Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 64

“अरे वाह मान गए राघव जी आपको – आपको तो आपका भगवान् भी नही जान सकता|”
“तमे तो हमे खूब समझे हो कुसुम बेन |” मचलता हुआ राघव कुसुम रानी के लटके हुए गालो को छूता हुआ मुस्करा उठा|
संस्था में राघव और कुसुम रानी आमने सामने बैठे अपनी रणनीति पर बात कर रहे थे|
“आप तो पक्के वाले खिलाडी निकले – क्या दाँव मारा – पहले तो मैं समझी नही कि क्यों आप मुझे कल्याण जी के काम करने भेजते थे पर अब समझ आया कि तली में छेद करने नजदीक तो जाना ही पड़ता है – अब बस आपको मेनेजर होने से कोई नही रोक सकता – देखिएगा फिर मुझे मत भूल जाइएगा |” वह अपने स्थूलकाय चेहरे पर जबरन भाव जोडती हुई बोली|
“अरे कैसे भूल जाऊंगा – आप तो ख़ास है मेरे लिए – बस आज वो हो जाए जिसके लिए इतना मेहनत किए है हम |”
“होगा क्यों नही – मैडम जी को फोन पर मैं पहले ही इस कांड की भूमिका बना चुकी हूँ अब बस कल्याण जी पर बम गिरने भर की देरी है – |”
“सारा कुछ हमने किया और नाम लगेगा कल्याण पर – बहुत बनता था न मेनेजर बनकर – अब देखता हूँ कैसा लगेगा अर्श से फर्श पर आकर |” दांत पीसते हुए राघव कहता रहा – “संस्था में सबसे अनुभवी मैं था पर जब मेनेजर बनने की बारी आई तो सबको पता नही क्यों कल्याण ही दिखा मैं नही -|
“अब किस बात की फ़िक्र – अब तो लोहा गरम है बस एक आखिरी चोट करने भर की देर है |”
“और वो भी हमी करेंगे |” कहता हुआ राघव दांतों के भीतर से हँसता हुआ कुसुम रानी के हाथो पर हाथ रखते हुए कह उठा|
दोनों के अट्टहास से वो बंद कम गूंज उठा था|
***
सुबह के अख़बार से लेकर टीवी तक जो खबर चलाई जा रही थी उससे एक बार फिर दीवान परिवार की नीव हिलने लगी| सेठ घनश्याम बेचैनी में कमरे में चक्कर काटते रहे पर बात हाथ से निकल चुकी थी और जिसका गहरा असर भूमि पर भी था|
वह उसी उखड़े मूड से संस्था निकलने को तैयार थी पर हमेशा की तरह क्षितिज को मिलकर वह निकलने वाली थी|
क्षितिज आधा तैयार बैठा टीवी देख रहा था जबकि उसकी नैनी फोन पर किसी से हँस हँसकर बातें करने में मशगूल थी| वह जब तक भूमि का आना देख पाती भूमि तेजी से आती उसके सामने खड़ी उसे घूर रही थी|
“वो वो मैडम – जरुरी बात कर रही थी |”
वह नज़रे झुकाए कह रही थी जबकि भूमि बेहद गुस्से में कह उठी –
“गेट आउट ऑफ़ हीयर |”
“मैम ..|”
“राईट नाव |” दुबारा भूमि चीखी जिससे नैनी तुरंत कमरे से बाहर चली गई|
भूमि का चेहरा गुस्से से भरा था पर किसी तरह से खुद को नियंत्रित करती वह क्षितिज की ओर आती हुई उसे प्यार से गले लगाती हुई कहती है – “आपके लिए मैं दूसरी नई नैनी लाऊंगी |”
“हाँ मम्मा ये आंटी मुझे भी पसंद नही थी – हमेशा फोन पर ही बात करती रहती और जब मैं कुछ सुनाता तो सुनती ही नही थी |”
क्षितिज का चेहरा हथेली में भरती हुई कहती है – “हूँ – अबकी अच्छी वाली नैनी आएगी जो आपका मम्मा की तरह ध्यान रखेगी |”
“पर मेरी मम्मा तो बेस्ट है उनके जैसा तो कोई नही |” कहता हुआ क्षितिज उसके गले में अपनी बाहें फैला लेता है| इसपर भूमि उसका गाल प्यार से चूमती हुई कहती है –
“पर मम्मा को और भी बहुत सारे काम सँभालने होते है न तो तब तक कोई तो होना चाहिए आपकी देखभाल करने के लिए –|”
“अब मैं बड़ा हो गया हूँ मम्मा – आप जब तक अपना काम करेगी तब तक मैं खुद को संभाल सकता हूँ – डोंट वरी मम्मा|”
क्षितिज अपने नन्हे हाथो से भूमि के चेहरे को पकड़े हुए कहता है| ये देख भूमि का मन भर आता है जिससे वह उसे गले लगाती हुई कह उठती है –
“बिलकुल अब मेरा बेटू बड़ा हो गया है – |”
बहुत मुश्किल से खुद को संभालती हुई भूमि कमरे से बाहर निकलती हरिमन काका को आवाज लगाती हुई कहती है –
“काका आज क्षितिज को जरा देख लीजिएगा – मैं कल तक उसकी दूसरी नैनी का प्रबंध करती हूँ |”
“हम सब देख लेंगे – आप आराम से काम पर जाए |”
हरिमन काका के आश्वासन पर भूमि तुरन्त ही बाहर निकल जाती है| इस घर में सबसे पुराने और विश्वसनीय हरिमन काका ही थे जिनपर आंख मूंदे सभी विश्वास करते और वे भी पूर्ण समर्पण के साथ इस परिवार के प्रति निष्ठा रखते|
***
भूमि संस्था के लिए निकल रही थी उसके मन में आज बहुत उथल पुथल मची हुई थी| वर्षो की बनाई उसकी प्रतिष्ठा और मेहनत आज दाँव में लगी थी| हमेशा की तरह वह खुद कार ड्राइव कर रही थी| कार पोर्च से निकलते ज्योंही बाहर को निकली उसे पता ही नहीं था कि वहां रिपोर्ट्स की भीड़ मौजूद होगी| वह उनसे बचकर निकल जाना चाहती थी पर उनके प्रश्नों की चिंगारी से उसका दिमाग न बच सका| वे भूमि की कार को आगे से घेरे प्रश्नों की झड़ी लगाते रहे|
“भूमि जी क्या ये सच है कि उन बच्चों ने भागकर आपकी संस्था की आन्तरिक व्यवस्था की पोल खोल दी – आप इस पर क्या कहना चाहेंगी ?”
“क्या कहना है आपका ? क्या इन गैर सरकारी संस्था में क्या बिजनेस का धन मर्ज होने के लिए ऐसी संस्था चलाई जाती है|”
“आपका नाम कल्याणकारी पुरस्कार के लिए नामांकित करके अब वापस ले लिया गया – क्या लगता है आपको किस कारण से हुआ होगा ऐसा ?”
“दीवान परिवार कब तक गरीबो का शोषण करता अपनी मनमानी करता रहेगा ? कब बंद होगी उनके शोषण की ये दोगली दुकान ? जानने के लिए देखते रहे हमारा चैनल |”
भूमि के दिमाग में जैसे चिंगारियां सी फूटने लगी थी पर इस वक़्त उसके पास इसका न कोई हल था न माकूल कोई जवाब आखिर दरबान के आते उन रिपोटरों को हटाने के बाद ही भूमि की कार वहां से निकल पायी|
***
दिन की भयावह शुरुवात हो चुकी थी जिसका अंजाम अभी होना शेष था| वह उसी चढ़े तेवर के साथ संस्था के मेनेजर के सामने खड़ी चीख रही थी –
“यही कार्यप्रणाली है आपकी !! मैं पिछली बार भी कह चुकी थी कि मुझे संस्था में लापवाही बर्दाश्त नही – पहले तो उन बच्चों के साथ तुमने सही से स्थिति नही संभाली और अब ये बात कैसे बाहर निकली – है कोई जवाब इसका ?”
“मैडम जी आपको यही तो बताना चाहता हूँ कि आप सही से बात को समझ नही रही – सब साजिश है मेरे खिलाफ – मुझे मेनेजर की कुर्सी से हटाने के लिए – मैं क्या कर सकता हूँ – आप तो आख कान बंद किए बैठी है तो मैं क्या करूँ ?” कल्याण जी बेहद चिढ़ी हुई आवाज में बोला|
“मेनेजर है तो जिम्मेदारी भी बनेगी और अगर तुम्हे ऐसे ही काम करना है तो आज से इस मेनेजर की कुर्सी पर बैठने की कोई जरुरत नही |”
भूमि की इस बात से कल्याण और तिलमिला जाता है|
“मैडम जी मैं मानता हूँ ये सब हुआ लेकिन मैडम ताली एक हाथ से नही बजा करती |”
“व्हाट डू यू मीन ?”
“मैं मान लेता हूँ बच्चे भागे और ये खबर बाहर मिडिया तक पहुंची – पर आपने क्या किया ? आपने कभी अपने आस पास देखा है ? ये जिनपर आप आंख मूंदकर भरोसा कर लेती है ये सब मेरी पीठ पीछे साजिश रचते रहते है पर आपको कहाँ फुर्सत है ये सब देखने की – आपको तो झूठ सुनने की आदत हो गई है – और आप क्या समझती है आप मुझे इस पद से हटा रही है अरे मैं खुद ऐसी नौकरी को लात मारता हूँ – और सुनिए – रही बात आपकी और आपके परिवार की बदनामी की तो कीचड़ में थोड़ा और कीचड़ पड़ गया तो कौन सा गजब हो गया|”
गुस्से से तनतनायी भूमि इतना सुनते ही अपने सामने खड़े कल्याण के गाल पर झनझनाता हुआ थप्पड़ मार देती है| उस झापड़ की गूँज से कमरा भी सिहर उठता है| कमरे में उनके अलावा और भी कई लोग मौजूद थे सभी इस अचानक की प्रतिक्रिया से हैरान रह गये|
कल्याण अपना गाल सहलाते आँखों में गुस्सा भरते हुए बोल उठा –
“अच्छा नही किया ये – ये बेइज्जती उधार रही मैडम जी – इसे सूद समेत एक दिन जरुर वापस करूँगा |”
कहते हुए कल्याण तेजी से कमरे से बाहर निकल जाता है| सभी भौचक्के से कभी भूमि का तमतमाया हुआ चेहरा देख रहे थे तो कभी उस दरवाजे को जहां से अभी अभी वह निकला था|
***
दिन इतना बेकार रहा कि भूमि के लिए खुद को संभालना मुश्किल हो गया तो वह तुरंत ही वापस लौट आई| वह उसी उखड़े मूड से वापस आते सीधे अपने कमरे में चली गई|
एक तरफ स्थिति उसके हाथ से निकल गई दूसरी ओर स्थिति ख़राब होने का आरोप उसी पर आ गया| वह दोनों हाथो से सर पकड़े बैठी थी|
तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तख हुई| अगले ही पल उजला गिलास में पानी लिए उसके पास खड़ी थी| भूमि भीगी पलकों से कही शून्य में देखने लगी| उजला गिलास उसकी ओर बढाती हुई कह रही थी –
“ये बुरा वक़्त भी निकल जाएगा – आप परेशान मत होईए |”
“मैं इससे नही परेशान हूँ कि मेरे बारे में क्या क्या कहा गया – बुरा तो ये सोचकर लग रहा है कि जिस उद्देश्य के लिए मैंने इस संस्था का निर्माण किया क्या मैं उसमे विफल हो गई !!” भूमि का मन बेहद भरा हुआ था| वह शून्य में देखती अपने मन की भड़ास निकालने से खुद को न रोक सकी|
उजला भी मौन खड़ी अपना आश्वासन दे रही थी|
“पूरे पंद्रह साल मैंने इस संस्था को दिए – अपनी समस्त ऊर्जा से मैंने इसे तब शुरू किया जब मेरी उम्र के जवान लड़के लड़कियां पार्टियों और दोस्ती में व्यस्त रहते तब मैंने उन लोगो के लिए काम करना शुरू किया जिन्हें समाज ने हमेशा दर किनार रखा और आज सबको लगता है जैसे मैं इसे किसी निजी स्वार्थ से चला रही हूँ या कोई पुरस्कार पाने लिए मैं ये सब कर रही हूँ – एक ही पल में मेरा सारा किया धरा पानी हो गया !!”
भूमि मन की भड़ास निकालते निकालते सुबुक उठी|
“कैसा समाज है ये जहाँ रोजाना अच्छा काम करते रहो तब उसकी नज़र नही उठती और एक गलती क्या हो जाए आप अचानक से सबकी नज़र में आ जाते है ? सबसे बुरे बन जाते है !!” भूमि बिफरती कह रही थी|
“क्योंकि इस समाज की न आँखे है न कान बस ये एक अंधी भीड़ है जो आज यहाँ खड़ी है तो कल कही खड़ी होगी – इसे बस लांछन लगाने आते है |” अचानक से भावावेश में आती उजला कह उठी|
भूमि अब नज़र उठाकर उसकी ओर देखने लगी थी जिससे संभलती हुई उजला आगे कहती है –
“आप इतनी अच्छी है – सबके लिए अच्छा सोचती है तो आपके संग भी कुछ गलत नही होगा – आपको परेशान देख मुझसे रहा न गया – मैं तो बस आपको कुछ दिलासा भरे शब्द ही कह सकती हूँ |”
नज़रे झुकाए झुकाए उजला संकोच से कहती है तो भूमि अब उसके हाथ से गिलास लेती हुई कहती है –
“दर्द में पल भर का मरहम भी बहुत होता है – तुम्हारा दिल बहुत साफ़ है उजला – शुक्रिया – अब कुछ देर मैं अकेली रहना चाहती हूँ |”
भूमि गिलास साइड मेज पर रखती हुई देखती है कि उजला कमरे से बाहर चली गई| उसे जाता देख भूमि फिर अपनी सोच में गुम हो गई थी|
अब से किरन उजला बनकर क्या बदल पाएगी इस घर की किस्मत ?? क्या उन आँखों से वह बच सकेगी जो उसे उसके अहसास से महसूसती है ??
क्रमशः………….

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