
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 54
किरन ख़ामोशी से अब उन आवाज को सुन रही थी जो अन्यत्र कमरे से आ रही थी| वह सिर्फ उन आवाजो की लहक से उनकी उम्र और स्थिति का पता लगा पा रही थी जबकि अभी तक वह नही जान पायी थी कि इस कठिन पल में उसे बचाने वाला मसीहा कौन है !!
लड़की की चहकती हुई आवाज सुनाई पड़ती है जो अपने भाई से कह रही थी – “वाह भईया आप तो वही मिठाई ले आए जो मुझे पसंद हैं |”
“तो क्या तुम्हारी पसंद भूल जाएँगे – ये वही से लाया हूँ जहाँ की तुम्हे पसंद है –उसी बड़ी चौक की दुकान के है मलाई पेडा और खमंड – |”
“ओह थैंक्यू भईया लेकिन दिन भर तो आप ड्यूटी पर थे फिर कब लाए इतनी दूर से ?”
“कल जा रही है मेरी बहन वापस तो क्या इतना भी नही करता – पहले ही लेकर रख लिया फिर सुवली गाँव को निकला – अरे हाँ – क्या उसे होश आ गया जो मुझे सुवली गाँव में मिली थी ?”
“हाँ भईया होश तो आ गया पर लगता है उसे कुछ याद नही – अभी भी चुप बैठी अचरच से देख रही है – लगता है कोई एक्सीडेंट हुआ होगा बेचारी का – जाने कहाँ होगा उसका परिवार – हमे उसकी मदद करनी चाहिए |” वह लड़की परेशान हो उठी |
“किसकी मदद ?” तभी उन दो आवाजो के बीच एक तीसरी कुछ भारी आवाज सुनाई पड़ती है| किरन उन आवाजो को सुनती हुई उनकी उम्र का अंदाजा लगा रही थी| वह आवाज जरुर उन दोनों भाई बहन के पिता की थी|
वह आते ही कह रहे थे – “अच्छा उस लड़की की बात कर रहे हो – क्या ठीक है अभी वह ?”
“हाँ पापा ठीक है – मैं भईया से यही तो कह रही हूँ कि हमे उसकी मदद करनी चाहिए – बेचारी जाने किस मुसीबत में है |”
“हाँ हाँ क्यों नही – पहले ये लो |” उसके पिता अपने हाथ का पकड़ा कोई पैकेट उसकी ओर बढ़ाते हुए कहते है – “चाशनी गुजिया लाया हूँ तेरी पसंद की – कल जा आ रही है न फिर पता नही कब तेरे लिए ये ला सकूँगा |”
पिता की आवाज अब किसी अनकहे दर्द से भारी हो उठी थी| बेटी शायद भावुक होती अपने पिता से लिपटती कह उठी – “पापा मैं कही नही जा रही – मुझे तो अपने पापा के पास रहना है |”
“ऐसा थोड़े कहते है – बेटियों को अपने घर जाना ही होता है यही पिता की आँखों का सुख है |” वे प्यारे से उसका सर सहलाते कहते है|
उस पल का माहौल भावुक हो गया| ये सब सुनती किरन का मन अपने पिता को याद करता सिसक उठा|
“ओहो आज तो इतना मीठा आ गया – लगता है कल जीजा जी से पहले छुटकी को चीटियाँ न साथ ले जाए |” ये उसके भाई की आवाज थी जो अपनी लहक से उन भावुक पलो को गुदगुदाने की कोशिश करता है| उसकी बात पर तीनो की समवेत खिलखिलाहट गूँज उठती है|
सबकी हंसी की खिलखिलाहट जहाँ उसके आस पास गूँज रही थी वही किरन का मन तो रो उठा| जाने कैसे दुर्भाग्य में फस गया था उसका जीवन !! शादी हुई पर पिता के घर से न विदाई हुई न पति का साथ मिला और बिन अपराध के दोषी भी करार दे दी गई| आखिर क्या होनी लिखी है उसके जीवन की ये सोचती मन ही मन सुबकती भगवान से कह उठती है|
अपने दर्द को समेटे वह चुपचाप लेट जाती है| उसकी आँखों में नींद कहाँ थी बस ऑंखें बंद किए जैसे सबके प्रश्नों से बचना चाहती थी वो| उसे अहसास हुआ कि वह लड़की कमरे में वापस आई और उसे पुकारा भी पर किरन ने कोई जवाब नही दिया जिससे वह उसे सोता समझ कमरे का दरवाजा उड़काकर वापस चली जाती है|
***
सुबह होते ही भूमि तेज कदमो से सेठ दीवान के कमरे की ओर चल दी| उसके हाव भाव बेहद कसे हुए थे मानो मन के अन्दर ढेरों समंदर उछाल मार रहा हो|
उनके कमरे में पहले से ही आकाश मौजूद था और बेहद तल्ख़ भाव से अपनी बात कह रहा था – “सब जगह जो हमारी इतनी बदनामी हो रही है वो सब उस लड़की की वजह से हो रही है – जाने क्या पनौती थी कि एक ही पल में सब लील गई – इसी बदनामी की वजह से मिनिस्टर साहब ने भी मिलने से मना कर दिया और हमारे हाथ से गवर्नमेंट का इतना बड़ा कॉन्ट्रैक्ट निकल गया ऊपर से लगातार हमारे शेअर्स डाउन हो रहे है – सब एक साथ मुसीबत आ गई |”
“क्या पता था कि उस घर से रिश्ता नही किसी मुसीबत से रिश्ता करने जा रहे |” वे भी उसी तल्ख़ भाव से कहते है|
“डैड मैं तो कहता हूँ कि हमे देश से बाहर रियल स्टेट में कुछ इन्वेस्ट करने चाहिए और दुबई अच्छा ऑप्शन रहेगा इसके लिए |” कहता हुआ आकाश अपने पिता के हाव भाव पर नजर बनाए रखता है|
“नही आकाश – अभी के लिए फ़िलहाल सारे लाइव प्रोजेक्ट रोक दो – जब तक मार्किट स्टेबल नही हो जाता कंपनी किसी नए प्रोजेक्ट को शुरू नही करेगी|”
आकाश कुछ कहने वाला था कि तभी दरवाजे पर नॉक करने की आहट के साथ भूमि की आवाज सुनाई पड़ती है जो अंदर आने के लिए पूछ रही थी|
वह अंदर आती हुई पूछती है – “क्या एक जरुरी बात मैं आपसे कर सकती हूँ?”
“हाँ – बैठो – क्या कहना है ?”
“डैड मैं चलता हूँ |” भूमि के बैठते आकाश तुरंत उठकर खड़ा होता कहता है|
“मुझे आप दोनों से बात करनी है – इट्स वैरी अर्जेंट|” वह बिना आकाश की ओर देखे कहती है|
दीवान साहब बिना शब्द के आकाश की ओर देखते है जिसका मतलब वह अच्छे से समझता वही पर भूमि से कुछ दूर बैठता उसके विपरीत देखने लगता है|
“बताओ क्या कहना है भूमि ?”
“डैडी जी क्या आपने किरन के यहाँ अपना वकील भेजा था ?”
किरन का नाम आते दोनों की तीक्ष्ण नज़रे भूमि की ओर मुड जाती है|
दीवान साहब सख्त शब्दों में कह उठते है – “क्या तुम उससे मिलने गई ?”
भूमि उनके शब्दों की तल्खी अच्छे से समझ रही थी|
“डैडी जी मुझे इस घर की मान मर्यादा का अच्छे से ख्याल है – मैंने वो कभी नही किया जो आप नहीं चाहते – मैं वहां नही गई योगेश गया था – उसी ने बताया -|
जहाँ भूमि अपनी बात कह रही थी वही आकाश जानकर उसमे अपनी अरुचि दिखाने अब टेबल पर रखा चाय का कप उठाकर सिप करने लगता है|
“मनोहर दास जी को होश नही आया है और उनकी देख भाल में लगे उनके स्कूल का कोई व्यक्ति ही उनके साथ है तब आखिर किस लिए आप उनपर केस करने का दवाब बना रहे है – ये ठीक नहीं है – कम से कम हम उनके लिए कुछ कर नही सकते तो उन्हें परेशान तो नही करना चाहिए न !”
भूमि की बात खत्म होते दीवान साहब तुरंत बोल उठते है – “और जो हमारे साथ धोखा हुआ – उसके बारे में तुम क्या कहोगी – वो किसकी गलती थी ?”
“जो हुआ उसका सच तो अभी वे क्या आप भी नही जानते – जब तक किरन सामने नही आ जाती कोई नही जानता उस लम्हे में क्या हुआ तो उस बात का खमियाजा वे भी तो भुगत रहे है न – फिर ऊपर से आपका दवाब !! क्या ये सही है ? मैं बस इतना चाहती हूँ कि कम से कम उन्हें उनकी हालत में छोड़ दिया जाए|”
“तुम्हे पता है न इसकी वजह से हमारी व्यक्तिगत, सामाजिक और व्यावसायिक कितनी क्षति हुई है |”
“मुझे एहसास है इसका पर उनपर दवाब बनाने से क्या वो सब वापस मिल जाएगा – वैसे भी अगर आपका कसूरवार कोई होता तो मनोहर दास जी होते पर वे तो खुद कोमा में है – किरन होती पर जिसका कोई अता पता ही नही है फिर आखिर आप दवाब किस पर बना रहे है और वैसे भी अगर इस वक़्त अरुण खुद के होश में होता तो ये सब उसे भी ठीक नही लगता डैडी जी |”
भूमि जानकर अरुण की बात करती अब उनका चेहरा गौर से देखने लगती है| वह अच्छे से जानती थी कि वे पीठ पीछे चाहे जो कर ले पर अरुण की नजरो में कभी दोषी नही बनना चाहते| पिछली बार पांच साल पहले भी उन्होंने जो कुछ भी किया पर उसकी भनक उन्होंने अरुण को नहीं लगने दी ये बात भूमि अच्छे से जानती थी|
दीवान साहब भी अब चुप हुए अन्यत्र देखने लगे थे जिसका साफ़ मतलब था कि आखिर उन्होंने भूमि की बात स्वीकार कर ली| कुछ क्षण बाद भूमि इजाजत लेती उठ जाती है|
***
रात किसी तरह से कट ही गई| किरन को एक पल को भी नींद नही आई बस मन किसी दर्द में गहरे से डूबता चला गया| आंख खुलते ही फिर वह प्यारी की लड़की ठीक उसकी नजरो के सामने थी जिसने इस वक़्त कामदार भारी सी साड़ी पहनी थी| उसे देखकर तो कोई भी बता कह सकता था कि उसकी शादी अभी हाल में ही हुई है| उसके हाथो की भरी भरी चूड़ियाँ, हथेली में गाढ़ी रची मेहँदी और चेहरे पर का नूर साफ़ साफ़ जता रहा था उसके नव विवाहित जीवन को और एक तरफ उसकी स्थिति !! न हाथो में मेहँदी ही रची रह गई न चेहरे पर कोई नूर !! बस शेष रह गया एक अनकहा दर्द !!
वह लड़की अब किरन के पास आती उसका चेहरा ध्यान से देखती हुई कहती है – “अब आपको कैसा लग रहा है – ठीक तो है न आप ?”
किरन बस हामी में हलके से सर हिला देती है| इसपर वह लड़की भरपूर मुस्करा देती है|
“मैं पग फेरे के लिए आई थी घर और आज मेरी विदाई है |” वह शर्माती हुई कहती रही – “अभी मेरी शादी को दस दिन हुए है – आज मेरे पति मुझे लेने आने वाले है – अच्छा आपकी शादी को कितना समय हुआ है ?”
वह किरन की मांग की ओर देखती रही| किरन की आँखों से आंसू बह निकले|
“अरे आप तो रो रही है – क्या हुआ – आपको भी अपने घर की याद आ रही ? तो बताए न कहाँ है वे लोग ? मेरे भईया आपको वही छोड़ आएँगे |”
वह किरन का चेहरा गौर से देख रही थी जबकि किरन निगाह नीची किए भरसक अपने आसुओ को रोकने की नाकाम कोशिश करती रही|
“अरे छुटकी बता तो नमक का डिब्बा कहाँ रखा है – तब से नही मिला रहा मसालदानी में भरने के लिए |”
अचानक कमरे में किसी पुरुष की आवाज प्रवेश करती है जिससे उन दोनों का ध्यान उसकी ओर उठ जाता है|
“ओहो भईया – अभी तो निकाल कर आई थी|”
वह ठसककर हंसती हुई कहती है तो कमरे के बाहर से उनके पिता की आवाज सुनाई देती है –
“अरे राजवीर – अब तो अपनी बहन को परेशान करना छोड़ – कल को क्या उसके ससुराल फोन करके पूछेगा |”
इस बात पर वह लड़की जहाँ शरमा उठी वही पिता पुत्र हँस रहे थे पर किरन के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे| वह जानती थी ये नाम और शायद ये चेहरा भी| ये महज संयोग था कि राजवीर ने उसका चेहरा नही देखा था पर उसने तो दादा जी को उसके साथ जाते देखा था| ये क्या नियति होने वाली है| वह अरुण के ड्राईवर के घर पर थी और ये वही मसीहा था जिसने उसे बचाया !तो अब आखिर ईश्वर क्या करना चाहते है ? एक पल में जिससे दूर किया धीरे धीरे उसी के पास ले जाने की आखिर ये कैसी नियति है ?
किरन अवाक् उसकी ओर देख रही थी जिसपर वह लड़की कहती है –
“ये है मेरे भईया राजवीर – इन्हें ही आप कल रात सुवली जाते समय मिली थी|”
किरन अब फिर से अपनी नज़रे नीची कर लेती है मानो खुद को वक़्त के हवाले कर दे रही हो|
क्रमशः…..