
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 66
आकाश अपने केबिन में इत्मिनान से बैठा किसी प्रोजेक्ट की डिटेल में व्यस्त था|
वह दीपांकर को कह रहा था –
“मुझे किसी भी तरह से नासिक वाला ड्रीम प्रोजेक्ट दुबारा शुरू करना है – तुम इनिशिएट लेते इसका प्रोसेस शुरू करो साथ ही अगला टेंडर भी ऐसा तैयार करो कि वो हर हाल में हमे ही मिले – मैं इस बार इस टेंडर को किसी भी कीमत में नही खोना चाहता – समझे |”
उसके सामने दीपांकर बैठा सब समझ रहा था कि तभी आकाश के निजी मोबाईल की मेसेज टोन लगातार बजी तो वह बेख्याली में उसे उठाकर एक सरसरी नज़र देखता है|
सहसा कुछ ऐसा उसकी नजर में आता है कि उसके चेहरे के भाव एकाएक तन जाते है| वह अपशब्द प्रयोग करता मोबाईल पटककर रख देता है|
“क्या हुआ सर ?” दीपांकर हडबडाकर कर पूछता है|
“इस स्टैला ने मेरा जीना दूभर कर रखा है – मुझे ब्लैकमेल करने में उतर आई है -|” आकाश दांत पीसते हुए कहता रहा – “उन दो गधो से भी कुछ नही होता – उससे वे वो पैन ड्राइव भी हासिल नही कर पाए और इधर इसकी डिमांड बढती जा रही है – मेरा तो मन करता है उस बदजात औरत को अपने हाथो से खत्म कर दूँ |”
“अगर ऐसा ही है तो आप क्यों करेंगे किसी कॉन्ट्रैक्ट किलर को हायर कर सकते है|”
दीपांकर के कहते आकाश कुछ क्षण तक उसका चेहरा ताकता रहा फिर धीरे से कहता है – “फ़िलहाल मुझे वो पेन ड्राइव चाहिए –|”
“उसका भी रास्ता है सर – मैं एक शख्स को जानता हूँ जो ये काम कर सकता है |”
“ठीक है उससे मेरी मीटिंग कराओ |”
“बिलकुल सर – |”
तभी नॉक करके एक महिला कर्मचारी आकाश के कमरे में आती उसकी पसंदीदा कॉफ़ी टेबल पर रखती है|
उसे जाता देख दीपांकर उस महिला को टोकते हुए कहता है – “सुरेखा टेंडर की फाइल लेकर आओ |”
“जी सर – वो मिस रूबी के पास है – मैं उसे बोलती हूँ |” कहती हुई वह तुरंत ही बाहर निकल जाती है|
उसकी बात पर आकाश सोचने की मुद्रा में कह उठता है – “ये रूबी – इसने फिर ज्वाइन कर लिया !”
“लगता है सर आज ही किया – मैं तो इसे टरमिनेट करने वाला हूँ – उस दिन आपके पास भेजा तब भी उसे कुछ समझ नही आया – बहुत ढीठ है |” दीपांकर कहता है|
“इसकी यही हिम्मत तो मुझे तोडनी है – कोई जरुरत नही टर्मिनेट करने की – उसे जल्दी ही बताऊंगा मुझे इंकार करने का क्या नतीजा होता है – फिलहाल तुम उस आदमी में मेरा मुलाकात कराओ जल्दी |”
“ओके सर |” दीपांकर हामी भरता तुरंत उठ जाता है|
***
सेल्विन के दिए घर पर विवेक अपने सामान के साथ वापस आ गया था| वह अपने बैग से अपने कपड़े और कुछ जरुरी सामान निकालकर रख रहा था| तभी बैग से एक तस्वीर बाहर निकालते वह उसे कुछ पल तक निहारता रहता है| वह तस्वीर किसी महिला की थी जिसे देखते देखते उसके अंतरस कुछ दर्द सा उभर आया| वह उस तस्वीर के चेहरे पर हाथ फेरता धीरे से बुदबुदा उठता है –
‘मैं आपके लिए अपनी दुनिया की पसंद की हर चीज का त्याग कर सकता हूँ पर किसी भी चीज के लिए आपको नही भूल सकता – मैं आपके प्यार के एक एक पल की कीमत चुकाऊंगा – ये वादा है मेरा |’ कहते कहते विवेक का स्वर भारी और शब्द लड़खड़ा उठे| कुछ पल तक वह तस्वीर लिए एक ही अवस्था में बैठा रहा फिर उसके कुछ पल बाद वह फुर्ती से खुद को उठाते हुए तेजी से बाहर की ओर निकल जाता है|
अगले कुछ पल में वह किसी सरकारी मानसिक अस्पताल के सीनियर डॉक्टर के केबिन में था|
“मुझे अफ़सोस से कहना पड़ेगा कि उसकी हालत बिलकुल भी सुधरी नही है बल्कि कभी कभी इतनी बिगड़ जाती है कि उसे संभालना भी मुश्किल हो जाता है – उसे जब भी हमने दूसरे लोगो के साथ रखने की कोशिश की तब उसका व्यवहार और भी आक्रामक हो जाता है – उसे हम स्टील में खाना तक नही देते – उसे जैसे ही अपना जला चेहरा दिखता है तब वह खुद को ही नुक्सान पहुँचाने लगती है – ऐसे में आप ही बताए हम कैसे उसे डिस्चार्ज दे दे -|” डॉक्टर विवेक को गौर से देखते हुए कहता है – “मिस्टर विवेक – अरे आप कहाँ खो गए – आपने शायद मेरी बात सुनी नही |”
“जी हाँ सुनी लेकिन फिर भी मेरा वही कहना है कि मैं उसे अपने साथ ले जाना चाहता हूँ |”
“देखिए ये बेकार की जिद्द छोड़ दीजिए – आप उसे कहाँ ले जाएँगे – किसी न किसी हॉस्पिटल में तो उसे रखना ही पड़ेगा तो उसे यही रहने दे – आखिर इतने सालो से यही तो उसका इलाज चल रहा है – बेकार की जिद्द खामखा ही आपके साथ साथ दूसरो के लिए भी घातक साबित हो जाएगी |”
“मैं आपकी सारी बात समझ रहा हूँ पर आप मेरी बात नही समझ रहे – दरअसल उसकी जान खतरे में है |”
“क्या !! ये आप क्या कह रहे है ?” डॉक्टर अब घबरा गया था|
विवेक अब डॉक्टर की तरफ झुकता हुआ कह रहा था –
“मैं आपको एक गुप्त बात बताता हूँ – जिन लोगो ने उसकी ये हालत की है उन्हें उसके यहाँ होने की खबर लग चुकी है तो वह दुबारा उसे नुक्सान पहुंचाने की कोशिश करेगे – एसे में अगर हॉस्पिटल में ही हमला बोल दिया तो आप खुद को भी नही बचा पाएँगे |”
“पर..!! पिछले तीन साल से तो कुछ नही हुआ बल्कि तब से लेकर अबतक में आप ही वो पहले शक्स है जो उसकी खबर लेने आए |”
डॉक्टर सँभालते हुए बेहद चुनिदा शब्दों में अपनी बात कह रहा था|
“तो क्या – जैसे अब मैं आ गया उसे खोजते तो उनके आने में भी कोई देरी नही होगी – तब आप क्या करेंगे – बेवजह सिर्फ एक मरीज के खातिर आप बाकियों की जान तो बिलकुल खतरे में नहीं डालना चाहेंगे न इसलिए कह रहा हूँ मेरी बात मानिए और अपनी जान भी बचा लीजिए |”
ये सुनते डॉक्टर के चेहरे का रंग ही उड़ गया था|
आराम से कुर्सी की पीठ से सटकर बैठते विवेक डॉक्टर की हालत से नजर हटाकर डॉक्टर की पीठ की तरफ लगे एक स्लोगन की ओर नज़र जमा देता है जहाँ लिखा था – ‘हमारे मजबूत दिल और आपके विश्वास से हमे मौत से लड़ने की ताकत मिलती है|’
***
भूमि मानसिक रूप से इतनी परेशान थी कि बिना चेंज किए उन्ही कपड़ो में लेटी रह गई| एकाएक देर रात उसकी नींद खुली तो वह हड़बड़ाती हुई तुरंत ही अपने कमरे से निकलकर क्षितिज के कमरे तक दौड़ गई|
उसे इस बात की फ़िक्र हो गई कि क्षितिज अभी तक उसके इंतज़ार में जाग रहा होगा| रात में जब तक वह उसे बेडटाइम स्टोरी नही सुनाती वह कभी नही सोता| भूमि भी दिनभर कितना भी व्यस्त रहे तब वह भी उससे मिले बिना कभी सोने नही जाती थी| यही सोचते वह तेजी से उसके कमरे में आई|
वह दरवाजा खोलकर उसे आवाज लगाने ही वाली थी कि सामने उजला का इशारा पाते वह चुप रह गई| उजला होठ पर उंगली रखे उसे शांत रहने का इशारा कर रही थी| भूमि सकते में आई एक पल उजला को तो दूसरे पल क्षितिज को देखती है जो चैन से सोता हुआ दिख रहा था|
भूमि बिन आहट के क्षितिज के पास आती मुस्कराती हुई उसे हौले से चूमती हुई कमरे से बाहर निकल जाती है| उजला भी कमरे से बाहर आती हिचकिचाती हुई कह रही थी –
“क्षितिज आपका इंतजार कर रहा था पर मैंने ही उसे सुला दिया – सोचा आपको परेशान न करूँ |”
“हाँ वो तो ठीक क्या उजला पर वह तो बहुत जिद्दी है – आखिर माना कैसे तुम्हारी बात – मुझे इस बात का आश्चर्य है |”
“बच्चे तो मासूम होते है – उन्हें समझाकर और बहलाकर बात समझाई जा सकती है|”
इस पर भूमि मुस्कराती हुई उजला को देखने लगी फिर उसके अगले पल कहती है – “ठीक है अब तुमभी आराम करो – बहुत रात हो रही है|”
कहती हुई भूमि सुकून से अपने कमरे की ओर लौट जाती है|
***
डॉक्टर ने विवेक को उससे मिलने की इजाज़त दे दी जो इस समय सलाखों के पीछे थी| वे कतारबद्ध दो तीन कमरे किसी जेल से कम नही थे जहाँ क्रोनिक मानसिक मरीजो को जंजीरों में झकड़कर रखा जाता था| सबसे कोने वाले अँधेरे कक्ष में खड़ा विवेक सलाखों के पार उसको देख रहा था जो जिन्दा लाश का प्रत्यक्ष उदाहरण थी| विवेक का चेहरा पूरी तरह से भीगा हुआ था| वह उन अंधेरो में खुद को बहने से रोक नही पाया| आँखों से दर्द लहू की तरह बह निकला था|
उससे कुछ दूर खड़े डॉक्टर को विवेक का चेहरा तो साफ साफ़ नही दिखा पर उसकी टूटन का आभास उसे हो गया जिससे वह उसकी ओर आता हुआ पूछता है – “मैं तुमसे अपना फैसला बदलने को नही कहूँगा – मैं तो सिर्फ तुमसे एक सवाल का उत्तर पाना चाहता हूँ कि इतने सालो से तो तुम इससे मिलने कभी नही आए अब अचानक तुम इसे ले जाना चाहते हो आखिर इससे तुम्हारा क्या रिश्ता है ?”
विवेक चेहरा पोछते हुए कहता है –
“डॉक्टर – जानते हो – जब तुम किसी फूल की तरफ ये सोचकर हाथ बढ़ाते हो कि वह तुम्हे मिल ही जाएगा और तभी अचानक तेज हवा चलती है उसे तुम्हारी पहुँच से कही दूर उड़ा कर ले जाती है जाने किस अज्ञात दिशा की ओर और तुम्हारे हाथ में बस कांटे और रिसता हुआ खून ही रह जाता है – तब कैसा लगता है डॉक्टर – बताओगे मुझे ?”
“मैं समझा नही !”
“मेरी भी समझ में नही आया था जब अचानक से सुनहरा दिन फिसलकर काली रात के अँधेरे में बदल गया – एक ऐसी रात जब इन्सान इन्सान न रहकर हैवान बन गया – तब सारे रिश्ते और तमन्नाए बिखरकर गई – ये तुम नहीं समझोगे डॉक्टर – कभी नही समझोगे |”
“डॉक्टर साहब – आपका फोन आया है |” पीछे से कोई आवाज उन्हें टोकती है|
“अच्छा चलो मैं आता हूँ |”
डॉक्टर चला जाता है| विवेक गहरी गहरी सांसे छोड़ता हुआ फिर से उस जिन्दा लाश को देखने लगता है|
***
सुबह आंख खुलते ही भूमि सबसे पहले क्षितिज के पास आती पर आज उसके पास आते सब कुछ बिलकुल अलग सा दिखा| क्षितिज बिना नखरा स्कूल के लिए तैयार भी था| अपनी माँ की आहट पाते वह झटसे उसके पास दौड़ता उसके गले लग गया|
“वाह – आज तो मेरा बेटू स्कूल जाने को रेडी भी हो गया – कल जल्दी भी सो गया था – सच में बहुत बड़ा हो गया है मेरा क्षितिज |” भूमि उसे अपने अंक में लिए ममता लुटाती रही|
“अब से तो मैं रोज ही जल्दी सोऊंगा – जल्दी सोऊंगा तो अच्छे वाले सपने पहले मुझे आएँगे न !”
“मतलब !” भूमि उसका चेहरा प्यार से अपनी हथेली में समेटती हुई पूछ उठी|
“ओहो मम्मा आप नही समझी – जैसे जब हम शॉप में जाते है तो पहला बेस्ट सामान पहले आने वाले को मिलता है तो वैसा ही जब हम पहले सोएंगे तो पहला बेस्ट सपना भी तो मुझे मिलेगा और पता है मेरा बेस्ट सपना मुझे मिला कि मैं आप और डैडू के साथ पार्क में था और डैडू ने मेरी मनपसंद आइसक्रीम भी खिलाई |”
“वाह और ये अच्छी बात किसने बताई आपको ?”
अबकी क्षितिज अपनी भरपूर मुस्कान के साथ बस भूमि के पीछे उंगली से इशारा कर देता है| भूमि पलटकर देखती है वह उजला थी| वह उसे देख बस हौले से मुस्करा देती है|
“मम्मा अबसे आप भी जल्दी सो जाना तो आपको भी बेस्ट सपना मिलेगा |” वह अभी भी उतने उत्साह से बोल रहा था|
“हम्म..|” भूमि क्षितिज को अपने में समेट लेती है उसका सपना उसका सारा सच तो बस क्षितिज ही था|
***
क्षितिज को स्कूल भेजकर उजला जानकर काका के आस पास उसी समय पर बनी रही जब अरुण के कमरे तक चाय ले जाने का समय था| यूँ तो इन दो दिनों में उसे अच्छे से आभास हो गया कि उसका प्यार इतना रूठा है कि खुद को ही कैद करके खुद को ही सजा दे रहा है| मन तड़प उठता था पर उजला होने की अपनी सीमाएं थी| वह तो बस इस एक पल का इंतजार कर रही थी जब एक नज़र ही सही अपने प्यार का दीदार तो कर सकेगी|
वह उन्ही सहमे हाव भाव के साथ सीढियां पार करती उस तीसरे कमरे तक पहुंची| आज मन में सोच लिया था कि बिना आहट ही वह कमरे में जाएगी और जी भर नयन से देखती रहेगी| कोई वक़्त ये अधिकार उससे कैसे ले सकता है !!
वह दरवाजा हौले से धकेलकर अंदर आई और पल में उसकी ऑंखें चौंकती स्थिर हो गई| उसकी धड़कने बस थमते थमते रह गई| अरुण भी जागा हुआ दरवाजे की ओर ही देख रहा था| क्या इंतज़ार था उसे भी उसका !!!
वह लगातार उसकी ओर देखता रहा| उजला ने ट्रे रखी और जाने को जैसे ही हुई अरुण कह उठा –
“गिलास उठाकर दो |”
वह चुपचाप गिलास उसकी ओर बढ़ा देती है| अबकी फिर वह कमरे से बाहर निकलने वाली थी कि वह फिर कह उठा –
“ये गिलास वापस रख दो |”
वह उसे भी चुपचाप उसके हाथ से ले लेती है जबकि उसे आभास था कि अरुण की नज़रे ठीक उसी पर टिकी हुई थी|
वह फिर कमरे से बाहर निकलने लगी तो अरुण फिर कह उठा –
“काका को भेज दो |”
उजला जानकर बिन शब्द के सर हाँ में हिलाती जल्दी से कमरे से बाहर निकल जाती है| कमरे से वह यूँ हडबडाती हुई निकलती है मानो कुछ पल और ठहर गई तो उसकी बढ़ी हुई धड़कने ही उसके मन की चुगली कर देगी|
कमरे से बाहर आती वह एक गहरा उच्छ्वास छोड़ती खड़ी ही हुई थी कि काका पर नजर जाते वह उन्हें अरुण का सन्देश देती वहां से चली जाती है|
तभी उसे भूमि की आवाज मिलती है –
“अरे उजला – मैं तुम्हे ही बुलाने वाली थी|”
वह सीढ़ी से नीचे उतरती अब भूमि की ओर बढ़ गई| उसके सामने से आती हुई भूमि एक कागज उसकी ओर बढाती हुई कह रही थी –
“ये क्षितिज के दिन भर के टाइम टेबल का शेड्यूल है – जब तक मैं उसकी नई नैनी नही अपोइन्ट नही कर लेती तब तक थोड़ा उसे देख लेना |”
उजला धीरे से हामी में सर हिलाती हुई कागज उसके हाथ से ले लेती है| भूमि अब उसकी ओर गौर से देखती हुई पूछ रही थी –
“और हाँ उजला तुम्हे किसी भी चीज की जरुरत हो तो मुझे बता देना – बिलकुल भी संकोच नही करना – |”
वह फिर मौन ही सर हिलाती है|
“अच्छा एक बात बताओ – क्या तुम्हारे पास एक ही रंग की साड़ियाँ है क्या – कल भी यही रंग की पहनी थी |”
भूमि जिस बात को हँसते हुए बोल रही थी उसपर उजला संकोच से नज़रे नीची किए कह उठी –
“मेरे पास यही एक साडी है |”
“क्या !! हे भगवान् – ये बात तुमने मुझे बोला क्यों नही -|” भूमि आगे कुछ कहती तभी सीढ़ियों से नीचे आते काका उसकी ओर आते हुए दिखे जिनके हाथो के बीच कुछ सामान था| गौर से देखने में उसे समझते देर नही लगी कि वह कुछ नई साड़ियों के पैकेट थे|
“ये सब क्या है काका ? कहाँ से ला रहे है ?” भूमि चौंकती हुई पूछती है|
“बबुआ के कमरे से आ रहे है – आज पता नही क्या सूझी – ये सारा सामान मुझे निकालने को बोल दिया – पता नही क्या हो गया है – ऊ सादी के बाद से कुछ ज्यादा ही गुस्सा करने लगे है – अब सामान ने क्या बिगाड़ा है बस गुस्से में नई बहु का सारा सामान निकालने को बोल दिया – अभी तो ऊपर और भी सामान है – राम ही जाने पता नही क्या होगा |”
“कोई बात नही काका आप सब मेरे कमरे में रखा दे |”
काका उन बण्डल को लेकर जाने को ही हुए कि भूमि की आवाज सुनाई पड़ी –
“अरे एक मिनट काका |” कहती हुई भूमि काका की ओर बढ़ती उन पैकेट्स में से कुछ साड़ियाँ छांटकर निकालती हुई कहती है – “हाँ अब रख आए |”
काका उनके विपरीत चले जाते है और भूमि वे साड़ियाँ उजला की ओर बढाती हुई कहती है –
“ये रख लो और इसके अलावा मैं कल ही तुम्हे एक महीने की एडवांस पेमेंट दिलवा दूंगी जिससे अपनी जरुरत का जो सामान चाहना खरीद लेना – |”
उन साड़ियों को काका अरुण के कमरे से लाए थे जो तय थी कि उसी के लिए रखी गई थी पर इस तरह उसके पास आएंगी ये सोचती वह संकुचा उठी पर भूमि इसे कुछ ओर तरह का संकोच समझती हुई कह उठी –
“अब तुम्हे क्या बताऊँ कि ये सब किसके लिए थी – बड़े मन से एक एक चीज जोड़ी थी मैंने – सामान क्या प्यार था मेरा नवेली के प्रति – खैर छोड़ो – तुम इसे बेहिचक रखो – उजला सामान की भी अपनी नियति होती है – जिसके लिए भी लो पर उसे जिसके पास आना होता है वह उसतक पहुँच ही जाता है – इन्हें तुम्हारे पास ही आना तय था|” मुस्करा कर कहती हुई भूमि उजला के हाथो के बीच वह साड़ियाँ दे देती है अब उजला के पास इंकार करने का कोई तर्क नही रहता|
…..क्रमशः….