Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 55

“तुम थी कहाँ – अब तक तो पैसे तुम्हे जमा कर देने चाहिए – |” रूबी के सामने बैठा डॉक्टर थोड़ा तेजी से अपनी बात कहता है|
पर रूबी पर जैसे कुछ असर ही नही हुआ| वह उसी निस्तेज भाव से उनके सामने बैठी रही जिससे डॉक्टर उसकी मानसिक हालत समझ रहे थे इसलिए अबकी गहरी सहानुभूति से कहते है –
“बात को समझो रूबी – ये हॉस्पिटल चैरिटेबल है लेकिन जब तक बाकी पैसे जमा नही होंगे तब तक चैरिटी भी नही होगी |”
“अभी मैं बस बड़ी मुश्किल से एक लाख तक ही जुटा पायी हूँ डॉक्टर – क्या बाक़ी के लिए मुझे थोड़ी और मोहलत मिल सकती है?”
“रूबी – अगर सिर्फ मेरी बात होती तो मै फीस न लेकर कुछ एडजस्ट कर देता पर कीमो थैरिपी का खर्च, दवाइयां, इंजेक्शन, टेक्नीशियन का खर्च सब को मैं कैसे कंट्रोल कर सकता हूँ – तुम समझो इस बात को – मैं बस आज रात तक और तुम्हे समय दे सकता हूँ और वैसे भी तुम्हारी माँ की स्थिति काफी अनस्टेबल है अभी |”
ये सुनते रूबी की घबराहट आंसू के रूप में आँखों के कोरो से बह जाती है| डॉक्टर आँखों से उसे सांत्वना देने की कोशिश करते है पर रूबी वहां नही रूकती और तुरंत ही बाहर निकल जाती है|
इस वक़्त उसके दिमाग में बाकी के पैसे जुटाने की कशमकश चल रही थी| वह पिछले सात सालों से अपनी माँ के इलाज के लिए लगातार पैसे जुटा रही थी| घर का सब बेचकर भी अब उसके लिए अग्रिम राशि जुटाना मुश्किल हो गया था|
वह सोचती सोचती ऑफिस के लिए निकल जाती है|
***
आकाश पर स्टैला की दी हुई मोहलत का असर था| वह न दुबई में इन्वेस्टमेंट पर अपने पिता को राजी कर पाया और न खुद से उसे कुछ सूझ रहा था इससे वह बुरी तरह से खीजा हुआ था जिसकी ठसक वह बार बार दूसरो पर निकाल दे रहा था|
अभी अभी अपने एक कर्मचारी को बुरी तरह लताड़ता वह ऑफिस से निकल रहा था| दीपांकर की ओर बिना देखे वह बेहद तल्खी से कह रहा था –
“मैं अभी होटल में रहूँगा और बहुत जरुरी होने पर ही कॉल करना – बहुत जरुरी समझे न और हाँ एनी को बुलाओ |”
“सर लेकिन वो छुट्टी पर है|” दीपांकर धीरे से कहता है|
इसपर और बुरी तरह खीजता हुआ आकाश उस पर गरजा – “मैंने कहा बुलाओ उसे तो बुलाओ – समझे |” कहता हुआ ड्राईवर द्वारा कार का पिछला दरवाजा खोलने पर वह उसमे बैठ जाता है| कार के वहां से जाते दीपांकर एक गहरी सांस हवा में यूँ छोड़ता है जैसे उसे देर से अपने अन्दर कैद करके रखा हो| फिर माथे का पसीना पोछते वह वापस ऑफिस के अन्दर चल देता है|
दीपांकर अभी अपनी चेअर तक आया ही था कि रूबी को बेटाइम अपनी ओर आता देख कुछ कहने वाला था पर रूबी उससे पहले ही कह उठी –
“दीपांकर सर – मुझे कुछ रुपयों की सख्त जरुरत है – मेरी माँ हॉस्पिटल में एड्मिड है – प्लीज सर मेरी हेल्प कर दीजिए |”
रूबी दीपांकर के ठीक सामने थी और उसके आगे गिड़गिड़ा रही थी इसपर वह बेहद शांत लहजे से कहता है –
“पहले तुम एक काम करो – एक बहुत इम्पोर्टेंट डाकुमेंट है उसे तुम आकाश सर तक पहुंचा दो और लगे हाथ अपनी प्रॉब्लम भी उन्हें बता देना |”
“लेकिन वे तो ऑफिस में नही है |”
“हाँ अभी वे किसी काम से होटल में गए है – मेरे ख्याल से तुम वही चली जाओ |”
रूबी धीरे से हामी भरती है उसके पास इसके अलावा कोई चारा भी नही था|
***
राजवीर की बहन अपनी विदाई की पूरी तैयारी में थी पर राजवीर को जाते देख पूछती है –
“भईया आप नही रुकोगे ?”
इससे पहले कि राजवीर कुछ कहता उसके पिता रामानंद जल्दी से कह उठे – “राजवीर को जरुरी जाना है बेटी पर मैं तो रुका हूँ न – दामाद जी ट्रैफिक में फसे है – एक घंटे में आ जाएँगे फिर तुम्हे विदा करके ही मैं ड्यूटी में जाऊंगा |”
“पापा – क्या आज और मैं नही रुक सकती ?” वह लाड से अपने पिता के कंधे से लगती हुई पूछती है|
वे स्नेह से मुस्कराते हुए कहते है – “मन तो मेरा भी कहाँ भरा है पर आज पगफेरे के लिए सबसे अच्छा दिन है – आज के शुभ दिन तुम्हारा अपने ससुराल में गृह प्रवेश करना बहुत जरुरी है – समझी न |”
वह मुस्करा देती है| तभी किरन जिसे अपनी साड़ी देकर उसने नहाने भेजा था वह संकुचाती हुई उनके सामने खड़ी होती है|
“आओ बेटी – बैठो – अरे राजवीर नास्ता लेकर आओ |”
राजवीर अपने पिता की बात पर तुरंत किचेन में चला जाता है तो उसकी बहन किरन के पास आकर बैठती उसका हाल लेने लगती है फिर अपने पिता की ओर देखती हुई कहती है –
“पापा मैं चली जाउंगी तो ये यहाँ अकेली कैसे रहेंगी ?”
ये सुनते किरन तुरंत बोल उठी – “आप मेरी चिंता न करे – आप सबने मेरे लिए जितना किया मैं उसी की बहुत आभारी हूँ – अब मैं कही भी चली जाउंगी |”
“कही भी क्यों ?” नाश्ता लाते राजवीर उसके सामने रखता हुआ कहता है – “आप भी मेरी बहन जैसी है – आप को इस तरह अकेला नही जाने देंगे – आपको अपने घर परिवार के बारे ने कुछ तो याद होगा बता दीजिए – मैं वही ले चलूँगा आपको |”
इस पर किरन क्या कहती| पता तो बता देती पर अपने इस परिचय के साथ कैसे उनके सामने जाती और किस तरह खुद को निर्दोष बताती ये सोचती वह सर नीचा किए आंसू बहाने लगती है|
“अरे बेटी दुखी मत हो -| अबकी रामानंद कहते है – “तुम्हारी याददाश्त चली गई है तो क्या हम तुम्हे इस तरह अब भटकने नही छोड़ सकते – तुम देखने में भले घर की लगती हो – तुम्हारी परिवार को जरुर तुम्हारी चिंता हो रही होगी -|”
“फिर आप क्या करेंगे पापा ?” राजवीर की बहन जल्दी से पूछती है|
“मैंने सोच लिया है – बड़ी मालकिन है उनके पास ले चलूँगा – वे जरुर तुम्हारी मदद करेंगी – |”
किरन अवाक् अब उनकी तरफ देखती है|
उसके अचरच को उसका डर समझते हुए रामानंद आगे कहते है – “अरे घबराओ नही बेटी – जहाँ मैं तुम्हे ले जाने की बात कर रहा हूँ वो बहुत बड़ा परिवार है वही है हमारी मालकिन भूमि दीवान – बहुत भली महिला है मैं उन्ही के पास ले जाने की बात कर रहा हूँ – वे जरुर तुम्हारी कुछ मदद करेंगी – मैं और मेरा बेटा उसी परिवार के लिए काम करते है |”
“हाँ सही है पिता जी – बहन अब निश्चिन्त हो जाओ आप बिलकुल सही जगह पहुँच रही हो |” राजवीर कहता है|
इसके आगे किरन के कोई बोल न फूटा| उसे तो समय की नियति समझ ही नही आ रही थी कि आने वाला वक़्त आखिर उससे कराना क्या चाहता है ? रामानन्द उसकी ख़ामोशी को उसकी स्वीकृति मानते हुए कहते है –
“राजवीर ऐसा करो तुम ही ले जाओ अपने साथ – मुझे तो घर से निकलने में देर हो जाएगी |”
“ठीक है पिता जी – छुटकी तुम इन्हें नाश्ता करा कर बाहर ले आओ तब तक मैं कार साफ़ करता हूँ |” कहता हुआ राजवीर बाहर निकलने लगता है|
वक़्त ने किरन को ज्यादा कुछ सोचने और न करने का छोड़ा था बस जो हो रहा था उसी का उसे सामना करना था| वह भी चुपचाप दो चार कौर खाकर जाने को तैयार हो गई| बाहर निकलते निकलते वह लड़की किरन को दिलासा देती रही –
“आप अब कुछ ज्यादा मत सोचो – वे घर सच में बहुत अच्छा है – भूमि मालकिन आपकी जरुर मदद करेंगी वे कई तरह के सहायता समूह और संस्था चलाती है बस अभी उस घर के कुछ बुरे दिन चल रहे है|”
इस पर किरन पलटकर हतप्रभता से उसकी ओर देखती है जिससे वह अपनी बात आगे कहती रही –
“वो छोटे मालिक है न उनकी पत्नी…अब क्या कहूँ कुछ लोग दुनिया में कितने बुरे होते है – वह पता नही क्यों उन्हें छोड़ गई जबकि छोटे मालिक तो बहुत अच्छे है – मेरी शादी के समय तो उन्होंने हमारी व्यकिगत मदद की थी पर खैर छोड़ो – वह भी न उन्हें दुःख देकर कही खुश नही रहेगी…..|”
“नही….|” किरन के हलक से एक दर्द भरी आह निकल गई|
“अरे आप क्यों परेशान होती हो – बुरे लोगो संग बुरा होता है और अच्छे लोगो संग हमेशा ईश्वर रहते है – आपको भी देखना अपनी मंजिल जरुर मिलेगी – |” वह अपनी प्यारी सी मुस्कान के साथ उसे ढेर सांत्वना देती है|
इस वक़्त किरन के मन में जो गुजर रहा था वह बस उसे ही खबर थी| उसकी ख़ामोशी भी उसके लिए उतनी ही घातक थी जितना उसका परिचय !! उसे नही पता था कि आगे उसे क्या करना है वह तो खुद को बस समय के हवाले कर चुकी थी|
वह बाहर आ गई थी और उसकी आँखों के सामने अरुण की चमकती सफ़ेद कार थी| कैसे भूलती आखिर दूर से ही उसने इस दुनिया को देखा था| आज क्या सच में उसका भी पगफेरा होने जा रहा था !! राजवीर उसे पीछे की सीट पर बैठाकर स्वयं ड्राइविंग सीट पर बैठता कार दीवान मेंशन की ओर ले जाता है|
क्रमशः……

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