Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 65

कॉलेज से मेनका वैशाली के साथ निकली| कार ड्राईवर ड्राइव कर रहा था और पीछे की सीट पर दोनों बैठी हुई थी| वैशाली को उसके घर छोड़कर अब कार वापस दीवान मेंशन की ओर जा रही थी|
मेनका पिछली सीट पर बैठी खिड़की से बाहर देख रही थी| कार जिस रफ़्तार से आगे जा रही थी सड़क उसी रफ़्तार से पीछे छूटी जा रही थी| आगे रेड लाईट पर सारा ट्रेफिक रुका हुआ था| कार भी उसी भीड़ में शमिल थी|
देखते देखते मेनका की नज़र सड़क पार करते विवेक पर जाती है जिसके कंधे पर एक बैग लदा था| उसके चेहरे पर गहन संजीदगी थी| विवेक को देख मेनका फुर्ती से कार का दरवाजा खोलकर ट्रेफिक लाइन जल्दी जल्दी पार कर उस ओर दौड़ जाती है जिस ओर विवेक बढ़ा जा रहा था| हरी बत्ती हो चुकी थी जिससे सारा ट्रेफिक तेजी से वहां से निकलने लगा पर मेनका उस घने ट्रेफिक को बेख़ौफ़ पार करती हुई उसे आवाज देती रही|
घना ट्रेफिक और उसपर बेतहाशा आवाजो का शोर फिर भी लोगो की नज़र मेनका की इस अजीब हरकत पर थी| लेकिन सबसे बेखबर मेनका तेज कदमो से सड़क पार करती फुटपाथ की ओर आ गई जहाँ विवेक तेज कदमों से आगे बढ़ा जा रहा था|
“विवेक…!”
एकाएक आवाज विवेक के कानो से टकराती है| वह मुड़कर पीछे देखता है| मेनका तेज कदमों से उसके और पास आती जा रही थी|
“विवेक – रुको – |”
वह दौड़कर विवेक के पास आती उसकी बांह पकड़ लेती है| तेज दौड़ने से उसकी सांस ऊपर नीचे हो रही थी|
“विवेक – हफ हफ – मैं – तुम्हे कबसे आवाज – दे रही – थी |”
झटके से विवेक अपनी बांह उससे छुडाते हुए दो कदम पीछे होता हुआ कहता है –
“ये क्या हरकत है ?”
“विवेक !!” मेनका की आँखों में दर्द उभर आता है|
“ये पब्लिक प्लेस है और मैं यहाँ कोई तमाशा खड़ा नही करना चाहता – अच्छा होगा तुम अपने रास्ते जाओ और मुझे अपने रास्ते जाने दो |” कहते हुए विवेक आगे बढ़ जाता है|
“नही विवेक – आज तुम मेरी बात सुने बिना नही जाओगे – या तुम मेरी बात सुनोगे या फिर मुझे कभी नही सुनोगे..|”
विवेक आगे जरुर बढ़ रहा था पर मेनका के शब्दों की सीमा वह पार नही कर पाया| वह झटके से पीछे मुड़कर उसकी ओर देखता है| मेनका अपनी बात कहती कहती उल्टा चलती अब फुटपाथ से नीचे सड़क की ओर पीछे कदम बढाती हुई चली जा रही थी|
“आज तुम्हे मेरी बात सुननी पड़ेगी |”
विवेक हैरान उसकी ओर देखता अचानक उसकी ओर तेजी से दौड़ जाता है| अगर वह ऐसा नही करता तो पल में मेनका की पीठ से सटकर जो गाड़ी निकली वह उसे टक्कर मार कर निकलने वाली थी लेकिन विवेक ने फुर्ती से उसकी बांह पकड़े उसे अपनी ओर खींच लिया|
***
दिल्ली का रिहाइशी इलाका जहाँ था सबसे बड़ा मीडिया हाउस और उसके सबसे अहम् पद पर बैठे एडिटर के ठीक सामने स्टैला बैठी थी| उसके हाव भाव बता रहे थे कि उसकी नज़र में उस एडिटर की कोई ख़ास एहमियत नही थी जबकि एडिटर राव उसे अपनी तीक्ष्ण नजर से देखता हुआ कह रहा था –
“तुम्हारे हर दिन के कारनामे अब कुछ ज्यादा ही बढ़ते आ रहे है – अब बंद करो इसे – तुम मेरी एजंसी को अपने हित के लिए इस्तेमाल नही कर सकती |”
“और आप मुझे इस्तेमाल कर सकते है |” स्टैला भी उसी अंदाज में कहती रही – “ये सब आखिर मैंने आपसे ही तो सीखा है – लोगो को इस्तेमाल करना |”
“अपनी हद में रहो – मैं तुमको बना भी सकता हूँ तो बिगाड़ भी सकता हूँ –मीडिया में लोगो का आना जितना इत्तेफ़ाक होता है उनका जाना भी कुछ कम इत्तेफ़ाक नही होता – ये बात अच्छे से जान लो|”
एडिटर की बात पर हलकी मुस्कान देती वह सिगरेट जलाने लगती है|
एडिटर उसी तने भाव से कहता रहता है – “तुम्हारी वजह से मैं अपने पूरे मीडिया हाउस की बलि नही चढ़ा सकता – |”
“तो मुझे बलि चढ़ा सकते है ?”
“तुम्हे !! आर यू किडिंग !! तुम्हे बात समझ नही आ रही क्या ?” वह थोड़ी कर्कश आवाज में चीखा|
“राव सर – लगता है आपकी उम्र के साथ आपकी यादाश्त भी कमजोर होने लगी है तो आपको मैं याद दिला दूँ कि इन सबकी शुरुवात आपने की वो भी मेरे कंधे का इस्तेमाल करके –|” स्टैला गहरा कश हवा में छोडती हुई कहती रही – “क्या नाम रखा था उस प्राइम प्रोग्राम का ? हाँ – पर्दाफाश जिसमे बड़े बड़े नामो को आप बुलाते और मेरे साथ उनकी डिबेट रखते जबकि इसके पीछे आपका डर्टी गेम चलता रहता – सबके राज़ को अपनी मुट्ठी में करके उन्हें ब्लैकमेल करने का – फिर मैं ही क्यों बुरी बनी – क्योंकि अब यही गेम आप पर उल्टा पड़ने लगा |”
“हाँ |” अबकी चीखता हुआ वह मेज पर तेजी से हाथ मारता हुआ कह उठा – “तुम मुझे ब्लैकमेल करके सोचती हो कि बच जाओगी – इतना याद रखो – मैं इस समय मीडिया हाउस का थोट हूँ और जो एक बार मैंने कह दिया वो लकीर बन जाता है – खबरे खोजता नही बनाता हूँ मैं – मैं हूँ आज की असल पावर और तू मुझे ब्लैकमेल कर रही हो ?”
“अब आप इसे ब्लैकमेल के तौरपर ले रहे है – हाँ बस कुछ हनी से स्वीट मेसेज आपके मेरे पास सेव है पर मैं कही बताने नही जा रही – मैं तो बस आपसे यही मांग रही हूँ कि मेरा शो बंद नही होना चाहिए और अबकी रंजीतइटरप्राईजेज के मालिक को मैं बुलाना चाहती हूँ – बस इतनी सी बात है |”
“देखो स्टैला इस शो के अब बैड रिव्यू मिलने लगे है तो कुछ दिन इसे बंद करना पड़ेगा |” वह अब अपनी आवाज में जबरन नर्मी लाता हुआ कहता है|
“मुझे इस रिव्यू के खेल से कोई फर्क नही पड़ता – ये सब कुछ बिकाऊ है – यहाँ खबरे से लेकर उनके रिव्यू तक बिकते है तब आप उन रिव्यू का हवाला मुझे दे रहे है – सब बकवास है –|”
अबकी दो पल तक उनके बीच ख़ामोशी रही जिसके बीच जहाँ एडिटर अपना मोबाईल का स्क्रीन एक दो बार देखकर वापस उसे पलटकर रख देता है जबकि स्टैला इत्मिनान से सिगरेट फूकती हुई अब उसे एस्ट्रे में बुझाती हुई कहती है –
“मेरा अगले हफ्ते का शो फाइनल है – आप अपने मीडिया हाउस की ओर से मिस्टर रंजीतको इन्वेटीशन भिजवा दे बाकि मैं सब संभाल लुंगी – बाय|” कहती हुई वह उठकर बाहर निकलने लगी|
एडिटर के चेहरे से लग रहा था कि वह बहुत कुछ कहना चाहता था पर अपनी मजबूरी में अपनी जबान को होंठो के पीछे धकेलता हुआ वह तेजी से कुर्सी की पुश्त की ओर झुक जाता है|
***
कॉफ़ी हाउस में सबसे कोने वाली टेबल पर आमने सामने मेनका और विवेक बैठे थे| इन्द्रधनुषी छतरी के नीचे इसी जगह कई टेबल थी और वे जहाँ बैठे थे वहां से समंदर का एक बड़ा टुकड़ा साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था| वहां से कुछ लोग दिख रहे थे जो रेतीली धूप पर बैठे धूप सेक रहे थे तो वही दूर से उन लहरों की ठंडी आहट को महसूस किया जा सकता था|
मेनका जहाँ भरपूर प्यार से उसे देख रही थी वही विवेक का हाव भाव में गहरा तनाव मौजूद था| विवेक अपना बैग अपने पैरो के पास रखे टेबल का फ्लावर पॉट घुमाने लगा था| मेनका अपना हाथ बढाकर धीरे से विवेक के हाथ पर अपना हाथ रख देती है जिससे विवेक का हाथ रुक जाता है और न चाहते हुए भी अब उसे मेनका की नज़रो में देखना पड़ता है|
“आज नही बताओगे कि ये प्रकृति हमसे क्या कह रही है – तुम कहते थे न कि ये प्रकृति किसी न किसी रूप में हम तक कुछ न कुछ सन्देश जरुर पहुंचाती है – बोलो न विवेक – क्या…?”
“मेनका !!” वह दबी आवाज में कहता झटके के साथ अपना हाथ छुडाता हुआ कहता है – “तुम यहाँ मुझसे जो कहने लायी थी वो कहो – मेरे पास फालतू बात के लिए समय नही है |”
“विवेक तुम कितना बदल गए हो – आखिर क्या हो गया है तुम्हे – कोई परेशानी है तो मुझसे कहो – मुझे बताओ – मैं…|”
“तुम कुछ नही कर सकती – |”
“लेकिन समझ तो सकती हूँ न -|”
“वो भी नही क्योंकि तुम जिस आज में खड़ी हो उसके बिलकुल उलट है मेरा आज जिसका अब कोई मेल नही – जैसे रात और दिन का कोई मेल नही होता |”
“अगर तुम मेरी अमीरी पर तंज कस रहे हो तो वो सब तो पहले भी था फिर आज ऐसा क्या हो गया – कल भी यही मेनका थी तुम्हारे सामने बस तुम ही बदल गए हो – तुम सारी कसमे वादे भूल सकते हो पर मैं नहीं – बताओगे फिर वो सब क्या था – बताओ |”
“मेनका तुम जिस कल की बात कर रही हो उस विवेक और मुझमे एक लम्बा अंतराल आ गया है – तुम्हारे मेरे बीच इतने गहरे फासले आ गए है जिन्हें पाट पाना अब नामुमकिन है इसलिए भूल जाओ उस कल को – अब इस आज को उस गुजरे कल का रूप नही दिया जा सकता – वक़्त ने मेरी एक नई शक्ल बना दी है जिसे तुम्हारी दुनिया अब आसानी से सह नही पाएगी |”
“विवेक !” मेनका फिर से उसका हाथ पकड़ लेती है – “ मुझे एक बार बताओ तो सही कि आखिर इस गुजरे वक़्त में ऐसा क्या हो गया जो मैं नही सुन सकती –ऐसा क्या हो गया कि हमारा प्यार इतना बेगाना हो गया – मैं तो वक़्त के साथ कुछ नही भूली फिर तुम सब क्यों भूल गए – मैं कल वाली ही मेनका तुम्हारे साथ आज भी खड़ी हूँ – एक बार उसी प्यार से मेरा हाथ थाम लो मैं सब कुछ छोड़कर तुम्हारे साथ चल दूंगी – मुझे खुद को साबित करने का मौका तो दो – मेरा वादा है तुमसे एक बार बस मेरा हाथ थामकर जहाँ कहोगे मैं ऑंखें मूंदे तुम्हारे साथ चल दूंगी – क्या ये विश्वास भी नही तुम्हे मुझपर ?”
“व्हाट इज योर ऑर्डर सर ?”
वेटर की आवाज सुन मेनका चुप हो जाती है| विवेक उससे अपना हाथ छुड़ा लेता है| मेनका भीगी पलके छिपाने अपना सर झुका लेती है जिससे वह ये नही देख पाई कि विवेक अपनी जेब से पर्स निकाल रहा था| उसकी आवाज सुनकर वह ऊपर देखती है|
“ये लो और मैडम को कुछ ठंडा पिलाओ |” इतना कहते हुए विवेक पर्स पुनः जेब में रखते हुए अपना बैग उठाकर बिना पीछे देखे चल देता है|
मेनका उसकी बात सुन भीगी पलकों से उसे दूर जाता हुआ देखती रहती है|
“व्हाट ड्रिंक वुड यू लाइक मैम ?”
क्या होगी इनके प्यार की नियति ? क्या विवेक अपने ही प्यार को अपने बदले के लिए इस्तेमाल कर पाएगा….?या प्यार के लिए बदला भूल जाएगा ?? जानने के लिए जुड़े रहे बेइंतहा से….बेइंतहा होकर…
क्रमशः………………..

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