
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 57
राजवीर कार चलाते चलाते किरन को सब बताता जा रहा था| कहते कहते राजवीर ने जब दादा जी का चला जाना बताया तो किरन की एक अंतिम उम्मीद भी ढह गई| अब तक वह एक आखिरी उम्मीद मन में रखे थी कि दादा जी से मिल सकेगी शायद वे उसपर विश्वास कर सके !! उसे पहचानकर उसकी बात सुनेंगे पर अब वो अंतिम आशा भी उसकी आँखों से गंगा जमुना सी बह निकली|
उसे समझ नही आ रहा था कि किस उम्मीद से वह उस घर में जाए जहाँ अब न उम्मीद बची न पहचान !! आखिर क्या कराने वाली है उसकी नियति उससे|
विशाल मेंशन उसकी नज़रो के सामने सीना ताने खड़ी थी| देखते देखते जैसे उसके मन में कोई हूक सी उठी| जिस आंगन में उसकी डोली उतरनी थी जहाँ मधुर शहनाई गूंजनी थी आज वही कब्रिस्तान जैसा सन्नाटा छाया था|
दिन के ग्यारह बज रहे थे| एक झटके से कार के रुकते उसकी नज़र सामने की ओर जाती है| सामने दीवान मेंशन लिखा देख जैसे उसकी धड़कने धौकनी हो उठती है| कार मुख्य फाटक की बाधा को पार करके कार के पार्किंग एरिया की ओर बढ़ रही थी| चारों ओर बेहद शांत माहौल था| वह क्लांत मन के साथ मेंशन में उदास खड़ी उस बड़े से प्रांगण को नज़र उठाकर देख रही थी|
***
भूमि संस्था से आए फोन से थोड़ी परेशान थी और वहां निकलने को व्यग्र थी पर किसी कारण से वह रुकी हुई थी| वह बाहर के लॉन तक चक्कर काट रही थी| सर्दियों के शुरुवाती दिन थे और लॉन में फूल भर भर कर आए थे| गुलाब भी कसकर खिले थे|
भूमि अपने इंतज़ार का पल काटने गार्डन एरिया की ओर खड़ी माली को कुछ समझाती पाथ एरिया के आस पास के फूलों की छटाई के लिए बोल रही थी| यही पल था जब राजवीर किरन को लिए भूमि के पास चल देता है| वह किरन के आगे था कि तभी एक कार के निकलते वह किरन को आगे चलने को कहता पीछे तेजी से वापस मुड जाता है|
अभी अभी दीवान साहब की कार उस पार्किंग से तेजी से होकर बाहर को निकली थी जिसे देखते राजवीर ने सलाम ठोका पर किरन वह तो निशब्द देखती रही| वह तो वहां किसी अजनबी की तरह थी|
अरुण की एलर्जी की वजह से भूमि निकलने से रास्ते पर कभी गुलाब का फूल नहीं रहने देती थी| वह उनकी कटिंग का बोलती हुई किरन की ओर से पीठ करे खड़ी थी जिससे वह किरन का आना देख नही पाई पर नियति अपना काम कर रही थी| फूलो की कटाई से वहां पाथ में अब गुलाब ही गुलाब बिछे हुए थे जिन्हें किरन पार करती भूमि की ओर सकुचाती हुई बढ़ रही थी|
तभी एक अन्य कार के आते भूमि का सारा का सारा ध्यान उधर ही चला जाता है जैसे वह उसी का इंतजार कर रही थी| किरन वही खड़ी देखती रही|
कार के रुकते जो राजवीर दीवान साहब को सलाम ठोकने खड़ा था अब उस अन्य कार के पीछे का दरवाजा खोलता है जिसमे से क्षितिज निकलते तुरंत अंदर की ओर भागने लगता है पर भूमि का ध्यान उसकी ओर था जिससे वह उसे अंदर जाने से पहले ही पकड़ लेती है|
“कहाँ चले – पहले इधर आओ |”
क्षितिज भूमि के सामने आता खड़ा तो होता है पर उसकी ओर देखता नही| भूमि अब उसके सामने झुककर बैठती उसका चेहरा अपनी हथेलियों के बीच लेती गौर से उसे देखती हुई कहती है –
“देखो इधर – |”
भूमि के कहते क्षितिज धीरे से उसकी ओर देखता है|
“ये आंख लाल क्यों हुई – क्या हुआ है और ये शर्ट – ओह तो आप एकशन करके आए है – क्यों ?” भूमि अब उसके चेहरे से हाथ हटाकर उसके कपड़ो को ध्यान से देखती कह रही थी –
“तो बताएँगे आप ?”
“वो मम्मा – मैं गिर गया था |” वह सर झुकाए झुकाए कहता है|
“अच्छा इसीलिए तुम्हारी मैम ने हाफ डे में वापस भेज दिया – चलो मैं तुम्हारी मैम को थैंक्स कहने मिला लेती हूँ |” कहती हुई भूमि कनखनी से देखती अपना मोबाईल उसकी आँखों के सामने जैसे ही लहराती है वह जल्दी से उसका मोबाईल पकड़ता हुआ बोल उठा –
“वो मम्मा – |”
“हाँ तो कुछ और बताना है !” भूमि अब गौर से उसका चेहरा देखने लगी थी|
“वो न प्रत्युष है न उसने मुझे बैड बोला इसलिए मैंने उसे…|”
“तो तुमने उसे मारा !! क्यों !”
“क्यों नही मारू !! उसने मेरे चाचू के बारे में बैड बैड बोला था – इसलिए मैंने उसे बड़ा वाला पञ्च मारा |”
“क्षितिज ये बुरी बात है न !”
“तो उसने क्यों मेरे चाचू के बारे में बैड बोला – वो भी तो बुरा है न मम्मा !!” उसकी मासूम ऑंखें अब भूमि की ओर सीधी उठी थी| भूमि निरुत्तर उसकी ओर देखती रही| आखिर क्या कहती !! सब तरफ यही माहौल था लोगो को बाते करने का अवसर मिल गया था और उनकी सुनने के सिवा उनके पास रास्ता भी क्या था| क्षितिज के मासूम सवाल का उसके पास कोई जवाब नहीं था| वह खड़ी होती अब पीछे पलटकर देखती है|
यही पल था जब अपने से कुछ कदम दूर खड़ी किरन से उसकी ऑंखें मिलती है जो नज़रे झुकाए वही खड़ी थी और संभव था वह क्षितिज की बात सुन चुकी थी|
भूमि को किरन की ओर देखते देख राजवीर अब उसकी ओर आता हुआ जल्दी से कहता है – “मेम साहब – ये बेचारी अपने पति से बिछुड़ी हुई है – आप इसकी कोई मदद कर देती |”
“ठीक है मैं देख लुंगी – तुम पहले डॉक्टर को लेकर आओ – |”
“जी |” राजवीर तुरंत चला जाता है|
“डॉक्टर से क्षितिज का चेकअप करा लेना – देखना कही चोट तो नही आई – मैं जल्दी ही वापस आती हूँ |”
अब तक क्षितिज की नैनी भी आ गई थी उसे उसके हवाले करती भूमि कहती हुई अब किरन की ओर गौर से देखती है|
सादी सूती साड़ी में उस उजास भरे चेहरे को वह गौर से दो पल तक देखती रही| किरन अभी भी नजरे झुकाए खड़ी थी| किरन के तन पर जेवर के नाम पर बस कलाई में कुछ कांच की चूड़ियाँ पड़ी थी| माथे पर एक छोटी लाल बिंदी और मांग का सिंदूर देखती भूमि उसकी ओर आती हुई पूछती है – “क्या नाम है तुम्हारा ?”
“जी !” किरन चौंक कर उसकी ओर देखती है|
किरन हिचकिचाती हुई होंठ दाबे इधर उधर देखने लगी| सुबह की रुपहली धूप छन छन कर पेड़ों से आती फर्श पर अपना उजला प्रकाश फैलाए हुए थी| किरन की निगाह उसी पर टिकी थी|
“मैंने पूछा क्या नाम है तुम्हारा ?”
“उजला |” तपाक से उसके मुंह से निकल गया|
“बहुत सुन्दर नाम है बिलकुल तुम्हारी तरह |” भूमि अपनी भरपूर नजर से किरन की ओर देख रही थी जबकि किरन अभी भी नज़रे झुकाए उसके सामने खड़ी थी|
“घबराओ नही – तुम जो काम करना चाहोगी बता देना – |” कहती हुई भूमि कुछ दूर खड़े माली की ओर देखती हुई कहती है – “धनी ये उजला है इसे अंदर हिरामन काका के पास ले जाओ – मैं फोन पर उन्हें सब बता दूंगी |” कहती हुई भूमि ज्योंही उसके विपरीत मुड़ने वाली थी उसे हिरामन काका तेजी से वहां आते दिखते है|
भूमि बाहर जाने को व्यग्र थी पर हिरामन काका को हैरान परेशान देख वह उनकी ओर देखने रुक जाती है|
“अरुण बबुआ तीन दिन से कमरे से भी बाहर नही निकले है – आप कुछ कहिए न |” उनकी आवाज बेहद घबराई हुई थी|
“क्या करूँ काका – वो तो किसी की सुन ही नही रहा – योगेश भी नाराज होकर चला गया – |”
वे दोनों हताश एकदूसरे की ओर प्रश्नात्मक भाव से देखते है| किरन तो तब से नजर ही नहीं उठा पाई थी| दर्द तो जैसे उसके रोम रोम में उतरता जा रहा था|
“वापस आकर देखती हूँ काका |”
कहती हुई भूमि उस कार की ओर बढ़ जाती है जिससे क्षितिज अभी अभी आया था|
भूमि के बैठते ड्राईवर कार बाहर की ओर ले जाता है|
***
भूमि संस्था में थी और उसके तेवर गुस्से में चढ़े हुए थे|
“ये सब कैसे हुआ और किसी ने मुझे खबर देनी जरुरी भी नही समझी !”
“मैडम वो तो सब मेनेजर जी को पता था – मैंने पहले ही कहा था कि उन बच्चो पर निगरानी रखने की जरुरत है और वही हुआ आखिर वह बच्चे भाग गए – |”
राघव जी अपनी बात कहते कहते पास खड़ी कुसुम रानी को आँखों से इशारा करता है ताकि वह संस्था के मेनेजर कल्याण जी की अनुपस्थिति में आग में घी डाल सके|
कुसुम रानी कहती है – “मैडम जी बच्चो पर इतनी सख्ती होगी तो क्या होगा ?”
“सख्ती !” भूमि चौंकती हुई पूछती है|
“खाने को लेकर उन तीनो बच्चो ने हंगामा मचाया था – |”
“खाने को लेकर ! क्यों !!” भूमि हैरानगी से फिर पूछती है|
कुसुम रानी फिर कह उठती है – “बच्चे है जिद्द कर ली पर मार पीट सही नही थी न |”
“ओहो – ये क्या टुकड़े टुकड़े में बता रही हो – पूरी बात बताओ न |” अबकी भूमि बुरी तरह से खीज उठी|
अबकी कुसुम रानी पूरी बात बताने के मूड से ठीक भूमि के सामने आती हुई कहती है – “मैडम जी ये सब बस आपके पीछे हुआ – मैं क्या बताती आप अपने घर में व्यस्त थी सो आपको परेशान नही किया|”
“तो अब बताओगी कि हुआ क्या ?” भूमि सर पकड़े कुर्सी पर बैठती हुई बोलती है|
“वो तीन बच्चे थोड़ी देर से खाने आए पर तब तक खाना खत्म हो गया सो बच्चे मेस का ताला खोलकर अपने लिए खाना निकालने लगे बस तभी ये सारा हंगामा हुआ – उसमे कल्याण जी ने बच्चो पर हाथ छोड़ दिया – अब बताए वे बच्चे है तो थोड़ा अकड़ लिए तो उन्होंने कमरे में बंद कर दिया फिर उसी रात वे तीनो भाग गए |”
“तो आप सब कहाँ थे ?”
“मैडम जी हम क्या करते वे मेनेजर है |” अबकी समवेत स्वर में दोनों भूमि से कहते है|
अबकी रूककर भूमि दोनों को देखती है फिर धीरे से कहती है – “कल्याण जी कब वापस आ रहे है |”
“जी कल आ रहे है |”
“अब बस आप ये ख्याल रखे कि किसी भी तरह से पुलिस या मीडिया तक ये बात न पहुंचे – अब आप जाए -|”
दोनों हामी में सर हिलाते वहां से चले जाते है| उनके जाते भूमि मन ही मन खुद से कहती है – ‘कुछ तो करके उन बच्चों को ढूंढना होगा |’ सोचती हुई तुरंत कही फोन लगाने लगती है|
फोन सेठ दीवान को लगाती है जिन्हें सारी बात बताती हुई कह रही थी –
“डैडी जी बेसमय मैं आपको परेशान नही करती पर इस वक़्त सच में मुझे मदद की जरुरत है – अगर इस समय ये बात बाहर फ़ैल गई तो और बदनामी हो जाएगी – पुलिस में रिपोर्ट भी नही लिखा सकती – मुझे उन बच्चो की भी चिंता है|”
“डोंट वरी मैं कुछ करता हूँ |”
उनके कहने पर भी भूमि का दिमाग रिलैक्स नही होता और वह तुरंत ड्राईवर को लिए बाहर निकल जाती है|
क्रमशः………..