
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 6
असाधारण धन, वैभव, शक्ति का मिला हुआ समरूप था दीवान लिमिटेड जिसने कभी टैक्सटाईल व्यवसाय से सूरत में शुरुवात की थी और आज कितने ही बड़े बड़े उद्योगों में उसके शेअर मौजूद थे| आज उनकी गिनती देश के पचास अरबपतियो में होती थी बल्कि ग्लोबल लिस्ट में भी दिवान्स का परचम था| कुल मिला कर देश की जीडीपी में उनकी अच्छी खासी भागीदारी थी| ये सेठ घनश्याम दीवान की अकेली की पिछले चालीस साल की मेहनत थी| जब मध्यप्रदेश के छोटे से गाँव से सौ रूपए लेकर उन्होंने सूरत में अपना पहला कदम रखा था और इस बड़े उद्योग की नींव रखी थी फिर उसके बाद उनके बढ़ते कदमो ने किसी भी अड़चन को अपनी तरक्की में बाधा नही बनने दिया जिसका परिणाम है आज दिवान्स इंटरप्राइजेज| और उसकी सबसे मजबूत कमान है उनका बाद बेटा आकाश दीवान जिसके ऑफिस में उसके सामने बैठा अरुण अपने पिता से मिलने से पहले के लेक्चर का प्रथम प्रारूप उससे ले रहा था|
आकाश उसे बता रहा था कि बिजनेस से लेकर हर जगह उनकी क्या स्थिति है और उस स्थिति से जरा भी छेड़छाड़ उनके पिता कभी बर्दाश्त नही करेंगे इसलिए वह क्या चाहता है इससे उनका कोई लेना देना नही है बिजनेस की क्या डिमांड है वही उसे करना है|
अरुण हमेशा की तरह उसके लेक्चर से उबता हुआ पेपर वेट घुमा रहा था|
“तुम सुन रहे हो न जो मैं कह रहा हूँ ?” अबकी तीखे स्वर में वह अरुण को कहता है|
“हाँ सुन रहा हूँ |” जबकि अरुण बेहद शांत भाव से हामी भरता है|
जबकि उसके रवैये से आकाश में गुस्सा भर रहा था| तभी नॉक करके एक सेवक हाथ में ट्रे लिए वहां प्रवेश करता है| वह बेहद शालीनता से झुकता हुआ उनके बीच चाय का कप रखने लगता है| वह अरुण की तरफ नही देखता पर अरुण उसे देखता हुआ अचानक कुछ मुस्कराते हुए उससे बोलता है – “अरे केशव कैसे हो ?”
अरुण के इतना पूछते वह कुछ घबरा जाता है एक तरफ अरुण की सादगी भरी मुस्कान उसे देख रही थी तो दूसरी ओर आकाश की चढ़ी हुई नज़रे उसे घूरने लगी| वह डर से दोनों में से किसी की ओर बिना देखे बस अच्छा हूँ साहब कहता हुआ ट्रे लेकर जाने लगता है|
“टेबल पर की एशट्रे कहाँ है ?”
आकाश की कर्कश आवाज सुनते केशव अब तुरंत पलटकर आता मेज पर एशट्रे ढूंढने लगता है तो उसके बीच आकाश गुर्राते हुए उसपर भड़क रहा था – “बेवकूफ तुम्हे पता है न मुझे मेरे सामान के साथ जरा भी छेड़छाड़ नही पसंद – क्या मैं तुम्हारे एशट्रे ढूँढने का इंतजार करूँ !!”
आकाश अपने हाथ में पकड़ी सिगरेट की आखिरी जली बड को उसकी ओर लहराता हुआ चीख रहा था जिससे वह अब एशट्रे ढूँढना छोड़कर जल्दी से अपनी हथेली उसके सामने फैला देता है जिसमे आकाश उस आखिरी सुलगी बड को फेकता हुआ उसे हडकाता है – “गेट आउट यू इडियट |”
केशव सर झुकाए उस गर्म बड को मुठी में भींचे चुपचाप चला जाता है| तब से ये सब देखते अरुण का चेहरा अब गुस्से से भर आया था| वह जानता था उसका भाई अपने पिता की परछाई ही है और उससे इससे ज्यादा कुछ की उम्मीद भी नही की जा सकती थी|
लेकिन इतना सब होने पर अब आकाश के चेहरे पर एक शांत मुस्कान खेल रही थी जबकि अरुण का चेहरा सख्त हो चला था|
“तो अब मेरे ख्याल से तुम समझ चुके होगे कि तुम्हे अब किस तरीके से ऑफिस में काम करना है ?”
अरुण आकाश की बात का कोई जवाब न देकर अब इधर उधर देखने लगता है इससे आकाश फिर आगे कहता है –
“माय डियर ब्रदर अगर ककून से रेशम चाहिए तो उसपर दया नही की जाती बल्कि उसे खौलते पानी में डाल दिया जाता है – अपनी इस दया को अपने लिए बचा कर रखो – अगर बिजनेस में जरा भी ऊँच नीच हुआ तो डैड के कहर से बचने में ये तुम्हारे काम आएगी |”
आकाश की तीखी नज़र को अब घूरते हुए अरुण कहता है – “वैसे भी ये शब्द आपके लिए बने भी नहीं है – सो कैन आई लीव नाव !” कहता हुआ अरुण उठकर बाहर निकल जाता है ये देखे बिना कि आकाश उसे खा जाने वाली नज़र से घूर रहा था|
न चाहते हुए भी ऑफिस के बोझिल समय को पार करते अरुण आखिर समय पर अपने फॉर्म हाउस पहुँच रहा था| जबकि अभी उसका कही जाने का मन नही था पर वह अपने एकमात्र दोस्त योगेश को नाराज़ भी नही करना चाहता था|
***
शहर से बाहर के खुले प्राकृतिक पर्यावरण में आते अब अरुण को कुछ बेहतर लगने लगा था| उसे शहर की आपाधापी बिलकुल नही सुहाती थी इसलिए कभी कभी अकेला ही वह यहाँ चला आता था और बहुत देर तनहा यहाँ अपना वक़्त बिताता था|
वह मुख्य गेट से प्रवेश करता अपने सफ़ेद चमचमाती कार पोर्च पर रोकता हुआ अन्दर जाता है| अब तक गेट मैन के अलावा उसे कोई नौकर नज़र नही आया था जरुर योगेश ने सबको कही भेजा होगा| वह अपने हॉल से प्रवेश करता ही है कि योगेश की आवाज उसे मिलती है –
“अब कही रुक नहीं – पहले से ही तू लेट है – आजा स्विमिंग पूल में |”
योगेश की आवाज से ही उसकी मस्ती मूड का उसे पता चल रहा था, इस पर अरुण मुस्कराते हुए वही से चेंजिंग रूम में चला जाता है|
अगले पल ही वह योगेश के सामने था जो खुद स्विमिंग पूल में फ्लोटिंग चेअर में लेटा जूस का मजा ले रहा था|
“तो ये है तेरी पार्टी – अच्छा है – कभी कभी अपने पैरो के नीचे हिलती हुई धरती महसूस करनी चाहिए |” कहता हुआ अरुण एक डाई लगाता हुआ पानी में आ जाता है|
“अबे ये तो पार्टी की शुरुवात है – असल पार्टी तो वो है |” कहता हुआ योगेश अपनी नज़र से किसी एक ओर इशारा करता है|
उसके इशारे पर के स्थान को देखते अरुण के चेहरे पर के भाव बदल जाते है| वह एक नज़र बेहद मुस्कराते हुए योगेश को देखता है तो अगली नज़र पूल के किनारे आराम कुर्सी पर बैठी दो तीन कमसिन बालाओ पर डालता है जिन्होंने स्विमिंग के हिसाब से भी बहुत कम कपड़े पहने थे|
“ये सब क्या है योगेश ?” अरुण अपनी घूरती नज़र से योगेश को देखता हुआ अब स्विमिंग पूल से बाहर आता हुआ ऊपर से बाथरोब पहनता हुआ उन लड़कियों की ओर बढ़ रहा था|
“अरे तू थका आया है तो ये बस मसाज देंगी – बस थोड़े एंटरटेनमेंट के अलावा कोई इरादा नही है मेरे भाई |”
“लड़कियां एंटरटेनमेंट नही होती – समझा |” कहता हुआ वह पड़ी हुई टोवल उन लड़कियों की ओर बढाता हुआ कहता है|
योगेश समझ गया था और उन लड़कियों के सामने अपनी किरकिरी होने से बचने के लिए वह उन्हें आँखों के इशारे से जाने को कहता है| इससे वे कंधे उचकाती हुई तुरंत ही बाहर चली जाती है|
उनके जाते ही अरुण अब बेहद सख्त आवाज में कहता है – “तू जानता है न मुझे ये सब पसंद नही है – फिर भी तूने ऐसा किया ?”
“अरे यार – वो क्या है मैं तुझे टेस्ट कर रहा था कि इन चार साल में शायद तू कुछ तो बदल गया होगा पर नही तू तो मेरा वही खरा सोना ही निकला |” एक गहरा उच्छ्वास छोड़ते हुए वह कहता है|
“मुझे न तेरे कहने पर आना ही नही चाहिए था |”
“अरे अरे – रुक न – अब वो चली गई न – तो मुझसे क्या नाराजगी है – अब आ भी यार |”
अरुण एक पल रूककर योगेश को घूरता है फिर आखिर उसकी बात मानता हुआ फिर से पूल में उतर जाता है|
अब दोनों दोस्त साथ में तैर रहे थे| पानी की तरावट कुछ देर में ही अरुण का गुस्सा छू कर देती है और वह अगले ही पल साथ में पानी के अंदर कौन ज्यादा देर रहेगा इसका कम्पीटीशन करने लगते है| कुछ इस तरह से मस्ती करते अब किनारे पर आधे पानी में डूबे वे साथ में मुस्करा रहे थे|
….क्रमशः…………..