोनों दंग से अब एकदूसरे को देखते रहे| आखिर वे दोनों क्यों उनके प्यार की माप एकदूसरे को बता रहे है !! अगले ही पल एक हिचकिचाहट सी उनके हाव भाव में नजर आने लगी|
आखिर कुछ क्षण बाद योगेश धीरे से कहता है – “आपके पास अगर उनकी कोई तस्वीर हो तो दे – मैं रिपोर्ट…|”
योगेश की बात बीच में ही काटती हुई वह बोल पड़ी – “नही तस्वीर नही दे सकती – जो बदनामी होनी थी हो गई अब क्या तस्वीर सारे शहर में बटवाएगें |”
“लेकिन..!”
“नही –|” वह हाथ के इशारे से उसे टोकती हुई बड़ी दृढ़ता से कहती है – “आपके हमारे मिलाने से कुछ नही होगा – मुझे सिर्फ अपने इस विश्वास पर विश्वास है कि अगर उनका प्यार सच्चा है तो कोई भी नियति उन दोनों को मिलने से नही रोक सकती |”
सारंगी के विश्वास पर योगेश भी पल भर को ऑंखें मूंदता जैसे मन ही मन आमीन कह उठा था|
***
देर तक किरन खिड़की के बाहर देखती रही| बार बार उसकी नज़रो के सामने अपने पिता का बेबस चेहरा घूम जाता तो अगले ही पल नर्स और सारंगी के पिता की कही बाते ! पल भर में ही उसकी दुनिया बुरी तरह से बिखर कर रह गई थी| अब दुनिया की नजर में उसका मान शून्य हो कर रह गया था|
वह खुद से ही पूछ बैठी कि इतने बड़े लांछन के साथ वह अपने पति और उसके परिवार का कैसे सामना करेगी ? और किस सच का सबूत उनके सामने पेश करेगी ? जब नर्स बता चुकी है कि उसके साथ वाला शख्स घटना स्थल पर मर चुका है फिर कौन उसकी सच्चाई पर यकीन करेगा ? कहाँ जाए वह ? जब उसके पिता भी उसकी ओर से ऑंखें मूँद कर चित हो गए ? यही यक्ष प्रश्न उसके मस्तिक्ष में उमड़ता रहा| खिड़की के बाहर के शोर से कही ज्यादा शोर उसके जेहन में उमड़ रहा था|
मन ही मन खुद से लड़ रही थी| ‘आखिर किससे कहे अपने मन की बात ? पिता की चुप्पी और इस बदनामी के बाद उसका अस्तित्व ही उसका दुश्मन बन चुका था| उसकी पवित्रता पर कोई कैसे यकीन करेंगा? नहीं कोई नहीं करेंगा विश्वास जो दुल्हन विदाई के समय मौजूद ना रहे उसे लोग क्या कहते हैं ? मैं ये नहीं सुन सकूंगी| जब समाज ने सीता पर विश्वास नहीं किया तो क्या मुझे छोड़ेंगे!! क्या मेरे राम मुझ पर विश्वास करेंगे!!’
‘काश कोई होता जिससे अपने मन की बात कह सकती| क्या करूं इस तरह सभी से छुपकर कहां रहूँ ? अगर वह नर्स मेरा नाम जान लेती तो क्या मुझपर अपना प्यार इस तरह लुटाती !! उसका मन मेरे प्रति नफरत से भर नही जाता| नहीं !! अब और नही सह सकती|’ उसका मन बिलख उठा|
वह मन ही मन तय करती है ‘मुझे अब और यहाँ नहीं रुकना चाहिए पर कहां जाऊं|’ इन्हीं सवालों के बीच विचरती वह घबराकर अपने चारों ओर देखने लगती है फिर फुर्ती के साथ बाहर की ओर कदम बढ़ा देती है| सबकी नजरों से बचती हुई किरन चली जा रही थी बिन रास्तो की मंजिल की ओर|
उसने खुद को एक शॉल से ढक रखा था जो नर्स ने उसे दिया था| कुछ ही पलों में वह खुद को हॉस्पिटल से दूर पेड़ों के झुरमुट से घिरी सड़क पर पाती है जिसपर तेज कदमों से कदम दर कदम चली जा रही थी| तभी अचानक उसका शॉल कही अटक जाता है|
“कहाँ चली रानी ?”
किसी ने उसकी शॉल का छोड़ पकड़ लिया इससे वह इस तरह चौंकी मानो लंबी बेहोशी से जागी हो|
वह आवाज की लहक से माजरा समझते तुरंत ही बिना मुड़े आगे की ओर भागने लगती है| शॉल उसके बदन से दूर हो चुका था अब आधी रात उसका खिला रूप अँधेरी रात में अलग ही दमक रहा था| यूँ बदहवास भागती वह अब उस तीक्ष्ण आवाज को सुनती जो उसे पकड़ने को आतुर थी जो उसे भद्दे भद्दे शब्दों से पुकार रही थी|
किरन बुरी तरह से घबरा गई थी| कि तभी इस घबराहट में वह लडखडा कर गिर पड़ती है| वह किसी से टकरा गई थी| वह इतनी बदहवास हो गई थी कि बिन देखे अपनी बदहवासी में वह कह उठी –
“मेरी मदद करो…….|” कहती वह उस अनजान काठी के पैरो के पास बेहोश होकर गिर पड़ती है|
क्रमशः……….

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