Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 60

ऐसा एक पल जिसका उन दिलों को शिद्दत से था इंतजार वो आया भी तो किस तरह…दो हाथ एकदूसरे में बिंधे एकदूसरे के बेहद पास थे…इतने कि एकदूसरे की उफनती साँसों को अपनी सांसो की तलहटी में महसूस कर पा रहे थे…..कुछ था जो उन्हें इस पल एकसाथ समेट लाया था….उन दर्द में डूबी आँखों को जाने कौन सी तरावट मिल गई कि वे बरबस एकदूसरे को ताकती उस लम्हे में बुत बनी रह गई…..
अरुण की नज़रे किरन के चेहरे पर टिक थी तो किरन भी बुत बनी जस की तस बेहद ख़ामोशी से खड़ी रह गई लेकिन पल में फ़िजा ने भी यूँ रुख बदला कि मंद मंद चलती हवा सरगोशी की तरह बहने लगी….चाँद से मासूम चेहरे पर बिखरी काली घटाए बार बार इठलाकर अरुण का चेहरा चूम ले रही थी….बस वे ही उस लम्हे में थमे से रह गए थे….
पर्दे हिलने लगे…दरवाजो के पास लगी झाड़, पौधे मानो नृत्य कर उठे…कांच के दरवाजे के बाहर दिखते फुव्वारे के गिरते पानी की आवाज उस शांत वातावरण में संगीत घोलने लगी….सारा माहौल किसी मदहोशी में डूबने लगा….मानो पानी उस संगीत की लय पर बेकल होता इतनी ऊचाई तक जाता मानो आसमान के चाँद को अपनी नर्म बाँहों में भींचकर पिघला देगा….चाँद इस पल के प्रमोद का आनंद लेता बार बार बादलो की ओट लिए लुका छिपी खेलने लगा….लग रहा था जैसे ये प्रकृति किसी अनजाने अफसाने को पूरा करने की ललक में बेसब्र हुई जा रही थी….वे हवाएं बार बार बदन को झंझोड़ दे रही थी पर चेतना बिलकुल शांत बनी रही…
उन्हें छोड़ सारी कायनात झूम उठी थी…न अरुण ने किरन की कलाई छोड़ी थी और न किरन ही हट सकी थी….उन सबसे बेखबर उनकी ऑंखें बस एकदूसरे पर थमी रह गई….वे एकदूसरे में खोए सांस रोके जैसे पल में ठहरे रह गए थे…कि तभी तेज चंचल हवा जोर से चली और खिड़की के पास रखा फूलदान जमीन पर तेज आवाज के साथ गिरता है…उस पल की खनक से दोनों की मूक तन्द्रा भंग हो जाती है|
अरुण भी होश में आते अपनी पकड़ ढीली कर देता है और खुद को सँभालने पास दीवार का टेक लेने हाथ रखता है पर बिन देखे उसका हाथ अन्यत्र जगह जाता है जिससे वह लड़खड़ाता गिर जाता है..ये देख किरन के हलक से चीख निकल पड़ती है|
किरन जब तक अरुण को संभालती उससे पहले ही घर के नौकर भागते हुए वहां आते है| ये देख किरन अपने पैर पीछे कर लेती है| अरुण जमीन पर गिरा पड़ा था जिसे अब वे नौकर सहारा देकर उठा रहे थे| किरन परदे के पीछे थी जिससे वह उनकी नज़रो में नही आ पाती|
दोनों नौकर अब अरुण को सहारा दिए उसे सीढ़ियों से ऊपर उसके कमरे तक ले जा रहे थे| अरुण अब भी नशे में पूरी तरह से मदहोश था पर किसे खबर थी कि अब तो उसे उसका नशा था जो उसने उस पूनम के चाँद की मद भरी गहरी आँखों से पिया था| किरन भी चुपचाप अब कमरे की ओर लौट गई थी|
***
सेल्विन दुकान से खाने का सामान खरीद कर वापस घर की ओर आता है| दरवाजा खोलकर वह अंदर आते सारा सामान मेज पर रखकर पास रखे थरमस से कप में चाय उड़ेलते उड़ेलते बगल के कमरे में चल देता है|
कमरे में आते उसकी नजर बिस्तर पर जाती है जहाँ रूबी लेटी थी| सेल्विन चाय का एक घूंट भरते कमरे की खिड़की का पर्दा झटके से खोल देता है जिससे रुपहली धूप तेजी से कमरे में फ़ैल जाती है| सूरज की तेज रौशनी अब सीधी रूबी के चेहरे पर पड़ने लगी जिसकी चकाचौंध से वह तुरंत ही आंख खोल देती है| उठते ही वह अपने आस पास देखने लगती है|
सेल्विन अब कुर्सी पर आराम से बैठता हुआ चाय चुसकता हुआ कहता है –
“गुड मोर्निंग रूबी -|”
“आं !!!” रूबी अब आवाज की ओर चौककर देखती है पर अचानक पिछला ध्यान आते वह फुर्ती से बिस्तर से उठती हुई कह उठती है –
“सुबह हो गई – मेरी माँ !!!” रूबी तेजी से बिस्तर छोड़ बाहर दरवाजे की ओर भागती है|
उसे देखते सेल्विन मुस्कराते हुए चाय का घूंट भरता रहता है|
***
भूमि फोन पर थी और सीढियां चढ़ती जा रही थी|
“थैंक्स डैडी जी – अब आगे मैं संभाल लुंगी |”
उस पार सेठ दीवान थे जो कह रहे थे –
“वो बच्चे आज शाम तक तुम्हारे पास पहुँच जाएँगे – वे सब स्टेशन पर मिले और हाँ मैंने नही आकाश ने करवाया है ये काम |”
वे इतना कहकर कुछ पल के मौन में शायद कुछ सुनना चाहते थे पर भूमि ने आगे कुछ नही कहा बस उन्ही को शुक्रिया कहती फोन रख देती है| भूमि जानती थी वे इस समय घर पर ही थे पर असमय वे किसी से भी नही मिलते थे और घर पर अपने कमरे में ज्यादातर समय अकेले ही बिताते थे| भूमि भी बहुत जरुरी होने पर उनके पास नही जाती बस फोन पर ही संपर्क कर लेती| यही इस घर की त्रासदी थी कि कहने को सभी परिवार में थे पर कोई किसी के संग बेवजह उठता बैठता नही था| सभी के आपस में मिलने की एक निश्चित वजह होनी जरुरी थी इसके अलावा वे कभी एकदूसरे से नही मिलते थे|
भूमि अपनी संस्था की ओर से परेशान चल रही थी पर अरुण की हालत भी उसे चैन से बैठने नही दे रही थी| योगेश से उसकी हालत का सुनने के बाद वह संस्था जाने से पहले उससे मिलने उसके पास चल दी थी|
***
अरुण को हौले से झंझोड़ती हुई भूमि कहती है –
“अरुण – उठ तो – देख तो कितना दिन निकल आया और एक तू है कि अभी तक सोया पड़ा है – आसमान का अरुण धरती के अरुण को इस तरह सोता देख कितना दुखी होता होगा – अब उठ भी सही |” स्नेह से वह कहती है|
बहुत देर झंझोड़ने के बाद अरुण धीरे से आंख खोलता है| परदे की ओट से धूप अब छन छनकर कमरे के फर्श पर गिर रही थी पर अरुण के हाव भाव में गहरा निस्तेज का भाव था|
“अरुण – ये तुझे क्या हो गया है – ये तूने अपना क्या हाल बना रखा है – कही बाहर आना जाना नहीं – ऑफिस भी जाना बंद कर रखा है – अपनी शक्ल तो देख लगता है अपना चेहरा देखना भी तू भूल गया है – तुझे पता भी है कि तेरी ये हालत देख तेरे अपनों को दुःख भी पहुंचेगा !”
अरुण अभी भी उसी ख़ामोशी में पड़ा था| भूमि अब उसके बढ़े हुए बालो को माथे से हटाती हुई माथे की चोट को हलके से सहलाती हुई कहती है – “ये शराब अब तुझे पीने लगी है – क्यों अपनी जिंदगी खराब कर रहा है – तू एक पल भी ये नही सोचता कि ऐसे देख मेरे मन में क्या गुजरती है -!”
अरुण अपनी अधखुली आँखों से भूमि की ओर बिना देखे ही कहता है – “मैं किसी को दुखी नही देखना चाहता इसलिए तो मैं शराब में डूब कर सब भूल जाना चाहता हूँ – इससे दूसरो को दुःख या कष्ट क्यों हो ?”
“बहुत खूब अरुण – क्या बात कही है – आज तेरी भाभी तेरे लिए कुछ भी नही रही – ये कहते तुझे लाज नही आयी – मन तो करता है कि तुझे..|” कहते कहते भूमि की पलकों पर बूंदे झिलमिलाने लगती है|
“हां हाँ भाभी मार लो मुझे…|” बिफरता हुआ अरुण अब उठता हुआ कहता है|
पर भूमि अब उसकी ओर बिना देखे उठती हुई कहने लगती है –
“चुप – अब मुझे कभी भाभी मत कहना – आखिर मेरा तुझपर है ही क्या अधिकार !”
“भाभी !! ऐसा मत कहो |” लड़खड़ाते हुए अरुण भूमि को रोकने उसके पैरो की ओर गिर पड़ता है पर भूमि नाराजगी से उसकी ओर पलटकर नही देखती| वह डूबी जबान में कहता रहा – “भाभी अब अगर आप भी मुझसे नाराज हो जाएगी तो मेरी जिंदगी में और क्या रह जाएगा – वैसे भी मैं सब कुछ हारा बैठा हूँ – अब इस जिंदगी से कोई उम्मीद नही रही – मैं जीना ही नहीं चाहता इस छल कपट की दुनिया में…|”
“अरुण…!!!” भूमि परेशान होती अरुण की ओर पलटती उसके सर पर हाथ फिराती हुई कहती है – “मत कर ऐसी बातें जो मेरा दिल चीर दे |”
भूमि समझ रही थी कि अरुण जैसे संवेदनशील व्यक्ति के लिए ये सब झेलना कितना दुखदायी रहा, जब वह शादी होकर आई थी तब अरुण और मेनका छोटे ही थे और इस घर में पिछले दस वर्षो से वह हर संघर्ष में इसीलिए हमेशा अरुण के साथ रही क्योंकि वह उसके मन की थाह को समझती थी जिसे आजतक उसके पिता भी नही समझ सके| पर बेरहम वक़्त भी हर बार दर्द के लिए पता नही क्यों अरुण को ही चुनता था, ये सोचते भूमि का मन भी भर आता है|
“मेरी एक बात मानेगा – बस ये जहर पीना छोड़ दे रे |” डबडबायी आँखों से वह अरुण को देखती हुई कहती रही – “ऐसे कभी गम गलत नही हुआ करते – इस तरह खुद को नशे में डुबो कर तू अपना जीवन बर्बाद कर रहा है – सोच अगर दादा जी इस वक़्त यहाँ होते क्या वे तुझे इस तरह देख पाते !” भूमि अब उसका चेहरा दोनों हाथो से उठाती हुई कहती है – “मेरी तरफ देख – तेरी भाभी भी तो जी रही है – दुखो का अम्बार मेरे सिर पर भी है पर दुःख आने का मतलब ये तो नही कि व्यक्ति उनसे हार मान ले – आखिर मैं भी तो लगातार संघर्ष कर रही हूँ – अरुण तेरी भाभी के अतीत के पन्ने सिर्फ और सिर्फ दुःख की स्याही से पुते पड़े है – तब भी मैंने हार नही मानी और ऐसी भाभी माँ का बेटा अरुण थककर हार मान ले – नही रे – तुझे लड़ना होगा – जीवन तो स्वयं में एक युद्द भूमि है और हज सब इसके योद्धा – और एक तू है कि हथियार डाले बैठा है – उठ और पूरी ताकत से उनका सामना कर – तेरी जरुरत है सबको |”
“नही भाभी नही – अब ये मुझसे नही होगा |”
“क्यों नही होगा – आखिर क्यों ?”
अरुण उठकर खड़ा हो जाता है|
“भाभी इस दुनिया में हर चीज की अपनी एक एक्स्प्यारी डेट होती तो मेरे धैर्य की भी अब सीमा समाप्त हो चुकी है अब और कुछ सहन करने की सामर्थ मुझमे नही – अब नही होता कुछ भी बर्दाश्त मुझसे |” अरुण सर पकड़े बैठ जाता है|
“अरुण…!!” भूमि का दिल तड़प उठा|
“थक गया हूँ समझौता करते करते – नही लड़ सकता मैं ऐसी दुनिया से जो सिर्फ फरेब और झूठ बोलती है |”
“अरुण अगर तुम बात किरन की कर रहे हो तो अपनी भाभी की एक बात हमेशा ध्यान रखना कि जो ऑंखें देखती है अक्सर वही सच नही होता – कभी कभी बिन देखा भी सच होता है – मैं नही जानती कि किरन ने ऐसा क्यों किया पर एक बात मैं प्रमाण से कह सकती हूँ कि उसके पास इस बात की जरुर कोई ठोस वजह रही होगी – कुछ वक़्त तो दो खुद को – चलो उठो अब और सब भूलकर एक नई शुरुवात करो – मैं चाय भिजवाती हूँ – मुझे अभी संस्था जाना है |” वह प्यार से उसके सर पर हाथ फेरती चली जाती है|
उन्हें जाता देखता अरुण मन ही मन बुदबुदाता है – ‘काश मैं ये बात खुद से भी बोल पाता – काश खुद को भी यही कहकर मैं समझा लेता – काश जाते जाते वह अपनी यादें भी मुझसे ले जाती – काश……..दिल में भी कोई डिलीट का बटन होता….|’
क्रमशः………..

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